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    Home»लाइफस्टाइल»ब्लॉग»परिश्रमी-पराक्रमी भारत की पहचान सुनिश्चित होनी चाहिए
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    परिश्रमी-पराक्रमी भारत की पहचान सुनिश्चित होनी चाहिए

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीJune 22, 2017No Comments3 Mins Read
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    हरेराम सिंह: अगस्त 1999 का पावन दिन जब कारगिल युद्ध के उपरान्त लाल किले के प्राचीर से अटल जी का यह मर्मभेदी वाक्य ‘‘हमें परिश्रमी पराक्रमी विनयी भारत का निर्माण करना है’’ आज भी मेरे मानस पटल पर कायम है। किसान हमारे राष्टÑ की विकास धुरी एवं आधार स्तंभ है। वह परिश्रम त्याग एवं सादगी का प्रतीक है। मध्यप्रदेश के मंदसौर की दुखद घटना से मन आहत है। आज किसानों की समस्या को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।

    निश्चय ही सरकार के तरफ से किसानों की भलाई के लिए अनेक कार्यक्रम शुरू किये गये हैं फिर भी हमारी कार्य प्रणाली एवं व्यवस्था में काफी छिद्र है जिन्हें बंद करना आवश्यक है। आज किसानों की सबसे गंभीर समस्या उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पाना है। किसानों को मंहगे दामों पर डीजल, खाद, बीज, कीटनाशक तथा अन्य सामग्री खरीदना पड़ता है। इसके लिए वे बैंको से कर्ज लेते हैं जहां उन्हें इसके लिए भी बैंक अधिकारियों को गुप्त रूप से रिश्वत देनी पड़ती है।

    प्राकृति आपदा के कारण जब फसल बर्बाद हो जाती है तो कर्ज चुकाने में असमर्थ हो आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाते हैं। जब फसल अच्छी हो जाती है तो कौड़ी भाव उत्पाद को बेचना पड़ता है जिससे उनकी लगायी गयी पंूजी भी नहीं मिल पाती है। आजादी के उपरांत जिस तरह से हमने विश्व के सभी संविधानों का अध्ययन कर एक सर्वश्रेष्ठ संविधान का निर्माण किया या उसी प्रकार विश्व में अनेक देश हैं जहां कार्य प्रणाली उत्तम है और किसान खुशहाल। उनके कार्य प्रणाली से सबक लेकर क्रांतिकारी कदम उठाने की आवश्यकता है। द्वितीय हरित क्रांति का सपना साकार कर सकते हैं।

    आज के समय में पी.पी.मोड़ पर किसानों के हित सहकारिता को बढ़ावा देने की आवश्यकता जिससे कम-से-कम समय में कम लागत पर किसानों के उत्पाद कोे बाजार में पहुंचाया जा सके। सरकारी तंत्र सुस्त एवं निकम्मा है जो अपना दोष दूसरे पर मढ़ने में माहिर है। सरकारी तंत्र में पूर्ण पारदर्शिता एवं कड़ाई की आवश्यकता है जो दोषियों के कटघरे बिना विलंब खड़ा कर सके। हैरत की बात यह है कि सरकार विदेशों से मंहगे दाम पर खाद्य सामग्री आयत करती है जबकि अधिक उत्पादन होने पर उचित समर्थन मूल्य पर पूर्ण रूप से खरीद नहीं पाती है जिसका लाभ व्यापारी वर्ग आसानी से उठाकर सस्ते में अपने माल गोदाम में डंप कर लेते हैं और कृत्रिम अभाव पैदा कर मंहगे दाम पर बेचते हैं।

    अन्न उपजाने वाले किसान को कुछ लाभ नहीं मिलता। आज सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जन प्रतिनिधि सता के माध्यम से एक ही बार में अपनी आय दो से चार गुना बढ़वा लेते हैं ताकि उनकी कार्य प्रणाली में कोई बाधा नहीं आये, लेकिन जब किसानों की बात आती है तो राजनीतिक लाभ के दलदल में फंसकर केवल हाय तोबा मचाते हैं। यदि हमें अटल जी के वाक्य क ो पूर्ण रूप से सार्थक करना है तो हम सभी के लिए त्याग करने एवं सादगी अपनाने की आवश्यकता है ताकि अधिक से अधिक धन राशि किसानों के कल्याण के लिए खर्च हो जिनसे दूसरा हरित क्र ांति साकार हो सके तथा राष्टÑ को दृढ़ स्तम्भ प्रदान करे।

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