विशेष
नकली आभामंडल ने चीखकर कह दिया, कश्मीर हिंदुओं के लिए सुरक्षित नहीं
पहलगाम में इस्लामिक आतंकवादियों ने धर्म पूछ हिंदुओं के सिर में मारी गोली
पैंट खुलवाकर चेक कर रहे थे प्राइवेट पार्ट, बोले, कलमा पढ़ो, नहीं पढ़ सके तो उड़ा दिया
पत्नियों को कहा, जाकर मोदी को बोल दो, हमने तुम्हारे पतियों को मार दिया
सिसकता मासूम अपने मृत पिता को ढूंढ़ रहा था, उसके आंसू देख कलेजा कांप गया
पूरी तरह फेल रहा भारत सरकार का तंत्र, बिना सुरक्षा कैसे भारी मात्रा में पर्यटकों को एक स्थान पर जाने दिया
एलओसी से 400 किलोमीटर दूर कैसे जंगलों के रास्ते अंदर घुस आये आतंकवादी, किसने की मदद
बिना स्थानीय लोगों की मदद से यह हमला संभव नहीं, कौन दे रहा था पनाह
कड़ी निंदा नहीं आतंकवादियों और उनके आकाओं को करारा जवाब देने का वक्त आ गया है

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
धरती का स्वर्ग कहे जानेवाले जम्मू कश्मीर के पहलगाम में इस्लामी आतंकियों ने बर्बर नरसंहार को अंजाम दिया है। सीमा पार से समर्थन पा रहे इन आतंकियों ने छुट्टियां मनाने पहलगाम आये 28 पर्यटकों को गोलियों से उड़ा दिया। पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमले के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा हमला है और इसने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि चाहे जम्मू-कश्मीर हो या बंगाल या फिर कोई अन्य राज्य, एक पैटर्न के तहत हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। पहलगाम हमले ने यह भी साबित किया है कि तमाम दावों के बावजूद जम्मू-कश्मीर हिंदुओं के लिए अब भी महफूज नहीं है और वहां पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद अपनी उपस्थिति बार-बार दर्ज करवा रहा है। पहलगाम की घटना ने भारत की आतंकवाद विरोधी नीति की असलियत सामने ला दी है और खुफिया तंत्र की कमजोरियों को उजागर कर दिया है। कुल मिला कर यह हमला भारत की एकता, उसकी प्रतिष्ठा और उसकी मजबूती पर किया गया वार है, जिसका जवाब दिया जाना बहुत जरूरी है। इसके साथ अब भारत को आतंकवाद विरोधी अपनी नीतियों पर भी दोबारा विचार करना होगा, ताकि इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति नहीं हो। पहलगाम नरसंहार कांड की पृष्ठभूमि में जम्मू कश्मीर की स्थिति, सरकार की नीतियों की कमजोरियां और आतंकवाद के बढ़ते हौसले को उजागर कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार दोपहर इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा 28 पर्यटकों की गोली मार हत्या कर दी गयी। वहीं 20 से ज्यादा लोग घायल हैं। कइयों की हालत अब भी नाजुक बनी हुई है। लेकिन यहां समझने वाली बात यह है कि यह हमला उस वक्त किया गया, जब बैसरन घाटी में बड़ी तादाद में पर्यटक मौजूद थे। प्रत्यक्षदर्शियों के हिसाब से वहां पर दो हजार से अधिक पर्यटक मौजूद थे। जम्मू-कश्मीर में यह आतंकी हमला तब हुआ है, जब अमेरिका के उप राष्ट्रपति जेडी वेंस भारत के दौरे पर हैं। यह हमला उस वक्त भी हुआ, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब के दो दिवसीय दौरे पर थे। यह हमला ऐसे समय में हुआ, जब केंद्र सरकार राज्य में आतंकवाद के खात्मे के दावे कर रही थी। बीते वर्षों में लगातार यह कहा जाता रहा कि आतंकियों की संख्या घट गयी है, स्थानीय युवाओं की भर्ती में भारी गिरावट आयी है और आतंकी नेटवर्क लगभग समाप्ति की ओर है। लेकिन जम्मू-कश्मीर के सुंदरतम पर्यटन स्थलों में से एक पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि केंद्र सरकार द्वारा घाटी में शांति और सामान्य स्थिति लौटने के दावों में अब भी गहरे सुराख हैं। अमरनाथ यात्रा की तैयारियों के बीच घाटी में पर्यटकों की आमद तेज हो रही थी और प्रशासन इसे ‘नया कश्मीर’ के रूप में प्रस्तुत कर रहा था, तभी इस आतंकी हमले ने वहां की सच्चाई उजागर कर दी। पहलगाम में हिंदुओं पर हमला न केवल खौफनाक था, बल्कि सुरक्षा तंत्र की कमजोर परतों को भी उजागर करता है। इस आतंकी हमले ने कई सवालों को खड़ा किया है। एक कैसे बिना सुरक्षा के हजारों पर्यटकों को पहलगाम के उस पर्यटन क्षेत्र में जाने दिया गया। आखिर यह चूक कैसे हुई। कोई एक ही दिन इतनी संख्या में तो पर्यटक नहीं आये। रोज ही आते होंगे। जब पता था कि जिस इलाके में पर्यटक इतनी भारी संख्या में आ रहे हैं, तो सुरक्षा व्यवस्था कौन करेगा। क्या वहां पर सेना की कमी है। अगर कमी है तो क्यों कमी है। ऐसे कई सवाल खड़े किये जा रहे, जिसका जवाब शायद नहीं मिलेगा। लेकिन अब घटना तो हो चुकी है। मोदी सरकार भी एक्टिव हो गयी है। वह क्या कदम उठाती है, इसका इंतजार तो पूरा देश कर रहा है। भारत मोदी के साथ है। उनकी क्षमता पर किसी को शक भी नहीं होना चाहिए। लेकिन क्या मोदी सरकार कश्मीर को लेकर दुबारा हिंदुओं का भरोसा जीत पायेगी। मुश्किल है। वैसे मुर्शिदाबाद में भी हिंदुओं को टारगेट किया गया था। सैकड़ों हिंदुओं को पलायन तक करना पड़ा था, लेकिन वहां भी केंद्र सरकार की चुप्पी ही रही। नरेंद्र मोदी को बताना पड़ेगा कि भारत कमजोर नहीं। भारत जवाब देना जनता है। इस बार कड़ी निंदा नहीं आतंकवादियों और उनके आकाओं को करारा जवाब देने का वक्त आ गया है।

सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे
जहां हमला हुआ, वहां पर सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे। आतंकियों ने इसी का फायदा उठाया। वे सैन्य वर्दी में आये और पर्यटकों से परिचय-पत्र मांगना शुरू कर दिया। उनका नाम पूछा गया। इसके बाद जो भी पर्यटक हिंदू थे, उन्हें आतंकियों ने गोलियां मारनी शुरू कर दीं। यहां तक कि लोगों के पैंट उतारकर देखे और प्राइवेट पार्ट चेक करके गोली मार दी। कइयों को कलमा पढ़ने को कहा। जिसने नहीं पढ़ा उसे भी मारा। आतंकवादियों ने हनीमून मनाने गये कई जोड़ों से पहले युवक का नाम पूछा। इसके बाद उन्हें गोली मार दी। आतंकवादियों ने यहां तक कहा कि जाओ मोदी को बोल दो, हमने तुम्हारे पतियों को मार दिया। हमले की सूचना मिलने और मौके पर पहुंचने में सुरक्षा बलों को 30 मिनट का समय लगा। आतंकी इस दौरान पहाड़ियों की तरफ भाग गये। इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के विंग द रेजिस्टेंस फ्रंट यानी टीआरएफ ने ली है। मरने वालों में एक इटली और एक इजराइल का पर्यटक भी है, जबकि दो स्थानीय नागरिक शामिल हैं। बाकी पर्यटक उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और ओड़िशा के हैं।

कोई हनीमून, तो कोई सालगिरह मनाने पहलगाम पहुंचा था
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने हरियाणा के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल और कानपुर के शुभम को पत्नी के सामने गोली मार दी। दोनों की हाल ही में शादी हुई थी। वे हनीमून और घूमने के लिए पहलगाम आये थे। हमले में इंदौर के कारोबारी सुशील नथानियल, रायपुर के स्टील कारोबारी दिनेश मिरानिया, बिहार के आइबी अफसर मनीष रंजन और गुजरात के भी तीन लोग मारे गये। दिनेश अपनी सालगिरह मनाने गये थे।

लेफ्टिनेंट की हत्या, पत्नी बोली आतंकियों ने नाम पूछकर गोली मारी, सात दिन पहले शादी हुई थी
जम्मू कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने हरियाणा में करनाल के रहने वाले नौसेना लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की गोली मारकर हत्या कर दी। लेफ्टिनेंट विनय की सात दिन पहले ही गुरुग्राम की हिमांशी नरवाल से शादी हुई थी। वे दोनों 21 अप्रैल को हनीमून मनाने के लिए पहलगाम गये थे। अगले ही दिन, 22 अप्रैल को विनय की हत्या कर दी गयी। हिमांशी ने ही खुलासा किया था कि आतंकियों ने नाम पूछकर गोली मारी। हिमांशी का वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें हिमांशी ने कहा था कि मैं अपने पति के साथ भेलपुरी खा रही थी। एक आदमी आया और कहा ये मुस्लिम नहीं है, फिर गोली मार दी। हिमांशी ने आगे कहा था कि मंगलवार को जब वे बैसरन घाटी में घूम रहे थे, उसी दौरान आतंकियों ने विनय पर फायरिंग कर दी, जिसमें उनकी मौके पर ही मौत हो गयी। हमले में मारे गये लेफ्टिनेंट विनय नरवाल को उनकी पत्नी हिमांशी ने बुधवार को अंतिम विदाई दी। जिस ताबूत में उनका शव रखा था, हिमांशी उससे लिपटकर रोती रहीं।

जवानों को देख महिलाएं और बच्चे हाथ जोड़कर रोने लगे
पहलगाम हमले के बाद जब भारतीय सेना के जवान बैसरन घाटी पहुंचे, तो वहां मौजूद पर्यटकों ने उन्हें आतंकवादी समझ लिया। ऐसा इसलिए, क्योंकि जिन आतंकवादियों ने फायरिंग की, वो भी वर्दी में थे। जवानों को देख महिलाएं और बच्चे हाथ जोड़ कर रोने लगे। इसके बाद जवानों ने कहा कि हम इंडियन आर्मी में हैं। उन्होंने पर्यटकों को सुरक्षा का भरोसा दिया। इस घटना का वीडियो सामने आया है।

सवालों के घेरे में सुरक्षा व्यवस्था
सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों की इतनी मौजूदगी के बावजूद हमले की पूर्व सूचना का न मिलना, संदिग्ध गतिविधियों की पहचान न कर पाना और हमलावरों का आसानी से भाग निकलना यह दर्शाता है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था अब भी सतही सफलता से ऊपर नहीं उठ सकी है। जब सरकार यह कहती है कि आतंकवाद अपने अंतिम दौर में है, तो क्या इसका मतलब यह है कि हम पहले से अधिक ढिलाई बरतने लगे हैं? क्या यह आत्ममुग्धता नहीं है कि हम केवल आंकड़ों और बयानों के सहारे अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, जबकि जमीन पर आतंक अब भी जिंदा है।

आतंकी हमले के बाद ही सक्रिय होते हैं
हमारी सबसे बड़ी विफलता यही है कि हम हर आतंकी हमले के बाद ही सक्रिय होते हैं। पहले हम चुप रहते हैं, फिर हमला होता है, उसके बाद मुठभेड़, समीक्षा बैठकें, हाइलेवल इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स और फिर वही ढर्रा। अगर हम इन घटनाओं को केवल एक्सेप्शन मानकर चलते रहेंगे, तो फिर यह एक्सेप्शन ही नया नॉर्म बन जायेगा। सुरक्षा को केवल सेना और पुलिस की जिम्मेदारी मान लेना भी एक बड़ी भूल है। इसके लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा, जिसमें खुफिया प्रणाली की जवाबदेही, स्थानीय नागरिकों की भागीदारी, राजनीतिक संवाद और डिजिटल निगरानी तंत्र की मजबूती शामिल हो।

राजनीतिक दल अपनी-अपनी सुविधा के हिसाब से हिंदुओं को बांट देते हैं
जब चुनाव आता है, तो राजनीतिक दल अपनी-अपनी सुविधा के हिसाब से हिंदुओं को बांट देते हैं। कोई जाति में बांटता है, कोई भाषा के नाम पर बांटता है, तो कोई हिंदुत्व का मुद्दा उठा धर्म के नाम पर वोट झपटने की कोशिश करता है। लेकिन जब आतंकवादी गोली मारता है, तो वह न जाति पूछता है, न भाषा जानने की कोशिश करता है, बस नाम पूछता है, धर्म पूछता है, पैंट खोल प्राइवेट पार्ट चेक कर गोली मार देता है। तब यही राजनीतिक दलों में चुप्पी दिखायी पड़ती है, यानी बांटने तो सब आ जाते हैं, लेकिन जब हिंदू अस्तित्व की बात होती है, तो सभी पीठ दिखा देते हैं। हिंदू जब तक राजनीतिक दलों पर निर्भर रहेगा, उसका शोषण होता रहेगा। अगर समाज में निर्भीक तरीके से रहना है, तो एकजुट रहिये। किसी के झांसे में मत आइये। नहीं तो गोली मारते वक्त सिर्फ धर्म पूछा जा रहा है, जाति नहीं। जम्मू-कश्मीर में सैकड़ों आतंकी हमले हुए, लेकिन टूरिस्ट कभी टारगेट नहीं रहे। इसकी वजह थी कि कश्मीर घूमने आने वालों से ही कश्मीरियों के घर चलते हैं। और आतंकी भी ये बात जानते हैं।

टूरिस्ट नहीं लौटे तो बर्बाद हो जायेंगे
टूरिस्ट अब कश्मीर छोड़ रहे हैं। बुकिंग कैंसिल करवा रहे हैं। टूरिज्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग यही सोच रहे हैं कि मुश्किल से पटरी पर आ रहा उनका कारोबार इस झटके से कैसे उबरेगा। हालांकि उनका कहना था कि हमें पता था ऐसी घटना के बाद यह होगा। आतंकियों की हरकत से हमें भी शर्मिंदगी हो रही है। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या अब भरोसा किया जा सकता है। बिना स्थानीय मदद के आतंकी पैर पसार नहीं सकता। भारत सरकार की जम्मू-कश्मीर को लेकर कई ऐसी नीतियां हैं जिसमें परिवर्तन की आवश्यकता है। कुछ ठोस कदम उठाने ही पड़ेंगे। जनता को भी समझना पड़ेगा कि जान देकर पर्यटन तो नहीं ही किया जा सकता।

अमित शाह भावुक
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में मारे गये 26 लोगों के परिजनों और हमले में बचे लोगों से मुलाकात की। इस दौरान वे भावुक नजर आये। इसके साथ ही उन्होंने आतंकियों को चेतावनी भी दी। उन्होंने कहा कि भारत आतंक के आगे नहीं झुकेगा। भारी मन से पहलगाम आतंकी हमले के मृतकों को अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। इस नृशंस आतंकी हमले के दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा।

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