1962 के बाद चीन ने एक बार फिर अपनी धोखेबाज फितरत को दोहराया है। इस बार उसने लद्दाख की गलवान घाटी में हमारी पीठ में छुरा भोंका है। सेना की वापसी और सीमा पर तनाव कम करने के बारे में उसके दरवाजे पर गये भारतीय सैनिकों पर उसने घात लगा कर हमला किया और हमारे 20 जांबाज शहीद हो गये। चीन को इस हिमाकत और अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक परंपराओं के उल्लंघन की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है और उसके भी 43 सैनिकों को हमारे जांबाजोंं ने मार गिराया है। दुश्मन को आगे भी कीमत चुकानी होगी, इसका आभास चीन को है। चीन की कायराना हरकत के खिलाफ पूरे भारत में गुस्सा है और जनता बदला लेने की मांग कर रही है। भारत और चीन के बीच ऐसा तनाव पिछले 45 साल में पहले कभी नहीं हुआ, लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। दरअसल, चीन की यह नापाक हरकत कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया में हुई उसकी बदनामी और भारत के बढ़ते कदम के प्रति उसकी बौखलाहट का परिणाम है। दुनिया के कूटनीतिक नक्शे पर भारत की लगातार मजबूत होती स्थिति और अमेरिका तथा यूरोप के तमाम देशों का भारत के प्रति बढ़ता झुकाव चीन को लगातार परेशानी में डाल रहा है। चीन का कम्युनिस्ट नेतृत्व किसी भी कीमत पर भारत के कदम को रोकना चाहता है। पहले उसने पाकिस्तान का समर्थन कर भारत को घेरने की कोशिश की, फिर नेपाल को मोहरा बना कर उसने भारत पर दबाव बढ़ाया, लेकिन उसकी कोई भी चाल सफल होती नहीं दिख रही। इसलिए उसने अब सीधे टकराव का रास्ता अख्तियार किया है। चीन की इस नापाक हरकत का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत पूरी तरह तैयार है और इस बार भारत का पलड़ा भारी है। भारत-चीन के बीच तनाव के कारणोंं और इसके संभावित परिणाम को टटोलती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

पिछले सवा महीने से लद्दाख की गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच चल रहे तनाव का चरम 15 जून को उस समय सामने आया, जब चीन ने कायराना हरकत करते हुए निहत्थे भारतीय सैनिकों पर घात लगा कर हमला किया। इस हमले में 20 भारतीय जांबाज शहीद हो गये, लेकिन उनमें से हरेक ने कम से दो दुश्मनों को ढेर कर दिया। चीन के 43 सैनिक मारे गये। दरअसल इस हिंसक झड़प और तनाव का कारण चीन की बौखलाहट है। सीमा पर भारत अपने इलाके में सड़क बना रहा है, जो चीन को मंजूर नहीं है।
तनाव की शुरुआत
भारत और चीन के बीच लगभग साढ़े तीन हजार किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव की वजह भी सड़कों को ही माना जाता है। 1962 में जब चीन ने भारत की पूर्वी और उत्तरी सीमाओं पर हमला किया, उस दौरान एक वजह शिनजियांग और तिब्बत के बीच सड़क का निर्माण को भी माना जाता है। यह राजमार्ग आज जी-219 के रूप में जाना जाता है। इस सड़क का लगभग 179 किलोमीटर हिस्सा अक्साई चीन से होकर गुजरता है, जो एक भारतीय क्षेत्र है।
वर्ष 2016 तक चीन ने गलवान घाटी के भिड़ंत वाले इलाके तक पक्की सड़क बना ली है। इससे पहले मई के पहले हफ्ते में भी दोनों देशों के सैनिकों का इस इलाके में आमना-सामना हो चुका है। चीन ने अपने कब्जे वाले इलाके तक सड़क बना ली है। इस क्षेत्र में मौजूदा चीनी आक्रामकता से निपटने के लिए भारतीय सेना की ओर से एक संपर्क सड़क बनाने की कोशिश की जा रही है। 2017 में जब डोकलाम विवाद हुआ था और दोनों देशों की सेनाएं 73 दिन तक भारत, भूटान और चीन के त्रिकोणीय इलाके में आमने-सामने थीं, तब भी चीन के सड़क निर्माण को लेकर भारत ने विरोध जताया था। पिछले साल भारत ने भी इस इलाके में हमेशा मौसम के अनुकूल रहने वाली सड़क बनायी है।
सड़क तो केवल बहाना है
इस बार चीन के चिढ़ने की वजह यह सड़क ही है, क्योंकि यह सड़क दरबूक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क लेह से अक्साई चीन की सीमा से सटे दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी और सीमा पोस्ट से जोड़ती है। यह सड़क चीन, भारत और पाकिस्तान के त्रिकोण पर काराकोरम पास से 20 किलोमीटर दूर है। चीन को डर है कि इस सड़क के बन जाने के बाद दरबूक से दौलत बेग ओल्डी पोस्ट से लेकर 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित आखिरी गांव श्योक तक भारतीय सेना की आवाजाही बेहद आसान हो जायेगी। लद्दाख को चीन के झिनजियांग प्रांत से अलग करने वाले काराकोरम पास और श्योक के बीच दौलत बेग ओल्डी स्थित है। इसलिए चीन ने अपनी ‘मुंह में राम बगल में छुरी’ की नीति पर चलते हुए दोहरी चाल चली। एक ओर चीन के नेता बातचीत का राग अलापते रहे, तो दूसरी ओर उसके सैनिकों ने अचानक निहत्थे भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया। जिस गलवान घाटी में तनाव के बाद भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध की नौबत आयी, उसी गलवान घाटी में इस बार भी दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई। दरअसल गलवान घाटी सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से चीन को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर एकतरफा बढ़त लेने से रोकती है। यही कारण है कि चीन अरसे से इस घाटी पर निगाह जमाये बैठा था। 1962 की जंग में गलवान घाटी में गोरखा सैनिकों की पोस्ट को चीनी सेना ने 4 महीने तक घेरे रखा था। इस दौरान 33 भारतीय शहीद हुए थे। यह घाटी चारों तरफ से बर्फीली पहाड़ियों से घिरी है। यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग और लद्दाख की सीमा के साथ लगा हुआ है।
कोरोना की किरकिरी से बौखलाया है चीन
भारत के साथ चीन ने इस विवाद को केवल दुनिया भर में कोरोना के कारण हुई अपनी किरकिरी से ध्यान हटाने के लिए बढ़ाया है। अमेरिका से लेकर यूरोप तक और एशिया से लेकर अफ्रीका और प्रशांत तक को चीन से निकले कोरोना वायरस ने तबाह कर दिया है। पूरी दुनिया में चीन की किरकिरी हो रही है। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर दुनिया के देश भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि कोरोना संकट से पहले दुनिया के कूटनीतिक नक्शे पर चीन को जो स्थान हासिल था, वह अब भारत के पक्ष में झुकता नजर आ रहा है। दुनिया भर के कूटनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका और यूरोपीय देशों के अलावा अरब देशों का झुकाव भारत के प्रति बढ़ा है। यह चीन को खटक रहा है।
चीन का मानना है कि भारत अपनी बढ़ती ताकत के घमंड में आक्रामक हो गया है। इसके विपरीत जानकारों का मत है कि भारत आक्रामक नहीं हुआ है, बल्कि मुखर हो गया है। जिन जगहों को वह पहले अपना बताते हुए दावा करता था, अब उन पर अधिकार जताने भी लगा है। चीन को यह पच नहीं रहा है। लेकिन वह भूल रहा है कि 1962 के मुकाबले आज का भारत बहुत सशक्त है। आर्थिक दृष्टिकोण से भी वह मजबूत है। जानकारों का मानना है कि चीन सामरिक दृष्टि से भारत से भले ही मजबूत दिखता है, लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है। कोरोना वायरस के चलते चीन अभी कूटनीतिक तौर पर कमजोर हो गया है।
यूरोपीय संघ और अमेरिका उस पर खुल कर आरोप लगा रहे हैं, जबकि भारत ने अभी तक चीन के लिए प्रत्यक्ष तौर पर कुछ खास नहीं कहा है। भारत के रुख का चीन का सत्ता विरोधी खेमा भी समर्थन करता है। इसलिए चीन अपने ही घर में बुरी तरह घिरा हुआ है और वह संपूर्ण युद्ध का खतरा शायद ही मोल ले। जानकार कहते हैं कि लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के बीच तनाव और गहराते दिख रहे हैं, लेकिन अनुमान है कि इससे भारत-चीन के बीच बातचीत की गाड़ी पटरी से नहीं उतरेगी। वैसे भी चीन की ओर से आये बयानों से भी साफ होता है कि वह मामला बढ़ाने को लेकर नहीं, बल्कि सुलझाने का इच्छुक है। चीन इसलिए भी बौखलाया हुआ है, क्योंकि भारत और अमेरिका हाल के वर्षों में काफी करीब आये हैं। चीन को लगता है कि उसके आंतरिक उथल-पुथल और मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों का भारत फायदा उठाना चाहता है।
चीन ने अपनी बौखलाहट का परिचय दे दिया है और अब भारत की बारी है। देश में जिस तरह का गुस्सा है, उससे तो यही लगता है कि भारत के लिए जवाबी कार्रवाई अब अपरिहार्य है, लेकिन कूटनीति का तकाजा यही है कि समस्या का हल बातचीत से हो। अपने सैनिकों की शहादत से भारत बेहद तकलीफ में है और कोई भी जवाबी कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है। इसलिए चीन को यह हिमाकत भारी पड़ सकती है, क्योंकि भारत का वार हमेशा से निर्णायक और अंतिम रहा है।

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