विशेष
11 साल में 50वीं बार आकर भाजपा की जमीन मजबूत कर दी मोदी ने
विपक्ष के गढ़ की 55 सीटों पर परिदृश्य बदलने में कामयाब रहे प्रधानमंत्री

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दो दिवसीय बिहार दौरा संपन्न हो गया है। प्रधानमंत्री बनने के बाद से यह उनका 50वां बिहार दौरा था। राज्य का इतना दौरा करनेवाले वह पहले प्रधानमंत्री हैं। ‘आॅपरेशन सिंदूर’ के बाद प्रधानमंत्री का पहला बिहार दौरा था। माना जा रहा है कि इस दौरे के जरिये प्रधानमंत्री ने बिहार चुनाव से पहले भाजपा की जमीन को मजबूत बना दिया है। पीएम मोदी का यह दो दिवसीय दौरा बेहद ठोस रणनीति के साथ तय किया गया था और विक्रमगंज में उनकी रैली ने बिहार भाजपा में नये उत्साह का संचार किया है। विक्रमगंज विधानसभा क्षेत्र मगध और शाहाबाद क्षेत्र के बीच में है। यह भाजपा और एनडीए के लिए लगातार कमजोर कड़ी बना हुआ है। इस इलाके में लोकसभा की 10 और विधानसभा की 55 सीटें आती हैं। इसे राजद-कांग्रेस-वाम दलों का मजबूत गढ़ माना जाता है। विपक्ष के इस गढ़ में सभा कर पीएम मोदी ने बिहार भाजपा की संभावनाएं बढ़ा दी हैं। बिहार देश की हिंदी पट्टी का इकलौता राज्य है, जहां भाजपा अब तक अपने बूते सरकार नहीं बना सकी है। इसलिए इस बार का विधानसभा चुनाव उसके लिए ‘करो या मरो’ जैसा है। पीएम मोदी इस बात को अच्छी तरह जानते-समझते हैं। इसलिए उन्होंने इस बार केवल जनसभा नहीं की, बल्कि पार्टी नेताओं को चुनाव जीतने का मंत्र भी दिया। कुल मिला कर पीएम मोदी का यह बिहार दौरा राज्य में इस साल के अंत में होनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण और लाभदायक रहा। क्या है मोदी के बिहार दौरे का राजनीतिक असर और क्या हैं संभावनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा का चुनाव होना है और इसके लिए राजनीतिक दल तैयारियों में जुट गये हैं। राज्य में सत्तारूढ़ एनडीए के सबसे बड़े घटक दल भाजपा और जदयू ने सीट शेयरिंग के बाद चुनावी तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन तैयारियों में नयी ऊर्जा का संचार कर गये। पीएम मोदी बिहार का दो दिवसीय दौरा कर दिल्ली लौट चुके हैं। यह 2025 में उनका तीसरा और 11 साल में 50वां बिहार दौरा था। इस दौरे के साथ एक और खास बात यह थी कि ‘आॅपरेशन सिंदूर’ के बाद पीएम मोदी का यह पहला बिहार दौरा था। अपने दौरे के दौरान उन्होंने पटना के जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के नये एकीकृत टर्मिनल भवन का उद्घाटन किया, पटना की सड़कों पर रोड शो किया, फिर एक पावर प्लांट की आधारशिला रखी और विक्रमगंज में जनसभा को संबोधित किया। पीएम मोदी पिछली बार 24 अप्रैल को मधुबनी आये थे और उससे पहले 24 फरवरी को भागलपुर में थे।

कैसा रहा पीएम मोदी का बिहार दौरा
पीएम मोदी अपने दौरे के पहले ही दिन बिहार को विकास की सौगात से नवाजने के साथ-साथ भाजपा के पक्ष में सियासी माहौल बना गये। पटना में उद्घाटन और शिलान्यास के जरिये उन्होंने विकास की इबारत लिखने की कोशिश की, तो दूसरी तरफ गोलंबर से भाजपा कार्यालय तक रोड शो कर बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंक दिया। इतना ही नहीं, भाजपा नेताओं को 2025 की चुनावी जंग जीतने का भी पीएम मोदी ने मंत्र दिया, तो बिहार के डिप्टी सीएम विजय सिन्हा के घर जाकर सियासी समीकरण साधा। यदि एक वाक्य में कहा जाये, तो पीएम मोदी ने अपने दौरे से बिहार की सियासी फिजां को पूरी तरह मोदीमय कर दिया। इतना ही नहीं पार्टी के प्रदेश नेता पदाधिकारियों, विधायकों, विधान पार्षदों और सांसदों के साथ बैठक कर नरेंद्र मोदी ने बिहार विधानसभा चुनाव जीतने की सियासी पटकथा भी लिख दी।

भाजपा के लिए बिहार क्यों है अहम
बिहार लंबे समय से हिंदुत्व विचारधारा के गढ़ की बजाय क्षेत्रीय और जाति-आधारित सामाजिक न्याय की राजनीति का गढ़ रहा है। हालांकि इस बार यह परिदृश्य बदला हुआ नजर आ रहा है। बिहार देश की हिंदी पट्टी का अकेला ऐसा राज्य है, जहां आज तक भाजपा अपने बूते सरकार नहीं बना सकी है। लेकिन अब परिस्थितियां बदली हुई नजर आ रही हैं। पीएम मोदी के दौरे के बाद बिहार की चुनावी हवा में भगवा रंग नजर आने लगा है। 1990 के बाद, जब लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस से सत्ता छीनी, बिहार का राजनीतिक परिदृश्य मुख्य रूप से गठबंधनों के बीच ही सिमटा रहा। राज्य में 2005 तक राजद का प्रभुत्व रहा। उसके बाद नवंबर 2005 के बाद से नीतीश के जदयू का राजनीतिक प्रभुत्व रहा। अब पहली बार बिहार विधानसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, जिसने 2005 में अपनी सीटों की संख्या 37 से दोगुनी से भी अधिक बढ़ाकर 80 कर ली है, साथ ही लोकप्रिय वोट में भी उसकी हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। इसलिए इस बार भाजपा बहुत उत्साहित है और पीएम मोदी स्वाभाविक रूप से बिहार को बेहद अहम मानते हैं।

बेहद अहम रहा मोदी का दौरा
पीएम मोदी के यह दो दिवसीय दौरा बहुत सोच-समझ कर तैयार किया गया था। पटना में नये एयरपोर्ट टर्मिनल का अनावरण केवल बुनियादी ढांचे का मील का पत्थर नहीं है, बल्कि भाजपा के विकास की कहानी का प्रतीक है। ‘आॅपरेशन सिंदूर’ के बाद रोड शो और सार्वजनिक सभा पीएम मोदी की रणनीति का स्पष्ट प्रमाण है। इन कार्यक्रमों में उमड़ी भीड़ यह भी साबित करती है कि बिहार के लोगों की सोच बदल रही है। इस दौरे ने प्रधानमंत्री की जनता के आदमी और परवाह करने वाले नेता के रूप में उनकी स्थिति को मजबूत करने में भी भूमिका निभायी है। फिर भी बिहार की चुनावी गतिशीलता कभी भी सीधी नहीं होती। राज्य की राजनीति जातिगत गणना, क्षेत्रीय निष्ठा और पहचान की एकजुटता से भरी हुई है। जहां भाजपा उच्च और मध्यम जातियों के बीच अपना प्रभाव बढ़ाने में सफल रही है, वहीं राजद और अन्य क्षेत्रीय दल दलितों, मुसलमानों और यादवों के बड़े हिस्से के बीच वफादारी हासिल करना जारी रखे हुए हैं।

ऐसे में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, मुख्य सवाल यह है कि क्या मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता और भाजपा की संगठनात्मक मशीनरी बिहार की राजनीति को परिभाषित करने वाले सामाजिक समीकरणों को पार कर पायेगी। क्या भगवा दल अपने राष्ट्रीय जनादेश से उत्साहित और मोदी की करिश्माई अपील से उत्साहित होकर अपने बढ़े हुए वोट-शेयर को पूर्ण बहुमत में बदल पायेगा? या सहयोगी जदयू अपने सामाजिक न्याय के गढ़ को बचाये रख पायेगा? साथ ही महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या विपक्षी राजद-कांग्रेस-वामपंथी गुट, जो जमीनी स्तर पर वर्षों से लोगों से जुड़ा रहा है और जातिगत गठबंधन से मजबूत हुआ है, अपने वजन से अधिक प्रदर्शन कर पायेगा? आने वाले दिनों में, जब बिहार में प्रचार अभियान जोर पकड़ेगा और चुनावी समीकरण आकार लेने लगेंगे, तो बिहार में मोदी के प्रभाव की असली सीमा सामने आयेगी। उनका यह तीसरा दौरा मतदाताओं में जोश भरने और बिहार में अपनी शर्तों पर शासन करने के भाजपा के दृढ़ संकल्प को रेखांकित करने के लिए डिजाइन की गयी शक्ति का प्रदर्शन साबित होगा या नहीं, इसका उत्तर बिहार के विशाल मैदानों के ऊपर बह रही हवा में छिपा हुआ है।

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