विशेष
पहले चरण की वोटिंग के बाद संसदीय क्षेत्रों में लोगों से मिले संकेत
20 मई को तीन सीटों के चुनाव में भी इसी मुद्दे पर वोटिंग के आसार
मोदी के प्रति दीवानगी ने झारखंड की राजनीति को नयी दिशा दी है
देश की कुल 543 लोकसभा सीटों में से 380 सीटों के लिए मतदान हो चुका है। इन चार चरणों की वोटिंग के बाद हर कोई हवा का रुख भांपने को कोशिश कर रहा है। विश्लेषक अपना विश्लेषण कर रहे हैं। राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने दावे कर रही हैं और हवा का रुख अपनी ओर बताने का प्रयास कर रही हैं। ठीक यही हाल झारखंड का भी है। झारखंड में पहले चरण का चुनाव हो गया है। खूंटी, लोहरदगा, सिंहभूम और पलामू के प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला इवीएम में कैद हो चुका है। इन लोकसभा सीटों पर मतदान होते ही विश्लेषकों, राजनीति के जानकारों और खासकर मौसमी टिप्पणीकर्ताओं ने मत प्रतिशत के आधार पर अपने-अपने तर्क देने शुरू कर दिये हैं। टिप्पणी वे भी कर रहे हैं, जिन्होंने एक भी दिन उन क्षेत्रों में कदम तक नहीं रखा। खैर, किसी ने मत प्रतिशत को आधार बनाया, तो कुछ हवा में ही तीर चला रहे हैं और कोई उड़ता तीर भी लेने का काम कर रहा है। लेकिन सच्चाई तो 4 जून को पता चलेगी। लेकिन जो जमीनी हकीकत है, वह जमीन पर जाकर ही पता चलती है। वैसे वोटर का क्या मूड रहता है, यह भांपना आसान नहीं होता, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। आज के ग्रामीण बहुत जागरूक हैं और शहरी वोटरों की तुलना में ज्यादा वोट करते हैं। उनके पास मुद्दों की कोई कमी नहीं रहती। वे आसानी से किसी के प्रभाव में भी नहीं आते। पहले का जमाना कुछ और था। आज सोशल मीडिया का जमाना है और गांव-गांव में लोगों के पास स्मार्ट फोन है, जिससे वे किसी भी राजनीतिक पार्टी के बहकावे में आसानी से नहीं आ सकते। झारखंड में आजाद सिपाही की टीम ने कई लोकसभा क्षेत्रों का दौरा किया। गांव के गांव और वहां के लोगों से बातचीत की। इस बार का चुनाव टक्कर वाला रहेगा, यह समझ में आ गया था। कहीं तो भाजपा को वॉकओवर मिलने जैसा प्रतीत हुआ, तो कहीं नेक टू नेक फाइट का अंदेशा हुआ। झारखंड में जो पहले चरण का चुनाव हुआ, वह कांटे का मुकाबला था। कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन यहां एक और बात गौर करनेवाली है। यह चुनाव मोदी और एंटी मोदी के बीच लड़ा जा रहा है। लेकिन जिस प्रकार से पीएम मोदी की सभाओं में भीड़ ने हाजिरी दी है, उससे तो यही कहा जा सकता है कि जनता पीएम मोदी को निराश नहीं करेगी, क्योंकि वह महज भीड़ नहीं थी, पीएम मोदी के लिए जुनून था। जमीनी सच्चाई की भी बात की जाये, तो जिस प्रकार से केंद्र की योजनाओं से ग्रामीणों और जरूरतमंदों को लाभ मिला है, उसे जनता स्वीकार भी रही है। कहीं भी यह नहीं पाया कि जनता ने केंद्र की योजनाओं को सिरे से नकारा हो। चाहे वह मुफ्त राशन हो या फिर आयुष्मान भारत योजना के तहत इलाज। प्रत्याशियों के लिए नाराजगी जरूर दिखी, चाहे वह भाजपा का हो या फिर इंडी गठबंधन का। यह स्वाभाविक भी है। जनता अपने हिसाब से चलती है। उन्हें प्रत्याशियों के बारे में ज्यादा समझ है। विकास के अलावा जाति आधारित डिमांड भी इस चुनाव में फैक्टर रहा। खासकर खूंटी में त्वरित टिपण्णी वाले इसी का हवाला देकर प्रत्याशियों को जीता-हरा रहे हैं। क्या है झारखंड में पहले चरण का चुनाव होने के बाद का हाल, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
देश में चार चरणों का चुनाव संपन्न हो गया है। 4 जून को सभी लोकसभा सीटों का परिणाम आ जायेगा। एक तरफ जहां भाजपा दावा कर रही है कि इन चार चरणों की 380 लोकसभा सीटों पर उसने 270 सीटों पर अपना परचम लहरा दिया है। अमित शाह ने दावा किया कि एनडीए ने संसद में बहुमत हासिल करने के लिए पहले ही आवश्यक संख्या हासिल कर ली है। वह केंद्र में फिर से सरकार बनाने जा रहा है। 400 पार वाला नारा भी अमित शाह बुलंद कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दावा किया कि लोकसभा चुनाव के चार चरण पूरा होने के बाद विपक्षी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस, यानी इंडी गठबंधन मजबूत स्थिति में है और 4 जून के बाद सरकार बनायेगा। अगर राजनीति का गुणा-भाग करने वाले, यानी टेक्निकल एडवाइजरों, सर्वेयरों की बात करें, तो वे फिलहाल अपना पत्ता खोलने से बच रहे हैं, लेकिन इशारों-इशारों में उन्होंने इन चरणों में भाजपा को लीड दे दी है। वहीं कुछ इंडी गठबंधन के नजदीकियों का कहना है कि इन चार चरणों के चुनाव के बाद मोदी टेंशन में हैं। उनका मानना है कि देश ने मूड बना लिया है कि वह इस बार परिवर्तन लाकर रहेगा। लेकिन इस दलील का क्या आधार है, उसका जिक्र नहीं कर रहे।
इंडी को सिर्फ मोदी से लड़ना है और मोदी को विपक्ष के साथ देश विरोधी ताकतों से भी
इंडी गठबंधन चुनाव सिर्फ और सिर्फ मोदी को टारगेट करके लड़ रहा है। उसके पास मोदी के अलावा कोई मुद्दा नहीं है। कहीं-कहीं राहुल गांधी अपनी बातों को रख रहे हैं कि वह गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं को साल में एक लाख रुपये देंगे। वह करोड़ों लखपति बनायेंगे, लेकिन क्या रोडमैप रहेगा, उसका जिक्र नहीं कर रहे। यह पैसा कैसे आयेगा, किन योजनाओ की बलि देने के बाद आयेगा, इसका जिक्र नहीं करते। वहीं मोदी की बात की जाये, तो उनके सामने समूचा विपक्ष खड़ा है। सिर्फ विपक्ष ही नहीं खड़ा है, देश विरोधी ताकतें भी मुंह बाये खड़ी हैं। ऐसे कई देश हैं, जो नहीं चाहते कि भारत में मोदी सरकार फिर से आये। वे नहीं चाहते कि उनका पावर किसी भी तरीके से विदेशी मंच पर कम हो। बाहर से ये देश मीठी-मीठी बातें जरूर करते हैं, लेकिन वे कभी नहीं चाहेंगे कि भारत उनका मुकाबला करे। उनके नजदीक भी आ पाये। मोदी राज में भारत विश्व पटल पर बहुत मजबूत हुआ है। वह अब देश-दुनिया की अगुवाई भी कर रहा है। जी 20 इसका प्रमुख उदाहरण है। मोदी के एक इशारे से रूस और यूक्रेन में सीजफायर हो जाता है। यह दुनिया ने देखा। लेकिन ये चीजें बहुत देशों को फूटी आंख नहीं सुहा रही हैं। तो मोदी को इन ताकतों से भी लड़ना है, जो भारत में गड़बड़ी फैलाना चाहती हैं। ये देश कभी नहीं चाहेंगे कि भारत सुपर पावर की श्रेणी में आये।
झारखंड में पहले चरण के चुनाव के बाद हवा का रुख साफ
देश के चौथे और झारखंड में पहले चरण का चुनाव संपन्न हो गया है। झारखंड में 13 मई को चार लोकसभा सीटों सिंहभूम, खूंटी, लोहरदगा और पलामू में करीब 66.01 प्रतिशत मतदान हुआ। सबसे अधिक मतदान खूंटी लोकसभा क्षेत्र में हुआ। खूंटी में 69.93 प्रतिशत मतदान हुआ। वहीं, सबसे कम 61.27 फीसदी मतदान पलामू लोकसभा क्षेत्र में हुआ। सिंहभूम में 69.32 फीसदी और लोहरदगा में 66.45 प्रतिशत मतदान हुआ। पिछले लोकसभा चुनाव में इन चारों सीटों पर लगभग 67.24 फीसदी मत पड़े थे, जबकि इस वर्ष 66.01% मत पड़े। पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में पलामू में 64.34 प्रतिशत मत पड़े थे, वहीं खूंटी में 69.25 प्रतिशत पड़े थे, सिंहभूम में 69.26 फीसदी मत पड़े थे और लोहरदगा में 66.30 प्रतिशत मत पड़े थे। इस चुनाव में महिलाओं ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है। उनका भी मत प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले बराबर ही रहा। लेकिन मत प्रतिशत आने के बाद मानों विश्लेषकों की बाढ़ सी आ गयी। सोशल मीडिया पर सब अपनी-अपनी राय देने लगे। सोशल मीडिया पर समीकरण तैरने लगे। कौन प्रत्याशी हारा और जीता, यह भी तय हो गया। कौन सी जाति ने वोट नहीं दिया, उसका क्या परिणाम होगा, यह भी तय हो गया। भले उस जाति के हर दूसरे व्यक्ति को पता नहीं कि उसी की जाति वाले ने किसको वोट दिया है।
खैर बात अगर मुद्दों की करें, तो झारखंड में विपक्ष के पास सिर्फ एक ही मुद्दा था, मोदी हटाओ और भाजपा या एनडीए के प्रत्याशियों के पास एक ही मुद्दा था, फिर से मोदी लाओ। लेकिन ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर कहा जा सकता है कि लोगों के जो मुद्दे थे, वे सरकारी योजनाओ के लाभ को लेकर थे। विकास के पैमाने को लेकर थे। राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर थे। मोदी को लेकर थे। प्रत्याशी बाद में आते थे। सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को मोदी पसंद थे। वे खुल कर उनके द्वारा हासिल लाभ के बारे में चर्चा करते हैं। कई ग्रामीण दुष्प्रचार के शिकार भी दिखे। कई ग्रामीणों में यह मैसेज फैलाया गया कि अगर मोदी सरकार आयेगी, तो संविधान बदल दिया जायेगा, जमीन छीन ली जायेगी, सीएनटी एसपीटी एक्ट हटा लिया जायेगा।
लेकिन ग्रामीण बहुत चालाक हैं। उन्हें पहले से ही पता है कि किसे वोट देना है, किसे नहीं। प्रत्याशियों के प्रति नाराजगी एक बात है और राष्ट्रीय मुद्दों और मिल रहे लाभ को लेकर जागरूकता एक बात है।
मोदी के प्रति दीवानगी दिख रही है झारखंड में
जिस प्रकार से झारखंड में पीएम मोदी की सभाओं में भीड़ आ रही है, उससे तो यही लगता है कि जनता में मोदी को लेकर एक अलग सी दीवानगी है। चाहे वह चाइबासा का टाटा ग्राउंड हो, जहां प्रचंड गर्मी के बावजूद समूचा चाइबासा और आसपास के इलाके के लोग मोदी की एक झलक पाने और सुनने को कई किलोमीटर पैदल चल कर आये। क्या बुजुर्ग, क्या जवान, क्या महिलाएं, और क्या बच्चे, सभी में मोदी को लेकर एक अलग ही उत्सुकता थी। अलग सा क्रेज था। गाड़ियां इतनी कि सिर्फ जाम से निकलने में घंटों लग गये। वही हाल पलामू का भी था। चियांकी हवाई अड्डे पर सुबह-सुबह जिस संख्या में लोग पहुंचे थे, वह अपने आप में एक कहानी है। कहानी इसलिए कि वहां से कई किलोमीटर पहले ही प्रशासन ने गाड़ियोें की इंट्री बंद कर दी थी। लोग पैदल चल कर गरमी में तीन से चार किलोमीटर दूर चियांकी हवाई अड्डा पहुंचे थे। बात गुमला जिले के सिसई की की जाये, तो वहां पर ग्रामीण सात-सात किलोमीटर पैदल चल कर खेत की पगडंडियों के सहारे सभास्थल पहुंचे थे। मोदी की सभा शुरू और खत्म होने के बाद भी ग्रामीणों के आने का सिलसिला जारी था। चतरा के सिमरिया की बात की जाये, तो जितने लोग सभा में थे, उससे चार गुना ज्यादा भीड़ बाहर मौजूद थी। बारिश आने के बाद भी भीड़ में कोई बिखराव नहीं हुआ। वहीं अगर गिरिडीह के बिरनी की बात करें, तो यहां तो भीड़ डेढ़ लाख से कम नहीं थी। करीब 15 हजार से ऊपर गाड़ियां रही होंगी। ग्रामीणों का तो मानो सैलाब ही आ रहा था। गांव का गांव खेतों के रास्ते, पुल के ऊपर और नीचे हर तरफ से भीड़ बह रही थी। इन ग्रामीणों में मोदी के लिए जो दीवानगी दिखी, उसे नाकारा कैसे जा सकता है। मोदी की एक आवाज पर इतना शोर कि कान भी बहरे हो जायें, एक झलक के लिए दौड़-दौड़ कर बैरियर लांघ-लांघ कर लोग उन्हें देखना चाह रहे थे। इतनी भीड़, दीवानगी शायद ही किसी नेता के लिए देखी हो। इस बार खूंटी की बात करें, तो नक्सल प्रभावित इलाकों में बंपर वोटिंग हुई है। चाइबासा और खूंटी में महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर वोट दिया है। वोटिंग परसेंटेज के आधार पर कहा जाये, तो बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं दिखता। पिछली बार 2019 में खूंटी में 69.25 प्रतिशत मतदान हुआ था। उस बार अर्जुन मुंडा महज 1445 मतों के अंतर से जीते थे। इस बार खूंटी में मतदान 69.93 प्रतिशत है। अंतर बहुत कम का है। फाइट टाइट है, लेकिन यह भी सच है कि इस बार सिमडेगा में भाजपा की स्थिति पिछली बार की तुलना में कुछ सुधरी है। इससे किसी भी प्रत्याशी को निराश होने की जरूरत नहीं है। वही हाल लगभग सभी लोकसभा सीटों का है। झारखंड में पहले चरण के चुनावी प्रतिशत को देखते हुए 2019 के मुकाबले परिवर्तन नजर नहीं आता। फिर भी 4 जून को पता चल ही जायेगा कि परिणाम क्या है।