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कल्पना सोरेन जीतीं, तो मिलेगी उनके हौसलों को नयी उड़ान और पहचान
भाजपा के प्रदेश नेतृत्व के सामने भी है जनाधार साबित करने की चुनौती

झारखंड में लोकसभा चुनाव से ज्यादा जिस चुनाव की चर्चा इन दिनों है, वह है गांडेय विधानसभा क्षेत्र में 20 मई को होनेवाला उपचुनाव। यह सीट राज्य की किसी भी संसदीय सीट से अधिक चर्चित इसलिए है, क्योंकि यहां से राज्य की पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन झामुमो की तरफ से मैदान में हैं। झारखंड की पांचवीं विधानसभा का यह छठा उपचुनाव है, लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि गांडेय से झारखंड की राजनीति की भावी दशा-दिशा तय होगी। कल्पना सोरेन के सामने भाजपा के दिलीप वर्मा हैं, जिन्हें न केवल झामुमो से इस सीट को छीनना है, बल्कि पार्टी के प्रदेश नेतृत्व के सामने जनाधार भी साबित करना है। जहां तक झामुमो का सवाल है, तो गांडेय उसके लिए ‘करो या मरो’ वाली स्थिति पैदा कर रहा है। यहां से यदि कल्पना सोरेन जीतती हैं, तो यह उनके छोटे से राजनीतिक जीवन की शायद सबसे बड़ी कामयाबी होगी और उनकी पहचान को नयी ऊंचाइयां मिल जायेंगी। इतना ही नहीं, अपने श्वसुर शिबू सोरेन की अस्वस्थता और जमीन फर्जीवाड़े मामले में उनके पति हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से राजनीतिक परिदृश्य से अनुपस्थिति के कारण पैदा हुए शून्य को भी वह भरने में कामयाब हो जायेंगी। कल्पना सोरेन का यह नया अवतार झामुमो के लिए भी संजीवनी का काम करेगा। और अगर ऐसा नहीं हो पाया, तो झामुमो के लिए इससे बड़ा सेट बैक कुछ और नहीं होगी। इतना ही नहीं, गांडेय का उपचुनाव यह भी तय करेगा कि झारखंड में बड़ी राजनीतिक हैसियत बाबूलाल मरांडी की है या हेमंत सोरेन की। सुदेश महतो की जमीनी पकड़ की भी यहां परीक्षा होगी। इस तरह गांडेय विधानसभा उपचुनाव का परिणाम झारखंड की भी राजनीतिक दिशा तय करेगा और चुनाव जीतनेवाले का भी। गांडेय विधानसभा उपचुनाव की संभावनाओं और झारखंड की राजनीति पर पड़नेवाले इसके असर का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

झारखंड मेंलोकसभा चुनाव की गहमा-गहमी के बीच जो चुनाव ज्यादा चर्चित हो रहा है, वह है गिरिडीह संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाले गांडेय विधानसभा क्षेत्र में होनेवाला उपचुनाव। गांडेय का उपचुनाव इसलिए इतना चर्चित हो गया है, क्योंकि यहां से राज्य के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन चुनाव मैदान में उतरी हैं। दूसरी तरफ उनके सामने भाजपा ने अपने तेज-तर्रार और अनुभवी प्रदेश सचिव दिलीप वर्मा को उतारा है। गांडेय सीट पिछले साल 31 दिसंबर को झामुमो के डॉ सरफराज अहमद के इस्तीफा देने के कारण खाली हुई थी। यहां 20 मई को मतदान होगा।

कल्पना सोरेन के चुनाव लड़ने के पीछे की रणनीति क्या है
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद कल्पना सोरेन को एक मजबूत नेता के रूप में खड़ा करने की रणनीति है। इन दिनों कल्पना और बसंत सोरेन पार्टी की कमान संभाल रहे हैं। सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन ने भाजपा का दामन थाम लिया है और खुद शिबू सोरेन उम्रजनित समस्याओं को लेकर सक्रिय नहीं हैं। पति हेमंत सोेरेन के जेल जाने के बाद पार्टी में पैदा हुए शून्य को भरने के लिए एक सोची-समझी रणनीति के तहत कल्पना सोरेन को जिम्मेदारी सौंपी गयी थी, जिसे उन्होंने अपनी राजनीतिक समझ से सही साबित किया है। अब वह सीधे चुनाव मैदान में उतर गयी हैं, तो इससे उनका कद भी बढ़ा है।

इस साल 30 जनवरी को विधायक दल की बैठक में पहली बार कल्पना सोरेन शामिल हुईं। उससे पहले 31 दिसंबर को गांडेय सीट खाली करायी गयी थी। कल्पना सोरेन के विधायक दल की बैठक में शामिल होने के बाद चर्चा होने लगी कि वह हेमंत के बाद मुख्यमंत्री बनेंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसी बीच सीता सोरेन ने बगावत कर दी और भाजपा में चली गयीं। तब तक कल्पना सोरेन बैकफुट पर रहीं, लेकिन उन्हें सामने लाने की तैयारी पार्टी के अंदर चलती रही। 6 फरवरी को हेमंत सोरेन के सोशल मीडिया अकाउंट के संचालन की जिम्मेवारी का एलान कर कल्पना ने पहली बार राजनीति के मैदान में उतरने का संकेत दिया। इसके बाद कल्पना सक्रिय हो गयीं और गिरिडीह में झामुमो के स्थापना दिवस समारोह में शामिल होकर उन्होंने राजनीति में उतरने का एलान भी कर दिया। वह 4 मार्च का दिन था। इसके बाद वह सीट बंटवारे से लेकर पार्टी के हर रणनीतिक फैसले में शामिल रहीं और अब चुनावी राजनीति में उतर गयी हैं।

गांडेय सीट ही क्यों चुनी गयी
गांडेय सीट झामुमो का गढ़ है। 1977 से लेकर अब तक यहां पांच बार झामुमो, दो बार कांग्रेस, दो बार भाजपा और एक बार जनता पार्टी ने जीत दर्ज की है। 2019 के चुनाव में यहां झामुमो के प्रत्याशी डॉ सरफराज अहमद ने 65 हजार 23 वोट प्राप्त कर जीत हासिल की थी। दूसरे स्थान पर रहे भाजपा के जयप्रकाश वर्मा को 56 हजार 168 वोट मिले थे। इस सीट पर मुस्लिम और आदिवासी की बड़ी आबादी के आधार पर बनने वाले मजबूत समीकरण पर भरोसा है। झामुमो प्रत्याशी कल्पना सोरेन को मुस्लिमों का भरपूर समर्थन मिलेगा। आदिवासियों को झामुमो पहले से अपना परंपरागत वोटर मानता है। गांडेय में झामुमो का एक बड़ा वोट बैंक आदिवासी समुदाय है, जिनकी संख्या 40 हजार के करीब है।

कल्पना सोरेन के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या है
कल्पना के सामने एक के बाद एक कई बड़ी चुनौती होंगी। पिछली बार इस सीट पर जेवीएम, आजसू और भाजपा अलग-अलग लड़ी थी। इस बार एक साथ चुनाव लड़ रही है। इस सीट से विधायक रहे डॉ सरफराज अहमद के लिए यह जीत इसलिए भी आसान थी कि उनके विरोधी बंटे हुए थे। कल्पना सोरेन जब चुनाव लड़ रही हैं, तो विपक्षी दल एकजुट है। पिछली बार डॉ अहमद महज साढ़े आठ हजार वोट से जीते थे, जबकि भाजपा, जेवीएम और आजसू को मिला कर करीब 25 हजार वोट अधिक आये थे। कल्पना सोरेन के सामने असली चुनौती इसी अंतर को पाटने की है। वैसे गांडेय में कांग्रेस और झामुमो का कैडर है। इस एकजुटता का लाभ कल्पना सोरेन को मिल सकता है। कल्पना सोरेन बहुत मेहनत कर रही हैं। हर कार्यक्रम में जा रही हैं। चर्चा तो यह भी है कि अगर कल्पना सोरेन जीत गयीं तो वह मुख्यमंत्री पद की दावेदार होंगी।

इस चुनाव परिणाम के बाद भी कल्पना की चुनौती खत्म नहीं होगी। चुनाव में अगर जीत मिलती है, तो पार्टी को एकजुट रखना बड़ी चुनौती होगी। झामुमो में कई पुराने चेहरे कल्पना को बड़ी जिम्मेदारी मिलने पर नाराज हो सकते हैं। इस वक्त कल्पना सोरेन ने हेमंत सोरेन की गैरमौजूदगी में पार्टी को एकजुट रखा है। लोकसभा चुनाव के बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सभी नेताओं को समेट कर रखना और पार्टी को मजबूत बनाये रखना कल्पना के लिए आसान नहीं होगा।

हेमंत सोरेन का कद भी तय होगा
गांडेय उपचुनाव में सबसे बड़ा टेस्ट हेमंत सोरेन का है। यह चुनाव तय करेगा कि झारखंड की राजनीति में बड़ा कद उनका है या फिर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी का। हेमंत को लेकर जो सहानुभूति अभी दिख रही है, वह मतदान के दिन तक कित्ी रहेगी, यह देखनेवाली बात होगी।

जीतने पर कल्पना सोरेन का कद बढ़ेगा
इस बात में कोई संदेह नहीं कि गांडेय में जीत मिली, तो कल्पना सोरेन का राजनीतिक कद कई गुना बढ़ जायेगा। उन्होंने अब तक जिस कुशलता से अपने कदम बढ़ाये हैं, उससे इतना तो पता चलता ही है कि उनकी राजनीतिक समझ बहुत गहरी है। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद लोगों को लगता था कि झामुमो बिखर गया। ऐसे में कल्पना सोरेन ने कमान संभाली और अपनी समझदारी का परिचय दिया। यही कारण है कि राहुल गांधी उनसे मिलने पहुंचे। कल्पना ने रांची में उलगुलान न्याय रैली करा कर अपने नेतृत्व को प्रदर्शित किया। कल्पना के जीतने की स्थिति में झामुमो नये युग में प्रवेश तो करेगा ही, साथ ही झारखंड की सियासत भी तय होगी। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यह झामुमो के लिए दुखद होगा।

 

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