जमशेदपुर में शहरी वोटर बतायेंगे झामुमो पास या फेल
लौहनगरी जमशेदपुर से भाजपा के मौजूदा सांसद विद्युवरण महतो फिर से चुनावी मैदान में हैं। विद्युत वरण महतो के मुकाबले में जेएमएम ने पार्टी के वरिष्ठ विधायक चंपई सोरेन को मैदान में उतारा है। पिछले ढाई दशकों के दौरान जमशेदपुर में सबसे ज्यादा जीत भाजपा की होती रही है, लेकिन झामुमो इस बार अपने तरकश के तीर से भापजा के किले को भेदना चाहता है।
यह सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास का यह गृह क्षेत्र है और जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र से वे पांच बार चुनाव जीते हैं। इस लोकसभा क्षेत्र से संबंधित अधिकतर विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। खुद सीएम रघुवर दास जमशेदपुर पूर्वी से विधायक हैं। वहीं मंत्री सरयू राय जमशेदपुर पश्चिमी से विधायक हैं। पोटका में भाजपा की मेनका सरदार का कब्जा है। जुगसलाई में भाजपा की सहयोगी आजसू पार्टी के रामचंद्र सहिस चुनाव जीते हैं। घाटशिला में भी भाजपा ही जीती है। वहीं एकमात्र सीट बहरागोड़ा झामुमो के पास है। जमशेदपुर में कुरमी, आदिवासी और शहरी वोटर काफी मायने रखते हैं। यहां यह भी देखना होगा कि शहरी वोटरों के बीच झामुमो अपनी पैठ कितना बना पाया है। चंपई सोरेन को उतार कर झामुमो पुराने समीकरण महतो, संथाली और मुस्लिम को एक साथ साधना चाहता है। जमशेदपुर पश्चिम में कांग्रेस के बन्ना गुप्ता भी दमदार नेता रहे हैं। चंपई सोरेन के नाम पर झामुमो को बन्ना गुप्ता का साथ रंग दिखाया, तो समीकरण प्रभावी हो सकते हैं। वैसे, दूसरी ओर विद्युतवरण महतो को सुदेश महतो का साथ मिलने से कुरमी वोटों से उम्मीदें बढ़ी हैं।
कुरमी वोट बैंक को लेकर गिरिडीह में सुदेश-हेमंत में जंग
झारखंड की राजनीति के दुश्मन नंबर वन माने जानेवाले सुदेश और हेमंत सोरेन के लिए गिरिडीह सीट काफी अहम मानी जा रही है। झामुमो की यहां कुरमी वोटरों के बीच पैठ की परीक्षा होनेवाली है। कारण सुदेश महतो ने कुरमी वोटरों को अपने साथ करने में खूब पसीना बहाया है। गिरिडीह संसदीय सीट के तीन विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी और एक पर आजसू का कब्जा है। दो सीटों पर झामुमो का कब्जा है। आजसू के खाते में भाजपा का वोट जाना तय माना जा रहा है। इसके अलावा कुरमी वोटों के समीकरण को तोड़ने बचाने की जंग आजसू और हेमंत के बीच जारी है। यह सीट यह भी तय करेगी कि झामुमो की अब कुरमी वोटरों के बीच कितनी साख बची है।
दुमका तय करेगा गुरुजी का दमखम
दुमका संसदीय चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प और महत्वपूर्ण है। दरअसल आठ बार इस सीट से चुनाव जीते शिबू सोरेन फिर मैदान में खड़े हैं। भाजपा के सुनील सोरेन से उनका मुकाबला है। सुनील सोरेन 2009 और 2014 का चुनाव शिबू सोरेन से हार चुके हैं। सुनील सोरेन की जीत के लिए बीजेपी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है, तो शिबू सोरेन अपने पुराने संघर्ष और आदिवासियों के बीच सर्वमान्य नेता की लोकप्रियता को लेकर इत्मीनान है।
इस बार यह सीट गुरुजी का दमखम तय करेगी। यह सीट यह भी तय करेगी कि बदली परिस्थितियों में गुरुजी की आदिवासियों के बीच कितनी गहरी पैठ बची है। इस सीट को झामुमो भी प्रतिष्ठा का विषय मानकर चल रहा है। उसे गुरुजी के करिश्माई व्यक्तित्व और झामुमो के वोट बैंक पर पूरा भरोसा है। कई मौके पर झामुमो की हिचकोली खा रही नैया को गुरुजी ने कमान संभालकर इस सीट से जीत दिलायी है। गांव-गांव में गुरुजी का क्रेज भी बीते चुनाव में दिखा है। इस बार शहरी वोटरों का रुझान भाजपा की ओर है, ऐसे में देखना होगा कि गुरुजी का जादू दुमका के मतदाताओं के सिर चढ़कर कितना बोल पाता है।
राजमहल में परंपरागत वोट बैंक को सहेजने की परीक्षा
राजमहल में झामुमो के लिए परंपरागत वोट बैंक को सहेजने की परीक्षा होगी। अगर झामुमो अपने परंपरागत वोट बैंक को सहेजने में कामयाब रहा, तभी यहां परीक्षा में पास हो पायेगा। झामुमो को इस स्थिति का भान है, तभी तो उसने इस वोट बैंक के चारों ओर रक्षा कवच का घेरा बना रखा है। वहीं दूसरी ओर झामुमो की पाठशाला से ही निकले हेमलाल मुर्मू भी इस रक्षा कवच को भेदने के लिए जंग में तैयार दिख रहे हैं। वैसे तीन बार हार का सामना कर चुके भाजपा के हेमलाल मुर्मू को झामुमो के विजय हांसदा ने 2014 में इस सीट से पटखनी दी थी। आदिवासी वोट बैंक में सेंधमारी के लिए सीएम रघुवर दास खुद हेमलाल के लिए पिच बहुत पहले से तैयार कर रहे हैं। वोटों के समीकरण के लिहाज से झामुमो की पूरी निगाहें यहां परंपरागत वोट बैंक पर है। राजमहल सीट में मुस्लिम और आदिवासी वोट ही निर्णायक हैं। लिहाजा आदिवासी वोटों को बचाने और छीनने की कवायद तेज है। इस लोकसभा क्षेत्र के पाकुड़ विधानसभा कांग्रेस के कब्जे में है। वहीं महेशपुर और लिट्टीपाड़ा झामुमो के पास है। वहां स्टीफन मरांडी और साइमन मरांडी जैसे पुराने दिग्गज जमे हैं। इधर, राजमहल में भाजपा विधायक अनंत ओझा को अपनी ताकत दिखाने की चुनौती है।