राजीव
रांची। राजधानी में भू-माफियाओं ने वर्दी को ही हाइजैक कर लिया है। इस घटना को जान कर आप भी अचरज में पड़ जायेंगे कि कैसे पुलिस के दर्जनभर आलाधिकारियों को औने-पौने दाम में सरकारी जमीन बेच कर भू माफिया ने पुलिस का गलत इस्तेमाल कर लिया है। भू-माफियाओं ने शतरंज की बिसात बिछायी और अपनी गोटी चलते रहे। इसमें बड़ी ही आसानी से पुलिस अफसर भी फंसते चले गये। नतीजा हुआ कि भू-माफियाओं ने जो सोचा, जैसा चाहा, वैसा करा लिया। इस बड़ी साजिश की भनक तक इन अफसरों को नहीं लगी। इस पूरे कारनामे को जानना है तो आपको कांके का चामा आना होगा। ठीक रिंड रोड के पास। लॉ यूनिवर्सिटी से थोड़ा आगे। यहां आते ही आपको पूरा खेल समझ में आ जायेगा। किस तरह जीएस कंस्ट्रक्शन नामक कंपनी ने पुलिस की वर्दी, पुलिस का नाम और उसके रंग का इस्तेमाल किया। यहां तक कि बड़े अफसरों को जमीन देकर टीओपी, ट्रैफिक पोस्ट खुलवा लिया और जमीन को लेकर आंदोलन करनेवालों का मुंह भी बंद करा दिया। इन बड़े अफसरों के नाम का इस्तेमाल कर भू माफिया ने औने-पौने दाम पर जमीन भी ले ली।
कांके में लॉ यूनिवर्सिटी के आगे बढ़ते ही आपको पूरा मामला आइने की तरह साफ दिखने लगेगा। सड़क पर पुलिसिया रंग में जीएस कंस्ट्रक्शन का बोर्ड यह बता देगा कि कैसे इस कंपनी की दबंगई चल रही है। कांके पुल पार करते ही रिंग रोड से सटी जमीन पर आलीशान बंगलों का निर्माण हो रहा है। क्लब से लेकर स्वीमिंग पूल तक बन रहे हैं। सौ एकड़ से ज्यादा में काम शुरू हो गया है। इसके ठीक सामने यानी उस कॉलोनी में घुसने के लिए बने गेट के ठीक बगल में आपको पुलिस पिकेट दिखेगा। वहीं से रास्ता खुलता है, पुलिस हाउसिंग कॉलोनी जाने का। चामा में बहने वाली जुमार नदी के किनारे यह कॉलोनी बनायी जा रही है। इससे चंद कदम पहले टीओपी है। इस पर लिखा है-लॉ यूनिवर्सिटी टीओपी, जबकि लॉ यूनिवर्सिटी का यहां से कुछ लेना-देना नहीं। वह वहां से दूर, विपरीत दिशा में है पुल पार करने के बाद। दूसरे रास्ते पर। जिस रास्ते में टीओपी बना है, वहां से भू-माफियाओं का खेल लगभग बीस मीटर पर हो रहा है।
जाहिर है, टीओपी को बनाया गया पुलिस हाउसिंग कॉलोनी की सुरक्षा के लिए और शासन-प्रशासन और लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए उस पर लिख दिया गया लॉ यूनिवर्सिटी टीओपी।
पुलिस का सिंबल लगा लिख दिया जीएस कंस्ट्रक्शन
तसवीर या फिर उक्त स्थान को गौर से देखेंगे, तो पायेंगे कि कैसे यह खेल किया गया है। माफियाओं ने पुलिस की पहुंच का कैसे बेजा इस्तेमाल किया। टीओपी के साथ ट्रैफिक पुलिस आउटपोस्ट तक बनवा लिया। रिंग रोड में ट्रैफिक पुलिस खड़ा मिले, यह किसी आश्चर्य से कम नहीं। उसे सिर्फ इसलिए यहां रखा गया है कि अगर भू माफिया की गाड़ी आये, बाबुओं की गाड़ी आये, तो मेन रोड के वाहनों को रोक कर उसे कॉलोनी में प्रवेश कराया जाये। इसमें रांची के ट्रैफिक एसपी रहे संजय रंजन की भूमिका संदेह के घेरे में है। आखिर किन कारणों से यह ट्रैफिक पोस्ट और जवान तैनात किये गये हैं, यह तो वही बता सकते हैं। यह आम आदमी के समझ से परे है। इस कॉलोनी के आसपास बच्चा-बच्चा उनका नाम जानता है। वह यहां क्यों चर्चित हुए हैं, यह जांच का विषय है। अभी तक शहर के अंदर ही ट्रैफिक पुलिस की व्यवस्था थी। यहां रिंग रोड पर ट्रैफिक पोस्ट बनाया गया है। यहां बड़े अधिकारियों के नाम पर किस तरह का खेल चल रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आम लोगों को लुभाने के लिए या जाल में फांसने के लिए जीएस कंस्ट्रक्शन ने पुलिस के लोगो तक का इस्तेमाल कर लिया। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस कॉलोनी में पुलिस के दिग्गजों का आशियाना बनवा कर इस तथाकथित कंपनी ने रांची में बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया है। सिर्फ चामा में ही नहीं, उसके आसपास दो और जगहों पर खेल शुरू हो गया है।
इस कारनामे में जमीन दलालों ने पुलिस अफसरों के साथ-साथ कुछ नामी लोगों को भी साथ मिला लिया है। रजिस्ट्री कार्यालय से लेकर सीओ आॅफिस तक में उसने एक रैकेट तैयार कर लिया है। यह बात समझी जा सकती है कि जिस सोसाइटी में इतने बड़े पुलिस अफसर के सपनों का महल बन रहा हो, तो वह सोसाइटी कितनी खास होगी। वैसे यह मामला हाइकोर्ट तक पहुंच गया है। हालांकि इस पर सरकार को भी संज्ञान लेना चाहिए। इसलिए कि यहां पुलिस शब्द, उसका लोगो और पुलिस पद का गलत रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। इस पूरे मामले की निष्पक्षता से जांच करायी जानी चाहिए, ताकि माफियाओं पर नकेल कसी जा सके और लालच में फंसनेवाले पुलिस के अफसरों पर भी कार्रवाई हो।
रांची की फिजां में आजकल यह बड़ा सवाल तैर रहा है कि जब माफियाओं के इशारे पर पुलिस के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति ही पद का दुरुपयोग कर कारनामा कर सकता है, तो फिर वह आम आदमी पर सवाल कैसे खड़ा कर सकता है। जीएम लैंड और बीच में आ रहे सीएनटी लैंड के सच पर से परदा तो जांच के बाद उठेगा, उठेगा भी या नहीं यह अलग बात है, लेकिन पद, रुतबा और पैरवी का यहां गलत इस्तेमाल हो रहा है। इसका बेजा इस्तेमाल कर औने-पौने दाम पर खरीद कर पुलिस हाउसिंग कॉलोनी बनायी जा रही है। इस सोसाइटी में सिर्फ एक ही जमीन पर विवाद नहीं है, बल्कि पूरी हाउसिंग कॉलोनी पर आरोप की झड़ी लगी है। जिस तरह से वहां सोसाइटी बसायी जा रहा है, उससे साफ तौर पर कहा जा सकता है कि रैयतों को बेवकूफ बना कर मुट्ठी भर रकम देकर जमीन ले ली गयी। लोगों को डराने और मामले को भटकाने के लिए ही उस पर लिख दिया गया पुलिस हाउसिंग कॉलोनी। इस बीच सवाल यह उठ रहा है कि आखिर कौन है वह जीएस कंस्ट्रक्शन, जो इतनी बड़ी गड़बड़ी कर सोसाइटी बना रहा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि जीएस कंस्ट्रक्शन का पूरा नाम गौरी शंकर कंस्ट्रक्शन है, जो अपने-आपको पुलिस का ही एक विभाग समझता है। क्योंकि साइट पर जितने भी बोर्ड जीएस कंस्ट्रक्शन के लगे हैं, वह सभी के सभी बोर्ड पुलिस प्रतीक चिह्न वाले ही बोर्ड हैं।
क्या है सरकार का आदेश
26 अगस्त 2015 को राजस्व निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग की तरफ से सचिव कमल किशोर सोन ने सभी जिलों के डीसी को एक आदेश जारी किया था। इसमें कहा गया था कि केशर हिंद भूमि, गैरमजरुआ आम भूमि, गैरमजरुआ खास भूमि, वन भूमि, जंगल आदि विभिन्न विभागों के लिए अर्जित, हस्तांतरित और अन्य श्रेणी की सरकारी भूमि का हस्तांतरण विलेख के निबंधन को निबंधन अधिनियम 1908 की धारा 22 क के अधीन लोकनीति के विरुद्ध घोषित किया जाता है। इस आदेश के जारी होने के करीब एक साल के बाद 15 जून 2016 को भी एक पत्र लिखा गया था। इसमें ऊपर के आदेश को लागू करने की बात कही गयी थी।
राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पुलिस अफसरों को यह हिदायत दी थी कि अफसर जमीन के कारोबार से अलग रहें। वे बार-बार चेताते रहे हैं। लेकिन सच यही है कि जमीन के गलत कारोबार में सबसे ज्यादा पुलिस अफसर ही लिप्त हैं। एक नहीं, दो नहीं, आधा दर्जन से अधिक आइपीएस रैंक के अधिकारी जमीन दलाली में लगे हैं। थानेदारों की तो बात ही नहीं कीजिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि झारखंड सरकार ऐसे मामलों में संज्ञान लेगी और झारखंड के चेहरे पर दाग नहीं लगने देगी।