विशेष
-कर्नाटक में मिली हार के बाद फूंक-फूंक कर कदम रख रही है भाजपा
-कांग्रेस के भीतर उत्साह तो है, लेकिन अंदरूनी कलह से पार्टी है परेशान

वैसे तो लोकतांत्रिक शासन प्रणाली ही अनोखी है, लेकिन उसमें भी भारत का लोकतंत्र कुछ अलग किस्म का है। यहां लोकतंत्र का आधा हिस्सा जहां जनता के बीच रहता है, तो आधा हिस्सा चुनावी सियासत के रंग में रंगा रहता है। अब चुनाव को ही लिया जाये। इसी महीने दक्षिण का प्रवेश द्वार कहे जानेवाले कर्नाटक का विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ है, तो अब सियासत की गाड़ी हिंदी पट्टी के तीन बडे राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पड़ाव डालने के लिए प्रस्थान कर चुकी है। यह गाड़ी कभी रुकती नहीं है, क्योंकि भारत के किसी न किसी हिस्से में कभी न कभी चुनाव होते ही रहते हैं। चूंकि सियासत की गाड़ी भोपाल, जयपुर और रायपुर की तरफ रुख कर चुकी है, तो राजनीतिक पार्टियों का ध्यान भी स्वाभाविक तौर पर उधर ही लग चुका है। इन तीन राज्यों में इस साल के अंत में चुनाव होना है। इसके बाद लोकसभा चुनाव से पहले तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होंगे। हिंदी पट्टी के इन तीन बड़े राज्यों के चुनाव इसलिए बेहद महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि यहां से लोकसभा चुनाव का असली पूर्वाभ्यास शुरू होगा। इसलिए भाजपा और कांग्रेस इन तीन राज्यों में कोई भी खतरा मोल लेने के लिए तैयार नहीं हैं। कर्नाटक के चुनाव परिणाम से उत्साहित कांग्रेस इन तीन राज्यों के लिए अलग किस्म की रणनीति अपनाने जा रही है, तो भाजपा ने कर्नाटक से सीख लेकर सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है। इन तीन राज्यों की परिस्थितियां, चुनावी मुद्दे और सियासी हालात अलग-अलग हैं, तो स्वाभाविक रूप से रणनीति भी अलग-अलग होगी। इन तीन राज्यों में चल रही चुनावी तैयारियों और राजनीतिक दलों की संभावित रणनीतियों के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

लोकतंत्र की वैधानिक चेतावनी में कहा जाता है कि कोई भी दो चुनाव एक जैसे नहीं होते। हरेक चुनाव की प्रकृति, जमीनी स्थिति और नेता अलग-अलग होते हैं। इस वैधानिक चेतावनी की पृष्ठभूमि में यह जानना दिलचस्प है कि इस साल के अंत में हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होनेवाले चुनाव में बाकी सब कुछ भले ही एक हो, राजनीतिक दलों की रणनीति राज्य के हिसाब से पूरी तरह अलग होनेवाली है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत मिलने के बाद कांग्रेस जहां इन तीन राज्यों को लेकर अधिक आशान्वित है, वहीं भाजपा पूरी तरह सतर्कता बरत रही है और कोई खतरा मोल लेने के लिए तैयार नहीं है। इसका मतलब है कि इन तीन राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों में दिलचस्प राजनीतिक मुकाबला होना तय है।
यह तो सर्वविदित है कि विधानसभा चुनाव संसदीय चुनावों से अलग होते हैं, लेकिन भाजपा को रोकने के लिए विपक्ष का अधिक से अधिक राज्यों को जीतना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा राज्यों में मिली जीत से राज्यसभा में भी विपक्ष का पक्ष मजबूत होगा। इसलिए कांग्रेस के साथ भाजपा भी इन राज्यों में पूरा जोर लगा रही है। इन तीन राज्यों में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। इन तीनों राज्यों में समानता एक ही है कि हर राज्य में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है, यानी इन तीनों राज्यों में से कहीं भी कोई भी क्षेत्रीय दल मजबूत नहीं है। इस लिहाज से लोकसभा चुनाव से पहले दोनों दलों के लिए ये चुनाव लिटमस टेस्ट साबित होनेवाले हैं। इन तीन राज्यों में से मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है, जबकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ कांग्रेस के पास है। हालांकि विधानसभा के पिछले चुनाव में तीनों ही राज्यों में कांग्रेस को जीत मिली थी, लेकिन मध्यप्रदेश में बगावत के कारण सत्ता भाजपा की झोली में आ गयी थी।

भाजपा की तैयारी
कर्नाटक में मिली हार के बाद भाजपा अब इन चुनावी राज्यों की रणनीति में बड़े बदलाव करेगी। अब भाजपा जातिगत समीकरण और चुनाव प्रचार में स्थानीय नेतृत्व को अहम जगह देगी। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार, कर्नाटक में हार के लिए काफी हद तक ये दो कारण जिम्मेदार रहे। इन तीन राज्यों के लिए तैयार योजना में जातिगत समीकरण का ध्यान रखा जायेगा और स्थानीय नेतृत्व के हाथ में राज्य के चुनाव प्रचार की कमान भी दी जायेगी। इसके अलावा भाजपा इन तीनों राज्यों में छोटी पार्टियों और उम्मीदवारों को चिह्नित करने में जुट गयी है, जो कांग्रेस के वोट का बंटवारा कर पाने में सक्षम हैं। जहां तक प्रचार अभियान की बात है, तो यकीनन इसकी कमान केंद्रीय नेतृत्व के हाथों में होगी, लेकिन राज्य के एक बड़े चेहरे को भी समानांतर रूप से सामने रखा जायेगा। दूसरे दलों से भाजपा में आनेवाले नेताओं का भी खास ध्यान रखने का फैसला किया गया है। भाजपा की सबसे बड़ी समस्या टिकट वितरण है। पार्टी के भीतर की खेमेबंदी के कारण अक्सर यह असंतोष का कारण बनता है। ऐसे में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने फैसला किया है कि टिकट वितरण में पार्टी के हर खेमे का ध्यान रखा जायेगा। किसी एक खेमे पर ही दांव नहीं खेला जायेगा। टिकट वितरण के समय जातिगत समीकरण और वरिष्ठ नेताओं की पसंद-नापसंद को भी बारीकी से समझा जायेगा।

कांग्रेस की तैयारी
जहां तक इन तीन राज्यों में कांग्रेस की तैयारी का सवाल है, तो पार्टी का मानना ​​है कि वह कम से कम दो- मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बेहतर स्थिति में है। कर्नाटक के बाद कांग्रेस का मानना है कि उसके पास एक रोडमैप है, जिसे वह मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में दोहरा सकती है। कर्नाटक में अपनायी गयी रणनीति को कांग्रेस इन दो राज्यों में भी आजमा सकती है, जिसके तहत चुनाव से कुछ माह पहले कल्याणकारी/लोकलुभावन रियायतों की घोषणा की जा सकती है। कर्नाटक की तरह ही कांग्रेस इन राज्यों में भी अपने चुनावी अभियान को हाइपर लोकल रखना चाहेगी, जिससे ‘नरेंद्र मोदी फैक्टर’ राज्य में सफल न हो पाये। हाल में जिन दोनों राज्यों, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस जीती, वहां पार्टी जीत के प्रति आश्वस्त थी। उसने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए वह सब कुछ किया, जो वह कर सकती थी। इसकी तुलना में गुजरात, त्रिपुरा और मेघालय में कांग्रेस का अभियान नीरस था। राजस्थान में पर्याप्त दबाव होने के बावजूद पार्टी को भरोसा है कि वह वहां भी अच्छा कर सकती है।
जहां तक मध्यप्रदेश का सवाल है, तो वहां कांग्रेस में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कोई असमंजस नहीं है। कमलनाथ का न तो शीर्ष पर कोई प्रतिद्वंद्वी है, न रैंक में कोई आगे है। कमलनाथ की राह के एकमात्र बाधा ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अब पार्टी में नहीं हैं। काफी साल बाद राज्य में कांग्रेस में केवल एक स्पष्ट सीएम चेहरा है। हिमाचल और कर्नाटक की तरह कांग्रेस मध्यप्रदेश में भी चुनाव से पहले लोकलुभावन घोषणाएं शुरू कर चुकी है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में वह स्थिति नहीं है। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के सामने टीएस सिंहदेव और ताम्रध्वज साहू चुनौती बन कर खड़े हैं, तो राजस्थान में सचिन पायलट हाथ धोकर अशोक गहलोत के पीछे पड़े हैं। इन दोनों राज्यों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस किस स्थानीय चेहरे पर दांव लगाती है या फिर कर्नाटक की तरह दो नेताओं की जोड़ी को एक बना कर चुनाव मैदान में उतरती है।
इन तीन राज्यों का चुनाव इसलिए खास है, क्योंकि इसका असर अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनावों पर पड़ेगा। इसलिए आम चुनावों के चुनावी मुकाबले का असली पूर्वाभ्यास इन तीन राज्यों में ही देखने को मिलेगा।

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