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भाजपा के निशिकांत और कांग्रेस की दीपिका के बीच कहां हैं मुसलमान!
झारखंड की पहली सीट, जहां इंडिया गठबंधन की प्रत्याशी को लेकर मुसलमान गुस्से में हैं
झारखंड के ‘मिथिलांचल’, यानी गोड्डा संसदीय क्षेत्र में मुकाबले की तस्वीर साफ हो गयी है। यहां 17वीं लोकसभा में सबसे सक्रिय सांसद डॉ निशिकांत दुबे के मुकाबले कांग्रेस ने महगामा की विधायक दीपिका पांडेय सिंह को उतारा है, जो उसी ब्राह्मण जाति से आती हैं, जिसकी इस क्षेत्र में बहुलता है। दीपिका पांडेय सिंह के मुकाबले में उतरने से यह तय हो गया है कि इस बार गोड्डा संसदीय क्षेत्र दो ब्राह्मणों के मुकाबले का गवाह बनेगा। गोड्डा झारखंड का इकलौता ऐसा संसदीय क्षेत्र है, जहां ब्राह्मणों की संख्या निर्णायक है। शायद यही कारण है कि कांग्रेस ने अपने नेता राहुल गांधी की बहुप्रचारित ‘मुहब्बत की दुकान’ का शटर यहां गिरा दिया और एक ब्राह्मण को टिकट दे दिया, जिसका विरोध भी बड़े पैमाने पर होने लगा है। गोड्डा के बारे में कहा जाता है कि ब्राह्मण और मुस्लिम ही यहां की जीत-हार तय करते हैं। इसलिए भाजपा के डॉ निशिकांत दुबे की राह अब आसान नजर आने लगी है, क्योंकि इन दोनों की गोलबंदी अब नहीं हो सकती। दूसरी तरफ दीपिका पांडेय सिंह के सामने अपनी पार्टी के साथ इंडी गठबंधन के दूसरे घटक दलों के नेताओं को साथ लाने की चुनौती है। इसके अलावा मुसलमानों में जो विरोध के स्वर पैदा हुए हैं, उससे पार पाना भी उनके लिए आसान नहीं होगा। वैसे डॉ दुबे और दीपिका पांडय सिंह में कई समानताएं हैं। कौन अपनी ताकत का बेहतर इस्तेमाल करता है और कमजोरियों पर नियंत्रण पाता है, यह तो 4 जून को पता चलेगा, लेकिन फिलहाल तो चुनावी रोमांच बढ़ रहा है। गोड्डा के क्या हैं समीकरण और क्या है चुनावी परिदृश्य, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड की एकमात्र ब्राह्मण बहुल सीट, गोड्डा में इस बार का चुनावी मुकाबला वास्तव में ‘बैटल आॅफ ब्राह्मण’ होने जा रहा है। गोड्डा लोकसभा सीट के इतिहास में पहली बार है कि मुख्य मुकाबले में महिला उम्मीदवार हैं। इस सीट पर भाजपा ने डॉ निशिकांत दुबे को उम्मीदवार बनाया है, वहीं लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस ने यहां से अपने उम्मीदवार की घोषणा की और महगामा विधायक दीपिका पांडेय सिंह को टिकट दिया। कांग्रेस की दीपिका पांडेय सिंह को उम्मीदवार घोषित करने से कुछ दिन पहले ही तीन बार के सांसद निशिकांत दुबे ने कहा था कि यदि प्रदीप यादव और फुरकान अंसारी को उम्मीदवार बनाया जाता है, तो वह प्रचार नहीं करेंगे। उनके कार्यकर्ता ही चुनाव जिता देंगे। शायद इसलिए कांग्रेस ने उनके सामने एक ब्राह्मण प्रत्याशी उतारा है।
क्या है निशिकांत दुबे और दीपिका पांडेय सिंह में समानता
गोड्डा लोकसभा सीट के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि मुख्य मुकाबले में ब्राह्मण उम्मीदवार आमने-सामने हैं। दोनों ही कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं। वैसे गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में ब्राह्मणों की आबादी करीब चार लाख है, जिसमे अधिसंख्य मैथिल ब्राह्मण हैं। यही वजह है कि गोड्डा को ‘झारखंड का मिथिलांचल’ भी कहा जाता है। दोनों प्रत्याशियों का शैक्षणिक रिकॉर्ड देखा जाये, तो दोनों ने एमबीए की डिग्री ले रखी है। दोनों ही उच्च शिक्षा प्राप्त हैं।
राजनीति में दोनों का स्ट्राइक रेट बढ़िया
निशिकांत दुबे ने पहली बार गोड्डा लोकसभा से 2009 में भाग्य आजमाया और जीत दर्ज की थी। इसके बाद उन्होंने 2014 और 2019 में जीत कर हैट्रिक लगायी है। अब वह अपनी चौथी जीत के लिए कोशिश कर रहे हैं। वहीं दीपिका पांडेय सिंह ने भी पहली बार 2019 में महगामा विधानसभा सीट से भाग्य आजमाया और जीत दर्ज की। अब वह गोड्डा लोकसभा सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार हैं।
निशिकांत दुबे और दीपिका पांडे में भिन्नता
निशिकांत दुबे जब पहली बार गोड्डा से चुनाव लड़ने आये, तो वह क्षेत्र से पूरी तरह परिचित नहीं थे। वह खुद कह चुके हैं कि पहली बार जब चुनाव लड़ने आये, तो उन्हें देवघर से गोड्डा का रास्ता भी पता नहीं था, लेकिन आज की तारीख में निशिकांत दुबे को गोड्डा का हर व्यक्ति जानता है। उनकी पहचान एक मंजे हुए और आक्रामक तेवर वाले नेता के रूप में हो चुकी है। वह संसद में भी अपनी पहचान बना चुके हैं और झारखंड में वह झामुमो और कांग्रेस पर हमला करने का कोई मौका नहीं चुकते। दूसरी तरफ दीपिका पांडेय सिंह का मायका हो या ससुराल, दोनों ही पक्ष राजनीति से जुड़े रहे हैं। दीपिका पांडेय सिंह के पिता अरुण पांडेय संयुक्त बिहार में पार्षद थे, तो मां प्रतिभा पांडेय समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष रही हैं। ये पुराने कांग्रेसी रहे हैं। दीपिका पांडेय लगातार संगठन में काम करती रहीं। पहले वह कांग्रेस की झारखंड युवा कांग्रेस की महासचिव निर्वाचित हुईं। फिर राष्ट्रीय महिला मोर्चा की सचिव रहीं। फिर गोड्डा जिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। फिलहाल वह राष्ट्रीय कांग्रेस की सचिव हैं।
गोड्डा में बंद हो गयी कांग्रेस की मुहब्बत की दुकान
गोड्डा से दीपिका पांडेय सिंह को टिकट देकर कांग्रेस ने संसदीय क्षेत्र के जातीय समीकरण को अपने पक्ष में करने की कोशिश जरूर की है, लेकिन उसके इस फैसले से उसकी मुहब्बत की दुकान पूरी तरह बंद हो गयी है। इसलिए मुसलमान उससे नाराज हो गये हैं। गोड्डा के पूर्व सांसद फुरकान अंसारी और उनके विधायक पुत्र डॉ इरफान अंसारी ने तो यहां तक कह दिया है कि कांग्रेस गोड्डा सीट से चुनाव हार रही है। यह पहली बार है, जब मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के खिलाफ खुल कर बोल रहे हैं और उसकी मुहब्बत की दुकान की खिल्ली उड़ा रहे हैं। सोशल मीडिया पर मुसलिम नेता यह सवाल कर रहे हैं कि नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकान कैसे खुलेगी? झारखंड की 14 सीट में एक भी मुालमान को इंडिया गठनबंधन ने टिकट नहीं दिया। वह सवाल कर रहे हैं कि हिम्मत है सच्चाई को बोलने और मुकाबला करने की हममे… रांची सहित झारखंड में हम कहां? यह सवाल सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। जाहिर है मुस्लिमों की इस नाराजगी का असर केवल गोड्डा में ही नहीं, पूरे झारखंड में पड़ेगा।
गोड्डा का जातीय आंकड़ा
गोड्डा संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं के जातिगत आंकड़ों पर गौर करने से स्थिति काफी कुछ साफ होती दिखती है। गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 19 लाख 95 हजार 192 है। यहां सर्वाधिक चार लाख की आबादी ब्राह्मणों की है, जबकि मुस्लिम साढ़े तीन लाख के आसपास हैं। यादवों की आबादी ढाई लाख है। इसके अलावा वैश्य की आबादी ढाई से तीन लाख है और आदिवासियों की आबादी डेढ़ से दो लाख और राजपूत, भूमिहार और कायस्थ की संख्या एक लाख के करीब है। शेष पंचगनिया दलित हैं। इस आंकड़े से यह साफ हो जाता है कि ब्राह्मणों की इतनी बड़ी आबादी यदि एकमुश्त किसी को वोट दे दे, तो फिर उसकी जीत को कोई रोक नहीं सकता है। डॉ दुबे इसी जाति से आते हैं और उनकी प्रतिद्वंद्वी दीपिका पांडेय सिंह भी। दोनों को स्वजातीय वोटरों पर भरोसा है। वैसे निशिकांत दुबे इससे पहले तीन बार ब्राह्मण मतदाताओं का पूरा सहयोग पा चुके हैं और इस बार भी वह उत्साहित हैं। भाजपा के पास ब्राह्मणों के अलावा दूसरी सवर्ण जातियों और भाजपा के कोर वोटर रहे वैश्य समुदाय का समर्थन भी है, जबकि दीपिका पांडेय सिंह का मुसलमानों ने जिस तरह विरोध किया है, उससे तो यही लगता है कि इस वर्ग का वोट उनसे जरूर दूर छिटकेगा। ब्राह्मण वोटर पहले कांग्रेस के साथ जुड़े रहे, लेकिन मोदी काल के बाद ये पूरी तरह से भाजपा के लिए वोट करते हैं। वे भाजपा को वोट तो नहीं देंगे, मतदान से वह दूरी बना सकते हैं।
गोड्डा का सियासी इतिहास
गोड्डा लोकसभा सीट को भले ही आज भाजपा का गढ़ माना जाता है, लेकिन इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें, तो इस सीट पर कभी कांग्रेस का राज हुआ करता था। वर्तमान में यहां कांग्रेस दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती है। आखिरी बार 20 साल पहले साल 2004 में कांग्रेस के फुरकान अंसारी यहां से सांसद बने थे। उसके बाद गोड्डा में निशिकांत दुबे की इंट्री हुई और बीते तीन टर्म से निशिकांत यहां से सांसद हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने एक बार फिर उन पर ही भरोसा जताया है। निशिकांत ने गोड्डा में इंट्री के साथ ऐसा तूफान पैदा किया कि गोड्डा में कांग्रेस फिर वापस ही नहीं आ पायी। भाजपा ने अब तक गोड्डा से आठ बार और कांग्रेस ने छह बार जीत दर्ज की है। यहां क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा काफी कम रहा है। इस सीट के लिए मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही चला है। 1977 के चुनाव में गोड्डा सीट पर जेपी आंदोलन का असर दिखा और 1977 में भारतीय लोक दल पार्टी से जगदंबी प्रसाद यादव सांसद बने और 1991 में झारखंड मुक्ति मोर्चा से सूरज मंडल ने यहां से जीत हासिल की थी। इसके अलावा गोड्डा सीट पर कभी भी क्षेत्रिय पार्टियों की वापसी नहीं हुई है।
गोड्डा का राजनीतिक परिदृश्य
गोड्डा संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाले तीन जिलों की छह विधानसभा सीटों में एक देवघर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 2019 के विधानसभा चुनाव में इन छह में से दो सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था, जबकि दो पर कांग्रेस और एक-एक पर झामुमो और झाविमो की जीत हुई थी। बाद में झाविमो के विधायक प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गये। इस तरह अभी चार सीट विपक्षी गठबंधन के पास और दो सीट भाजपा के पास है। देवघर सीट से वर्तमान में भाजपा के विधायक नारायण दास हैं, जबकि गोड्डा से अमित मंडल विधायक हैं। मधुपुर से झामुमो के हफीजुल अंसारी विधायक हैं। जरमुंडी, महगामा और पोड़ैयाहाट से क्रमश: कांग्रेस के बादल पत्रलेख, दीपिका पांडेय सिंह और प्रदीप यादव विधायक हैं। गोड्डा विधानसभा सीट से भाजपा के अमित मंडल और पोड़ैयाहाट से झाविमो के प्रदीप यादव विधायक हैं।
गोड्डा लोकसभा क्षेत्र के मुद्दे
बड़ा सवाल है कि गोड्डा में किन मुद्दों पर चुनाव लड़ा जायेगा। गोड्डा के ललमटिया में राजमहल कोल परियोजना के अंतर्गत एशिया का सबसे बड़ा कोयला पिट है। मुद्दा यह है कि स्थानीय ग्रामीणों को इसका कितना लाभ मिलता है। गोड्डा शहर में 16 सौ मेगावाट क्षमता वाला अडाणी का पावर प्लांट है। समझौते के मुताबिक इसका 25 फीसदी झारखंड को मिलना था, लेकिन नहीं मिल रहा है। गठबंधन इसे यहां मुद्दा बनायेगा। गोड्डा में बांग्लादेशी घुसपैठ एक बड़ी समस्या है। भाजपा इसे यहां बड़ा मुद्दा बना चुकी है। इसके अलावा गरीबी, पलायन और रोजगार जैसे मुद्दे तो हैं ही। लेकिन अभी से ही यहां जिस तरह जातीय गोलबंदी की कोशिशें होने लगी हैं, उससे तो यही लगता है कि यहां सबसे ऊपर जाति का ही मुद्दा रहेगा।