विशेष
इंडी गठबंधन की चुनौती है झारखंड के मुस्लिमों को साधना
तीसरे मोर्चे के तहत उम्मीदवार उतारने पर गंभीरता से हो रहा विचार
वोट बैंक दरका, तो झारखंड में कांग्रेस का हो जायेगा सूपड़ा साफ

झारखंड की सभी 14 संसदीय सीटों पर मुकाबले की तस्वीर साफ हो गयी है। इसके बाद अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए राजनीतिक दलों के बीच विभिन्न जातीय और दूसरे समीकरणों को साधा जा रहा है। लेकिन इसमें सबसे अधिक मुश्किल इंडी गठबंधन, खास कर कांग्रेस को हो रही है। इसका कारण यह है कि झारखंड के मुसलमान इस बार इंडी गठबंधन, खास कर कांग्रेस से खासे नाराज दिख रहे हैं। राज्य की करीब 18 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है और यह कांग्रेस का सबसे ठोस वोट बैंक है। कांग्रेस से मुसलमानों की नाराजगी का कारण यह है कि इस बार कांग्रेस ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है। गोड्डा सीट पर फुरकान अंसारी टिकट के दावेदार थे, लेकिन उनके स्थान पर प्रदीप यादव को टिकट दे दिया गया। इसी तरह धनबाद, रांची और चतरा में भी मुसलमानों को नजरअंदाज कर दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि मुसलमान इस बार खुल कर कांग्रेस के खिलाफ उतर गये हैं और अब वे तीसरे मोर्चे के तहत अपना उम्मीदवार उतारने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। मुसलमानों में कांग्रेस के विरोध का आलम यह है कि रांची से लेकर गोड्डा तक बैठकें आयोजित की जा रही हैं और कांग्रेस उम्मीदवारों का विरोध किया जा रहा है। कांग्रेस के लिए यह स्थिति बेहद चिंताजनक है, क्योंकि यदि उसका यह वोट बैंक दरक गया, तो फिर झारखंड से उसका सूपड़ा साफ होने से कोई नहीं बचा सकेगा। क्या है मुसलमानों के विरोध का कारण और इसका आसन्न चुनावों पर क्या असर हो सकता है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

लोकसभा चुनाव के दो चरणों का मतदान समाप्त हो चुका है। झारखंड की 14 लोकसभा सीटों पर अभी मतदान होना बाकी है। एनडीए और इंडी गठबंधन की ओर से सभी सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिये गये हैं। लेकिन किसी भी पार्टी की ओर से अल्पसंख्यक समुदाय, खास कर मुसलमान समुदाय के किसी व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाया गया है। खासकर इंडी गठबंधन की ओर से एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं देने से मुस्लिम समाज में नाराजगी है और वे अब गोलबंद होने लगे हैं। स्थिति यह हो गयी है कि मुस्लिम समाज के लोग विभिन्न स्थानों पर बैठक कर रहे हैं, जिनमें इंडी गठबंधन द्वारा अपने समुदाय की उपेक्षा पर रोष व्यक्त करते हुए उम्मीदवारों का विरोध करने पर विचार किया जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने कहा कि झारखंड में 18 फीसदी लोग उनके समुदाय के हैं। इसके हिसाब से तीन लोकसभा सीट पर उनकी हिस्सेदारी बनती है, लेकिन एक भी लोकसभा सीट के लिए प्रत्याशी उनके समाज से नहीं चुना गया। अगर उनकी मांग पूरी नहीं होगी, तो वे दूसरी रणनीति पर विचार करेंगे। मुस्लिम समाज के लोग यह भी याद दिलाते हैं कि राहुल गांधी ने कहा था कि जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उनकी उतनी भागीदारी होगी। लेकिन जब टिकट देने की बारी आयी, तो राहुल गांधी और कांग्रेस को यह नारा याद नहीं रहा। झारखंड में इस समुदाय को हाशिये पर डाल दिया गया।

कांग्रेस के खिलाफ मुसलमानों की बैठकों का यह सिलसिला केवल गोड्डा या धनबाद में नहीं चल रहा है, बल्कि रांची, चतरा, जमशेदपुर, कोडरमा, गिरिडीह और हजारीबाग तक में मुसलिम समुदाय की नाराजगी लगातार सामने आ रही है। बैठकों में इंडी गठबंधन के घटक दलों, कांग्रेस, झामुमो और राजद के अधिकतर मुस्लिम नेता मौजूद रहते हैं और उनके सामने ही गुस्से का इजहार किया जाता है। मुस्लिम समुदाय का गुस्सा खास कर कांग्रेस के प्रति है, जिसने किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया है, हालांकि उसके पास गोड्डा सीट से फुरकान अंसारी जैसा मजबूत उम्मीदवार उपलब्ध था। इसी तरह चतरा में कृष्णानंद त्रिपाठी की उम्मीदवारी का न केवल राजद के स्थानीय कार्यकर्ता, बल्कि कांग्रेसी और मुस्लिम समुदाय के लोग भी कर रहे हैं। रांची में तो स्थिति यह है कि मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली नेता अपने घरों में बंद हो गये हैं। जिस सुबोधकांत सहाय के लिए वे प्राण-प्रण से काम करने में जुटे रहते थे, वे अब उनके खिलाफ खुल कर बोल रहे हैं। उनकी बेटी को टिकट दिये जाने से वे बुरी तरह बिफरे हुए हैं। रांची के शहरी इलाकों के अलावा ग्रामीण इलाकों में भी मुस्लिम समुदाय के लोग कांग्रेस नेताओं से मिलना तक छोड़ रहे हैं। कई नेता तो सुबोधकांत सहाय का फोन तक नहीं उठा रहे हैं। सुबोधकांत सहाय की तरफ से लगातार उन्हें मनाने का प्रयास किया जा रहा है।

क्या कहते हैं मुस्लिम समाज के नेता
मुस्लिम समाज के नेताओं ने राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों द्वारा उपेक्षा करने का आरोप राजनीतिक दलों पर लगाया है। अंजुमन इस्लामिया के अध्यक्ष हाजी मुख्तार अहमद ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक नहीं, बल्कि उन्हें वाकई में राजनीति में भागीदारी भी अपने आपको सेक्युलर कहने वाले दल को देनी चाहिए। झारखंड में मुसलमानों की आबादी करीब 20 फीसदी होने का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि कम से कम लोकसभा की दो सीटों पर मुसलमान प्रत्याशी को जरूर मौका दिया जाना चाहिए था, मगर ऐसा नहीं हुआ, जिससे मुस्लिम समुदाय चिंतित है। अभी हाल ही में मुसलिम समुदाय की बैठक हुई थी, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ताओं और समाज के नुमाइंदों से जम कर कांग्रेस के खिलाफ आग उगली। कुछ नेताओं ने कहा कि हमारी हालत इसीलिए ऐसी हुई है, क्योंकि हम किसी के पिछलग्गू रहे हैं। हमें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।

विधायक इरफान बुरी तरह बिफरे
जामताड़ा से कांग्रेस विधायक डॉ इरफान अंसारी ने तो पार्टी नेतृत्व को चेतावनी दी है कि राज्य में एक भी सीट पर मुसलमान को उम्मीदवार नहीं बनाया जाना आत्मघाती कदम होगा। लोकसभा चुनाव के साथ-साथ आने वाले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि 18 प्रतिशत आबादी होने के बावजूद झारखंड में एक लोकसभा सीट मुसलमान को नहीं देना पार्टी की बहुत बड़ी भूल और आत्मघाती कदम होगा। पार्टी के इस निर्णय से समाज में भारी आक्रोश है। इतनी बड़ी आबादी को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। कुछ नेताओं ने भ्रम फैलाया है कि अगर मुसलमान को टिकट दिया गया, तो वोटों का ध्रुवीकरण हो जायेगा।

कब कितने मुसलमान मैदान में उतरे
2019 के लोकसभा चुनाव में भी राजनीतिक दलों ने झारखंड में मुसलमानों को नजरअंदाज किया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन इसमें कोई भी सफल नहीं हो पाया। उस चुनाव में झारखंड में 21 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतरे थे, जिनमें कांग्रेस के फुरकान अंसारी गोड्डा से चुनाव लड़े थे। 2004 में फुरकान अंसारी ने जीत हासिल की थी। 2009 में रांची से सबसे ज्यादा पांच मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे। वहीं राज्य गठन के बाद 2004 के पहले लोकसभा चुनाव में सभी आठ सामान्य सीटों पर 111 उम्मीदवार खड़े हुए थे। इसमें 10 मुस्लिम उम्मीदवार थे। बात यदि 2009 की लोकसभा चुनाव की करें, तो आठ सामान्य सीटों पर कुल 166 उम्मीदवारों में से 17 मुस्लिम उम्मीदवार थे, जिसमें सबसे ज्यादा रांची से पांच मुस्लिम उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे थे। 2014 के चुनाव में कुल 164 उम्मीदवार खड़े हुए। इनमें 21 मुस्लिम थे।

अपना उम्मीदवार उतार सकते हैं मुसलमान
वर्तमान राजनीतिक माहौल में इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि मुसलमान अपना उम्मीदवार उतार दें। जानकारी मिल रही है कि इसके लिए कुछ संभावित उम्मीदवारों ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम से संपर्क भी साधा है। कुछ इलाकों में मुसलिम नेता सर्वे भी करा रहे हैं। एक-दो दिन में सर्वे का काम पूरा हो जायेगा। उसके बाद वे किसी नतीजे पर पहुंचेंगे। राज्य की अनारक्षित सीटों में से चार के लिए अभी नामांकन दाखिल करने का काम शुरू नहीं हुआ है। ऐसे में चर्चा है कि इन चार सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो जाये। यदि ऐसा हुआ, तो यह कांग्रेस के लिए बेहद खतरनाक होगा, क्योंकि मुस्लिमों का एकमुश्त वोट उसे हमेशा से मिलता रहा है, जो इस बार नहीं मिलेगा।

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