प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को जब 54 दिन के दौरान पांचवीं बार देश को संबोधित करते हुए ‘लोकल के लिए वोकल’ बनने का मंत्र दिया, तो सहसा बहुत से लोगों को इसका निहितार्थ समझ में नहीं आया। हकीकत में इसके मायने बहुत व्यापक हैं। कोरोना संकट से जूझ रहे भारत के लिए यह दरअसल एक महामंत्र है, जिसे अपना कर देश की अर्थव्यवस्था में नयी जान फूंकी जा सकती है और भारत के विश्व गुरु बनने का सपना साकार किया जा सकता है। भारत के लिए कोरोना एक बड़ा संकट जरूर है, लेकिन इस चुनौती को अवसर में बदल कर हम सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं, यही इस मंत्र का असली अर्थ है और प्रधानमंत्री के आह्वान के पीछे का अर्थ। इस मंत्र के अर्थ और 130 करोड़ की आबादी वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए इसके परिणाम का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

कोरोना महामारी के वैश्विक संकट के पिछले चार महीने में यह पहला मौका आया है, जब 130 करोड़ लोगों के इस देश को उम्मीद की एक नयी किरण दिखाई पड़ी है और भारत का प्रत्येक नागरिक संकट के दौर में भी भीतर से खुश हो रहा है। इसका सबसे सकारात्मक पक्ष यह है कि प्रधानमंत्री की घोषणा के साथ ही गृह मंत्रालय ने अर्द्धसैनिक बल की कैंटीनों में अब सिर्फ स्वदेशी सामानों की बिक्री की घोषणा कर दी है। यानी 1 जून से अब इन कैंटीनों में स्वदेशी सामान ही मिलेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को देश के नाम अपने संबोधन में जो मंत्र दिया, उसकी महत्ता अब लोगों की समझ में आ रही है। प्रधानमंत्री ने ‘लोकल के लिए वोकल’ होने की जो बात कही, उसका अर्थ बहुत व्यापक है। उन्होंने पीपीइ किट, सेनिटाइजर और वेंटीलेटर के साथ-साथ खादी के उदाहरण के साथ इस मंत्र की जो व्याख्या की, वह भारत को विश्व गुरु बनने की राह को और आसान बनाने का संकेत था। पीएम ने कहा कि कोरोना संकट से हमने पाया है कि हमें लोकल यानी अपने देश द्वारा उत्पादित वस्तुओं का इस्तेमाल कर आत्मनिर्भर बनना ही पड़ेगा। असल में आत्मनिर्भरता और लोकल मामूली नहीं, बल्कि बहुत ही अर्थपूर्ण शब्द हैं। कोरोना ने दुनिया भर को तबाह किया है और अर्थव्यवस्था को नेस्तनाबूद कर दिया है। इसका असर बड़े देशों पर पड़ा है। कोरोना के बाद के दौर में सभी बड़े देश अपने घरेलू उत्पादन को मजबूत करने पर ध्यान देंगे और ग्लोबलाइजेशन की जगह स्थानीय बाजार को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा बड़े देश अपनी कंपनियों को संरक्षण देंगे।

पहले विश्वयुद्ध के दौरान ही देखा गया था कि विश्व अर्थव्यवस्था में एक चक्र चलता है। जब कुछ कठिनाई आती है, तो विकास धीमा हो जाता है। इसे मंदी कहते हैं। इस मंदी से देश और दुनिया जल्दी ही बाहर निकल जायेगी, लेकिन कोरोना संकट ने भारत और पूरी दुनिया को कई सबक तो सिखा ही दिया है। अब दुनिया के लिए शासन, प्रशासन और समाज के सहयोग से आत्मनिर्भरता और स्वदेशी जरूरी है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने के नाते भारत के लिए यह अनिवार्य हो गया है। साथ ही अब भारत को गुणवत्ता वाले स्वदेशी उत्पाद बनाने पर जोर देना होगा। यह बात भी हमें समझ लेनी चाहिए कि स्वदेशी तकनीक और आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है। कोरोना संकट ने भारतीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में अब समय आ गया है, जब भारत हर क्षेत्र में स्वदेशी तकनीक विकसित करे। चाहे वह रक्षा हो या विनिर्माण, इलेक्ट्रॉनिक हो या दूसरे क्षेत्र, भारत को आयातित वस्तुओं का मोह छोड़ना ही होगा। देश में प्रौद्योगिकी के स्तर पर बदले हुए भारत की कल्पना करनी होगी, जिसमें हर क्षेत्र में स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करते हुए देश को विनिर्माण का हब बनाना होगा। चीन के प्रति दुनिया भर में फैले रोष को भुना कर भारत ऐसा कर सकता है। इसलिए पीएम मोदी ने कहा कि कोरोना की चुनौती हमारे लिए एक बड़ा अवसर लेकर आयी है। हम दुनिया के सामने भारत की क्षमता, संसाधन और माहौल को ऐसे पेश करें कि हर विदेशी कंपनियां भारत में काम करने के लिए आगे आयें। पिछले कुछ समय में भारत ने अपनी उन्नत स्वदेशी प्रौद्योगिकी का परिचय देते हुए अंतरिक्ष के क्षेत्र में सफलता हासिल की है। यही जरूरत बाकी दूूसरे क्षेत्रों के लिए भी है।

हम स्वदेशी प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन ये कामयाबियांं अभी मंजिल तक पहुंंचने का पड़ाव भर हैं और हमें काफी बड़ा रास्ता तय करते हुए विश्व को यह दिखाना है कि भारत में प्रतिभा और क्षमता की कोई कमी नहीं है। अभी हम अपनी जरूरतों का लगभग 60 फीसदी सामान आयात करते हैं, जबकि नये माहौल में इसे न्यूनतम करने की जरूरत है। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना और लगभग तीन लाख करोड़ रुपये के सालाना रक्षा बजट के बावजूद यहां करीब 60 फीसदी सैन्य उपकरण आयातित होते हैं। देश की समग्र उन्नति और आर्थिक विकास के लिए तकनीकी शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण होना बहुत जरूरी है। इसको प्रभावी बनाने के लिए कॉलेजों में ऐसी प्रणाली होनी चाहिए, जिसमें आधे समय में किताबी ज्ञान दिया जाये और आधे समय में उसी ज्ञान का व्यावहारिक पक्ष बताकर उसका प्रयोग सामान्य जिंदगी में कराया जाये। चीन ने इस प्रयोग को पूरी तरह से अपनाया और आज स्थिति यह है कि उत्पादन की दृष्टि में चीन भारत से बहुत आगे है। अभी भी भारतीय बाजार चीनी सामानों से भरे पड़े हैं, लेकिन कोरोना संकट के बाद अब भारत को चीन से आयात अगर पूरी तरह से बंद न हो सके, तो कम जरूर कर देना चाहिए।

ऐसी स्थिति में भारत को बड़े पैमाने पर उत्पादन बढ़ाना होगा। साथ ही गुणवत्ता भी सुनिश्चित करनी होगी। अब देश में तकनीकी और इंजीनियरिंग शिक्षा के ढांचे को ठीक करना होगा, क्योंकि अब शिक्षा में इनोवेशन की जरूरत है। सिर्फ रटे-रटाये ज्ञान की बदौलत हम विकसित राष्ट्र बनने का सपना साकार नहीं कर सकते। यकीनन अमेरिका, चीन और जापान जैसे विकसित देशों की व्यवस्था स्थापित करने के लिए हमें बहुत मेहनत करनी होगी, लेकिन हमारे सामने दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है।

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में इसी पक्ष को रेखांकित किया है। अगर सकारात्मक सोच और ठोस रणनीति के साथ हम लगातार अपनी प्रौद्योगीकीय जरूरतों को पूरा करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाते रहें, तो वो दिन दूर नहीं, जब हम खुद अपने नीति नियंता बन जायेंगे और दूसरे देशों पर किसी तकनीक, हथियार और उपकरण के लिए निर्भर हमें नहीं रहना पड़ेगा।

कोरोना संकट के इस दौर में हमारे घरेलू उद्योगों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करायी है। सब्जी से लेकर रोजमर्रा की जरूरत के सामान और चिकित्सा उपकरणों से लेकर दवाइयों तक की जरूरतें हमने स्थानीय स्तर पर ही पूरी की हैं। यदि हम इन 55 दिनों में किसी विदेशी वस्तु का इस्तेमाल किये बिना जीवित रह सकते हैं, तो आगे भी रह सकते हैं। इसलिए देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय उद्योग के कौशल, संसाधनों एवं प्रतिभाओं का बेहतर उपयोग करना जरूरी है। एक व्यक्ति और एक संस्था से ही यह काम सफल नहीं हो सकता है। इसमें हम सब की सामूहिक और सार्थक भागीदारी की जरूरत है।

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