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    Home»राज्य»उत्तर प्रदेश»आपातकाल ने छीनी मेरी किलकारी, जेल के माहौल ने बनाया गंभीर : नीलिमा कटियार
    उत्तर प्रदेश

    आपातकाल ने छीनी मेरी किलकारी, जेल के माहौल ने बनाया गंभीर : नीलिमा कटियार

    sonu kumarBy sonu kumarJune 25, 2021No Comments5 Mins Read
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    तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात को देश पर आपातकाल लागू करने के बाद जब तमाम बड़े नेता जेल की सलाखों के पीछे डाल दिए गए। इनमें से एक कानपुर की रहने वाली व योगी सरकार में राज्य मंत्री नीलिमा कटियार भी हैं, जो महज दो वर्ष की उम्र में उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रही मां प्रेमलता कटियार के साथ जेल में रहीं। उनका कहना है कि मैं आपातकाल को कभी नहीं भूल सकती, क्योंकि आपातकाल ने मेरी किलकारियां छीनी है। यही नहीं मां के साथ जेल में रहने से कई वर्षों तक गुमशुम सी हो गई थी और आज मेरी गंभीरता उसी का परिणाम है।
    आपातकाल की घटना को 46 वर्ष पूरे हो चुके हैं और साल में एक बार जरुर इस घटना को आज के ही दिन याद किया जाता है। उस दौरान जेल में गये नेता व लोकतंत्र सेनानी जो जीवित बचे हैं अपना दर्द बयां करते हैं। जेल गये लगभग सभी नेताओं का यही कहना रहता है कि उस दौरान देश में लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं थी और पुलिस बेलगाम हो चुकी थी। जो भी नेता आपातकाल का विरोध करता तो उसे निरंकुश तरीके से मारपीट कर जेल में डाल दिया जाता था। आपातकाल के 46 वर्ष पूरे होने पर उत्तर प्रदेश सरकार की राज्य मंत्री नीलिमा कटियार ने अपना दर्द बयां किया। हालांकि उस दौरान उनकी उम्र महज दो वर्ष की थी, लेकिन उनके साथ वह घटना जुड़ी है जो शायद ही किसी नेता के पास हो।
    उन्होंने बताया कि मेरी मां प्रेमलता कटियार उन दिनों सामाजिक कार्यकर्ता के साथ जनसंघ से भी जुड़ी थीं। ऐसे में मां का आपातकाल का विरोध करना लाजिमी था। विरोध करने में पुलिस ने मां को जेल में डाल दिया तो मां ने विशेष आग्रह पर उन दिनों मुझे भी साथ में जेल ले गईं। बताया कि उन दिनों जब मेरी किलकारी से परिवारीजन, पड़ोसी और जनसंघ से जुड़े लोग खुश होते थे तो मां को एहसास होता था कि मेरा त्याग सही दिशा पर जा रहा है, लेकिन आपातकाल ने मेरी किलकारी भी छीन ली। जेल में मां के साथ रहने पर ऐसा माहौल बन गया कि कई वर्षों तक मेरी किलकारी तो दूर हंसी भी गायब हो गई। मेरी गंभीरता को देखते हुए मां ने उसी समय फैसला लिया कि राजनीति में न तो बेटों को लाऊंगी और न ही बड़ी बेटी को।
     
    भाजपा में बेकार नहीं जाता संघर्ष
    कल्याणपुर से विधायक व राज्य मंत्री नीलिमा कटियार ने बताया कि देश की एकमात्र पार्टी भाजपा है जहां पर किसी का संघर्ष बेकार नहीं जाता। आपातकाल में मां महज दो वर्ष की उम्र में मुझे लेकर जेल गई और बराबर कांग्रेस का विरोध करती रहीं। इसी का परिणाम है कि जनता का उन्हे जबरदस्त स्नेह मिला और पार्टी ने भी उनके संघर्ष को समझा। ऐसे में मां 1991 से लगातार पांच बार कल्याणपुर से विधायक और प्रदेश सरकार में तीन बार कैबिनेट मंत्री रहीं। 2012 के चुनाव में महज कुछ वोटों से मां को हार मिली तो पार्टी ने मेरी छीनी हुई किलकारियों को याद कर 2017 के चुनाव में टिकट दे दिया। जनता के आशीर्वाद से विधायक बनी और पार्टी ने राज्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंप दी।
     
    लोकतंत्र सेनानियों की जुबानी
    आरएसएस के मंडल कार्यवाहक रहे बरीपाल निवासी कैलाश नारायण पांडेय ने बताया कि जब आपात काल लगा तो संघ का काम यह था कि सरकार के काले कामों को सबके सामने पहुंचाया जाए। इसके चलते पर्चे छापे जाते थे। फिर उन्हेंं गुपचुप तरीके से बांटा जाता था। नवंबर 1975 में वह कुष्मांडा देवी में थे। इसी दौरान उनके पीछे लगी एलआईयू ने उन्हेंं गिरफ्तार कर लिया। जेल जाने से पहले वह जितनी देर पुलिस के पास रहे, उनको बहुत पीटा गया। उन्होंने साढ़े चार महीने जेल में बिताए।
    जगदीशपुर निवासी भाजपा नेता रामदेव शुक्ला ने बताया कि उनके गांव के बगल के नगेलिनपुर गांव में मेला लगता है। आरएसएस की ओर से जिम्मेदारी दी गई कि वहां सबको सरकार विरोधी पर्चे बांटना है। पर्चे बांटने के दौरान पुलिस भी पहुंच गई, लेकिन पुलिस को चकमा देकर भाग निकले और डीएवी कालेज में सरकार के खिलाफ भाषण दिया। पुलिस आई तो फिर चकमा देकर निकल गए। फिर से पर्चे बंटे और एलान हुआ कि 26 नंवबर को डीएवी में फिर भाषण होगा। भाषण शुरू हुआ और पुलिस ने उन्हेंं वहीं से पकड़ लिया। ऐसा ही दर्द भीतरगांव निवासी किशन गोपाल तिवारी, जामू निवासी नरेश सिंह परिहार, भीतरगांव के प्रेमनारायण त्रिपाठी, सवाईपुर के राजकुमार सचान और घाटमपुर कस्बे के मदन सिंह परमार ने बयां किया।
     
    भाजपा ने पेंशन किया 20 हजार
    आपातकाल में जेल गये रामदेव शुक्ला ने बताया कि 2006 में जब प्रदेश में मुलायम सिंह की सपा सरकार आई तो उन्होंने आपात काल में जेल जाने वाले राजनीतिक बंदियों को लोकतंत्र सेनानी का दर्जा दिया। तीन हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन की शुरुआत की। बसपा की सरकार आई तो इस पेंशन पर रोक लगा दी। इसके बाद जब फिर से अखिलेश सरकार बनी तो पेंशन फिर से चालू हुई और उसे तीन हजार से बढ़ाकर छह हजार रुपये कर दिया गया। सपा सरकार में अगले कुछ वर्षों पेंशन बढ़ाकर पहले 10 फिर 15 हजार रुपये कर दी गई। 2017 में प्रदेश में योगी सरकार बनते ही लोकतंत्र सेनानियों के दर्द को भलीभांति समझा और पेंशन को 20 हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया गया।
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