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सबसे अधिक सिंहभूम में डाले गये वोट, खूंटी एकदम पीछे-पीछे
पलामू संसदीय क्षेत्र में सबसे कम मतदाता बूथों तक पहुंच सके
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में सबसे बड़ी पंचायत, यानी संसद की निचले सदन लोकसभा के लिए चल रहे 18वें आम चुनाव के चौथे चरण का मतदान सोमवार को समाप्त हो गया। इस चरण में 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 96 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हुई। इनमें झारखंड की चार सीटें भी शामिल हैं। इस चरण में 1717 प्रत्याशियों की किस्मत को देश के करीब 17 करोड़ मतदाताओं ने इवीएम में बंद कर दिया है। देश भर में चल रही गर्म हवाओं के थपेड़ों के बीच चौथे चरण में भी पिछली बार की तुलना में कम मतदान हुआ। इतना ही नहीं, पिछले तीन चरणों के मुकाबले भी इस बार कम वोटिंग हुई। चौथे चरण में झारखंड समेत किसी भी राज्य में पिछली बार के मुकाबले अधिक मतदान नहीं हुआ, हालांकि सोमवार को सबसे अधिक मतदान पश्चिम बंगाल में हुआ। उसके बाद मध्यप्रदेश और आंध्रप्रदेश में वोटिंग हुई, लेकिन सभी राज्यों में भी पिछली बार के मुकाबले कम मतदान हुआ है। झारखंड की जिन चार सीटों पर मतदान हुआ, उनमें सबसे अधिक सिंहभूम में और सबसे कम पलामू में वोट डाले गये। इनमें से तीन सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं, जबकि पलामू सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है। लोकसभा चुनाव के विभिन्न चरणों में गिर रहे मतदान प्रतिशत ने राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की टेंशन बढ़ा दी है। चुनाव आयोग ने भी कम हो रहे मतदान प्रतिशत के कारणों का पता लगाने का काम शुरू कर दिया है। आम तौर पर मौसम को कम मतदान का कारण बताया जा रहा है, लेकिन जानकार इसका अलग मतलब निकाल रहे हैं। चौथे चरण में कहां कितना हुआ मतदान और क्या है कम मतदान का मतलब, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र इस समय अपनी 18वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव प्रक्रिया में व्यस्त है। कुल सात चरणों में होनेवाले इस चुनाव का चौथा चरण सोमवार को संपन्न हुआ, जिसमें 10 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की 96 सीटों पर वोट डाले गये। मतदान के आरंभिक आंकड़ों से पता चलता है कि इस बार भी 2019 की तुलना में कम मतदान हुआ। इतना ही नहीं, पिछले तीन चरणों के चुनाव के मुकाबले इस बार सबसे कम मतदान हुआ है। चौथे चरण में झारखंड की चार सीटों, खूंटी, लोहरदगा, सिंहभूम और पलामू में भी वोट डाले गये और पिछड़ा माने जानेवाले इस राज्य ने भी मतदान का पिछला रिकॉर्ड नहीं तोड़ा।
लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया के चौथे चरण में हुए मतदान के आरंभिक आंकड़ों के मुताबिक करीब 17 करोड़ वोटरों में से 63 फीसदी ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया और 1717 उम्मीदवारों की किस्मत को इवीएम में बंद कर दिया है। इस चरण के साथ ही देश भर में कुल 378 सीटों के मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुके हैं। पिछले तीन चरणों की तरह इस चरण में भी कम मतदान चर्चा का विषय बन गया है।
लगातार कम हो रहा है मतदान
चौथे चरण में कुल 63 प्रतिशत मतदान हुआ है। यह आरंभिक आंकड़ा है और चुनाव आयोग ने कहा है कि इसमें बदलाव हो सकता है। इस बार लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग में 65.5 प्रतिशत वोट डाले गये थे। दूसरे चरण में 65 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था, जबकि तीसरे चरण में 64.68 प्रतिशत मतदान हुआ। इसलिए जब तक अंतिम आंकड़े नहीं आ जाते, यही कहा जा सकता है कि इस बार पिछले तीन चरणों के मुकाबले सबसे कम मतदान हुआ। जहां तक 2019 का सवाल है, तो 2019 में इन संसदीय सीटों पर 69.86 प्रतिशत मतदान हुआ था।
पहले चरण में 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की 102 सीटों के लिए वोट डाले गये थे। 2019 में इन 102 सीटों 69.96 फीसदी वोट पड़े थे। दूसरे चरण में 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 88 सीटों पर मतदान हुआ था। पिछले चुनाव में इन 88 सीटों पर कुल 70.09 फीसदी मतदान हुआ था। इसी तरह 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 93 सीटों पर तीसरे चरण का मतदान हुआ था। इन 93 सीटों पर 2019 में कुल 66.89 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था।
झारखंड में कम हुआ मतदान
13 मई को झारखंड की चार संसदीय सीटों पर मतदान हुआ। आरंभिक आंकड़े बता रहे हैं कि इन चार सीटों पर कुल 63.14 प्रतिशत मतदान हुआ है। यह सोमवार को हुए राज्यवार मतदान में चौथा है, जबकि 2019 के मुकाबले इस बार करीब तीन फीसदी कम मतदान हुआ है। झारखंड में सबसे अधिक 66.11 फीसदी मतदान सिंहभूम में हुआ, जबकि खूूंटी में 65.82 प्रतिशत, लोहरदगा में 62.60 और पलामू में 59.99 प्रतिशत वोट डाले गये हैं। 2019 में खूंटी में 69.25 प्रतिशत, सिंहभूम में 69.26 प्रतिशत, लोहरदगा में 66.3 प्रतिशत और पलामू में 63.34 प्रतिशत मतदान हुआ था। चौथे चरण में सबसे अधिक मतदान के मामले में पश्चिम बंगाल पहले नंबर है, जहां 75.8 प्रतिशत वोट डाले गये हैं। दूसरे स्थान पर मध्यप्रदेश है, जहां के 72.2 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले। तीसरे स्थान पर 71.6 प्रतिशत मतदान के साथ आंध्रप्रदेश है। इन तीनों राज्यों में भी पिछली बार के मुकाबले कम मतदान हुआ।
क्या है कम मतदान का कारण
चुनाव प्रक्रिया और वोटिंग पैटर्न पर नजर रखनेवालों की मानें, तो इस बार कम मतदान का प्रमुख कारण मौसम ही है। देश भर में पड़ रही प्रचंड गर्मी के कारण मतदाताओं का उत्साह कम है। कम मतदान को किसी निश्चित ट्रेंड से जोड़ना सही नहीं है। लेकिन यह बात भी सही है कि राजनीति में भविष्यवाणी करना वैसे बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि मतदाताओं के मूड को समझना आसान नहीं होता है। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि कम वोटिंग प्रतिशत को आम तौर पर सत्ता पक्ष के विरुद्ध देखा जाता है। हालांकि कुछ का कहना है कि विपक्ष के कमजोर होने के कारण भी मतदान का प्रतिशत घटता है। 1980 के चुनाव में मतदान प्रतिशत में गिरावट हुई थी और जनता पार्टी की सरकार सत्ता से हट गयी। जनता पार्टी की जगह कांग्रेस की सरकार बन गयी थी। वहीं 1989 में एक बार फिर मत प्रतिशत में गिरावट दर्ज की गयी और कांग्रेस की सरकार चली गयी थी और विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी थी। 1991 में एक बार फिर मतदान में गिरावट हुई और केंद्र में कांग्रेस की वापसी हो गयी। 1999 में मतदान में गिरावट हुई, लेकिन सत्ता में परिवर्तन नहीं हुआ। वहीं 2004 में एक बार फिर मतदान में गिरावट का फायदा विपक्षी दलों को मिला था। राजनीति के जानकारों का मानना है कि इस बार ऐसा देखने को नहीं मिलेगा। इसका प्रमुख कारण यह है कि इस बार विपक्ष कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है। संगठन की कमजोरी, आक्रामक चुनाव प्रचार और अन्य संसाधनों में विपक्ष के उम्मीदवार पिछड़ रहे हैं। विपक्ष की सबसे बड़ी पूंजी मोदी विरोधी बन गयी है।
राजनीतिक दलों की टेंशन बढ़ी
मतदान में लगातार गिरावट देश में चिंता का विषय बनी है, तो यह स्वाभाविक है। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो औसत मतदान में गिरावट नहीं है। राज्यों और राज्यों के अंदर संसदीय क्षेत्रों में भी मतदान प्रतिशत कहीं ठीक-ठाक है, तो कहीं गिरा है। निश्चित रूप से मतदान की इन प्रवृत्तियों का आकलन कठिन बना दिया है। अभी तक 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान उच्चतम स्तर पर पहुंचा था। वर्तमान मतदान को देखते हुए अब कहा जा सकता है कि इस बार मतदान में 2019 का रिकॉर्ड नहीं टूटेगा। यह स्वाभाविक है कि जब एक बार कोई भी प्रवृत्ति ऊंचाई छूती है, तो उसके बाद उसे नीचे आना ही पड़ता है। जहां तक झारखंड की चार सीटों की बात है तो यहां यह साफ हो गया है कि प्रचार अभियान में विपक्षी उम्मीदवार पिछड़ रहे हैं। इसका कितना असर पड़ेगा, यह चार जून को ही पता चलेगा।