संथाल परगना के केंद्र दुमका संसदीय क्षेत्र के जामताड़ा में इन दिनों माहौल पूरी तरह राजनीतिक है। जगह-जगह भाजपा और झामुमो के समर्थक चुनावी चर्चा में मशगूल दिखते हैं। इन चर्चाओं के केंद्र में चुनाव परिणाम ही होता है, लेकिन किसी भी चर्चा में वह आत्मविश्वास नहीं दिखता है। झामुमो के लोग भी आशंकित हैं, तो भाजपा समर्थक भी आश्वस्त नहीं हैं। इन दोनों चर्चाओं से अलग रहनेवाले पेशे से व्यवसायी राधेश्याम बताते हैं कि इस बार मुकाबला कांटे का है। अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। लंबे समय से अलग-अलग दलों के लिए काम करनेवाले मिथिलेश भी यही कहते हैं। वह बताते हैं कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि संथाल परगना के बारे में लोग कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं हैं। क्या गुरुजी एक बार फिर जीतेंगे, इस सवाल पर वह कहते हैं, सब कुछ 23 मई को ही पता चलेगा। स्टेशन के बाहर खड़े रिक्शा चालक मो तस्लीम से जब पूछा गया कि किसका पलड़ा भारी है, तो वह कहते हैं, बता नहीं सकते।
कमोबेश यही स्थिति बाबा वैद्यनाथ की नगरी देवघर की है, जो गोड्डा संसदीय क्षेत्र में आता है। टावर चौक के पास शाम के समय सब्जी बेच रही महिला दमयंती ने कहा, कुछ नहीं कह सकते। यहां तक कि भाजपा के लोग भी कुछ बताने से झिझकते हैं। राजमहल संसदीय क्षेत्र के बरहेट में हालांकि लोग तीर-धनुष के अलावा कोई दूसरी चीज नहीं जानते, फिर भी खुल कर नहीं कहते कि यहां का रण कौन जीतेगा।
संथाल परगना की इस अनिश्चितता के अलग-अलग कारण हैं। झामुमो के लोग इस बात को लेकर आशंकित हैं कि उनके मतदाताओं को इस बार बूथ तक लाने की जिम्मेदारी कौन संभालेगा। संथाल परगना, खास कर दुमका में अब तक यही होता रहा है कि राजनीतिक दल इलाके में सक्रिय ठेकेदारों और अन्य दबंगों को मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाने का जिम्मा देकर निश्चिंत हो जाते थे। इस बार पुरानी स्थिति नहीं हैं। लोग भी जागरूक हुए हैं और ठेकेदार-दबंग भी। इस बार वोट की सौदेबाजी पिछली बार की तरह नहीं हुई है। ये ठेकेदार-दबंग अब यह सोचने लगे हैं कि यदि वे दूसरों को चुनाव जिता सकते हैं, तो फिर खुद ही चुनाव मैदान में क्यों न उतर जायें। उनकी इसी सोच ने इस बार उनकी भूमिका को बहुत हद तक कम कर दिया है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि इस बार मतदान का प्रतिशत देख कर कम से कम दुमका के परिणाम की संभावनाओं के बारे में कुछ कहा जा सकता है। कहा तो यह भी जाता है कि प्रशासन के सख्त रवैये के कारण वोट के ठेकेदार इस बार चुनाव परिदृश्य से बाहर हैं। इसलिए खास कर झामुमो के सामने चुनौती अपने मतदाताओं को बूथ तक लाने की है। दूसरी तरफ भाजपा की परेशानी यह है कि उसके पास जोगियों की भीड़ है और वह ‘ज्यादा जोगी मठ उजाड़’ वाली स्थिति से जूझ रही है। इसके साथ ही दुमका में उसके प्रत्याशी का राजनीतिक ढीलापन भी उसके लिए परेशानी पैदा कर रही है। यह हकीकत है कि पिछले पांच साल में संथाल के हर विधानसभा क्षेत्र में टिकट के कई दावेदार खड़े हो गये हैं। राजमहल, बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा, पाकुड़, महेशपुर, शिकारीपाड़ा, दुमका, जामा, जरमुंडी, नाला, जामताड़ा, मधुपुर, सारठ, देवघर, पोड़ैयाहाट, गोड्डा और महगामा विधानसभा क्षेत्रों में फैले संथाल परगना की यही स्थिति है। भाजपा के सामने दुविधा यह है कि वह चुनाव का जिम्मा किसे सौंपे और चुनौती सभी को साथ लेकर चलने की है। एक को तरजीह मिलते ही दूसरा बिदक जा रहा है। इसका सीधा-सीधा असर चुनावी तैयारियों पर पड़ता दिख रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री के आज के दौरे के बाद इस स्थिति में सुधार का भरोसा भाजपा नेताओं को है, लेकिन अब समय बहुत कम बच गया है। मुख्यमंत्री रघुवर दास खुद पिछले एक सप्ताह से संथाल के नेताओं-कार्यकर्ताओं से एक-एक कर मिल रहे हैं और लगातार संपर्क में हैं, लेकिन अब तक स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं दिखती है।
जहां तक दुमका से भाजपा के प्रत्याशी सुनील सोरेन की बात है, तो उनका राजनीतिक ढीलापन उनका पीछा नहीं छोड़ रही है। लोग कहते हैं कि चुनाव हारने के बाद सुनील कभी इलाके में नजर नहीं आये। हालांकि सुनील सोरेन के समर्थक इससे इनकार करते हैं। वे कहते हैं कि सुनील सोरेन ने लगातार इलाके में काम किया है और लोगों से संपर्क में रहे हैं। इस बार वह गुरुजी को पटखनी देने में कामयाब होंगे। लेकिन इस दावे में उत्साह अधिक और भरोसा कम दिखता है।
भाजपा के साथ एक सकारात्मक बात यह है कि उसके प्रत्याशी को झामुमो के हर कदम और उसकी रणनीति का अंदाजा है, क्योंकि सुनील कभी दुर्गा सोरेन के विश्वासपात्रों में रह चुके हैं। झामुमो अब भी इसी बात की कोशिश में लगा है कि किसी तरह उसके वोटर बूथों तक पहुंच जायें। गुरुजी शिबू सोरेन अपने खराब स्वास्थ्य के कारण अधिक नहीं बोल पाते हैं। पार्टी के दो नेता, विनोद पांडेय और मनोज सिंह लगातार उनकी परछाईं की तरह साथ रहते हैं। वहीं जामताड़ा में सुप्रियो भट्टाचार्य और मनोज पांडेय लगातार लगे हुए हैं। हेमंत सोरेन इन सबसे अलग पूरे संथाल का दौरा कर रहे हैं।
गोड्डा की तस्वीर कुछ दूसरी कहानी कहती है। भाजपा के निशिकांत दुबे लगातार तीसरी बार संसद पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, तो महागठबंधन की ओर से झाविमो के प्रदीप यादव उन्हें चुनौती दे रहे हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं कि निशिकांत ने काम भी किया है, लेकिन यह भी सच है कि उन्होंने दुश्मन भी बहुत पैदा कर लिये हैं, जो इस चुनाव में उन्हें भारी पड़ सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देवघर में हुई चुनावी रैली से स्थिति में बदलाव आने की संभावना भाजपा के लोग बताते हैं, लेकिन वे पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। दूसरी तरफ प्रदीप यादव अपने खिलाफ लगाये गये आरोपों के बावजूद लोगों के बीच जा रहे हैं और उन्हें कांग्रेस के अलावा झामुमो का भी पूरा सहयोग मिल रहा है। लेकिन उनके सामने चुनौती वोटरों को सहेजने और उन्हें बूथ तक लाने की है।
राजमहल सीट पर हेमलाल मुर्मू पुराने राजनीतिक खिलाड़ी हैं, तो विजय हांसदा की छवि एक सुलझे हुए सांसद की है। विवादों से अलग रह कर विजय ने पिछले पांच साल में जो भी काम किया, उसे लोग याद करते हैं, जबकि हेमलाल की परेशानी यह है कि लोग उन पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा के लोग यहां खूब पसीना बहा रहे हैं, लेकिन उन्हें इस पर भी विश्वास नहीं हो रहा है।
ऐसी स्थिति में संथाल परगना का चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा, इस बारे में अभी कुछ भी कहना असंभव है। जिस तरह लोग 23 मई का इंतजार करने को कह रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि यहां सभी दलों में कॉनफिडेंस की कमी है।
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