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मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम हैं सुशासन और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रेरक
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
पूरी धरती के एकमात्र स्वामी मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनायी जानेवाली रामनवमी दरअसल एक त्योहार या धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सनातन जीवन का दर्शन है। झारखंड समेत पूरा देश रामनवमी महोत्सव के उल्लास में डूबा हुआ है और यह महोत्सव सनातनियों के जीवन को एक दिशा प्रदान करता है। उल्लास और उमंग के बीच लोगों को यह याद दिलाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम वास्तव में एक अवतार मात्र नहीं, सुशासन और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतीक हैं। उनका जीवन उन मानवीय मूल्यों को मानव जीवन में प्रतिस्थापित करता है, जिसके लिए लोग प्रभु का स्मरण करते हैं। इसलिए रामनवमी का अलग समाजशास्त्र होता है, जो अन्य धार्मिक आयोजन से अलग होता है। रामनवमी की यह विशेषता ही इस त्योहार को खास बनाती है और प्रभु श्रीराम को आम लोगों से जोड़ती है। प्रभु श्रीराम भले ही अवतार थे, लेकिन उन्होंने इसे कभी प्रकट नहीं किया। किसी राजपरिवार के सामान्य युवराज की तरह उन्होंने अपने कुल की प्रतिष्ठा रखी, अपनी संकल्प शक्ति और क्षमता की बदौलत तमाम दैवी शक्तियां हासिल कीं और समय पर उनका सदुपयोग किया। प्रभु श्रीराम के जीवन की इन पहलुओं से ही पता चलता है कि वह असाधारण थे। इसलिए उनके जन्मोत्सव पर सनातनियों का उल्लास चरम पर है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। रामनवमी के इस पावन अवसर पर प्रभु श्रीराम के जीवन के समाजशास्त्री पहलुओं को उजागर कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्रीराम के रूप में अवतार लिया था। श्रीरामचंद्रजी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से राजा दशरथ के घर में हुआ था। रामनवमी का त्योहार इस वर्ष 06 अप्रैल को मनाया जायेगा। इस पर्व के साथ ही मां दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है। हिंदू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा-अर्चना की जाती है। रामनवमी का सनातन धर्म में विशेष धार्मिक और पारंपरिक महत्व है, जो हिंदू धर्म के लोगों के द्वारा पूरी भक्ति, आस्था और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

इसलिए श्रीराम हमारे कण-कण में समाये हैं, हमारी जीवन शैली का अभिन्न अंग हैं। सुबह बिस्तर से उठते ही राम। बाहर निकलते ही राम-राम, दिन भर राम नाम की अटूट शृंखला। फिर शाम को राम का नाम और जीवन की अंतिम यात्रा भी राम नाम सत्य है के साथ। आखिर इसका रहस्य क्या है? घर में राम, मंदिर में राम, सुख में राम, दुख में राम। शायद यही देख कर अल्लामा इकबाल को लिखना पड़ा- है राम के वजूद पर हिंदोस्तां को नाज, अहले वतन समझते हैं, उनको इमामे हिंद। श्रीराम का जो विराट व्यक्तित्व भारतीय जनमानस पर अंकित है, उतने विराट व्यक्तित्व का नायक अब तक के इतिहास में कोई दूसरा नहीं हुआ। श्रीराम के जैसा दूसरा कोई पुत्र नहीं। उनके जैसा संपूर्ण आदर्श वाला पति, राजा, स्वामी कोई भी दूसरा नाम नहीं। श्रीराम किसी धर्म का हिस्सा नहीं, बल्कि मानवीय चरित्र का प्रेरणादायी प्रतीक हैं। श्रीराम सुख-दुख, पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, शुभ-अशुभ, कर्तव्य-अकर्तव्य, ज्ञान-विज्ञान, योग-भोग, स्थूल-सूक्ष्म, जड़-चेतन, माया-ब्रह्म, लौकिक-पारलौकिक आदि का सर्वत्र समन्वय करते हुए दिखाई देते हैं। इसलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम तो हैं ही, लोकनायक और मानव चेतना के आदि पुरुष भी हैं।

भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम का धरती पर अवतार लेने का एकमात्र उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की पुनर्स्थापना करना था, जिससे सामान्य मानव शांति, प्रेम और सुख के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सके, साथ ही भगवान की भक्ति कर सके। उन्हें किसी प्रकार का दुख या कष्ट न सहना पड़े।

भगवान श्रीराम अविनाशी परमात्मा हैं, जो सबके सृजनहार व पालनहार हैं। दरअसल श्रीराम के लोकनायक चरित्र ने जाति, धर्म और संप्रदाय की संकीर्ण सीमाओं को लांघ कर जन-जन को अनुप्राणित किया। भारत में ही नहीं, दुनिया में श्रीराम अत्यंत पूज्यनीय हैं और आदर्श पुरुष हैं। थाइलैंड, इंडोनेशिया आदि कई देशों में भी श्रीराम आदर्श के रूप में पूजे जाते हैं। श्रीराम केवल भारतवासियों या केवल हिंदुओं के मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं हैं, बल्कि बहुत से देशों, जातियों के भी मर्यादा पुरुष हैं, जो भारतीय नहीं। रामायण में जो मानवीय मूल्य दृष्टि सामने आयी, वह देशकाल की सीमाओं से ऊपर उठ गयी। वह उन तत्वों को प्रतिष्ठित करती है, जिन्हें वह केवल पढ़े-लिखे लोगों की चीज न रहकर लोक मानस का अंग बन गयी। इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम राष्ट्र में नागरिक रामलीला का मंचन करते हैं, तो क्या वे अपने धर्म से भ्रष्ट हो जाते हैं? इस मुस्लिम देश में रामलीलाओं का मंचन भारत से कहीं बेहतर और शास्त्रीय कलात्मकता और उच्च धार्मिक आस्था के साथ किया जाता है। ऐसा इसलिए संभव हुआ है, क्योंकि श्रीराम मानवीय आत्मा की विजय के प्रतीक महापुरुष हैं, जिन्होंने धर्म और सत्य की स्थापना करने के लिए अधर्म और अत्याचार को ललकारा। इस तरह वे अंधेरों में उजालों, असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई के प्रतीक बने।

सचमुच श्रीराम न केवल भारत के लिए, बल्कि दुनिया के प्रेरक हंै, पालनहार हैं। भारत के जन-जन के लिए वे एक संबल हैं, एक समाधान हैं, एक आश्वासन हैं निष्कंटक जीवन का, अंधेरों में उजालों का। भारत की संस्कृति और विशाल आबादी के साथ दर्जनभर देशों के लोगों में यह नाम चेतन-अचेतन अवस्था में समाया हुआ है। यह भारत, जिसे आर्यावर्त भी कहा गया है, उसके ज्ञात इतिहास के श्रीराम प्रथम पुरुष एवं राष्ट्रपुरुष हैं, जिन्होंने संपूर्ण राष्ट्र को उत्तर से दक्षिण, पश्चिम से पूर्व तक जोड़ा था। दीन-दुखियों और सदाचारियों की दुराचारियों और राक्षसों से रक्षा की थी। सबल आपराधिक और अन्यायी ताकतों का दमन किया। सर्वाेच्च लोकनायक के रूप में उन्होंने जन-जन की आवाज को सुना और राजतंत्र और लोकतंत्र में जन-गण की आवाज को सर्वाेच्चता प्रदान की। श्रीराम ने ऋषि-मुनियों के स्वाभिमान और आध्यात्मिक स्वाधीनता की रक्षा कर उनके जीवन, साधनाक्रम और भविष्य को स्वावलंबन और आत्म-सम्मान के प्रकाश से आलोकित किया। इस मायने में श्रीराम राष्ट्र की एकता के सूत्रधार और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रेरक हैं।

कबीर आदि भक्त कवियों ने श्रीराम का गुणगान करते हुए कहा है कि आदि श्रीराम वह अविनाशी परमात्मा हैं, जो सब का सृजनहार और पालनहार हैं। जिसके एक इशारे पर धरती और आकाश काम करते हैं, जिसकी स्तुति में 33 कोटि देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। जो पूर्ण मोक्षदायक व स्वयंभू हैं।

श्रीराम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता, यहां तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। श्रीराम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परंपरा प्रान जाहुं बरु बचनु न जाई की थी। श्रीराम हमारी अनंत मर्यादाओं के प्रतीक पुरुष हैं। इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से पुकारा जाता है। हमारी संस्कृति में ऐसा कोई दूसरा चरित्र नहीं है, जो श्रीराम के समान मर्यादित, धीर-वीर, न्यायप्रिय और प्रशांत हो। वाल्मीकि के श्रीराम लौकिक जीवन की मर्यादाओं का निर्वाह करने वाले वीर पुरुष हैं। उन्होंने लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध किया और लोक धर्म की पुनर्स्थापना की। लेकिन वे नील गगन में दैदीप्यमान सूर्य के समान दाहक शक्ति से संपन्न, महासमुद्र की तरह गंभीर तथा पृथ्वी की तरह क्षमाशील भी हैं। वे दुराचारियों, यज्ञ विध्वंसक राक्षसों, अत्याचारियों का नाश कर लौकिक मर्यादाओं की स्थापना करके आदर्श समाज की संरचना के लिए ही जन्म लेते हैं। आज ऐसे ही स्वस्थ समाज निर्माण की जरूरत है।

इसलिए प्रभु श्रीराम का जन्मोत्सव, यानी रामनवमी का अलग सामाजिक महत्व है। वैसे तो सनातन धर्म में हर देवी-देवता के जन्मोत्सव पर पूजा-अर्चना का विधान है, लेकिन रामनवमी जिस तरह समाज के सभी वर्गों को एक सूत्र में पिरोती है और हर कोई इसके उल्लास में शामिल होता है, वह अभूतपूर्व है। रामनवमी का त्योहार वास्तव में एक धार्मिक आयोजन से अधिक अब एक सामाजिक आयोजन बन गया है, जिसमें उन सामाजिक मूल्यों की पुनर्स्थापना का संकल्प लिया जाता है, जो प्रभु श्रीराम के जीवन से हमें मिलता है।

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