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    Home»corona effect»कोरोना संकट और भारत में कर्ज का फैलता जाल
    corona effect

    कोरोना संकट और भारत में कर्ज का फैलता जाल

    sonu kumarBy sonu kumarJune 30, 2021No Comments3 Mins Read
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    बीते कई सालों से आर्थिक मोर्चे पर अच्छी खबर का इतंजार है। कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया। हर सेक्टर में मंदी का दौर देखने को मिल रहा है। बेरोजगारी बढ़ी है और इसका असर लोगों की जेबों पर भी पड़ा है। आर्थिक मंदी के कारण जहां बाजार ठप है, लोगों की नौकरियां जा रही हैं, वही कर्ज का बोझ बढ़ रहा है। देश की आबादी पर कर्ज का अध्ययन करनेवाली क्रेडिट इन्फॉरमेशन कंपनी (सीआइसी) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत का हर छठा व्यक्ति कर्जदार हो चुका है। यानी भारत की कामकाजी आबादी के आधे हिस्से, जो करीब 20 करोड़ होता है, ने पिछले 15 महीने में कुछ न कुछ कर्ज लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक इन 20 करोड़ लोगों ने अपना खर्च चलाने के लिए पिछले 15 महीने में कम-से कम एक बार कर्ज लिया है या फिर उनके पास क्रेडिट कार्ड है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी, 2021 तक में देश की कुल कामकाजी आबादी 40.07 करोड़ थी। इनमें से 50 फीसदी, लगभग 20 करोड़ लोगों ने खुदरा कर्ज बाजार से किसी-न-किसी रूप में लोन लिया है। ट्रांस यूनियन सिबिल के मुताबिक, कर्जदाता संस्थान नये ग्राहकों तक अपनी पहुंच बढ़ा रहे हैं, क्योंकि पुराने ग्राहकों में आधे से ज्यादा कर्जदार उनके मौजूदा ग्राहक हैं। गौरतलब है कि पिछले एक दशक में बैंकों ने खुदरा ऋण को प्राथमिकता दी, लेकिन महामारी के बाद इस खंड में वृद्धि को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। सीआइसी के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में 18 से 33 वर्ष की आयु के 40 करोड़ लोगों के बीच कर्ज बाजार की वृद्धि की संभावनाएं हैं और इस वर्ग में कर्ज का प्रसार सिर्फ आठ प्रतिशत है।
    रिपोर्ट के मुताबिक महिला कर्जदारों की संख्या आॅटो ऋण में केवल 15 प्रतिशत, होम लोन में 31 प्रतिशत, पर्सनल लोन में 22 प्रतिशत और कंज्यूमर लोन में 25 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उधारकर्ता वित्तीय तनाव के समय में पहली क्रेडिट सुविधा पर भुगतान को प्राथमिकता देते हैं। सीआइसी के अनुसार, सभी क्षेत्रों में उभरते उपभोक्ताओं की पहचान करना और उनके लिए वित्तीय अवसरों तक पहुंच को सक्षम करना हमारे देश में आर्थिक पुनरुत्थान और स्थायी वित्तीय समावेशन के लिए महत्वपूर्ण है।
    इधर रिजर्व बैंक ने बताया है कि मार्च, 2021 में ही पर्सनल लोन 13.5 फीसदी बढ़ गया, जबकि औद्योगिक कर्ज की मांग कम रही। मार्च तिमाही में निजी बैंकों ने सबसे ज्यादा कर्ज बांटे और कुल कर्ज में उनकी हिस्सेदारी 36.5 फीसदी पहुंच गयी, जो एक साल पहले 35.4 फीसदी और पांच साल पहले तक 24.8 फीसदी थी। घरेलू कर्ज में सालाना आधार पर 10.9 फीसदी वृद्धि दर्ज की गयी है।

    Corona crisis and the spreading web of debt in India
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    sonu kumar

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