विशेष
पार्टी ने लगातार दूसरी चुनावी हार के बाद बदली रणनीति
बड़े नेताओं को ग्रामीण इलाकों का दौरा करने का निर्देश
संगठन को गांव की राजनीति में सक्रिय बनाने की रणनीति
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड में लगातार दूसरी चुनावी पराजय के बाद भाजपा अब एक बार फिर सक्रिय हो रही है। नवंबर, 2024 में हुए विधानसभा चुनाव के करीब छह महीने बाद अब भाजपा ने झारखंड के लिए अपनी रणनीति में बड़े बदलाव के संकेत दिये हैं। इसके तहत पार्टी अब गांवों पर विशेष ध्यान देगी। गांवों के साथ उन विधानसभा सीटों पर भी फोकस किया जायेगा, जो ग्रामीण इलाकों में हैं। इसके लिए पार्टी ने प्रदेश स्तरीय नेताओं को आवश्यक निर्देश भेजा है। पार्टी के तमाम बड़े नेता, चाहे बाबूलाल मरांडी हों या चंपाई सोरेन या फिर अर्जुन मुंडा और रघुवर दास, सभी को गांवों का नियमित दौरा करने को कहा गया है। जून के पहले सप्ताह से झारखंड भाजपा के नेताओं का ‘मिशन गांव’ शुरू हो जायेगा। इस मिशन के तहत गांवों की राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल होने, ग्रामीण संगठन को मजबूत बना कर सक्रियता बढ़ाने और तीज-त्योहारों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने के लिए पार्टी नेताओं को भेजा जायेगा। भाजपा का मानना है कि यह मिशन काफी लंबा चलेगा, इसलिए अभी से ही इस पर काम करने की जरूरत है, ताकि 2029 तक पार्टी की पहुंच गांवों तक हो जाये। पार्टी आलाकमान को जो फीडबैक मिला है, उसमें कहा गया है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी की पराजय का मुख्य कारण गांवों से नेताओं का कट जाना भी रहा। इसलिए पार्टी उस चूक को सुधारने के लिए अभी से ही काम शुरू करना चाहती है। भाजपा के कार्यकर्ताओं का मानना है कि गांवों की किलेबंदी से पार्टी को निश्चित रूप से लाभ होगा, क्योंकि झारखंड के ग्रामीणों के सामने अब तक कोई विकल्प नहीं रखा गया है। क्या है झारखंड भाजपा की नयी रणनीति और क्या होगा इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में लगातार दूसरी बार विधानसभा का चुनाव हारने और अलग राज्य बनने के बाद सबसे खराब चुनावी प्रदर्शन करने के बाद भाजपा लगातार मंथन करने में जुटी हुई थी। इस मंथन के दौरान जो एक बात उभर कर सामने आयी, वह यह है कि झारखंड में पार्टी की हार का एक प्रमुख कारण उसका गांवों से कट जाना था। यह बात सच है कि पार्टी ने झारखंड के शहरों की किलेबंदी तो की, लेकिन उसे इस बात का एहसास नहीं हुआ कि झारखंड की सत्ता की चाबी गांवों से होकर आती है। नवंबर, 2024 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को ग्रामीण सीटों पर हार का सामना करना पड़ा, क्योंकि उसके नेताओं के पास गांवों को लेकर कोई विजन ही नहीं था। इसका उदाहरण रांची संसदीय क्षेत्र की छह विधानसभा सीटों का चुनाव परिणाम है। लोकसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी केवल रांची और हटिया सीट ही जीत सकी। कांके, खिजरी और ईचागढ़ में पार्टी हार गयी, जबकि सिल्ली सीट से पार्टी के सहयोगी सुदेश महतो को हार का सामना करना पड़ा। ये सभी ग्रामीण सीटें हैं। यही हाल दूसरे संसदीय क्षेत्रों का भी रहा।
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अब इस चूक को सुधारने के लिए तैयार हो गया है। पार्टी का मानना है कि उसने सांगठनिक रूप से झारखंड के शहरों की मजबूत किलेबंदी कर दी है। अब गांवों को भी मजबूत करने की जरूरत है। इसलिए पार्टी ने नयी रणनीति तैयार की है। इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, प्रदेश महामंत्री आदित्य साहू, प्रदीप वर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव समेत सभी विधायकों, सांसदों और पूर्व जन प्रतिनिधियों को पार्टी ने गांवों में संगठन को सशक्त करने का टास्क सौंपा है।
इन मुद्दों पर रहेगा जोर
पार्टी ने इस नये मिशन के तहत भाजपा ने कुछ मुद्दों को चुना है, जिन पर जोर दिया जायेगा। मिशन के तहत गांव-गांव में आदिवासी विषयों को केंद्र बना कर आंदोलन चलेगा और घुसपैठ, लव जिहाद और आदिवासी अस्मिता जैसे मुद्दों पर गोष्ठियों का आयोजन किया जायेगा। रोजगार के सवाल पर युवाओं के बीच जाने और आंदोलन की रणनीति बनाने पर भी ध्यान दिया जायेगा। पिछड़ी जातियों और दलित समाज के लोगों के लिए किये गये काम को बताया जायेगा। राज्य की दूसरी समस्याओं, मसलन बालू संकट, भ्रष्टाचार और बिजली-पानी-सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी को जोर-शोर से उठाया जायेगा और इन आंदोलनों की कमान ग्रामीण संगठन को सौंपी जायेगी, ताकि अगले चुनाव तक स्थानीय नेतृत्व उभर कर सामने आये।
जून के पहले सप्ताह में शुरू होगा मिशन
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इस बारे में झारखंड के नेताओं को पूरा निर्देश दे दिया है और जून के पहले सप्ताह से इस पर काम करने को कहा गया है। केंद्रीय नेतृत्व से मिले निर्देश के बाद अब झारखंड भाजपा इस मिशन को पूरा करने में जुट गयी है। नेताओं के बीच बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया है। प्राथमिकता के आधार पर मुद्दों की सूची तैयार की जा रही है, जिन पर काम तत्काल शुरू किया जायेगा। पार्टी नेतृत्व ने बता दिया है कि इन सबका उद्देश्य गांवों में विशेषकर युवाओं में भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ाना और यह सिद्ध करना है कि आदिवासियों के विकास के नाम पर उनके साथ हो रहे छल को दूर करने में केवल भाजपा ही सक्षम है।
गांवों से लगे विधानसभा क्षेत्रों में जनाधार बढ़ाने की कोशिशें तेज
विधानसभा के पिछले चुनाव में बोकारो, देवघर और गिरिडीह में भाजपा की दीवार दरक गयी थी। धनबाद, जमशेदपुर, हजारीबाग, कोडरमा आदि शहर भाजपा के किले के रूप में प्रभावी हैं। इसका निष्कर्ष भाजपा नेतृत्व ने यह निकाला कि गांवों से लगे विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी को पकड़ कमजोर होती जा रही है। ऐसे में इन क्षेत्रों में पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिशें तेज करने की जरूरत है।
रणनीति में बदलाव के क्या हैं मायने
झारखंड भाजपा ने पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले सितंबर में राज्यव्यापी परिवर्तन यात्रा शुरू की थी। इसका मुख्य लक्ष्य हेमंत सरकार से पिछले पांच वर्षों का हिसाब लेना था। पार्टी ने इस यात्रा को बेटी, रोटी, माटी की रक्षा, युवाओं के भविष्य और झारखंड में परिवर्तन लाने के संकल्प के रूप में प्रस्तुत किया था। यह यात्रा सभी 81 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी और छह सांगठनिक प्रमंडलों में आयोजित की गयी। लेकिन इस यात्रा का चुनाव परिणाम पर कोई खास असर नहीं पड़ा। इसलिए इस बार किसी घोषित कार्यक्रम से परहेज कर पार्टी ने यह संकेत देने की कोशिश की है कि वह जमीन से जुड़ रही है।
क्या होगा इन मिशन का असर
जाहिर है कि यह मिशन झारखंड भाजपा के लिए महत्वपूर्ण राजनीतिक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य आम लोगों से जुड़ कर उन मुद्दों को उठाना है, जिनका लोगों के जीवन पर सीधा असर पड़ता है। पार्टी का मानना है कि इससे आगामी चुनावों के लिए एक मजबूत जनसमर्थन जुटाया जा सकेगा। लेकिन यह तभी संभव होगा, जब लोग भाजपा की बातों पर यकीन करें। झारखंड का वर्तमान राजनीतिक माहौल बताता है कि यहां के ग्रामीण इलाकों में भाजपा की पकड़ लगातार ढीली पड़ रही है। बाबूलाल मरांडी को छोड़ कर कोई भी नेता झारखंड के गांवों को नहीं जानता है। इसका परिणाम यह हुआ है कि प्रतिद्वंद्वी दलों और संगठनों ने लोगों के दिलों में घर बना लिया है। कड़िया मुंडा और कैलाशपति मिश्र के जमाने में पार्टी संगठन की गतिविधियां गांवों से शुरू होकर शहरों तक आती थीं, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल गयी है। अब भाजपा के लोग शहरों से शुरू होकर गांवों तक जाते हैं, जिसका परिणाम 2019 के विधानसभा चुनाव जैसा होता है। झारखंड भाजपा को इसको समझना होगा।