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13 मई, 2024 का दिन झारखंड के लिए खास होने वाला है। इस दिन झारखंड में पहले चरण की वोटिंग होगी, जिसमें राज्य की चार लोकसभा सीटों पर वोट डाले जायेंगे। इनमें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित एक सीट पलामू और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित तीन सीटें, खूंटी, लोहरदगा ओर सिंहभूम शामिल हैं। इन सभी सीटों पर प्रत्याशियों ने नामांकन भी दर्ज कर दिया है और चुनाव प्रचार में कूद पड़े हैं। प्रत्याशियों के नाम तय करने में भाजपा ने सबसे पहले बाजी मार ली थी। इसका फायदा यह हुआ कि उसके प्रत्याशियों को अधिक समय भी मिला और वे पूरी शिद्दत के साथ चुनाव मैदान में कूद पड़े। इंडी गठबंधन ने प्रत्याशियों के चयन में देरी की, जिसका खामियाजा उसके प्रत्याशियों को उठाना पड़ रहा है। जब तक उन्हें समझ में आता कि क्या करना है, तब तक भाजपा के प्रत्याशियों ने सभाएं शुरू कर दी थीं। अब जो हुआ सो हुआ। फिलहाल अब प्रत्याशी मैदान में पसीना बहा रहे हैं। भाजपा के साथ प्लस यह रहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैक टू बैक झारखंड के पहले चरण की सभी सीटों पर सभाएं कर दीं। इन सभाओं में भीड़ भी बहुत हुई। वहीं इंडी गठबंधन की तरफ से राहुल गांधी सात मई, वहीं प्रियकां गांधी 13 मई को झारखंड पहुंचेंगी। वैसे देखा जाये, तो इन सभी चार सीटों में से एक खूंटी ही है, जहां कांटे की टक्कर दिखायी पड़ती है। बाकी पलामू, लोहरदगा और सिंहभूम में मामला एक पक्ष की तरफ जाता दिखायी पड़ रहा है। इन सीटों पर होनेवाले मतदान पर ही राज्य की बाकी 11 सीटों पर होनेवाले मतदान भी निर्भर कर रहा है। तो यह जानना जरूरी है कि इन चार सीटों पर माहौल क्या है और कैसा चल रहा है यहां का चुनाव प्रचार। पीएम मोदी के दौरे के बाद इन सीटों पर क्या है जमीनी आकलन, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
जैसे-जैसे झारखंड का तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे राज्य का राजनीतिक पारा भी सिर चढ़कर बोल रहा है। झारखंड की जनता अब चुनावी माहौल में पूरी तरीके से समाहित हो चुकी है। हर जगह सिर्फ प्रत्याशियों की ही चर्चा हो रही है। लगभग सभी राजनीतिक विश्लेषकों की भूमिका में आ चुके हैं। कई तो भविष्यवाणी भी करने लगे हैं। चाय का सेल भी बढ़ गया है। चुस्की लेते-लेते लोग प्रधानमंत्री बनाने लगे हैं। कोई खूंटी से भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा को जिता रहा है तो कोई कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा को। कोई सिंहभूम से भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा को जिता रहा है तो कोई जेएमएम की जोबा मांझी को। कोई लोहरदगा से भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव को जिता रहा है तो कोई कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत को, तो कोई पलामू से भाजपा प्रत्याशी विष्णु दयाल राम को जिता रहा है तो कोई राजद की ममता भुइयां को। सभी प्रत्याशी दमदार हैं। सभी का अपना-अपना दावा है और जनाधार है।
खूंटी में अर्जुन और कालीचरण बहा रहे पसीना
खूंटी लोकसभा क्षेत्र की बात की जाये, तो भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा और कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा खूब पसीना बहा रहे हैं। गांव-गांव जाकर लोगों से मिल रहे हैं। अपना-अपना समीकरण क्षेत्र के जमीनी नेताओं के साथ मिलकर भी बना रहे हैं। खूंटी का मुकाबला 2019 में भी कांटे का रहा था। उस चुनाव में काली चरण मुंडा मात्र 1445 मतों से पिछड़ गये थे। इस बार भी मुकाबला कांटे का ही है। अंत तक कोई भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं है कि वहां का परिणाम किसके पाले में जायेगा। खूंटी लोकसभा का चुनाव विशेष रूप से मोदी के पक्षधर और मोदी के विरोधियों के बीच में है। शुरूआती दौर में लोगों के बीच अर्जुन मुंडा को लेकर कुछ शिकायतें थीं, लेकिन वह अब दूर होती दिखायी पड़ती हैं। खूंटी में कई स्थानीय मुद्दे भी हावी रहे, लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, जनता का मूड राष्ट्रीयता मुद्दों को लेकर अग्रसर होता दिख रहा है। जब चुनाव की घोषणा हुई थी, तब इस इलाके में यह बात उठायी जा रही थी कि केंद्र में जनजातीय मामलों के मंत्री रहते हुए अर्जुन मुंडा ने सरना कोड का मुद्दा हल नहीं किया। वैसे विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने के पक्ष में भी है। दूसरा यहां के तेली समुदाय में नाराजगी रही कि उन्हें आदिवासी का दर्जा हासिल नहीं हुआ। रौतिया समाज का कहना है कि हमें आदिवासी नहीं बनाया। उधर कुर्मी महतो को भी आदिवासी का दर्जा चाहिए। ऐसे कई मुद्दे हैं, जो इस चुनाव में भाजपा, या यूं कहें अर्जुन मुंडा का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। लेकिन फिलहाल जो जमीनी स्थिति दिखायी पड़ रही है, वह राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर ज्यादा हावी है। जनता भी जानती है कि अर्जुन मुंडा केंद्र में मंत्री भी हैं। अगर वह चुनाव जीतते हैं, तो उनकी समस्या का हल वह निकाल सकते हैं। वहीं खूंटी में भाजपा की संगठन की बात की जाये तो यहां भाजपा का संगठन तो मजबूत है ही, साथ ही झामुमो का सांगठनिक ढांचा भी बहुत प्रबल है। कांग्रेस सांगठनिक रूप से इस इलाके में कमजोर है। वह जेएमएम पर ज्यादा निर्भर है। ग्रामीण क्षेत्रों में सरना कोड का मुद्दा भी काफी प्रबल हुआ है। लोग इसे लेकर मुखर भी हैं।
खूंटी में 2019 में तीसरे स्थान पर था नोटा
खूंटी संसदीय क्षेत्र में नोटा यानी राइट टू रिजेक्ट भी प्रत्याशियों को अच्छी खासी टक्कर देता है। चुनाव के दौरान प्रत्येक मतदाता को यह अधिकार है कि अपने पसंदीदा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करें। अगर निर्धारित प्रत्याशियों की सूची में कोई उसके पसंद का नहीं है, तो इसके लिए नोटा का विकल्प चुन सकता है। वर्ष 2013 में राइट टू रिजेक्ट के तहत यह अधिकार मतदाताओं को मिला है। 2014 के लोकसभा चुनाव से इवीएम में प्रत्याशी की सूची में नोटा का बटन भी शामिल हो गया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में तीसरी बार इस बटन का उपयोग होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में खूंटी संसदीय सीट के चुनाव परिणाम ने सबको चौंका दिया था। यहां कांटे की टक्कर में भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा मात्र 1445 वोट से चुनाव जीत गये थे। कांग्रेस के कालीचरण मुंडा दूसरे स्थान पर रहे। वहीं 21 हजार 245 वोट लाकर नोटा तीसरे स्थान पर रहा। यानि हार जीत के अंतर से काफी अधिक वोट नोटा को मिला था।
लोहरदगा में समीर और सुखदेव के बीच है सीधा मुकाबला
देखा जाये तो लोहरदगा का लोकसभा चुनाव किसी भी प्रत्याशी के लिए आसान नहीं है। सभी अपनी-अपनी गोटी फिट करने में लगे हैं। भाजपा ने बूथ स्तर पर कार्यक्रम कर सभी कार्यकर्ताओं को एकजुट कर कार्यों में लगा दिया है। भाजपा के कार्यकर्ता समर्पण के भाव के साथ कार्यों में जुट गये हैं। समीर उरांव की छवि इस क्षेत्र में बहुत अच्छी है। वह कर्मठ नेताओं की श्रेणी में आते हैं। लोगों का मानना है कि समीर उरांव एक अच्छे प्रत्यशी हैं और जब वह विधायक थे, तो उन्होंने खूब काम किया था। देखा जाये, तो लोहरदगा लोकसभा सीट में आदिवासी वोट निर्णायक साबित होते हैं। लेकिन समीर उरांव राज्यसभा सांसद के साथ-साथ भाजपा एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते उन्हें आदिवासी संगठनों का भी लाभ मिल रहा है। वह भी डोर टू डोर जाकर लोगों से मिल रहे हैं और अपना दावा मजबूत कर रहे हैं। वहीं सुखदेव भगत की बात की जाये तो वह अपनी तरह की राजनीति कर रहे हैं। वह भी खुद लोगों के दरवाजे-दरवाजे जा रहे हैं। सुदूर पहाड़ पर बसे गांव में भी जा रहे हैं। ग्रामीणों का समर्थन हासिल कर रहे हैं। भीड़ भी खूब हो रही है। लेकिन सुखदेव भगत के साथ समस्या यह है कि उन्हें इंडी गठबंधन के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ क्षेत्र में बड़े नेताओं की गुटबाजी से भी दो-दो हाथ करना है। उन्हें साधना आसान नहीं होगा। चर्चा है कि अगर सुखदेव भगत को रामेश्वर उरांव खेमा और बंधु तिर्की खेमा अगर साथ देता है तो उनके लिए राह आसान हो जायेगी। क्योंकि लोगों में ये गुटबाजी चर्चित है। लोहरदगा में धीरज साहू भी आयकर छापा के बाद थोड़े ठंडे पड़े हैं। उनका ठंडा होना भी सुखदेव भगत के लिए चुनौती है। वर्तमान में आदिवासी समाज एकमत नहीं होकर तीन गुटों में बंटा है। एक गुट भाजपा के साथ दूसरा गुट कांग्रेस के साथ और तीसरा चमरा लिंडा के साथ होने की चर्चा है। वहीं समीर उरांव तेज तर्रार होने के साथ लंबे समय से क्षेत्र में सक्रिय रहे। भाजपा के लिए कमजोर क्षेत्र रहे गुमला, सिसई और लोहरदगा के ग्रामीण इलाकों को पाट कर अपने पक्ष में करने के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। वहीं शहर की बात की जाये तो अधिकतर मोदी की ही बात कर रहे हैं। यहां मोदी बनाम एंटी मोदी है। जहां मोदी के पक्ष में लोग ज्यादा दिखायी दिये। वैसे लोहरदगा के रण को चमरा लिंडा ने रोमांचक बना दिया है। माना जा रहा है कि चमरा लिंडा सुखदेव भगत या यूं कहें इंडी गठबंधन के लिए चुनौती बन सकते हैं। क्योंकि चमरा लिंडा तो वोट काटेंगे और उनका ज्यादातर वोट आदिवासी, इसाई का ही रहता है। समझा जा सकता है कि चमरा लिंडा से किसे चुनौती मिल सकती है और किसके पक्ष में उनका खड़ा होना जा सकता है। शनिवार को सिसई के बरटोली मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा थी। सभा के दौरान लोगों के बीच मोदी का जो क्रेज दिखा, वह अकल्पनीय है। तीन से चार किलोमीटर पैदल पगडंडियों के सहारे लोग चले जा रहे थे। 39 डिग्री तापमान के बावजूद उनका जोश ठंडा नहीं पड़ रहा था। आलम यह था कि पंडाल खचाखच भर जाने के बाद लोग कड़ी धूप में भी खड़े होकर प्रधानमंत्री को सुन रहे थे। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री के चले जाने के बाद भी भीड़ का कारवां लगातार आता जा रहा था। इस दौरान कुछ महिलाएं और पुरुष से जब बात की गयी, तो उनका स्पष्ट कहना था कि मोदी जी का भात खाकर ही घर से उनको सुनने के लिए आये हैं। वोट भी उन्हीं को करेंगे। खासकर महिलाओं का स्पष्ट कहना था कि मोदी जी ने गरीबों के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, इसका सीधा लाभ हमलोगों को मिल रहा है। गैस मिल रही है। राशन मिल रहा है। किसानों को हर साल पैसा मिल रहा है और क्या चाहिए। इलाज तो फ्री में हो ही रहा है। जितनी भीड़ सभा में जुटी और मोदी के प्रति दीवानगी दिखी, अगर यह वोट में कनवर्ट हो गया, तो भाजपा के लिए लोहरदगा की राह आसान हो सकती है।
सिंहभूम में गीता कोड़ा और जोबा मांझी हैं आमने-सामने
वहीं सिंहभूम की बात कि जाये तो जिस हिसाब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां सभा की और भीड़ जिस हिसाब से सभा में पहुंची अगर वह वोट में तब्दील हो जाती है, तो जोबा मांझी के लिए बहुत बड़ी चुनौती साबित होगी। गीता कोड़ा और जोबा मांझी अपनी-अपनी जगह बहुत मजबूत हैं। गीता कोड़ा का अपना अलग ही जनाधार है। वहीं जोबा मांझी का क्षेत्र में बहुत सम्मान है। दोनों प्रत्यशियों की लोग दुर्गा से तुलना कर रहे हैं। सिंहभूम में भी चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर होगा। यहां की जनता ने स्वीकारा भी है कि केंद्र की योजनाओं का लाभ उन्हें सफलता पूर्वक मिल रहा है। फिर भी लाभ लेने वालों में भी मनभेद है। कुछ कह रहे हैं लाभ तो मिला है लेकिन उनका मत इंडी गठबंधन को ही जायेगा। कुछ तो मोदी मैजिक के कायल दिखे। गीता कोड़ा के लिए उनके पति मधु कोड़ा भी खूब पसीना बहा रहे हैं। नॉमिनेशन के दिन तो वह खुद सड़कों पर लगा जाम हटवा रहे थे। सिंहभूम में कोड़ा दंपति बहुत मजबूत दिखायी पड़ रहा है। शहरी क्षेत्र में गीता कोड़ा को कोई समस्या फेस नहीं करनी होगी, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बंटे हुए हैं। वहां जबरदस्त फाइट है। सड़क के किनारे वाला मामला है। सड़क के एक साइड गीता कोड़ा के समर्थक हैं और तो दूसरे हिस्से में झामुमो के। सिंहभूम में झामुमो ने अपना संगठन बहुत मजबूत कर लिया है। वह कहीं से भी भाजपा से कम नहीं है। गीता कोड़ा को भी झामुमो प्रत्याशी को हलके में लेने की जरूरत नहीं हैं। यहां भी फाइट दमदार ही है।
पलामू में वीडी राम के साथ ममता भी बहा रहीं पसीना
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित झारखंड की एकमात्र संसदीय सीट पलामू से भारतीय जनता पार्टी ने लगातार तीसरी बार राज्य के पूर्व डीजीपी विष्णुदयाल राम को टिकट देकर रोमांचक मुकाबले की जमीन तैयार कर दी है। विष्णुदयाल राम 2014 और 2019 में भाजपा के टिकट पर पलामू से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। विष्णुदयाल राम 1973 बैच के आइपीएस अधिकारी रहे हैं। उन्हें प्रत्याशी बनाये जाने की घोषणा से पहले उनकी उम्र को लेकर कई तरह की चर्चाएं थीं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर से उन पर भरोसा जताते हुए टिकट दिया है। इंडी गठबंधन की तरफ से राजद ने ममता भुइयां को मैदान में उतारा है। पीएम मोदी की डालटनगंज में हुई चुनावी सभा के बाद इस सीट का माहौल अचानक बदला सा नजर आने लगा है। लोगों में अब हार-जीत की बजाय चुनावी मुद्दों की बात होने लगी है। आरक्षण और मंदिर के साथ विरासत टैक्स के मुद्दों पर लोग बंटे हुए नजर आने लगे हैं। दोनों प्रत्याशी इलाके में खूब पसीना बहा रहे हैं। अब यहां इंडी गठबंधन के शीर्ष नेताओं की सभाओं का इंतजार हो रहा है।
पीएम मोदी के लिए ‘लकी’ है चियांकी हवाई अड्डा मैदान
पीएम मोदी की झारखंड की पहली चुनावी यात्रा के दौरान यह बात भी चर्चा में रही कि पलामू के प्रमंडलीय और जिला मुख्यालय का चियांकी हवाई अड्डा मैदान पीएम मोदी और भाजपा के लिए बेहद ‘लकी’ है। 2014 में नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया था। झारखंड में नरेंद्र मोदी ने पलामू के इसी मैदान से अपने चुनावी अभियान की शुरूआत की थी। उस चुनाव में भाजपा को 14 में से 12 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। 2019 में भी पीएम नरेंद्र मोदी ने चियांकी हवाई अड्डा से अपनी चुनावी अभियान की शुरूआत की थी और उस चुनाव में भी भाजपा ने 14 में से 12 सीटों पर सफलता हासिल की थी। 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चियांकी हवाई अड्डा के मैदान में सभा की थी, जिससे पलामू की पांच विधानसभा सीटों में से चार पर भारतीय जनता पार्टी के खाते में आयी थी।