झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को देश के 50 सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों में 12वां स्थान दिया गया है। फेम इंडिया मैगजीन और एशिया पोस्ट नामक मीडिया समूह द्वारा देश भर में कराये गये एक सर्वेक्षण में झारखंड के खाते में यह उपलब्धि दर्ज हुई है। हेमंत सोरेन और झारखंड के लिए यह इस मायने में बड़ी महत्वपूर्ण उपलब्धि है, क्योंकि इस युवा ने महज पांच महीने पहले ही राज्य की कमान संभाली है। यह उपलब्धि झारखंड के लिए इसलिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि उनसे ऊपर केवल तीन राज्यों के मुख्यमंत्री ही हैं, बाकी सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की हस्तियां हैं। और ये तीनों मुख्यमंत्री लंबे समय से अपने राज्यों में सरकार चला रहे हैं। हेमंत सोरेन ने बीते पांच महीनों के दौरान अपनी कार्यशैली और अपनी राजनीति की अलग छाप छोड़ी है। उनकी सबसे बड़ी खासियत जो सामने आयी है, वह है राजनीति और शासन को अलग-अलग रखना। झारखंड के लिए यह एक नयी चीज है। हेमंत ने अब तक जो भी काम किया है, उसमें कहीं किसी को कोई खोट नजर नहीं आया है। यहां तक कि विपक्ष के पास भी आलोचना का कोई मुद्दा नहीं बचा है। दूसरी तरफ अलग तरह की राजनीति के जरिये हेमंत अपने गठबंधन धर्म का भी बखूबी निर्वाह कर रहे हैं और अपने सहयोगियों को शिकायत का कोई मौका अब तक उन्होंने नहीं दिया है। हेमंत सोरेन को राजनीति में अभी लंबी पारी खेलनी है और छोटे से झारखंड को उनसे लंबी आशाएं हैं। हेमंत की उपलब्धि को रेखांकित करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

आज से करीब पांच महीने पहले 29 दिसंबर को रांची के मोरहाबादी मैदान में जिस समय हेमंत सोरेन झारखंड की कमान संभाल रहे थे, लोग उनकी तरफ बेहद उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे थे। झारखंड की सवा तीन करोड़ जनता को महसूस हो रहा था कि अबुआ राज का उनका सपना पूरा हो गया है और अब उनका दुख-दर्द दूर होगा। आज पांच महीने बाद जब देश के एक प्रतिष्ठित मीडिया समूह द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में हेमंत सोरेन को देश के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में 12वां स्थान मिला है, तब लोगों को लगने लगा है कि उनकी उम्मीदों को पूरा करने का माद्दा केवल इसी युवा राजनेता में है। हेमंत सोरेन ने अपने कार्यकाल के पहले दिन से ही जिस अंदाज में काम शुरू किया, उससे साफ हो गया था कि वह एक नयी लकीर खींचनेवाले हैं। चाहे मिलनेवालों से फूलों के गुलदस्ते की जगह किताबें भेंट करने का आग्रह हो या अंग्रेजों द्वारा स्थापित जूते पहन कर गार्ड आॅफ आॅनर लेने की परंपरा को तोड़ने का सवाल हो, हेमंत ने वह कर दिखाया, जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था। इतना ही नहीं, एक महीने तक उन्होंने अपनी कैबिनेट का विस्तार नहीं किया, क्योंकि वह गठबंधन के हर छेद को पूरी तरह सील करने की हिम्मत दिखाना चाहते थे।

शिबू सोरेन के विराट व्यक्तित्व के आगे अपनी छवि गढ़ना हेमंत सोरेन के लिए आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने पिता की विरासत को बखूबी संभाला है। झारखंड का कोई भी व्यक्ति अब सीधे मुख्यमंत्री से बिना किसी बाधा के संपर्क कर सकता है। यह परिपाटी शुरू कर हेमंत ने साफ कर दिया कि वह लोगों के प्रति कितने संवेदनशील हैं। उनके पद संभालने के फौरन बाद सोशल मीडिया पर जिस तरह शिकायतों की बाढ़ आयी, उससे वह तनिक भी विचलित नहीं हुए, बल्कि हरेक शिकायत पर गौर किया और अपने अधिकारियों को उसके समाधान का निर्देश दिया। खास बात यह रही कि हेमंत ने हर शिकायत को दूर कर उसकी सूचना भी मंगवायी। उनका यह कदम पारंपरिक सामाजिक मूल्यों को आधुनिक संचार तकनीक से जोड़ने का अनोखा प्रयास था, जिसकी चौतरफा तारीफ हुई।

मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद हेमंत ने कहा था कि उनकी सरकार बदले की भावना से कोई काम नहीं करेगी। लोगों ने इसे घिसा-पिटा पुराना राग बताया, लेकिन हेमंत ने अब तक जो कुछ भी किया है, उससे उनकी बात सही प्रमाणित होती है। सत्ता संभालने के चार महीने बाद तक उन्होंने प्रशासनिक ढांचे में कोई परिवर्तन नहीं किया। यहां तक कि आज भी जिलों का प्रशासन वही अधिकारी संभाल रहे हैं, जो पहले की सरकार के कार्यकाल में तैनात किये गये थे। किसी भी सरकार के लिए कार्यपालिका बेहद महत्वपूर्ण होती है और ऐसा देखा जाता है कि नयी सरकार के आते ही धड़ाधड़ तबादले होते हैं। लेकिन हेमंत सोरेन की सरकार में अब तक ऐसा नहीं हुआ है और वही प्रशासन सरकार की योजनाओं को पूरी शिद्दत से धरातल पर उतार रहा है।

हेमंत सोरेन ने इन पांच महीनों में एक और नयी चीज दुनिया के सामने रखी है। वह है उनकी साफगोई। वह अपनी हर बात पूरी ईमानदारी और साफ-स्पष्ट शब्दों में लोगों के सामने रखते हैं। इसलिए उनके बयानों पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं की जा रही। चाहे खाली खजाने की बात हो या अर्थव्यवस्था की बदहाल स्थिति की, कोरोना संकट के दौर में सीमित संसाधनों की बात हो या झारखंड की केंद्र पर निर्भरता की, वह अपनी बात तार्किक ढंग से सामने रखते हैं। प्रधानमंत्री के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग हो या यूपीए अध्यक्ष के साथ विपक्षी नेताओं की बैठक, हेमंत की बात में सबसे ऊपर झारखंड होता है और उन्होंने हमेशा झारखंड के हितों की ही बात की है। उन्हें यह कहने में भी कोई संकोच नहीं हुआ कि झारखंड की 90 प्रतिशत निर्भरता केंद्र पर है और कोरोना संकट के दौर में इतनी बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों को वापस लाना अकेले राज्य सरकार के बूते नहीं है।

हेमंत सोरेन की इसी साफगोई और शासन चलाने का उनका अंदाज उन्हें जन नायक बनाता है। झारखंड एक छोटा राज्य है, लेकिन उसकी आकांक्षाएं बहुत ऊंची हैं। हेमंत इस राज्य को उस ऊंचाई पर ले जाना चाहते हैं, जिसके बारे में किसी ने अब तक सोचा भी नहीं है। राज्य के लोगों को भी पूरा भरोसा है कि उनका यह युवा नायक उनके सपनों को जरूर पूरा करेगा। लेकिन हेमंत चाहते हैं कि उम्मीदों का यह सफर ठोस आधार पर हो, न कि खोखले नारों और वादों पर। इसलिए उनका हर कदम सधा हुआ हो रहा है। यही कारण है कि हेमंत सोरेन आज देश के 50 सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में उतने ऊपर पहुंचे हैं। अभी उन्हें लंबा सफर तय करना है और झारखंड की तमाम आकांक्षाओं को मूर्त रूप देना है।

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