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    Home»Jharkhand Top News»हर बार बच जाते हैं दोषी आइपीएस
    Jharkhand Top News

    हर बार बच जाते हैं दोषी आइपीएस

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJune 6, 2020No Comments3 Mins Read
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    अजय शर्मा
    रांची। झारखंड में करे कोई और भरे कोई की कहावत सौ फीसदी चरितार्थ होती है। यही वजह है कि बड़े से बड़े मामलों में दोषी आइपीएस अधिकारियों तक जांच नहीं पहुंच पाती। उन्हें बचाने के लिए कई तरह की दलील दे दी जाती है। पुलिस महकमा जांच पर दो भाग में बंट जाता है। एक वैसे पुलिस अधिकारियों की लॉबी काम करने लगती है, जिनकी विश्वसनीयता पर हर बार सवाल खड़ा होता है। दूसरा वह गुट है, जो नियम की बात करता है और जिसकी छवि इमानदार पुलिस अधिकारी की मानी जाती है। झारखंड के डीजीपी एमवी राव की छवि भी इमानदार पुलिस अधिकारी की है। अब चर्चा यह हो रही है कि सिर्फ दारोगा और इंस्पेक्टर तक जांच सीमित न रह जाये। यहां के अधिकारियों को यह भय सताता है कि सरकार ने अगर फाइल खुलवाना शुरू किया तो अधिकांश के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। लिहाजा हर जांच को वे प्रभावित करना चाहते हैं। झारखंड में हुई कार्रवाई के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं।

    तस्करी कराता है आइपीएस, निलंबित होता है दारोगा
    पूरे झारखंड में कोयला-लोहा और बालू की तस्करी आइपीएस अधिकारी कराते हैं। और जब कोई जांच होती है या शिकायत मिलती है तो थानेदार नप जाते हैं। पिछले पांच साल में कोयला तस्करी कराने में 470 दारोगा और इंस्पेक्टर निलंबित किये गये हैं, जबकि तस्करी आइपीएस के इशारे पर होती है।

    चुटिया कांड
    बुंडू में एक अधजली युवती की लाश मिलने के बाद हत्या के जिस मामले में चुटिया के तीन छात्रों को जेल भेजा गया था, वह युवती जिंदा निकली थी। इस मामले में थानेदार तो नप गये लेकिन सुपरविजन करने वाले अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

    नक्सली का मामला निकला फर्जी
    रांची में पुलिस ने जितन मरांडी नामक एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था। उसे बड़ा नक्सली बताकर चिलखारी नरसंहार का मुख्य आरोपी बताया गया। कोर्ट से उम्रकैद की सजा भी हो गयी। बाद में असली जितन मरांडी दुमका में पकड़ा गया। उस समय वहां हेमंत टोप्पो एसपी थे। इसके बाद गलत ढंग से नक्सली बताकर जेल भेजे गये जितन मरांडी को जेल से बाहर कराया गया था।

    बकोरिया कांड
    पलामू के बकोरिया में फर्जी नक्सली मुुठभेड़ हुई। इसमें 12 निर्दोष ग्रामीण मारे गये। इस मामले में वाहवाही लूटने की होड़ मच गयी। पुलिस ने जांच में इस मुठभेड़ को असली बताया था। सीबीआइ जांच में यह मुठभेड़ फर्जी साबित हुई है।

    फर्जी सरेंडर कांड
    झारखंड में 514 आदिवासी युवकों को फर्जी तरीके से सरेंडर कराया गया था। इसकी जांच के लिए भी कई कमेटी बनी। एफआइआर हुई, लेकिन किसी भी अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

    जिसमें शामिल होते हैं आइपीएस, उन तक नहीं पहुंचती जांच
    जिन मामलों में झारखंड के आइपीएस अधिकारी शामिल होते हैं, उसकी जांच आधी अधूरी रह जाती है। पुलिस महकमा का एक बड़ा वर्ग वैसे अधिकारियों को बचाने में जुट जाता है। राज्य में कोयला तस्करी, जमीन दलाली, फर्जी केस में फंसाने और बाहर करने के खेल में ये आइपीएस शामिल रहते हैं, पर उनके खिलाफ होता कुछ नहीं।

    IPS guilty every time
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