विशेष
सभी धुरंदर पकिस्तान की चमड़ी उधेड़ दिखायेंगे उसका असली चेहरा
कांग्रेस को राजनीति भूल कर साथ देना चाहिए सरकार का, क्यूंकि यह मामला है देश का
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
मोदी सरकार द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद शुरू किये गये राजनयिक आउटरीच अभियान में कांग्रेस की भागीदारी को लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है। कांग्रेस द्वारा सुझाये गये चार नामों में से केवल आनंद शर्मा को प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया है, जबकि बाकी तीन नामों को सरकार ने नजरअंदाज कर दिया और अपनी ओर से तीन अन्य कांग्रेस नेताओं को नामित कर दिया। इससे कांग्रेस ने नाखुशी जाहिर की है। कांग्रेस को सबसे अधिक आपत्ति शशि थरूर से है, जो लगातार पकिस्तान को आड़े हाथ ले रहे हैं। मोदी सरकार का यह अभियान, जिसे राजनयिक आउटरीच कार्यक्रम नाम दिया गया है, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष भारत की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास है। इसका उद्देश्य भारत की आतंकवाद विरोधी नीति और आंतरिक स्थिरता के प्रति वैश्विक समर्थन हासिल करना है। यह अभियान विशेष रूप से 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद और अधिक प्रासंगिक हो गया है। अभियान के तहत सांसदों का अलग-अलग दल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों में जाकर आतंकवाद के खिलाफ भारत के कदम की जानकारी देगा और साथ ही पाकिस्तान को बेनकाब करेगा। सरकार की तरफ से कांग्रेस से चार सांसदों के नाम मांगे गये थे, लेकिन उसमें से केवल आनंद शर्मा को ही शामिल किया गया, जबकि सरकार ने कांग्रेस से बिना पूछे ही शशि थरूर और दो अन्य सांसदों को उसमें शामिल कर लिया। कांग्रेस ने इसका विरोध किया है। कांग्रेस का यह विरोध मोदी सरकार के इस सराहनीय कूटनीतिक पहल को विवादित बना रहा है, जो पूरी तरह से अनुचित है। सरकार द्वारा कांग्रेस के सुझाये गये नामों को नजरअंदाज कर अपनी पसंद के नेताओं को चुनना एक रणनीतिक कदम हो सकता है। यह संभवत: उन चेहरों को चुनने की कोशिश है, जिनका कूटनीतिक अनुभव अधिक है और जो सरकार के दृष्टिकोण के साथ अधिक सहज हों। केंद्र और कांग्रेस के बीच यह टकराव एक बार फिर यह दिखाता है कि जब राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति जैसे संवेदनशील मुद्दे सामने आते हैं, तो राजनीतिक सहयोग और संवाद कितना जरूरी हो जाता है। क्या है पूरा मामला और कूटनीतिक रूप से कांग्रेस के विरोध का क्या हो सकता है असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
पहलगाम की क्रूर और बर्बर आतंकी घटना और उसके बाद भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में पाकिस्तान को करारी मात देने की घटना से निश्चित ही भारत की ताकत को दुनिया ने देखा। लेकिन इसके बाद पाकिस्तान दुनिया से सहानुभूति बटोरने के लिए जहां विश्व समुदाय में अनेक भ्रम, भ्रांतिया और भारत की छवि को खराब करने में जुटा है, वहीं भारत का डर दिखा-दिखा कर ही वह अनेक देशों से आर्थिक मदद मांग रहा है। इन्हीं स्थितियों को देखते हुए दुनिया के सामने भारत का पक्ष रखने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने जिस तरह से सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया है, वह जितना सराहनीय है, उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण और विडंबनापूर्ण है इसका राजनीतिक विवादों में घिर जाना। यह राजनीति से ऊपर, मतभेदों से परे राष्ट्रीय एकता का एक शक्तिशाली प्रतिबिंब बनना चाहिए। देश की सुरक्षा, सैन्य उपक्रम, राष्ट्रीय एकता-अखंडता और विदेश नीति से जुड़े विषय पर राजनीति होना देश के हित में नहीं है।
पहलगाम हमले के बाद यह अफसोस की बात है कि पाकिस्तान का बचाव करने या उसके साथ मुखरता से खड़े होने वाले देशों या विश्व संगठनों के साथ-साथ भारतीय राजनीतिक दलों में विवाद का बढ़ना चिंताजनक है। भारत के राजनीतिक दल प्रारंभ में एकजुट दिखे, लेकिन राजनीतिक स्वार्थों के चलते अब उनमें, खास कर कांग्रेस में कहीं-कहीं वैचारिक मतभेद उभर रहे हैं। पाकिस्तान दोषी होने के बावजूद पीड़ित होने का स्वांग रचकर सहानुभूति जुटा रहा है। दुनिया के अनेक देश उसके झांसे में आ भी जाते हैं। ऐसे में दुनिया के महत्वपूर्ण देशों में भारत का पक्ष रखने का मोदी सरकार का यह प्रयास बहुत जरूरी और दूरगामी सोच से जुड़ा है। इस प्रयास को एक बड़े अभियान के रूप में लेना चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ भारत की शून्य सहिष्णुता और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का संदेश दुनिया तक पहुंचना चाहिए।
क्या है पूरा विवाद
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान सभी दलों ने सरकार और सेना के प्रति समर्थन जताया था। सरकार ने भी उसी भावना का सम्मान करते हुए सभी दलों के सांसदों को प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया है। कांग्रेस ने शशि थरूर का नाम नहीं भेजा था, सरकार ने उन्हें अपनी तरफ से शामिल कर लिया। जिनके नाम कांग्रेस ने दिये थे, उनमें से सिर्फ आनंद शर्मा चुने गये। शशि थरुर विदेश नीति के जानकार हैं। वह पहले संयुक्त राष्ट्रसंघ में काम कर चुके हैं, विदेश राज्यमंत्री रह चुके हैं। उनके अनुभव का फायदा निश्चित रूप से प्रतिनिधिमंडल को मिलेगा। दुनिया में भारत का पक्ष सही परिप्रेक्ष्य में रखने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
इस बीच खुद शशि थरूर ने एक्स पर पोस्ट किया और सरकार की ओर से डेलिगेशन में शामिल किये जाने पर खुशी जतायी। उन्होंने लिखा, ‘भारत सरकार ने हालिया घटनाओं पर देश का पक्ष रखने के लिए पांच प्रमुख देशों की यात्रा के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने का जो न्योता मुझे दिया है, उससे मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं। जब बात राष्ट्रहित की हो और मेरी सेवाओं की जरूरत हो, तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। जय हिंद!
क्या है कांग्रेस का स्टैंड
कांग्रेस को लगता है कि उसके सांसद को चुनने से पहले उससे पूछा जाना चाहिए था, इस अपेक्षा को गलत भी नहीं कहा जा सकता। मगर वर्तमान संवेदनशील हालातों में इसे विवाद का मुद्दा बनाने से बचा जा सकता था। लेकिन कांग्रेस के सदस्यों, खासकर सांसद शशि थरूर को लेकर हो रहा विवाद बिल्कुल अनचाहा और अनुचित है। इससे एक अच्छा और प्रासंगिक मकसद नकारात्मक खबरों में घिर गया है। भले ही शशि थरूर और कांग्रेस के रिश्ते पिछले कुछ समय से ठीक नहीं रहे हैं, लेकिन यह एक सांसद और उसकी पार्टी के बीच का मसला है। यहां जो मुद्दा सामने है, वह देश से जुड़ा है। इसमें सभी को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचना चाहिए।
पहले भी ऐसा होता रहा है
युद्ध और आतंक जैसे हालातों में भारत ने अपना पक्ष रखने के लिए पहले भी समय-समय पर विपक्ष के शीर्ष नेताओं को आगे किया है और उसी परिपाटी को मोदी सरकार ने आगे बढ़ाकर देश की राजनीति और राजनय को मजबूती दी है। सात सदस्यीय बैजयंत जय पांडा, रविशंकर प्रसाद, शशि थरूर, संजय झा, श्रीकांत शिंदे, कनिमोझी करुणानिधि और सुप्रिया सुले के नेतृत्व में हमारे देश के नेता 32 देशों का दौरा करेंगे। यह विपक्ष के नेताओं के लिए भी स्वर्णिम अवसर है कि वे अपनी काबिलियत और देशहित को देश के सामने साबित करें, क्योंकि राष्ट्र और राष्ट्रीय एकता सबसे ऊपर है। बांटने वाली राजनीति से अलग जब हम देशहित के पक्ष में खड़े होंगे, तभी आतंकवाद से लड़ने में सहूलियत और सफलता मिलेगी। क्या दुनिया ने भारत के सीमित सैन्य अभियान के महत्व, संयम और समझदारी को ठीक से समझा है? क्या भारत आतंकवाद के खिलाफ संपूर्ण युद्ध नहीं छेड़ सकता था? अगर भारत ने युद्ध को नहीं बढ़ाया, तो इसका अर्थ कतई यह नहीं कि भारत का पक्ष कमजोर है। भारत चाहता तो पाक को हर मोर्चे पर नेस्तनाबूद कर सकता था, लेकिन भारत का लक्ष्य आतंकवाद को समाप्त करना है।
दुनिया के सामने बेनकाब होगा पाकिस्तान
भारत ने पाकिस्तान और पीओके में बसे नौ आतंकी ठिकानों को रात के अंधेरे में तबाह कर दिया। इसके बाद भारत ने ठान लिया कि पूरी दुनिया के सामने आतंकवाद परस्त पाकिस्तान का चेहरा बेनकाब करना है, जिसकी जिम्मेदारी अनुभवी और विशेषज्ञ सांसदों को सौंप कर सरकार ने सूझबूझ और परिपक्व नेतृत्व का परिचय दिया है। सांसदों के प्रतिनिधिमंडल दुनिया भर के देशों में जाकर आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का पक्ष रखेगा। हर एक प्रतिनिधिमंडल में छह-सात सांसद और कई राजनयिक शामिल होंगे। भारत की शांति, अहिंसा, विकास और विश्व बंधुत्व का संदेश सात प्रतिनिधिमंडलों के जरिये दुनिया तक पहुंचना इसलिए भी जरूरी है कि भारत को तेज विकास करना है और अब वह पहलगाम जैसे किसी आतंकी हमले को बर्दाश्त नहीं कर सकता। गौर करने की बात है कि इन प्रतिनिधिमंडलों में 59 सदस्य शामिल किये गये हैं, जिनमें सत्तारूढ़ एनडीए के 31 नेता और अन्य दलों के 20 नेता शामिल हैं। इस तरह सर्वदलीय सांसदों की टीमों को अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मिशन पर भेजने से भारत का पक्ष मजबूत होगा, दुनिया में आतंक के विरुद्ध सकारात्मक वातावरण बनेगा। ये दौरे न सिर्फ आतंकवाद पर भारत की नीतियों को साफ करेंगे, बल्कि पाक की हरकतों को भी दुनिया के सामने बेनकाब करेंगे।
राजनीतिक संतुलन है प्रतिनिधिमंडलों में
सात प्रतिनिधिमंडलों में जिन नेताओं को नेतृत्व दिया गया है, उसमें भी अन्य दलों को प्राथमिकता देकर एक संतुलन और सूझबूझ का परिचय दिया गया है। ‘आइडिया आॅफ इंडिया’ के साथ सुगठित इस ‘टीम इंडिया’ के कंधे पर बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। दुनिया के निर्णायक नेताओं से मिलकर यह बताना जरूरी है कि ‘आइडिया आॅफ पाकिस्तान’ और ‘आइडिया आॅफ इंडिया’ के बीच कितनी चौड़ी खाई है। यह खाई संबंधित देशों ही नहीं, दुनिया को प्रभावित करने वाली है। दूसरे शब्दों में कहें, तो पाकिस्तान आतंकवादी मानसिकता से ग्रस्त है और आतंक को पोषित-पल्लवित करने वाला देश है।