Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Tuesday, June 3
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»वक्फ बिल ने देश की सियासत में जोड़ दिया नया अध्याय
    विशेष

    वक्फ बिल ने देश की सियासत में जोड़ दिया नया अध्याय

    shivam kumarBy shivam kumarApril 5, 2025No Comments10 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    विशेष
    पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने एक साथ साध लिये छह निशाने
    बदल गयी राजनीति की दिशा, भाजपा को मुस्लिम वोट बैंक का डर नहीं

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    करीब 25 घंटे, लोकसभा में 12 और राज्यसभा में 13 घंटे की चर्चा के बाद बहुचर्चित वक्फ संशोधन विधेयक संसद से पारित हो गया। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अब तक के कार्यकाल का सबसे महत्वपूर्ण विधायी काम तो माना ही जा रहा है, साथ ही इस विधेयक ने देश की राजनीति की दिशा को भी बदल कर रख दिया है। अब भारतीय राजनीति में अघोषित तौर से तीन खेमे बन गये हैं। पहला खेमा भाजपा जैसी राष्ट्रवादी पार्टियों का है, जबकि दूसरा कांग्रेस, वाम दल, राजद, डीएमके, मुस्लिम लीग, एआइएमआइएम, बीआरएस और टीएमसी का है, जिनके लिए भाजपा अब भी सांप्रदायिक पार्टी है, जबकि ये खुद को सेक्युलर मानती हैं। तीसरे खेमे में ऐसी राजनीतिक पार्टियां हैं, जो पहले भाजपा को सांप्रदायिक मानती थीं, लेकिन अब उसके नीतिगत फैसलों के साथ हैं। ये पार्टियां अब मुसलमानों को कथित रूप से आहत होने वाले विषयों पर मोदी सरकार को खुलकर समर्थन देती हैं। वास्तव में इस बिल को पास कराने के साथ ही भाजपा ने एक कदम से छह निशाने साध लिये हैं। दरअसल, धर्मनिरपेक्षता का चश्मा लंबे वक्त से भाजपा और भाजपा सरकार के फैसलों के खिलाफ पहन कर विपक्ष खुद को सेक्युलरिज्म का सियासी चैंपियन दिखाता रहा, लेकिन लोकसभा में वक्फ बिल पर भाजपा ने वो बैटिंग की है, जिससे राजनीति के मैदान में फिलहाल यह साफ हो गया कि सेक्युलरिज्म की वो परिभाषा नहीं चलेगी, जो विपक्ष चाहता आया है। दूसरा यह कि मुस्लिमों से जुड़े हर फैसले को मुस्लिम विरोध के कठघरे में खड़ा करने की राजनीति अब नहीं चलती। तीसरा, मुस्लिमों को खतरा बताकर वोट की सियासी हांडी हर बार नहीं चढ़ने वाली है। चौथा, मुस्लिमों से जुड़े मुद्दे पर प्रदर्शन के बहाने फैसले बदलवाने की मंशा अब कामयाब नहीं होती। पांचवां, नीतीश और नायडू के समर्थन के दम पर चलती सरकार को कमजोर समझना विपक्ष को भूलना होगा। और छठा, विपक्ष को ये बात भी समझनी होगी कि भले इस बार सीट उनकी बढ़ी हैं, लेकिन पीएम मोदी के हाथ से फैसलों की ताकत ढीली नहीं पड़ी है। क्या है वक्फ बिल का सियासी असर और मोदी-शाह की जोड़ी ने कैसे हर परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाया, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    संसद के दोनों सदनों में वक्फ संशोधन विधेयक पारित हो गया। सतही तौर पर यह एक सामान्य विधायी कार्य प्रतीत होता है, लेकिन इस एक विधेयक ने वास्तव में देश की राजनीति की दिशा बदल दी है। इस बिल के पास होने के साथ ही देश की राजनीति में नयी सेक्युलर पार्टियों की नयी जमात भी सामने आ गयी, जो मुस्लिम वोटिंग पैटर्न से बेखौफ होकर भाजपा के एजेंडे के साथ खड़ी हैं। जदयू, तेलुगुदेशम, जेडीएस, एनसीपी, लोजपा (रामविलास), राष्ट्रीय लोकदल और असम गण परिषद जैसी पार्टियों ने वक्फ संशोधन बिल के समर्थन में मतदान किया। इन दलों ने माना कि मोदी सरकार इस बिल के जरिये वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को बचाने का प्रयास कर रही है। एनडीए के बाहर रहने वाले बीजू जनता दल ने राज्यसभा में समर्थन देकर नये सेक्युलरों के ग्रुप को और विस्तार दे दिया। मुस्लिम वोट बैंक के सहारे चलने वाले इन राजनीतिक दलों ने वक्फ बिल पर न सिर्फ भाजपा के साथ कंधा मिलाया, बल्कि चर्चा के दौरान सेक्युलरिज्म की नयी परिभाषा भी गढ़ी। इन नव धर्मनिरपेक्ष दलों के लिए भाजपा सांप्रदायिक नहीं रही। इस बदलाव का असर दशकों तक दिखेगा।

    ऐसे में ये भी सवाल है कि क्या एक बिल से मोदी सरकार ने देश में धर्मनिरपेक्षता की राजनीति का गणित बदल दिया? क्या एक बिल से मोदी सरकार ने दिखाया कि मुस्लिमों को डराकर वोट की सियासत नहीं चलेगी? क्या एक बिल ने बता दिया कि मुस्लिमों के हित में बदलाव का मतलब सेक्युरिज्म का विरोध नहीं होता? क्या सरकार ने दिखा दिया कि सीटें घटने से संसद में आक्रामक फैसले लेने की गति नहीं घटी है? क्या वक्फ बिल पर मुहर के साथ अब देश में सियासत की नयी सेक्युलरिज्म देखी जायेगी?

    फैसला लेने में पीएम मोदी का कोई सानी नहीं
    विपक्ष को ये लगता रहा होगा कि बिहार में नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू के सांसदों के भरोसे चलती सरकार वक्फ पर फैसला लेने में हिचकिचायेगी, लेकिन 240 सीट के साथ भी संसद में भाजपा वैसी ही दिखी, जैसी 303 सीट के साथ थी। 2019 में जब मोदी सरकार दूसरी बार सत्ता में आयी, तो छह महीने के भीतर सरकार ने तीन तलाक, धारा 370 से आजादी और सीएए कानून तीनों को पास करा दिया। तब भाजपा के पास अपने दम पर 303 सीट का बहुमत था। अबकी बार जब 2024 में सरकार बनी तो भाजपा की खुद की सीटें 240 ही आयीं, लेकिन कुछ ही महीने में वक्फ संशोधन बिल को पेश करके उस पर आखिरकार अब मुहर लगा ली। बिल पर मुहर सबूत है कि बहुमत भले सरकार के पास अपने दम पर ना हो, लेकिन सर्वमत से फैसला लेने में पीएम मोदी का कोई सानी नहीं।

    क्या चुनावी राजनीति में इसका असर दिखेगा
    वक्फ बिल का असर क्या आगे चुनावी राजनीति में दिखेगा? ये सवाल इसलिए, क्योंकि आगे बिहार का चुनाव है, फिर पश्चिम बंगाल का चुनाव एक साल से कम वक्त में है। इस चुनावी सियासत को गृह मंत्री अच्छे से समझते हैं, तभी तो जब टीएमसी ने बिल पर सदन में सवाल उठाया, विरोध किया, तो अमित शाह का जवाब चर्चा में आया।

    विपक्ष के आरोपों को सरकार ने किया खारिज
    सवाल ये है कि जहां विपक्ष के नेता कहते रहे कि सड़क पर उतरकर विरोध होगा। क्या उनकी इस राजनीति में खुद मुस्लिमों ने साथ नहीं दिया है। क्या इसकी वजह ये है कि जहां विपक्ष ये कहता रहा कि वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम बहुसंख्यक हो जायेंगे, मस्जिद-दरगाह पर कब्जा हो जायेगा, सरकार मुस्लिमों की संपत्ति छीन लेगी, ऐतिहासिक वक्फ स्थल की परंपरा प्रभावित होगी, वहां सरकार ने लगातार मुखरता से इन सारे दावों को खारिज करके सच बताया। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को विपक्ष और मुस्लिम संगठनों ने क्या-क्या याद नहीं कराया, लेकिन जब आज समर्थन और विरोध की बारी आयी, तो जदयू और टीडीपी दोनों ने विरोधियों के सपनों पर पानी फेर दिया

    मुस्लिम वोट की सियासत का गणित बदला
    नीतीश कुमार के पलटने का इतिहास देखकर इस बार विपक्ष को लगा होगा कि इफ्तार पार्टियां करते सुशासन बाबू क्या पता फिर पलटेंगे, इसीलिए ओवैसी की पार्टी के नेता तक नीतीश कुमार को मुस्लिम वोट के नाम पर भाजपा के खिलाफ जगाने में अंत तक जुटे रहे, लेकिन सबका सपना टूट गया। नीतीश की पार्टी ने बता दिया कि मुस्लिम वोट की सियासत का गणित बदल चुका है। दिल्ली, बिहार की राजधानी पटना और आंध्र प्रदेश का विजयवाड़ा। इसी से आप समझ लीजिए कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को बिल के विरोध में लाने के लिए विपक्षी दलों से लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तक ने कितने डोरे डाले, कितना दबाव बनाया, यहां तक कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रदर्शन तक में नीतीश-नायडू का नाम लिखकर ही पोस्टर तक लगाये गये, ताकि ये बिल का विरोध कर दें, लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी ने ऐसा गणित बिल पर सेट किया कि विपक्ष की नहीं चली, बल्कि नीतीश की पार्टी ही भाजपा के लिए बिल पर खुलकर सदन में खेलती दिखी।

    देवगौड़ा की तारीफ, प्रफुल्ल पटेल के तंज के मायने
    राज्यसभा में आलम यह था कि जनता दल (सेक्युलर) के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा ने वक्फ संपत्तियों की रक्षा के लिए पीएम मोदी की तारीफ की। उद्धव सेना के सांसद संजय राउत से जो भाजपा नहीं कह सकी, उसे एनसीपी सांसद प्रफुल्ल पटेल ने सीना ठोककर सुना दिया। उन्होंने कांग्रेस से भी सवाल किया कि क्या वह शिवसेना के साथ रहकर खुद को सेक्युलर मानती है। जदयू के ललन सिंह ने भाजपा के मुस्लिम विरोधी होने के आरोपों को खारिज किया। उन्होंने कहा कि विपक्ष यह नैरेटिव बनाने का प्रयास कर रहा है कि वक्फ संशोधन बिल मुसलमान विरोधी है। उनका एक बयान काफी चर्चा में रहा, जिसमें उन्होंने विपक्ष को ललकारते हुए कहा कि आपको मोदी का चेहरा पसंद नहीं है, तो मत देखिए। पूर्व पीएम देवेगौड़ा और प्रफुल्ल पटेल सेक्युलर राजनीति के दो बड़े चेहरे रहे, जिन्होंने वक्फ बिल के पक्ष में भाजपा की नीतियों का समर्थन किया।

    90 के दशक में कई दलों के लिए अछूत थी भाजपा
    90 के दशक में भाजपा शिवसेना, अकाली दल और जदयू के अलावा करीब-करीब सभी पार्टियों के लिए अछूत थी। जदयू लालू विरोध और बिहार की राजनीतिक मजबूरी के कारण एनडीए का हिस्सा बना। 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी ने गठबंधन की सरकार बनायी, लेकिन उन्हें तेलुगुदेशम, डीएमके, एआइएडीएमके जैसे दलों का बारी-बारी समर्थन भी शर्तों के साथ मिला। शर्त यह थी कि भाजपा मुसलमानों को आहत करने वाले मुद्दों से परहेज करेगी। इन शर्तों के साथ असम गण परिषद और आरएलडी जैसी पार्टियां भी एनडीए में आती-जाती रहीं। गठबंधन की मजबूरियों के कारण भाजपा ने भी दो दशक तक धारा-370, राम मंदिर, समान नागरिक संहिता जैसे कोर मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाल दिया। रामबिलास पासवान जैसे नेता ने भी गुजरात दंगों के बाद वाजपेयी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था और सेक्युलर जमात में शामिल हो गये थे।

    भाजपा के लिए क्यों नरम पड़े पुराने सेक्युलर
    2019 में भाजपा की दूसरी पूर्ण बहुमत सरकार बनने के बाद सीएए और धारा-370 पर बड़ा फैसला हो गया। वैचारिक तौर से भाजपा के साथ रही शिवसेना ने इन फैसलों का समर्थन किया। जदयू और बीजेडी ने बिना शोर मचाये संसद में इन बिलों का समर्थन किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ कर दिया। इसके साथ ही राम मंदिर और धारा 370 जैसे विषय विवादित राजनीतिक मुद्दों की लिस्ट से बाहर हो गये। भाजपा ने चुनावों में खुलकर इन मुद्दों पर अपनी पीठ थपथपायी। नरेंद्र मोदी सरकार और अमित शाह बोल्ड फैसले के नायक बन गये। एनडीए समर्थक राजनीतिक दलों ने भी भाजपा को इसका क्रेडिट देकर अपनी मुस्लिम समर्थक छवि बरकरार रखी।

    चुनावी जीत ने नये सेक्युलर दलों को निडर बनाया
    सबसे बड़ा फर्क यह आया कि 370 और सीएए के समर्थन देने के बाद एनडीए की पार्टनर रही पार्टियों के जनसमर्थन में कमी नहीं आयी। 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा-जदयू को पूर्ण बहुमत मिला। महाराष्ट्र में भाजपा-शिंदे सेना और अजित पवार को बड़ी जीत मिली। आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू को ऐतिहासिक जीत पर सीएए और 370 की छाया भी नहीं पड़ी। लोकसभा चुनावों में लोजपा, असम गण परिषद, आरएलडी को भाजपा के वोट बैंक का फायदा मिला। भाजपा ने असम, यूपी, हरियाणा समेत कई राज्यों में सरकार बनायी। एनडीए में शामिल पार्टियों ने राज्यों में सेक्युलर दलों कांग्रेस, आरजेडी, सपा को हराया, जो मुस्लिम वोट बैंक का काफी ख्याल रखती हैं। इन चुनावी नतीजों ने एनडीए में शामिल दलों के लिए मुस्लिम वोटरों के सामने यह जताने की मजबूरी भी खत्म कर दी कि वह इन मुद्दों पर भाजपा से अलग स्टैंड रखते हैं।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleमोतिहारी डीईओ का अजीब फरमान, एक साल पूर्व मृत शिक्षिका से मांगा स्पष्टीकरण
    Next Article 30 घंटे बाद बोकारो स्टील प्लांट का खुला गेट, देर रात हुई हिंसक झड़प में कई घायल, हिरासत में विधायक श्वेता सिंह
    shivam kumar

      Related Posts

      झारखंड की स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर रिजल्ट ने उठाये सवाल

      June 3, 2025

      अमित शाह की नीति ने तोड़ दी है नक्सलवाद की कमर

      June 1, 2025

      बिहार में भाजपा को नयी ऊर्जा दे गये पीएम मोदी

      May 31, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • झारखंड की स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर रिजल्ट ने उठाये सवाल
      • शराब घोटाला: विनय चौबे सहित पांच आरोपियों की बढ़ाई गई न्यायिक हिरासत
      • कैबिनेट की बैठक कल शाम 4 बजे से, होंगे कई अहम फैसले
      • युवा पीढ़ी राष्ट्र की असली पूंजी हैं : राज्यपाल
      • अरुणाचल प्रदेश के स्पीकर के संग झारखंड के विधायकों ने स्थानीय और नियोजन नीति पर की चर्चा
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version