- यह नया भारत है, यहां हर आतंकी का वाजिब हिसाब होगा
- पूर्व की सरकारों में सेलेब्रिटी बन कर यासीन मलिक जाता था विदेश
- अभी तो यह झांकी है, कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार का केस बाकी है
मैं पिछले 28 साल से अहिंसा की राजनीति कर रहा हूं। इन 28 सालों में मैं किसी भी हिंसात्मक घटना में शामिल नहीं हुआ। मैं महात्मा गांधी के बताये रास्ते पर चल रहा हूं। ये शब्द हैं टेरर फंडिंग मामले में सजायाफ्ता यासीन मालिक के, जब एनआइए ने उसे कोर्ट में पेश किया। जिस आतंकी ने कश्मीर की घाटी को सुलगाया, वहां कश्मीरी हिंदुओं को जिंदा जलाया, लाखों कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार और पलायन का कारक बना, हिंदू माताओं-बहनों की आबरू के साथ खिलवाड़ किया, आज वही आतंकी अहिंसा की बातें कर रहा है। जो आतंकी रलिव गलिव चलिव, यानी मुसलमान बन जाओ, या मर जाओ, या भाग जाओ। असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान, मतलब, हमें पाकिस्तान चाहिए और हिंदू महिलाएं भी, लेकिन अपने मर्दों के बगैर। यहां क्या चलेगा- निजाम-ए-मुस्तफा का सशक्त पैरोकार था। जो इन नारों को 90 के दशक में कश्मीर की मसजिदों से जोर देकर लगवाया करता था, जो हिंदुओं के कत्ल पर अट्टाहास करता था, जो करीब पांच लाख कश्मीरी हिंदुओं के घाटी से पलायन का मास्टरमाइंड था, उसे अब भारत के गांधी याद आ रहे हैं। वह अब अहिंसा की वकालत कर रहा है। यासीन मलिक पर कश्मीरी हिंदुओं पर अत्याचार से लेकर 2017 में टेरर फंडिंग के केस तक क्या नहीं चल रहे उसके ऊपर। 1990 में रावलपोरा में वायु सेना के चार अधिकारियों की हत्या, 1989 में देश के पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद के अपहरण का षडयंत्र रचने, (इस अपहरण के बदले भारत सरकार को पांच खूंखार आतकंवादियों को छोड़ना पड़ा था) 1989 में कश्मीरी पंडित न्यायाधीश न्यायमूर्ति नीलकंठ गंजू की हत्या, वर्ष 2013 में पाकिस्तान में लश्कर के सरगना हाफिज सईद के साथ मिल कर कश्मीर में सुरक्षा बलों पर आम कश्मीरियों के मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाते हुए धरना से लेकर प्रदर्शन और फिर कई हिंसक आंदोलन के मामले उस पर चल रहे हैं। फिलहाल टेंरर फंडिग के दो मामलों में यासीन मलिक को ताउम्र कैद की सजा सुनायी गयी है। कभी किसी व्यक्ति को खून से लथपथ देख कर अट्टाहास करनेवाले यासीन मलिक के चेहरे का रंग उस समय उड़ गया, जब उसे ताउम्र कैद की सजा सुनायी गयी। एक वक्त था, जब यासीन मलिक जैसों के कारणा कश्मीरी हिंदू खून के आंसू रो रहे थे। आज वो वक्त है, जब यासीन मलिक प्राण की भीख मांग रहा है। आज आतंकवादी यासीन मलिक का इलाज क्या हुआ, पाकिस्तान के पेट में दर्द हो रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को रोना आ रहा है। उन्होंने बेशर्मी के साथ यासीन मलिक को स्वतंत्रता सेनानी तक बता दिया। पाकिस्तानी सेना के भी आंसू नहीं थम रहे। पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी से लेकर सांसद नाज बलोच और पत्रकार हामिद मीर तक उसे बचाने के लिए गुहार लगा रहे हैं। समझने वाली बात यह है कि एक आतंकी, जो कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार का मास्टरमाइंड है, टेरर फंडिंग मामले में दोषी पाया गया है, उसके लिए पूरा पाकिस्तान पैरवी कर रहा है। लेकिन दुर्भाग्य यह कि कश्मीरी हिंदुओं के लिए 80-90 के दशक से लेकर करीब 32 सालों तक यहां के हुक्मरानों ने उफ तक नहीं किया था। लेकिन आज जब सच्चाई सामने आ गयी है, एक वर्ग को छोड़ पूरा देश कश्मीरी हिंदुओं के साथ खड़ा है। हालांकि गंगा-जमुनी तहजीब और सेक्यूलरिज्म की दुहाई देनेवाला वर्ग नरसंहार की बातों को अभी भी खारिज कर रहा है। लेकिन याद रखिये यह मनमोहन सिंह वाला भारत नहीं है। नरेंद्र मोदी वाला भारत है। यासीन मलिक, बिट्टा कराटे से लेकर अन्य आतंकियों का चैप्टर क्लोज करने की दिशा में अग्रसर नये भारत के बढ़ते कदम के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
यासीन मलिक यानी जम्मू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) का प्रमुख। यह वही यासीन मलिक है, जो सबसे पहले आतंकी ट्रेनिंग लेने पाकिस्तान गया था। यानी एक ऐसा आतंकी, जिसकी तसवीर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, मुंबई और भारत में कई आतंकी हमलों का जिम्मेदार कुख्यात आतंकवादी और लश्कर-ए-तैयबा का सरगना हाफिज सईद के साथ सुर्खियां बनीं। उन तस्वीरों के कई मायने भी निकाले गये। कहते हैं तस्वीर बिना कुछ कहे बहुत कुछ बोल जाती है। जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे, तब यासीन मलिक से जिस गर्मजोशी से वह हाथ मिलाते नजर आये, सच में इस तस्वीर को देखने के बाद कश्मीरी हिंदुओं के दिलों पर क्या बीती होगी, समझा जा सकता है। जिस शख्स ने कश्मीरी हिंदुओं का कत्लेआम किया, कश्मीरी हिंदुओं की बहन-बेटियों, पत्नियों से बलात्कार किया, हिंदुओं को घाटी से पलायन करने को मजबूर किया, उससे देश का प्रधानमंत्री मुसकुरा कर हाथ मिला रहा है। इससे ज्यादा बेबसी भला किसी सरकार की और क्या हो सकती है। फारूक अब्दुला के साथ उसकी एक तस्वीर ही काफी है यह समझने के लिए कि वोट के सौदागरों ने किस तरह उसके समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। यासीन मालिक कुर्सी पर बैठा हुआ है और फारूक अब्दुल्ला उसकी पीठ पर हाथ रख कर खुद को गौरवान्व्ति महसूस कर रहे हैं। बेबसी देखिये, जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री खड़ा है और आतंकी यासीन मलिक बैठा हुआ है। एक और तस्वीर है, जब यासीन मलिक पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ बगल की कुर्सी पर बैठा है। रूतबा ऐसा मानो यासीन मालिक किसी दूसरे देश का प्रधानमंत्री। आतंकी हाफिज सईद के साथ कंबल ओढ़े यासीन मलिक की तस्वीर तो आतंकवाद की पूरी दास्तान ही बयां कर देती है। लेकिन यह पूर्व की बातें हैं। आज स्थिति यह है कि यासीन मलिक दया की भीख मांग रहा है। अपने को अहिंसा का पुजारी बता रहा है। वह समझ गया है कि आज मनमोहन सिंह की नहीं, नरेंद्र मोदी की सरकार है। यह नया भारत है। नये भारत में आतंकवादी या तो ताउम्र जेल के अंदर होगा या फिर फांसी के फंदे पर। अभी तो टेरर फंडिंग के मामले में यासीन मलिक को उम्र कैद हुई है। अभी तो उसके ऊपर हत्या, बलात्कार और घाटी को सुलगाने के मामले बाकी हैं। ये ऐसे वीभत्स, रेयरेस्ट आॅफ द रेयर मामले हैं, जिसमें यासीन को फांसी की सजा तक हो सकती है। 90 के दशक में विदेशों में भारत की तरफ से सेलेब्रिटी बन कर प्रतिनिधित्व करने जानेवाले यासीन मलिक को राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने मई 2019 में गिरफ्तार किया। इस आतंकी की गिरफ्तारी एक व्यापक आतंकी-वित्त पोषण मामले में की गयी थी। 2017 में यासीन मलिक के खिलाफ एनआइए ने टेरर फंडिंग का मामला दर्ज किया। इसके बाद से पटियाला कोर्ट में इस मामले की लगातार सुनवाई हुई। कोर्ट में एनआइए ने सारे सबूत पेश किये। यह राज खोला कि देश में आतंकी घटनाओं को बढ़ावा देने के लिए यासीन मलिक के पास पाकिस्तान समेत दुनिया के कई देशों से पैसा आता था। उन पैसों के जरिये देश में कई बड़ी आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया। एनआइए ने अपनी प्राथमिकी में यह भी खुलासा किया था कि कश्मीरी अलगाववादियों को पाकिस्तान से धन प्राप्त हो रहा था, जिसमें हिजबुल मुजाहिदीन का सैयद सलाहुद्दीन और लश्कर-ए-तैयबा का हाफिज सईद शामिल है। स्कूलों को जलाने, पथराव, हड़ताल और विरोध प्रदर्शन के माध्यम से कश्मीर घाटी में उन्माद फैलाने के लिए धन प्राप्त किया गया था। जब आतंकी घटनाओं में मकबूल भट्ट को फांसी हुई, तो यासीन मलिक ने फांसी के विरोध में जगह-जगह पोस्टर लगाये थे। इस मामले में यासीन मलिक को गिरफ्तार भी किया गया था। चार महीने तक वह जेल में था।
यासीन मलिक वह खूंखार आतंकी है, जिस पर 1989 में देश के पूर्व गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद के अपहरण का आरोप है। रूबिया की रिहाई के बदले भारत सरकार को पांच खूंखार आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था। 1989 में कश्मीरी पंडित न्यायाधीश न्यायमूर्ति नीलकंठ गंजू की जघन्य हत्या का भी आरोपी है मलिक। यासीन मलिक ने 1990 में रावलपोरा में वायु सेना के चार अधिकारियों की हत्या करवा दी थी। अक्टूबर 1999 में यासीन मलिक को पुलिस ने राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के आधार जन सुरक्षा अधिनियम के तहत बंदी बनाया था। वर्ष 2013 में वह पाकिस्तान गया। वहां उसने पाकिस्तान में लश्कर के सरगना हाफिज सईद के साथ मिलकर कश्मीर में सुरक्षा बलों के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया। आरोप लगाया कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबल आम कश्मीरियों के मानवाधिकारों का हनन कर रहे हैं। तमाम बहस, सबूतों और तथ्यों पर नजर दौड़ाते हुए कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यासीन मलिक ने आजादी के नाम पर जम्मू कश्मीर में आतंकवादी और अन्य गैर कानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन जुटाने के मकसद से दुनिया भर में एक नेटवर्क स्थापित कर लिया था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने कोर्ट में कहा था, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, जेकेएलएफ, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों ने पाकिस्तान की आइएसआइ के समर्थन से नागरिकों और सुरक्षाबलों पर हमला करके घाटी में बड़े पैमाने पर हिंसा को अंजाम दिया और जम्मू-कश्मीर में उसका सूत्रधार रहा है यासीन मलिक। तमाम बिंदुओं पर गौर फरमाते हुए कोर्ट ने टेरर फंडिंग मामले में यासीन मलिक को ताउम्र की सजा सुनायी।
सजा यासीन मालिक को, दर्द पाकिस्तान को
इधर टेरर फंडिंग मामले में कोर्ट ने यासीन मालिक को ताउम्र की सजा सुनायी, उधर पाकिस्तान के हुर्रियत नेता मातम मनाने लगे। पाकिस्तानी नेता छाती पीट-पीट कर चिल्लाने लगे कि यासीन मलिक निर्दोष है और उस पर जबरिया सजा लादी गयी है। भारत और अदालत के आदेश की निंदा करते हुए उन लोगों ने यासीन मलिक को तत्काल बरी करने की मांग के साथ आंदोलन ही छेड़ दिया। यासीन मलिक किसके इशारे पर और किसकी मदद से जम्मू कश्मीर में हिंदुओं के खिलाफ आतंक फैला रहा था, यह इससे भी स्पष्ट हो जाता है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बेशर्मी के साथ उसको स्वतंत्रता सेनानी बताते हुए ट्वीट कर कहा, आज का दिन भारतीय लोकतंत्र और उसकी न्याय प्रणाली के लिए एक काला दिन है। भारत यासीन मलिक के शरीर को तो कैद कर सकता है, लेकिन वह कभी उस स्वतंत्रता के विचार को कैद नहीं कर सकता, जिसका वह प्रतीक है। बहादुर स्वतंत्रता सेनानी के लिए आजीवन कारावास कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार को नयी गति प्रदान करेगा। पाकिस्तान की सेना ने भी इस मामले पर अपना रिएक्शन दे दिया है। पाकिस्तान के डीजी आइएसपीआर ने ट्वीट किया, पाकिस्तान मनगढ़ंत आरोप में यासीन मलिक को उम्रकैद की सजा की कड़ी निंदा करता है। इस तरह की दमनकारी रणनीति अवैध भारतीय कब्जे के खिलाफ संघर्ष में कश्मीर के लोगों की भावना को कम नहीं कर सकती है। पाकिस्तान के सेलिब्रिटी लगातार यासीन मलिक को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र से गुहार लगा रहे हैं। पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी ने तो यासीन मलिक के समर्थन में ट्वीट कर यहां तक मांग कर दी कि इस मामले में यूएन को हस्तक्षेप करना चाहिए। शाहिद अफरीदी के साथ-साथ सांसद नाज बलोच और पत्रकार हामिद मीर ने इस मामले में भी यूएन से यासीन को बचाने की गुहार लगायी थी। मंगलवार को जारी एक बयान में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा कि यासीन मलिक भारत अधिकृत जम्मू-कश्मीर में हुर्रियत नेताओं में सबसे प्रमुख और सम्मानित आवाज है। कई दशकों के भारतीय उत्पीड़न के खिलाफ हुर्रियत नेता के दृढ़ संकल्प को न्याय के ऐसे उपहास से नहीं हिलाया जा सकता है। बिलावल भुट्टो ने आगे कहा कि मैं यासीन मलिक को बरी करने की मांग करता हूं और उसके खिलाफ मनगढ़ंत आरोप हटा दिये जाने चाहिए। उसे तुरंत रिहा किया जाना चाहिए और उसके परिवार के साथ पुनर्मिलन की अनुमति दी जानी चाहिए।
यहां बात दें कि भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार बनते ही जम्मू कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया गया। सुरक्षा बलों को ताकतवर बना दिया गया। भारत की जांच एजेंसियों को यह निर्देशित किया गया कि भारत के दुश्मनों और विरोधियों के खिलाफ जांच शुरू की जाये। कोई कितना भी ताकतवर क्यों न हो, अगर वह भारत के खिलाफ षडयंत्र रच रहा है, तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जाना चाहिए। इसी के तहत एनआइए ने 2017 में बिट्टा कराटे और फरवरी 2019 में यासिन मलिक को गिरफ्तार किया था। बिट्टा कराटे को 1990 में भी गिरफ्तार किया गया था। उसने जेकेएलएफ नेताओं के आदेश पर 20 पंडितों को मारने की बात कैमरे पर स्वीकार की थी। बाद में बिट्टा को सत्ता की मदद मिली और सबूतों के अभाव में वह जेल से बरी हो गया। बिट्टा जब रिहा होकर गुरु बाजार पहुंचा था, तो उसका जोरदार स्वागत हुआ था। उस पर फूलों की बारिश की गयी। लेकिन अब उसकी गर्दन फांसी के फंदे से नहीं बच सकती। फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे के खिलाफ मामला फिर से खोल दिया गया है। श्रीनगर के हब्बा कदल इलाके में 2 फरवरी, 1990 को सतीश टिक्कू की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी। उसकी फाइल मोदी सरकार में सुरक्षा जांच एजेंसियों ने खोली है। अब तक के एक्शन से पता चलता है कि कश्मीरी हिंदुओं को अब जरूर न्याय मिलेगा। यह नया भारत है। यह भारत चीख-चीख कर कह रहा है कि कश्मीरी हिंदुओं के गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। यासीन मलिक की सजा पर भी हर भारतीय खुश है। कश्मीरी हिंदुओं को भी विश्वास होने लगा है कि उन्हें देर से ही सही, न्याय जरूर मिलेगा।