कोरोना संकट के कारण देशव्यापी लॉकडाउन का चौथा और संभवत: अंतिम चरण शुरू हो गया है। हालांकि इस चरण में कई तरह की छूट की घोषणा की गयी है, लेकिन अब तक प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी, यानी सेफ रिवर्स माइग्रेशन के लिए किसी ठोस उपाय का एलान नहीं किया गया है। रोजी-रोटी की तलाश में अपनी माटी से सैकड़ों किलोमीटर दूर जानेवाले ये मजदूर आज भी उतने ही परेशान हैं और घर लौटने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। पिछले 18 दिन से उन्हें घर पहुंचाने के लिए राज्य सरकारें लगी हुई हैं और अब तक करीब सात लाख प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाया भी गया है, लेकिन फिर भी लाखों लोग बाल-बच्चों के साथ पैदल या दूसरे किसी साधन की मदद से घरों की ओर लौट रहे हैं। यह बेहद चिंतनीय है और कई राज्य सरकारों ने तो ऐसे प्रवासियों की राज्य में इंट्री ही बैन कर दी है, जिससे समस्या गंभीर होती जा रही है। कई जगहों पर मजदूरों ने जाम लगाया है और विरोध प्रदर्शन किये हैं। हरियाणा, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों में घर लौटने की जिद पर अड़े प्रवासी मजदूरों को पुलिस पीट रही है या गिरफ्तार कर रही है। परेशानहाल प्रवासी मजदूरों के साथ ऐसा व्यवहार अमानवीय है और सरकारों को इस पर सोचना चाहिए। रिवर्स माइग्रेशन के चैलेंज से निबटने के लिए एक ठोस और समन्वित रणनीति की जरूरत है, जैसा कि झारखंड सरकार ने अपनाया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दूसरे राज्यों को भी झारखंड सरकार द्वारा उठाये गये कदम का अनुसरण करने की सलाह दी है। क्या है झारखंड सरकार की रणनीति और इसके आगे और क्या किया जा सकता है, इस पर प्रकाश डालती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

दो दिन पहले शनिवार 16 मई को उत्तरप्रदेश के ओरैया में भीषण सड़क हादसे में घर लौट रहे 25 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गयी। उससे पहले महाराष्ट्र के औरंगाबाद में घर लौट रहे 16 मजदूर मालगाड़ी से कट कर मर गये। इस तरह पिछले 55 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में करीब डेढ़ सौ प्रवासी मजदूर घर लौटने की जद्दोजहद में अपनी जान गंवा बैठे हैं। हादसों में इतनी बड़ी संख्या में हो रही मौतों के बावजूद यह आश्चर्यजनक है कि इन प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी का न तो कोई ठोस इंतजाम किया गया है और न ही सरकारों ने इस चुनौती से निबटने के लिए कोई कारगर रणनीति अपनायी है। सभी राज्य सरकारों ने केवल अपने यहां के लोगों की सुरक्षित वापसी का इंतजाम किया और उनके राज्य से गुजरनेवाले दूसरे प्रवासियों को उनके हाल पर छोड़ दिया। ओरैया हादसे के बाद यूपी सरकार ने राज्य की सीमाएं ही सील कर दी हैं, ताकि कोई प्रवासी मजदूर पैदल या किसी अवैध वाहन से राज्य में प्रवेश नहीं कर सके। हरियाणा और मध्यप्रदेश सरकार भी प्रवासी मजदूरों को केवल ट्रेन से लौटने की इजाजत दे रही है। इस मायने में झारखंड ने एक बार फिर मिसाल कायम की है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आदेश दिया है कि राज्य में किसी भी श्रमिक को पैदल नहीं चलना पड़े, यह सुनिश्चित किया जाये। उन्होंने साफ किया है कि मजदूर चाहे किसी भी राज्य के हों, उन्हें वाहनों से उस राज्य की सीमा तक पहुंचाने की पक्की व्यवस्था की जाये।
झारखंड सरकार के इस फैसले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को ऐसा ही करने की सलाह दी है। लेकिन इसके बावजूद आज भी लाखों प्रवासी श्रमिक सड़कों पर हैं। वे पैदल या दूसरे किसी साधन के जरिये अपने घर लौटना चाहते हैं। इस जद्दोजहद में राज्यों की सीमाएं सील कर दिये जाने के कारण उपद्रव भी हुए हैं। हरियाणा, उत्तरप्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में घर लौटने की जिद पर अड़े प्रवासी मजदूरों पर पुलिस ने लाठियां भी चटकायी हैं। यह सब बेहद दुखद है, क्योंकि परेशान हाल मजदूरों पर इस तरह की कार्रवाई से हर हाल में बचना चाहिए। ऐसा नहीं है कि सरकारों ने प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी का इंतजाम नहीं किया है। पिछले 18 दिन से देश के विभिन्न हिस्सों से श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलायी जा रही हैं और करीब सात लाख प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाया भी गया है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं साबित हो रहा है। केवल ट्रेन के भरोसे सभी प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की कल्पना भी बेमानी है।
इसलिए अब राज्य सरकारों को दूसरी रणनीति अपनानी होगी। यदि सभी राज्य सरकारें अपनी सीमाओं पर ही इन प्रवासियों को रोकने, उनकी स्वास्थ्य जांच करने और उन्हें उनके गंतव्य तक भेजने की व्यवस्था कर दें, तो कहीं कोई प्रवासी मजदूर सड़क पर नहीं दिखेगा। यदि किसी दूसरे राज्य का मजदूर भी सीमा पर आया है, तो उसे उसके गंतव्य राज्य की सीमा तक तो छोड़ा ही जा सकता है। सीमा पर ही इन प्रवासी मजदूरों के लिए शेल्टर होम और दूसरी सुविधाओं की व्यवस्था हो जाती है कि उनका अंतर राज्यीय हस्तांतरण आसानी से हो सकता है। इस कदम से राज्यों के बीच कटु होते रिश्ते भी सुधरेंगे और घर लौटनेवाले प्रवासी मजदूरों की समस्याएं भी कम हो जायेंगी। इसके साथ ही राज्यों के लिए न तो सीमाएं सील करने की जरूरत होगी और न ही पुलिस के बल प्रयोग की। सीमावर्ती जिलों का प्रशासन इस जिम्मेदारी को आसानी से पूरा कर सकता है।
अब समय आ गया है, जब राज्य सरकारों को इस उपाय पर विचार करना ही होगा। प्रवासी मजदूर हमारी अर्थव्यवस्था के पहिये को घुमाते हैं। कोरोना संकट के इस दौर में उनके साथ खड़े होने और उनके दुख-दर्द को बांटने की जरूरत है, न कि बल प्रयोग कर उन्हें रोकने की। राज्य सरकारों को यह भी सोचना होगा कि आज यदि वे प्रवासी मजदूरों को उपेक्षित छोड़ देंगे, तो आनेवाले कल में ये प्रवासी उनके राज्य में किसी भी कीमत पर आने के लिए तैयार नहीं होंगे और तब उनकी अर्थव्यवस्था की गाड़ी कैसे चलेगी। प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी को सुनिश्चित करना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी भी है और कर्तव्य भी। राज्य सरकारें इसे जितनी जल्दी समझ लेंगी, यह समस्या उतनी जल्दी हल हो जायेगी और तब हम कोरोना के खिलाफ अधिक मजबूती से जंग लड़ सकेंगे।

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