खूंटी। कर्रा प्रखंड के बिकुवादाग गांव में शुक्रवार ऐतिहासिक चार दिवसीय मंडा अनुष्ठान पूरे भक्तिभाव और श्रद्धा विश्वास के साथ संपन्न हो गया। इस बार 178 भोक्ताओं ने अनुष्ठान में भाग लिया। वैसे तो भगवान भोलनाथ को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग इलाकों में कई तरह के अनुष्ठान किए जाते है, पर शैव भक्ति की जितनी कष्टसाध्य आराधना मंडा पर्व है, उतना कष्ट सामान्य पूजा-अर्चना में देखने को नहीं मिलती। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के बाद से ही पूरे झारखंड में भगवान भोलेनाथ की कष्टसाध्य आराधना का लोकपर्व मंडा शुरू हो जाता है, जो पूरे ज्येष्ठ महीने तक चलता है। यह ऐसा सार्वजनिक अनुष्ठान है, जिसमें न कोई जात भेद होता और न ही मंत्रोच्चार की जरूरत है। भक्त भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने के लिए सिर्फ अपने शरीर को कष्ट देते हैं।

मंडा अनुष्ठान कहीं-कहीं नौ दिनों का होता है, तो कही तीन दिनों का। भगवान शंकर का वरदान पाने के लिए भक्त जिन्हें भोक्ता कहा जाता है, अनुष्ठान पूरा होने तक अपना घर-परिवार त्याग कर किसी शिवालय में शरण लेते हैं। इस दौरान वे 24 घंटे में सिर्फ एक बार फलाहार करते हैं। मंडा पर्व ऐसा अनुष्ठान होता है, जहां जनजातीय और अनुसूचित जाति समुदाय के लोग काफी संख्या में भाग लेते हैं। झारखंड के अलग-अलग गांवों में अलग-अलग तिथियों में मंडा पर्व मनाया जाता है। हालांकि इसका अनुष्ठान सभी गांवों में नहीं होता। जिस परिवार से कोई भोक्ता मंडा अनुष्ठान में शामिल होता है, तो उसके पूरे परिवार और निकट के रिश्तेदारों मांस-मदिरा का सेवन पूरी तरह बंद हो जाता है।

ऐस ही चार दिवसीय कष्टसाध्य मंडा पर्व शुक्रवार को बिकुवादाग में संपन्न हो गया। सुबह से लेकर शाम तक निराहार रहकर और दहकते अंगारों में नंगे पाव चलकर भगवान भोलेनाथ की भक्ति का परिचय देते हुए 20 फीट ऊंचे झूले में झूलकर मंडा पूजा का समापन हुआ। मंडा पूजा के अंतिम दि़.न शिवालय परिसर में भक्तों और श्रद्धालुओं का जन सैलाब उमड़ पड़ा। इसके पूर्व गुरुवार की रात धुंआसी, फूलखंदी आदि अनुष्ठान संपन्न किये गये। फूलखंदी के तहत शिवभक्तों ने नंगे पाव दहकते अंगारों के बीच चलकर अपनी भक्ति और आस्था का परिचय दिया। वही झूलन के दौरान झूलते हुए शिवभक्तों ने श्रद्धालुओं के बीच आस्था के फूल बरसाये, जिसे पाने की होड़ महिला-पुरुषों के बीच मची रही।

तीन सौ से भी पुराना है बिकुवादाग का मंडा

वैसे तो कोई यह नहीं बता सकता कि बिकुवादाग मंडा की शुरुआत कब हुई, पर क्षेत्र के अधिकतर मानते हैं कि यहां के मंडा का इतिहास तीन सौ साल से पुराना है। मंडा पूजा की देखरेख करने वाले पुराने जमींदार परिवार के दिलीप शर्मा, सच्चिदानंद शर्मा और अश्विनी शर्मा बताते हैं कि संभवतः बिकुवादाग का मंडा इस क्षेत्र का सबसे पुराना शिव भक्ति का सबसे प्राचीन अनुष्ठान है।

नन्हें शिवभक्त भी घर छोड़ निराहार रहकर करते है अनुष्ठान

बिकुवादाग मंडा में न सिर्फ बड़े बल्कि छोटे-छोटे बच्चे भी चार दिनों तक घर छोड़कर और निराहार रहकर भावान भोलेनाथ की आराधना करते हैं। निधिया गांव के रंजीत महतो जो पिछले 60 वर्षों से लगातार भोक्ता बनकर मंडा अनुष्ठान करते हैं,इस बार उनके दो नन्हें पोते छह वर्षीय अभिनय महतो और आठ वर्षीय अंश महतो ने भी मंडा के सभी अनष्ठान पूरे किये। दो बच्चों के साथ अन्य बच्चों ने भी दहकते अंगारों में नंगे पांव चलकर और 20 फीट की ऊंचाई पर झूलकर कर अपनी निष्ठा और विश्वास का परिचय दिया।

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