भारत को जब हम विश्व गुरु बनाने का सपना देखते हैं। तो इसके पीछे की सबसे मजबूत कड़ी होती है गुरु शिष्य परंपरा की । यानी गुरु का शिष्य के प्रति समर्पण और शिष्य का अपने गुरु के प्रति आदर और सम्मान । सरकार ने सरकारी स्कूलों के बच्चों को स्कूल बंद होने के दरमियान ऑनलाइन पढ़ाई करने के लिए ऐप की सुविधा दी लेकिन वैसे बच्चे जिनको दो वक्त की रोटी भी बमुश्किल मय्यसर होती है उनके पास भला स्मार्ट्फ़ोन्स कहां से आता।
छात्र छात्राओं की इस तकलीफ को देवघर की एक प्रधान शिक्षिका जो कि बंधा उत्क्रमित मध्य विद्यालय की प्रधान शिक्षिका हैं , आज बच्चों को घर से निकाल कर पीपल के पेड़ के नीचे बैठा कर विश्व गुरु बनने की तालीम दे रही हैं। एक प्राइवेट स्कूल के सामने पीपल के पेड़ के नीचे सामाजिक दूरी बनाते हुए सरकारी स्कूल के यह बच्चे अपनी तस्वीर और तकदीर को गढ़ने की तैयारी कर रहे हैं ।
मनोरमा झा देवघर के बंधा उत्क्रमित मध्य विद्यालय की प्रधान शिक्षिका हैं। शिक्षिका ने जब जिला शिक्षा पदाधिकारी से बच्चों की तकलीफ के बारे में बताया कि बच्चे पढ़ाई नहीं कर खेलने में व्यस्त हैं। कोई तालाब में मछली मार रहा है, तो कोई इधर-उधर तफरी कर रहा है।
पदाधिकरी ने मनोरम से कहा कि आप यदि इन बच्चों को पढ़ा सकतीं हैं तो पढ़ाईए।
फिर क्या था मनोरमा सरकारी स्कूल के इन गरीब बच्चों को जैसे तालीम देने का एक जुनून अपने दिमाग में सवार कर लिया । घर- घर जाकर बच्चों और इनके अभिभावकों से मिली उन्हें बच्चों को पढ़ाने के लिए कहा लेकिन स्कूल और शिक्षक का नहीं होना सबसे बड़ा कारण बताया गया ।
मनोरमा सभी बच्चों को लेकर एक प्राइवेट स्कूल जो कि आज बंद है ठीक उसके सामने पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की पाठशाला लगा दी । लगातार बच्चे बढ़ते गए और आज खुले आसमान के नीचे पेड़ की छांव में बच्चों को संस्कार के साथ जिंदगी को बुलंदियों तक पहुंचाने की तालीम दी जा रही है।
ना यहां ब्लैकबोर्ड है और ना ही कोई संसाधन बच्चों को सामाजिक दूरी बनाते हुए मास्क पहनाया गया और नीचे बोरे पर बैठाकर तालीम देनी शुरू कर दी गई ।
ना यहां डिजिटल ब्लैकबोर्ड था और ना ही डिजिटल प्रिंट किए हुए शिक्षा से संबंधित चार्ट लेकिन मनोरमा अपने विवेक और जुनून से राह चलते कुत्ते को भी ज्ञान का सागर बना दिया एक कुत्ते का उदाहरण देकर चौपाया जानवर की पूरी तालीम इन बच्चों को दे डाली।
यह बातें इस बात की ओर इशारा करती थी कि मन में कुछ करने की इच्छा हो, समाज को देने का समर्पण हो, तो सुविधाएं मायने नहीं रखती।
खासकर जब एक सरकारी स्कूल की प्रधान शिक्षिका गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए जुनून के उस दौर से गुजर जाए कि खाना पीना छोड़ कर सिर्फ इन बच्चों को तालीम देने के प्रयास में लग जाए तो इनके जज्बे को सलाम करना बनता है । मनोरमा अपने एक पारा शिक्षिका के साथ रोजाना बंधा मोहल्ले में पहुंच जाती हैं । बच्चों को घर से बुला बुला कर इन्हें स्कूल का रूप दे डालती हैं । और फिर ज्ञान बांटने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
आसपास के लोग भी इस पहल की तारीफ करते हैं , और सभी अपने बच्चों को यहां भेजते हैं । संख्या भी बढ़ती जा रही है , और मनोरमा की यह पहल लोगों को प्रेरित कर रही है । कुल मिलाकर प्राइवेट स्कूल के सामने सरकारी स्कूल के ये बच्चे इस बात को साबित कर रहे हैं कि भले ही तुम डिजिटल हो लेकिन हमारी सोच तुम्हारे 4G स्पीड से कहीं ज्यादा है ।
खुले आसमान के नीचे चलनेवाले इस पाठशाला का हर एक बच्चा गुदड़ी का लाल है जो सड़क से सफर को शुरू कर शिक्षा के उस बुलंदी पर अपने मेहनत के बलबूते पहुंच सकता है जिसकी कल्पना चंद्रगुप्त जैसे सम्राट ने मुमकिन कर दिखाया था।