नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीन के खिलाफ ट्रेड वॉर छेड़ रखा है और अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी को पोषित करने के क्रम में वह भारत को भी बख्शने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। ट्रंप भारत को ‘टैरिफ किंग’ का तमगा भी दे चुके हैं। उनकी नजर इस आंकड़े पर है कि व्यापारिक रिश्ते में भारत 24.3 अरब डॉलर के ट्रेड सरप्लस के साथ अमेरिका पर भारी पड़ रहा है। लेकिन, क्या भारत के प्रति ट्रंप का यह तंग नजरिया अमेरिका के लिए लाभदायक साबित होगा?

भारत का अब भी गुटनिरपेक्षता में विश्वास
भारत ने उत्तर-उपनिवेवादी मानसिकता का पूरी तरह परित्याग नहीं किया है। उसे अपनी स्वायत्तता का सिद्दत से संरक्षण करता है, इसलिए अब भी वैश्विक पटल पर खुद को गुटनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में ही पेश करना चाहता है। यही वजह है कि हाल के वर्षों में बेहद करीबी रणनीतिक साझेदारी बनने के बावजूद भारत की दिलचस्पी अमेरिका के साथ औपचारिक गठबंधन करने की कतई नहीं होगी।

भारत की मंशा का सम्मान करती रही अमेरिकी सरकारें
अमेरिकी सरकारों ने भारत की आकंक्षाओं, अपेक्षाओं और नीतियों का सम्मान करते हुए सहयोग की भावना का निरंतर इजहार किया है। अमेरिकी सरकारें एक के बाद एक, लगातार अनुकूल फैसले लेकर प्रभावी तौर पर ऐलान सा करती रहीं कि भारत की प्रगति अमेरिका के हित में है। साल 2005 में भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर डील को अंजाम देना इसका एक ऐसा ही उदाहरण है।

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