विशेष
राष्ट्रीय के साथ स्थानीय मुद्दों पर भी मतदाताओं के बीच होने लगी है चर्चा
चमरा लिंडा के मैदान में उतरने से हर दिन रोचक होता जा रहा है मुकाबला
समीर उरांव और सुखदेव भगत के लिए वोटरों की चुप्पी पड़ रही है भारी
लोहरदगा लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला त्रिकोणीय हो रहा है। भाजपा के समीर उरांव और कांग्रेस के सुखदेव भगत के बीच झामुमो के बागी विधायक चमरा लिंडा तीसरा कोण बना रहे हैं। वैसे चमरा लिंडा पहले भी चुनावी मैदान में उतर कर कांग्रेस उम्मीदवार का खेल बिगाड़ चुके हैं और ये बात मतदाता भी अच्छी तरह समझ चुके हैं। लोहरदगा संसदीय सीट की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी चुनाव प्रचार कर चुके हैं। इन दोनों की यात्रा के बाद लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र का चुनावी माहौल गरमा गया है। दोनों राष्ट्रीय नेताओं की यात्रा के बाद अब राष्ट्रीय के साथ स्थानीय मुद्दों की भी खूब चर्चा होने लगी है, लेकिन मतदाताओं की खामोशी के कारण कोई भी प्रत्याशी भरोसे के साथ दावा करने की स्थिति में नहीं है। लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में चुनाव की सबसे अधिक सरगर्मी बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र में देखी जा रही है, जहां के विधायक चमरा लिंडा निर्दलीय के रूप में मैदान में हैं। शहरी इलाकों में जहां भाजपा प्रत्याशी बढ़त लेते नजर आ रहे हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस और झामुमो की मिली-जुली ताकत का भी नजारा दिखने लगा है। छोटा संसदीय क्षेत्र होने के नाते लोहरदगा में हमेशा की तरह इस बार भी कड़ा और नजदीकी मुकाबला देखने को मिल सकता है। लोगों से बातचीत में एक बात साफ हो जाती है कि मोदी सरकार के प्रति लोग नाराज नहीं हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में सरना धर्म कोड और स्थानीयता जैसे मुद्दों की बात चर्चा में है। भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर मतदाता बंटे हुए नजर आ रहे हैं। कैसा चल रहा है लोहरदगा संसदीय सीट पर चुनाव प्रचार अभियान और कैसा है माहौल, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
पूरे देश में अभी चुनाव का माहौल है तो जाहिर सी बात है कि लोहरदगा में भी इस पर चर्चा होगी ही। शहर से लेकर गांव, मुहल्लों और बाजार में चुनाव पर चर्चा हो रही है। राजनीति के जानकार से लेकर रोजमर्रा का जीवन जीने वाली आम जनता भी गुणा-गणित कर रही है। वोटरों का मानना है कि पहले लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र में कुछ दिनों पहले तक कांग्रेस उम्मीदवार सुखदेव भगत और भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव के बीच मुकाबला था। वहीं बिशुनपुर विधानसभा से झामुमो विधायक चमरा लिंडा के निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में
उतरने से मुकाबला और रोचक हो गया है।
लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार जोरों पर है। अलग-अलग राजनीतिक दल अलग-अलग स्थान पर हर दिन चुनावी सभाएं कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की चुनावी सभाएं इस क्षेत्र में हो चुकी हैं। इन सबके बीच सवाल यह उठ रहा है कि आखिर इस बार लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र में चुनावी भोंपू का शोर कम क्यों सुनाई दे रहा है, जबकि गुमला जिला के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्र में अधिक चुनावी शोर है। चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए सभी पार्टियां कोशिश कर रही हैं। विशेष कर भाजपा, कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक दी है। प्रत्याशी लगातार क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं, लोगों से मिल रहे हैं और चुनावी सभाएं कर अपनी प्राथमिकताएं गिना रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव, कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत और निर्दलीय चमरा लिंडा के अलावा अन्य प्रत्याशी भी क्षेत्र में सक्रिय हैं। फिर भी एक बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि इस बार गुमला जिला के सिसई और विशुनपुर विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक चुनावी शोर क्यों सुनाई पड़ रहा है।
पीएम मोदी और राहुल गांधी की सभाएं सिसई-बसिया में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभा सिसई में हुई, जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार समेत दूसरे मुद्दों पर कांग्रेस को जम कर घेरा। भाजपा को आदिवासी हितों का असली रक्षक बता कर उन्होंने अपनी सरकार द्वारा किये गये विकास कार्यों का बखूबी उल्लेख किया। इसका असर यह हुआ कि इलाके में अब लोग पीएम मोदी की बातों और केंद्र सरकार की योजनाओं की बात करने लगे हैं। शहरी इलाके में लोग केंद्र सरकार की योजनाओं से होनेवाले लाभ और विकास योजनाओं का जिक्र करते हुए कहते हैं कि पिछले 10 साल में काम तो हुआ है।
उधर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बसिया में हुई सभा के बाद कांग्रेस के बारे में भी लोग बात करते मिले। राहुल गांधी ने कांग्रेस के शासन काल में आदिवासियों के लिए किये गये कामों के साथ आरक्षण, सरना धर्म कोड और स्थानीयता जैसे भावनात्मक मुद्दे उठा कर हवा का रुख मोड़ने की खूब कोशिश की। राहुल गांधी की सभा करने का असर यह हुआ है कि कांग्रेस के नेता अब सुखदेव भगत के लिए फील्ड में उतर गये हैं। इधर सिसई हो या बसिया, भंडरा हो या फिर बिशुनपुर, चुनाव प्रचार का शोर हर जगह सुनाई देता है, लेकिन सबसे अधिक बिशुनपुर इलाके में ‘बल्लेबाज’ का शोर है, जो निर्दलीय चमरा लिंडा का चुनाव चिह्न है।
झामुमो के प्रभाव वाले क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान
दरअसल, इस बार सभी प्रत्याशी झामुमो के प्रभाव वाले क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। इसके पीछे कारण यह समझ में आ रहा है कि झामुमो ने कोई प्रत्याशी नहीं दिया है, बल्कि कांग्रेस को समर्थन दिया है। पार्टी के विशुनपुर विधायक चमरा लिंडा निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में भितरघात से बचने के लिए यहां कांग्रेस और झामुमो पूरा जोर लगाये हुए है। फिर भी चमरा लिंडा का अपना नेट वर्क है और पार्टी से निलंबन के बाद भी उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा है।
इसके अलावा गुमला जिला में सिसई, विशुनपुर और गुमला तीनों विधानसभा क्षेत्रों में झामुमो का विधायक होने की वजह से भाजपा भी इस बार इस क्षेत्र में वोट प्रतिशत को बढ़ाने और इनका प्रभाव तोड़ने पर ध्यान दे रही है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम इसी क्षेत्र में रखा गया, ताकि उनके आने का फायदा न सिर्फ लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी को मिल सके, बल्कि रांची और खूंटी से सटे होने की वजह से इस इलाके में भी इसका प्रभाव नजर आये।
मतदाताओं का रुख पहले से तय
लोहरदगा की चुनावी राजनीति के जानकारों का यह मानना है कि इस सीट के ज्यादातर मतदाताओं का वोट पहले से ही तय माना जा रहा है। इन मतदाताओं के रुख बदलने की कोई भी कोशिश अब तक नाकाम ही होती रही है। इसलिए इस बार भी ऐसा ही होने की उम्मीद है। जानकारों का मानना है कि गुमला जिला के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में यदि भाजपा को बढ़त मिलती है, तो इसे एक प्रकार से अतिरिक्त वोट माना जा सकता है। लेकिन जहां तक लोहरदगा का सवाल है, तो यहां अल्पसंख्यक मतदाता निर्णायक हो सकते हैं।
परेशान कर रही है वोटरों की चुप्पी
लोगों का मानना है कि भाजपा पीएम मोदी का सहारा लेकर जीत का ताल ठोंक रही है। वहीं कांग्रेस संविधान बचाने, आदिवासियों के हित की रक्षा के साथ-साथ सरना कोड लागू करवाने को मुद्दा बना रही है। निर्दलीय विधायक चमरा लिंडा का भी कमोबेश यही मुद्दा है। चमरा भी सरना धर्म कोड, आदिवासी के हितैषी होने का दावा कर रहे हैं और तानाशाही सरकार पर हमला बोल रहे हैं। कांग्रेसियों का कहना है भाजपा मजदूर, किसान और आम जनता को बेवकूफ बना रही है। भाजपा मुफ्त अनाज, किसान के खाते में छह हजार रुपये दे रही, ताकि कोई भी भी लोग इससे ऊपर न उठ सके। लोगों का कहना है कि समीर उरांव जब से उम्मीदवार बने हैं, तभी से वे एक्टिव दिख रहे हैं। वहीं सुखदेव भगत को लेकर भी मिश्रित राय है। इसाई और मुसलिम मतदाता उन्हें अच्छा उम्मीदवार मान रहे हैं, जबकि हिंदू बहुल इलाकों में सुखदेव भगत लोगों की पहली पसंद नहीं हैं। उन्हें पार्टी के लोगों से भी समन्वय स्थापित करना पड़ रहा है। कुछ नेता अब भी अंदर-अंदर सक्रिय नहीं हैं, हां ऊपरी तौर पर वह जरूर दिखावा कर रहे हैं कि वे प्रत्याशी के पक्ष में काम कर रहे हैं। कुल मिला कर लोहरदगा की स्थिति हर दिन करवट ले रही है। जो भी 12 मई तक अपना हर तरह का हथकंडा बरकरार रखेगा, उसकी संभावना ज्यादा होगी। फिलहाल तो प्रचार में भाजपा आगे दिख रही है।