विशेष
बिशुनपुर के विधायक चमरा लिंडा इस बार ‘बल्लेबाज’ साथ मैदान में डटे
भाजपा के समीर उरांव से अधिक कांग्रेस के सुखदेव भगत की बढ़ी टेंशन

झारखंड ही नहीं, देश के छोटे संसदीय क्षेत्रों में शुमार लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबले की परंपरा कायम रहेगी। बिशुनपुर से झामुमो विधायक चमरा लिंडा ने नाम वापस लेने से इनकार कर दिया है और इस तरह वह बागी उम्मीदवार के रूप में ‘बल्लेबाज’ चुनाव चिह्न के साथ मैदान में डटे हुए हैं। उनके मैदान में होने के बाद अब इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है। झामुमो की ओर से चमरा लिंडा को मनाने की भरपूर कोशिश की गयी, लेकिन वह किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं हुए। झामुमो ने उन्हें चेताया भी और समझाया भी, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। चमरा लिंडा के मैदान में उतरने से लोहरदगा में चुनाव दिलचस्प हो गया है। कांग्रेस और भाजपा की ओर से अपने-अपने दावे किये जा रहे है। कांग्रेस का मानना है कि चमरा लिंडा के चुनाव में उतरने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योकि उनके विधानसभा क्षेत्र बिशुनपुर में भाजपा को पिछले चुनाव में ज्यादा वोट मिला था। इसलिए उनके चुनाव में उतरने से उनको भाजपा के हिस्से का वोट मिलेगा, गठबंधन का वोट एकजुट है। दूसरी तरफ भाजपा का दावा है कि चमरा के मैदान में उतरने से गठबंधन को नुकसान होगा और इससे उसके प्रत्याशी समीर उरांव की राह और आसान हो जायेगी। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद हुए हर चुनाव में लोहरदगा संसदीय सीट से चमरा लिंडा चुनाव मैदान में उतरते रहे हैं और हर बार वह कांग्रेस और भाजपा के लिए सिरदर्द बढ़ाते रहे। 2009 के चुनाव में तो वह महज 8223 वोटों के अंतर से हार गये थे। उन्होंने कांग्रेस के डॉ रामेश्वर उरांव को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। 2019 के चुनाव में भी चमरा लिंडा ने कांग्रेस की जीत को रोक दिया था। इस बार वह क्या करते हैं और उनके मैदान में डटे रहने से लोहरदगा का चुनाव कितना रोमांचक हो गया है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

आदिवासियों के लिए सुरक्षित लोहरदगा लोकसभा सीट पर इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबले की परंपरा कायम रहेगी। बिशुनपुर से झामुमो विधायक चमरा लिंडा के निर्दलीय के रूप में मैदान में डटे रहने के बाद यहां भाजपा के समीर उरांव और कांग्रेस के सुखदेव भगत के साथ उनका मुकाबला तय हो गया है। चमरा लिंडा को ‘बल्लेबाज’ चुनाव चिह्न आवंटित किया गया है, तो अब यह चर्चा आम है कि लगातार पांचवीं बार संसदीय चुनाव में उतरे चमरा लिंडा इस बार जरूर करारा शॉट लगायेंगे।

2004, 2009 और 2014 में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ
लोहरदगा लोकसभा सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में भी त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था और इस बार भी ऐसा ही होगा। चमरा लिंडा ने पार्टी नेतृत्व की बात को अनसुना कर दिया है। पार्टी ने उन्हें समझाने की पूरी कोशिश की, स्टार प्रचारक भी बनाया, लेकिन चमरा नहीं माने। इसके बाद उन्हें चेतावनी भी दी गयी, लेकिन वह डटे रहे। इस तरह उन्होंने लोहरदगा के मुकाबले को रोमांचक बना दिया है। अब झामुमो के सामने यह चुनौती भी है कि विधानसभा में उनकी सदस्यता को लेकर वह क्या कदम उठायेगी। उनकी सदस्यता खत्म करने के लिए वह विधानसभा अध्यक्ष से सिफारिश करेगी या इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल देगी।

कांग्रेस का खेल बिगाड़ेंगे चमरा लिंडा
चमरा लिंडा इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखते हैं। उनका अपना वोट बैंक है। यदि वह लोहरदगा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं, तो इसका सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस पार्टी को होगा। अब कांग्रेस को झामुमो नेतृत्व के रुख का इंतजार है। यदि वह चमरा लिंडा को रोक नहीं सका, तो फिर लोहरदगा में मुकाबला त्रिकोणीय हो जायेगा। लोहरदगा लोकसभा सीट पर चमरा लिंडा के दावा करने के पीछे एक वजह भी है। इस क्षेत्र में वह एक मजबूत नेता के रूप में जाने जाते हैं। वह साइलेंट वर्कर हैं। वह अन्य नेताओं की तरह ढिंढोरा नहीं पीटते। आदिवासी युवाओं में उनका गजब का क्रेज है। तीन लोकसभा चुनाव का परिणाम तो कुछ ऐसा ही कहता है। चमरा लिंडा के मैदान में होने का नुकसान कांग्रेस को ही उठाना होगा, क्योंकि वह झामुमो के विधायक हैं। हालांकि कांग्रेस का कहना है कि चमरा लिंडा भाजपा का ही नुकसान करेंगे, क्योंकि दोनों का जनाधार एक है। इसके अलावा पिछले संसदीय चुनाव में बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र से ही भाजपा को बढ़त हासिल हुई थी, जो चमरा लिंडा का चुनाव क्षेत्र है।

क्या कहते हैं चुनावी आंकड़े
चुनावी आंकड़ों पर गौर करें, तो साल 2004 के चुनाव से लेकर साल 2014 तक के चुनाव में चमरा लिंडा ने लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों की नींद उड़ा दी थी। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद साल 2004 में हुए पहले संसदीय चुनाव में चमरा लिंडा लोहरदगा लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे। वह चुनाव कांग्रेस के डॉ रामेश्वर उरांव ने जीता था। उस चुनाव में उन्हें 223920 वोट मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर रहने वाले भारतीय जनता पार्टी के दुखा भगत को 133665 वोट से संतोष करना पड़ा था। वहीं, निर्दलीय प्रत्याशी चमरा लिंडा ने 58947 वोट लाकर सबको हैरान कर दिया था। वर्ष 2009 के चुनाव में फिर एक बार चमरा लिंडा चुनाव मैदान में थे। उस बार भी वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। उस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सुदर्शन भगत चुनाव जीत गये थे। सुदर्शन भगत को इस चुनाव में 144628 वोट मिले थे। निर्दलीय प्रत्याशी चमरा लिंडा को 136345 वोट प्राप्त हुए थे। तीसरे स्थान पर रहने वाले कांग्रेस के डॉ रामेश्वर उरांव को 129622 वोट मिले थे। साल 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सुदर्शन भगत चुनाव जीते थे। उस चुनाव में उन्हें 226666 वोट मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर रहने वाले कांग्रेस के रामेश्वर उरांव को 220177 वोट मिले थे। वहीं, तीसरे स्थान पर रहने वाले आॅल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी रहे चमरा लिंडा को 118355 वोट मिले थे। इसलिए कहा जा रहा है कि कई चुनाव में बड़े राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के पसीने छुड़ा चुके चमरा लिंडा के इस बार चुनाव मैदान में उतरने की स्थिति में भाजपा-कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं होगी।

भाजपा भी हुई सतर्क
चमरा लिंडा के मैदान में डटे रहने से भाजपा भी सतर्क हो गयी है और अपना राजनीतिक समीकरण साधने में जुट गयी है। वास्तव में चमरा लिंडा ने लोहरदगा के चुनावी गणित को प्रभावित कर दिया है। पिछले लोकसभा चुनाव में हार-जीत का अंतर बहुत कम रहा था। भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव जहां अपनी संगठनात्मक क्षमता और सादगी भरी छवि को भुनाने में लगे हुए हैं, वहीं भाजपा के रणनीतिकार अपने वोटरों को सुरक्षित कर रहे हैं।

क्या कहती है कांग्रेस
चमरा लिंडा के निर्दलीय के रूप में मैदान में डटे रहने पर कांग्रेस ने कहा है कि यह सहयोगी दल का मामला है और अनुशासनहीनता हुई है। झामुमो इस पर जरूर कार्रवाई करेगा। सुखदेव भगत के नामांकन में कांग्रेस के प्रभारी मीर ने चेताया भी था। उस समय मंच पर सीएम चंपाई सोरेन भी थे और कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की भी। उन्होंने बंधु तिर्किी की तरफ इशारा करते हुए यहां तक कह दिया था कि आपकी बेटी भी मांडर से विधायक हैं। उनके कहने का आशय यह था कि सभी लोग सुखदेव भगत के लिए इमानदारी से काम करें। कांग्रेस कालाकमान तक जरूर यह सूचना थी कि बंधु तिर्की, रामेश्वर उरांव और सुखदेव भगत के बीच सौहार्द्रपूर्ण रिश्ता नहीं है। वैसे यह चुनाव चेहरे पर नहीं, मुद्दे पर है। चमरा लिंडा के चुनाव लड़ने से कांग्रेस के उम्मीदवार पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। वह झामुमो से विधायक हैं और दोनों दलों का स्वाभाविक गठबंधन है। ऐसे में झामुमो अपने विधायक पर जरूर कार्रवाई करेगी।

झामुमो ने क्या कहा
उधर झामुमो का कहना है कि पार्टी नेतृत्व सभी स्थिति-परिस्थिति से अवगत हो रहा है और जल्द ही इस विषय पर बैठक कर उचित निर्णय लिया जायेगा। पार्टी का कहना है कि झामुमो इंडी गठबंधन का हिस्सा है और वह लोहरदगा में कांग्रेस उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव कोशिश करेगा। चमरा लिंडा पर कार्रवाई करने को लेकर झामुमो के सामने ऊहापोह की स्थिति आयेगी। चमरा लिंडा अकेले नहीं हैं, जो झामुमो से बगावत कर महागठबंधन उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। राजमहल से झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम और कोडरमा से झामुमो नेता जयप्रकाश वर्मा तथा खूंटी से झामुमो के पूर्व विधायक और नेता बसंत लोंगा चुनावी मैदान में हैं। झामुमो को इन चारों नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ेगी। कार्रवाई तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन फिलहाल चमरा लिंडा और लोबिन हेंब्रम ने झामुमो को परेशानी में डाल दिया है।

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