विशेष
-कांग्रेस और राजद में बढ़ी रार, भाकपा ने चार सीटों पर ठोक दी ताल
-लोहरदगा और कोडरमा में चमरा लिंडा और जयप्रकाश वर्मा अटका रहे हैं रोड़े
लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए गठबंधन से लोहा लेने के लिए विपक्षी दलों ने इंडी गठबंधन तैयार किया है, लेकिन चुनाव की तारीखों के एलान के बाद झारखंड में यह गठबंधन दो दलों झामुमो और कांग्रेस के बीच सिमट कर रह गया है। चतरा सीट को लेकर कांग्रेस और राजद के बीच अनबन हो गयी है, तो लोहरदगा से चमरा लिंडा और कोडरमा से जयप्रकाश वर्मा ने ताल ठोक कर परेशानी बढ़ा दी है। पश्चिम बंगाल के बाद झारखंड ऐसा दूसरा प्रदेश है, जहां इस गठबंधन में बिखराव सामने आ गया है। पश्चिम बंगाल में तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि उनके राज्य में इंडी अलायंस का कोई वजूद नहीं है और कांग्रेस-माकपा पूरी तरह भाजपा के पक्ष में हैं। इससे पहले उन्होंने कांग्रेस को नजरअंदाज करते हुए राज्य की सभी 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिये। इसी तरह झारखंड में भी इंडी अलायंस के घटक भाकपा ने गठबंधन से बाहर निकलने का एलान करते हुए चार सीटों, पलामू, खूंटी, लोहरदगा और दुमका पर प्रत्याशी उतार दिया है। पार्टी ने चार और सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया है और उसके लिए प्रत्याशियों की घोषणा बाद में की जायेगी। इससे पहले राजद ने राज्य की दो सीटों पर घोषित अपने उम्मीदवारों को वापस लेने से इनकार कर इंडी गठबंधन के बिखरने की रही-सही प्रक्रिया को पूरा कर दिया है। राजद ने साफ कर दिया है कि उसे कांग्रेस-झामुमो के 7-5-1-1 का फॉर्मूला स्वीकार्य नहीं है। इन दोनों पार्टियों की घोषणाओं के साथ अब एक बात साफ नजर आने लगी है कि इंडी अलायंस कम से कम झारखंड में तो टूट चुका है। झारखंड में विपक्षी गठबंधन के बिखरने का क्या हो सकता है असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
लोकसभा चुनाव के लिए तृणमूल कांग्रेस ने जैसे ही पश्चिम बंगाल में उम्मीदवारों की सूची जारी की, वैसे ही कांग्रेस और इंडी अलायंस को तगड़ा झटका लगा। अब ऐसा ही एक और झटका इस अलायंस को झारखंड में भी लगा है।
भाकपा ने खत्म किया गठबंधन का वजूद
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने झारखंड में गठबंधन से अलग होने का एलान करते हुए राज्य की चार सीटों के लिए उम्मीदवारों का एलान कर दिया है। बाकी चार सीटों पर उम्मीदवारों का एलान बाद में किया जायेगा। इस तरह भाकपा ने झारखंड में इंडी अलायंस का वजूद खत्म कर दिया है। भाकपा ने खूंटी, लोहरदगा, पलामू और दुमका के लिए अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दी है। अब रांची, हजारीबाग, राजमहल और कोडरमा से प्रत्याशियों की घोषणा होनी है। भाकपा के नेताओं ने कहा कि पार्टी की राज्य कार्यकारिणी समिति की बैठक में और हैदराबाद राष्ट्रीय परिषद की बैठक में दुमका सहित झारखंड की आठ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। इन सभी सीट पर पार्टी पूरे दमखम के साथ चुनाव में उतरेगी। पार्टी का कहना है कि संथाल परगना में भाजपा-झामुमो का जो तमाशा-नाटक चल रहा है, जनता इसका जवाब देगी। बता दें कि हजारीबाग में 2004 में भाकपा के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता सांसद रह चुके हैं। इसलिए हजारीबाग से तो वह हर हाल में लड़ेगी।
चतरा और पलामू सीट के लिए अड़े लालू यादव
झारखंड में इंडी अलायंस का सिरदर्द उस समय और बढ़ गया, जब राजद ने चतरा और पलामू से घोषित प्रत्याशियों को वापस लेने से इनकार कर दिया। इंडी गठबंधन में सीट शेयरिंग का जो फॉर्मूला तैयार किया गया है, उसके मुताबिक राजद को केवल पलामू सीट मिली थी। फॉर्मूले के अनुसार झारखंड की सात सीटों पर कांग्रेस और पांच पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार होंगे। बाकी एक सीट, कोडरमा भाकपा-माले के पास है, जिसने विधायक विनोद सिंह को मैदान में उतारा है। राजद का शीर्ष नेतृत्व इस पर सहमत नहीं है। लालू प्रसाद यादव चतरा और पलामू सीटों पर अपने उम्मीदवार दे चुके हैं और उन्होंने इनमें से किसी को भी वापस लेने से इनकार कर दिया है। इससे कांग्रेस और राजद के रिश्तों में खटास आ गयी है। माना जा रहा है कि बिहार में राजद ने सीट शेयरिंग में ड्राइविंग सीट पर बैठ कर फैसले किये। इसके चलते कांग्रेस को नौ सीटें तो चुनाव लड़ने के लिए मिल गयीं, लेकिन कई सीटें कांग्रेस को उसकी पसंद की नहीं मिली हैं। अब झारखंड में सीट शेयरिंग में ड्राइविंग सीट पर कांग्रेस है। कांग्रेस भी वही कर रही है, जो बिहार में उसके साथ हुआ है, लेकिन राजद इसके लिए तैयार नहीं है।
झामुमो के चमरा लिंडा और जयप्रकाश वर्मा ने लोहरदगा और कोडरमा पर ठोंकी दावेदारी
उधर झामुमो के विधायक चमरा लिंडा ने लोहरदगा सीट से चुनाव लड़ने का एलान कर कांग्रेस की मुसीबत बढ़ा दी है। लोहरदगा लोकसभा सीट पर चमरा लिंडा के दावा करने के पीछे एक वजह भी है। इस क्षेत्र में वह एक मजबूत नेता के रूप में जाने जाते हैं। तीन लोकसभा चुनाव का परिणाम तो कुछ ऐसा ही कहता है। चुनावी आंकड़ों पर गौर करें, तो साल 2004 के चुनाव से लेकर साल 2014 तक के चुनाव में चमरा लिंडा ने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों की नींद उड़ा दी थी। साल 2004 के चुनाव में चमरा लिंडा लोहरदगा लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे। उन्होंने 58947 वोट लाकर सबको हैरान कर दिया था। वर्ष 2009 के चुनाव में फिर एक बार चमरा लिंडा चुनाव मैदान में थे। उस बार भी वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। उन्हें 136345 वोट प्राप्त हुए थे और वह दूसरे स्थान पर रहे थे। साल 2014 के चुनाव में आॅल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में चमरा लिंडा को 118355 वोट मिले थे। इसी तरह कोडरमा से झामुमो के जयप्रकाश वर्मा ने चुनाव लड़ने की घोषणा कर माले प्रत्याशी विनोद सिंह की परेशानी बढ़ा दी है। उन्होंने कहा है कि हेमंत सोरेन ने उन्हें चुनाव लड़ने की तैयारी करने को कहा था और वह तैयारी कर रहे हैं। वह हर हाल में कोडरमा से झामुमो उम्मीदवार होंगे। अब देखना यह है कि झामुमो उन्हें कैसे मनाता है।
झारखंड से कांग्रेस को उम्मीद
झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 11 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि एक गिरिडीह सीट आजसू के खाते में गयी थी, एक राजमहल सीट झामुमो और सिंहभूम की एक सीट कांग्रेस के खाते में गयी थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सात सीटों पर लड़ी थी, जबकि झामुमो ने चार पर, झाविमो ने दो पर और राजद ने एक सीट पर प्रत्याशी दिया था। इसके छह महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 16 विधायक जीत कर आये थे। उस लिहाज से देखा जाये तो कांग्रेस ऐसी मांग कर सकती है, लेकिन झामुमो इस बारे में क्या सोच रखता है, यह तो आने वाला समय तय करेगा। 2019 के लोकसभा का ट्रैक रिकॉर्ड अगर देखा जाये, तो झामुमो और कांग्रेस ने एक-एक सीट पर ही बाजी मारी थी। हो सकता है कि यहां कांग्रेस को कम झटका लगे, लेकिन चुनावी परिणाम में उसे झटका लग सकता है।
झारखंड में शुरू से ही हिचकोले खा रहा है गठबंधन
झारखंड में सत्तारूढ़ तीन पार्टियों, झामुमो, कांग्रेस और राजद की मिली-जुली सरकार चल रही है और ये तीनों दल इंडी अलायंस में शामिल हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर भाकपा के एलान के बाद इस अलायंस को बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती बन गयी है। झारखंड में इंडी अलायंस में इन तीन दलों के अलावा भाकपा, माकपा और भाकपा माले शामिल हैं। जदयू इस अलायंस से बाहर निकल चुका है। गठबंधन के भीतर शुरू से ही मतभेद की बातें सामने आने लगी थीं।
इस चुनाव में कांग्रेस को बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अभी तक चार सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित नहीं होने के पीछे मुख्य कारण यह है कि एक-एक सीट पर उसके कई-कई उम्मीदवार हैं। धनबाद, रांची और चतरा में कई उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं। इनमें से चुनना प्रदेश नेतृत्व के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। इसी तरह लोहरदगा में तो उसने अपना उम्मीदवार उतार दिया है, लेकिन सुखदेव भगत का कितना साथ बंधु तिर्की और रामेश्वर उरांव देंगे, यह समय ही बतायेगा।