एक बहुत पुरानी कहावत है कि चौबे चले छब्बे बनने, दूबे बन कर लौटे। इसका मतलब यह होता है कि कोई व्यक्ति अपनी वर्तमान स्थिति से ऊपर जाने की कोशिश करता है और नीचे गिर जाता है। झारखंड के कम से कम पांच विधायकों के साथ इस लोकसभा चुनाव में यही हुआ। ये माननीय चले थे सांसद बनने और खुद अपनी ही सीट पर पिछड़ गये। इसका सीधा-सीधा राजनीतिक मतलब यह होता है कि इन विधायकों की इनके ही क्षेत्र में लोकप्रियता बेहद कम हो चुकी है और इसी साल के अंत में होनेवाले राज्य विधानसभा के चुनाव में इन्हें अपनी सीट बचाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी।
इस लोकसभा चुनाव में अपनी विधानसभा सीट से पिछड़नेवाले प्रत्याशियों में झाविमो के महासचिव प्रदीप यादव, कांग्रेस के सुखदेव भगत, झामुमो के चंपई सोरेन और जगरनाथ महतो और भाकपा माले के राजकुमार यादव शामिल हैं। प्रदीप यादव पोड़ैयाहाट से विधायक हैं और इस बार गोड्डा संसदीय सीट से मैदान में उतरे थे। सुखदेव भगत लोहरदगा से विधायक हैं और इसी संसदीय सीट से उम्मीदवार थे। चंपई सोरेन सरायकेला से विधायक हैं और जमशेदपुर संसदीय सीट से प्रत्याशी थे, जबकि डुमरी के विधायक जगरनाथ महतो ने गिरिडीह सीट से किस्मत आजमायी थी।
सबसे पहले बात प्रदीप यादव की। 2014 के विधानसभा चुनाव में वह पोड़ैयाहाट से विधायक चुने गये थे। उन्हें 73 हजार 859 वोट मिले थे। इस बार के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के तहत झाविमो ने गोड्डा सीट पर दावेदारी की और उसके कोटे में यह सीट आ गयी। प्रदीप यादव अपनी पार्टी की ओर से भाजपा के निशिकांत दुबे के खिलाफ मैदान में उतरे और डेढ़ लाख के अधिक मतों के अंतर से हार गये। यदि पोड़ैयाहाट में उन्हें मिले मतों की बात की जाये, तो इस बार उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र से 78 हजार 277 वोट मिले, जबकि निशिकांत दुबे को 90 हजार 841 वोट हासिल हुए। इस तरह अपने ही विधानसभा क्षेत्र से प्रदीप यादव 22 हजार से अधिक वोट से पिछड़ गये।
इसी तरह लोहरदगा संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़नेवाले सुखदेव भगत भी अपने विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के प्रत्याशी सुदर्शन भगत से करीब 12 हजार मतों से पिछड़ गये। सुखदेव भगत को यहां से 68 हजार 577 वोट मिले, जबकि सुखदेव भगत ने 80 हजार 698 वोट हासिल कर लिये। सुखदेव भगत को लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में 64 हजार 36 वोट मिले थे।
गिरिडीह संसदीय सीट के रास्ते लोकसभा तक पहुंचने की कोशिश करनेवाले डुमरी के झामुमो विधायक के साथ भी ऐसा ही हुआ। वह आजसू प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी को चुनौती देने मैदान में उतरे थे और ढाई लाख से अधिक मतों के अंतर से चुनाव हार गये। डुमरी विधानसभा क्षेत्र से उन्हें 71 हजार 173 वोट मिले, जबकि आजसू प्रत्याशी को एक लाख आठ हजार 877 वोट हासिल हुए। विधानसभा के पिछले चुनाव में जगरनाथ महतो को 77 हजार 984 वोट मिले थे। इस तरह देखा जाये, तो पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार उन्हें कम वोट मिले।
झामुमो ने जमशेदपुर संसदीय सीट से भाजपा के विद्युत वरण महतो को चुनौती देने के लिए सरायकेला के अपने विधायक चंपई सोरेन को मैदान में उतारा था, लेकिन मोदी की सुनामी में वह तीन लाख से अधिक वोटों के अंतर से चुनाव हार गये। सरायकेला विधानसभा क्षेत्र सिंहभूम संसदीय क्षेत्र के तहत आता है और यहां से चंपई सोरेन महागठबंधन की कांग्रेस प्रत्याशी गीता कोड़ा को 77 हजार 644 वोट ही दिला सके। विधानसभा के पिछले चुनाव में चंपई सोरेन को 94 हजार 746 वोट मिले थे। इस तरह वह भी पिछली बार की तुलना में इस बार कम वोट ही पा सके।
अब बात धनवार के भाकपा माले विधायक राजकुमार यादव की। वह कोडरमा संसदीय सीट से चुनाव मैदान में थे और मुकाबले को तिकोना बना रहे थे। उनका मुकाबला भाजपा की अन्नपूर्णा देवी और झाविमो के बाबूलाल मरांडी से था। भाजपा प्रत्याशी ने यहां से साढ़े चार लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की। राजकुमार यादव तीसरे स्थान पर रहे। धनवार विधानसभा क्षेत्र से उन्हें पिछली बार 50 हजार 634 वोट मिले थे, जबकि इस बार उन्हें पूरे कोडरमा संसदीय सीट से 68 हजार 207 मत मिले।
इन नतीजों से साफ हो जाता है कि इन विधायकों ने अपने ही विधानसभा क्षेत्र में जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं और इसलिए मतदाताओं ने उन्हें सुधरने का चेतावनी भरा संकेत दे दिया है। यदि अब भी इन्होंने इस संकेत को नहीं समझा, तो आनेवाले विधानसभा चुनाव में इन्हें परेशानी हो सकती है।