आपराधिक गिरोहों का दुस्साहस : धनबाद के डॉक्टर ने छोड़ा शहर, दूसरे लोग भी दहशत में
धनबाद के जाने-माने सर्जन डॉक्टर समीर कुमार ने शहर छोड़ दिया है। उन्होंने यह फैसला गैंगस्टर अमन सिंह के गुर्गों द्वारा दी गयी धमकी के कारण किया। इस तरह झारखंड को एक कुशल और प्रसिद्ध सर्जन की सेवाओं से वंचित हो जाना पड़ा है। डॉ समीर अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं। उनके जैसे दर्जनों डॉक्टर, कारोबारी और अन्य पेशेवर अब झारखंड छोड़ने का मन बना रहे हैं, क्योंकि इन्हें आपराधिक गिरोहों ने रंगदारी के लिए धमकी दी है। इससे झारखंड में इन दिनों एक नये किस्म की बेचैनी है। यह बेचैनी संगठित अपराध में अचानक हुई वृद्धि के कारण पैदा हुई है। अपने स्थापना काल से ही नक्सली समस्या से जूझ रहे झारखंड में संगठित आपराधिक गिरोहों की कारस्तानी हमेशा महसूस की जाती रही है, लेकिन रंगदारी के लिए धमकी का यह दौर झारखंड के माहौल को बदरंग कर रहा है। आपराधिक गिरोहों का दुस्साहस इतना बढ़ गया है कि वे राजधानी रांची के एक दर्जन से अधिक व्यवसायियों, बड़े बिल्डरों और कारोबारियों को खुलेआम धमकी भेज रहे हैं और मोटी रकम की मांग कर रहे हैं। आम तौर पर शांत रहनेवाले झारखंड के लिए यह स्थिति बेहद खतरनाक है। एक तरफ कारोबारी खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं, जिसका सीधा असर राज्य की आर्थिक गतिविधि पर पड़ रहा है, तो दूसरी तरफ पुलिस तंत्र की लाचारी से आम जनता का भरोसा उस पर से खत्म हो रहा है। आखिर क्यों पैदा हुई है यह स्थिति और झारखंड पुलिस का तंत्र इतना कमजोर कैसे साबित हो रहा है, इन सवालों को टटोलती आजाद सिपाही के राज्य समन्वय संपादक अजय शर्मा की खास रिपोर्ट।
कहानी शुरू करते हैं 1990 से। तब झारखंड अलग नहीं हुआ था और भारत में आर्थिक उदारीकरण का दौर भी शुरू नहीं हुआ था। रांची की मीडिया में एक खबर छपी कि रांची के हवाई नगर में रहनेवाली कुसुम धवन रांची छोड़ रही है। खबर में बताया गया था कि कुसुम अपनी दो बेटियों के साथ रहती है और अपराधियों की धमकी से आतंकित होकर उन्होंने रांची छोड़ने का फैसला किया है। अपराधियों ने उनके घर में घुस कर तीनों को बुरी तरह पीटा था और घर छोड़ने की धमकी दी थी। उन दिनों रांची में अपराधियों-रंगदारों का खौफ इतना अधिक था कि अंधेरा होने के बाद शहर में सन्नाटा पसर जाता था। पुलिस भी बाजार बंद करा देती थी। जमीन सौदे से लेकर मकान बनाने तक के लिए रंगदारी देनी पड़ती थी। कई लोगों की हत्या हुई, फिरौती के लिए अपहरण हुआ और दर्जनों लोग यहां से पलायन कर गये।
धनबाद के प्रख्यात सर्जन डॉ समीर कुमार के झारखंड छोड़ने के बाद अचानक वह समय याद आने लगा है। बता दें कि गैंगस्टर अमन सिंह के गुर्गों की धमकी के कारण डॉ समीर ने परिवार के साथ धनबाद छोड़ दिया है। वह ऐसा करनेवाले अकेले नहीं हैं। बताया जाता है कि कई अन्य डॉक्टर, कारोबारी और पेशेवरों को रंगदारी के लिए लगातार धमकियां मिल रही हैं। ये सभी अब झारखंड छोड़ने का मूड बना चुके हैं। झारखंड में यह पहली बार नहीं हुआ है। पिछले साल 29 सितंबर को राजधानी रांची के अपर बाजार इलाके के जालान रोड के कम से कम एक दर्जन व्यवसायियों को दो करोड़ रुपये देने या फिर अंजाम भुगतने की धमकी दी थी। उससे सप्ताह भर पहले भी अपराधी सरगना अमन साव के एक गुर्गे ने राजधानी के एक बड़े बिल्डर को इसी तरह से धमकी दी थी। उस बिल्डर ने पुलिस को सूचना दी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। डॉ समीर भी पुलिस के पास गये, लेकिन कार्रवाई के बदले पुलिस ने उन्हें गाड़ी और फोन नंबर बदलने के साथ नंबर प्लेट हटाने की नसीहत दे दी। रांची के व्यवसायी और कारोबारी ने तो किसी तरह मामले को मैनेज किया, लेकिन डॉ समीर ने धनबाद ही छोड़ दिया।
इस तरह की घटनाएं जमशेदपुर, धनबाद, हजारीबाग, रामगढ़, गिरिडीह, मेदिनीनगर और गढ़वा जैसे शहरों में आम हो गयी हैं। बताया जाता है कि व्यवसायियों और कारोबारियों से लेवी वसूली का धंधा काफी बढ़ गया है। फोन और दूसरे संचार माध्यमों से धमकी देने का सिलसिला भी लगातार जारी है, लेकिन कहीं भी पुलिस की सक्रियता नजर नहीं आ रही है।
ऐसे में अब झारखंड के लोग इस बात को लेकर भयभीत हैं कि क्या यह राज्य पिछली सदी के अंतिम दशक के दौरान पैदा हुई स्थिति की तरफ लौट रहा है। तब अपराधियों के भय से शहरों की सड़कें अंधेरा होने के बाद सुनसान हो जाया करती थीं और कोई भी व्यवसायी खुद को हमेशा किसी न किसी अपराधी के निशाने पर महसूस करता था। सुरेंद्र बंगाली से लेकर अनिल शर्मा और धनंजय प्रधान से लेकर सुशील श्रीवास्तव और सुजीत सिन्हा जैसे सरगनाओं की पूरे राज्य में तूती बोलती थी। ये लोग बिना किसी डर के कारोबारियों को फोन करते थे और लेवी के रूप में मोटी रकम वसूल करते थे। मांग पूरी नहीं होने पर अपहरण, हत्या या जानलेवा हमला आम बात थी। उस समय झारखंड अलग नहीं हुआ था। ग्रामीण इलाकों में नक्सली लेवी वसूलते थे और शहरी इलाकों पर अपराधी।
लेकिन झारखंड अलग राज्य बनने के बाद नक्सलियों द्वारा लेवी वसूली जारी रही, पर पुलिस के सख्त रुख ने अपराधियों के अर्थतंत्र पर चोट की। तब शहरी इलाकों से लेवी वसूली का सिलसिला थम गया। लेकिन एक बार फिर वही स्थिति पैदा हो रही है। इसने झारखंड पुलिस पर सवालिया निशान लगा दिया है। लोग अब पुलिस पर भरोसा करने से झिझकने लगे हैं। कहा जाता है कि यदि पुलिस का आम जनता से जीवंत संपर्क खत्म हो जाता है, तो अपराध नियंत्रण उस पुलिस के बस की बात नहीं रह जाती है। झारखंड पुलिस के साथ भी यही हो रहा है। यहां का पुलिसिया तंत्र इतना अधिक प्रदूषित हो चुका है कि लोग अब इससे नफरत करने लगे हैं। कोयला तस्करी, जमीन दलाली, मानव तस्करी, नशीले पदार्थों का कारोबार और अवैध हथियार के धंधे में पुलिसकर्मियों के शामिल होने की खबरें लगातार सामने आती हैं, लेकिन वैसे पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती। झारखंड की पुलिस अब केवल नक्सलियों के सरेंडर कराने के काम में जुटी रहती है। शहरी इलाकों में उसका सूचना तंत्र पूरी तरह ध्वस्त हो गया है और उसे कोई भी सूचना समय पर नहीं मिल रही है। यह एक संगठन के अस्तित्व को कमजोर होने का सबूत है।
ऐसा नहीं है कि इस स्थिति के लिए केवल पुलिस का तंत्र ही जिम्मेवार है। अपराधी गिरोहों के साथ अब सफेदपोशों ने भी संपर्क स्थापित कर लिया है। ये सफेदपोश राजनीति में भी हैं, नौकरशाही में भी हैं और कारोबार में भी हैं। यही लोग गिरोहों को पालते-पोसते हैं, सूचनाएं देते हैं। बदले में अपराधियों के पैसे का निवेश करते हैं और अपनी सुरक्षा भी करते हैं। इन सफेदपोशों के प्रभाव के कारण पुलिस कई बार कार्रवाई करने से झिझकती है, जिसका खामियाजा उसे अक्सर भुगतना पड़ता है। पुलिस की हालत यह है कि उसके द्वारा पोषित संगठन ही अब उसकी जान का दुश्मन बन गया है और सुरक्षाकर्मी मारे जा रहे हैं।
यह स्थिति झारखंड को बदरंग बना रही है। अपराधियों के कारण झारखंड से पलायन करना यदि इसी तरह जारी रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब यह खूबसूरत प्रदेश अंधेरगर्दी के युग में लौट जायेगा। उस समय हमारे पास छाती पीटने के अलावा कोई और चारा नहीं बचेगा।