यहां तहजीब भी बिकती है यहां फरमान भी बिकते हैं।
जरा तुम दाम तो बोलो यहां नेताओं और अधिकरियों के ईमान भी बिकते हैं।।
भ्रष्टाचार के आगोश में पनप रहा है झारखंड, भ्रष्टाचारियों के हाथों बिक रहा है झारखंड, जल-जंगल-जमीन की तर्ज पर बना यह झारखंड, आज अपनी ही जमीन तलाश रहा है। सोना झारखंड की कल्पना की जमीन तलाशती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह की खास रिपोर्ट
आज हम आपके समक्ष एक ऐसी कहानी पेश करने जा रहे हैं, जो झारखंड के हालात को बयां कर रही है। बता दें कि इस कहानी के सभी किरदारों के नाम काल्पनिक हैं, लेकिन यह कहानी सच्ची है। इस कहानी का मुख्य किरदार बिरसा (बदला हुआ नाम) है, जो एक किसान है और उसके दो बेटे हैं। बड़ा बेटा संदीप बेरोजगार है और वह रोज नौकरी की तलाश में शहर की तरफ जाता है और छोटा बेटा अमन एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई करता है। इनकी मां सबरी गृहिणी हैं, जो घर की देखभाल करती हैं।
समय सुबह 5 बजे। घर के बाहर गाय-बकरियों की आवाज और साथ में कोयल की कूं-कूं से बिरसा की नींद खुलती है। बिस्तर से उठते ही बिरसा हाथ में टांगी लेकर जंगल की ओर लकड़ियां लेने निकल जाता है। करीब आंधे घंटे बाद लकड़ियां लेकर बिरसा घर वापस आता है। उसका बेटा संदीप घर के बरामदे में अपनी साइकिल को साफ कर रहा है और उसका छोटा भाई अमन मुंह धो रहा है। संदीप की मां चूल्हे की साफ-सफाई कर रही है। तभी हॉकर अखबार लेकर आता है। आवाज सुन कर सभी उसकी तरफ देखने लगते हैं। इस बीच संदीप झट से उसके पास जाता है और हॉकर से कुछ पूछता है। फिर चेहरे पर उदासी लेकर वापस अपनी साइकिल उठाकर शहर की तरफ निकल जाता है। उसे उदास जाता देख उसकी मां की आंखों में आंसू आ जाते हैं। यह देख संदीप का पिता बिरसा सबरी के पास आता है और कहता है कि चिंता मत कर, सब ठीक हो जायेगा। तभी मां कहती है, आज फिर मेरा बेटा बिना खाये चला गया। (यहां एक मां का दिल देखिए, पिता कहते हैं कि सब ठीक हो जायेगा, मतलब बेटे को नौकरी मिल जायेगी, लेकिन मां तो मां होती, उसे तो बस अपने बेटे को खाना खाते देखना था)।
थोड़ी देर बाद मां बिरसा और अमन के लिए खाना परोसती है और खाने के बाद अमन अपने स्कूल के लिए निकल जाता है और बिरसा खेतों की तरफ। शाम के पांच बजे अमन स्कूल से वापस आता है और हाथ-मुंह धोकर आंगन में रखी चौकी पर बैठ जाता है। कुछ ही देर बाद पिता बिरसा भी खेत से वापस आते हैं और अमन के साथ उसी चौकी पर बैठ जाते हैं और अमन से पूछते हैं कि स्कूल में पढ़ाई हुई? अमन कहता है, शिक्षक नहीं आये थे। पिता बोलते हैं, मास्टर कब आयेंगे, महीना होने को आया, लेकिन स्कूल में कोई मास्टर आज तक नहीं आया। पढ़ाई कैसे होगी। आखिर इन सरकारी स्कूलों की स्थिति कब बदलेगी। ऐसे में गरीब का बेटा कैसे पढ़ेगा।
तभी मां भी आंगन में आती है और दोनों से कहती है कि अब आप दोनों चुप हो जाइय, संदीप आ रहा है। उसके सामने यह सब बात करके उसे और दुखी ना करें। पहले वह कुछ खा ले, फिर उससे कुछ पूछियेगा। बिरसा हंसते हुए कहता है, हां संदीप की मां जैसा आप कहो। यह कह कर सभी हंसने लगते हैं। संदीप, जो हर रोज शहर में काम की तलाश में जाता है, उसे आज भी निराशा ही हाथ लगी थी। सरकारी दफ्तर से लेकर प्राइवेट दफ्तरों का चक्कर लगा-लगा कर थक-हार वह आ रहा था। आते वक्त संदीप ने देखा कि सभी खुश हैं और वह यह देख कर सोचने लगा कि मैं आज भी कोई आश्वासन का नया बहाना सुना दूंगा और बोल दूंगा की नौकरी जल्द मिल जायेगी। इससे ये लोग दुखी तो नहीं होंगे। संदीप के आते ही मां अंदर से खाने की थाली लाती है और उसे दे देती है। संदीप खाने लगता है और पिता से कहता है कि पिताजी लगता है नौकरी जल्द मिल जायेगी। नेताजी ने आज एक रैली में नौकरी और रोजगार देने की बात कही है, लगता है जल्द ही कुछ अच्छा होगा। यह सुन कर पिताजी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वह कहते हैं, सब अच्छा होगा बेटा, तुम खाना खाओ। यहां पिता भी समझ गये थे कि संदीप उन सभी को खुश करने के लिए ऐसा बोल रहा है।
मां संदीप को खाना खाते देख खुश हो जाती है और फिर अपने और बाकियों के लिए खाना परोसती है। खाने के बाद सभी सोने चले जाते हैं। फिर सुबह होती है और रोज की तरह सभी अपना-अपना काम कर रहे होते हैं और फिर वह हॉकर आता है। उसे देख फिर से संदीप उसके पास जाता है और दुखी मन से वापस लौट आता है। पिता कहते हैं क्या हुआ बेटा। संदीप टूटे मन से कहता है कि पिताजी आज भी सरकार की तरफ से बहाली की कोई सूचना नहीं है। सिर्फ और सिर्फ आश्वासन है। और तो और अखबारों में सिर्फ भ्रष्टाचार की खबरें हैं। बालू और कोयले की लूट की खबरें हैं। पिताजी कहते हैं क्या होगा झारखंड का, सभी अपनी जेब भरने में लगे हैं। तुम चिंता मत करो बेटा, सब ठीक हो जायेगा। संदीप फिर बिना खाये अपनी साइकिल उठा कर शहर की तरफ चला जाता है। बिरसा खेत की तरफ, अमन स्कूल और मां आंखों में फिर वही आंसू लिये अंदर चली जाती है।
शाम होते ही अमन रोज की तरह स्कूल से आकर आंगन में बैठा होता है, तभी बिरसा भी खेत से वापस घर आता है। मां रसोई में संदीप के लिए खाने की थाली रख कर चौखट पर खड़ी होकर उसके आने का इंजतार कर रही है। पिता आंगन में बैठ कर अमन से फिर वही सवाल करते हैं और अमन कहता है कि आज भी कोई शिक्षक स्कूल नहीं आया। पिता कहते हैं स्कूल तो खुल गये, लेकिन शिक्षकों की बहाली ना होने के चलते स्कूलों की पढ़ाई बंद है। अगर बहाली शुरू हो जाये, तो युवाओं को नौकरी मिल जायेगी और उन्हें इधर-उधर भटकना भी नहीं पड़ेगा।
पिता सबरी से कहते हैं कि सुनो जरा, पानी लाना। सबरी पानी लाती है और अपने पति बिरसा से कहती है कि अभी तक संदीप नहीं आया। पिता भी घड़ी की तरफ देखते हैं और कहते हैं, उसे तो अब तक आ जाना चाहिए था, कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे नौकरी मिल गयी हो और वह मिठाई ला रहा हो, इसलिए लेट हो रहा है। मां यह सुन कर मुस्कुराने लगती और बिरसा से कहती है कि आपके मुंह में घी-शक्कर। काश यह सच हो जाये। संदीप का इंतजार करते-करते कुछ घंटे बीत जाते हैं और अंधेरा गहराने लगता है। तभी सबरी बिरसा से कहती है, सुनिए जी, जरा पता तो लगाइए बेटा कहां है, कहीं पास वाले गांव में अपने दोस्तों के साथ तो नहीं है। पिता यह सुन कर बाहर जाते हैं। गांव से निकल कर जैसे ही वह मुख्य सड़क पर आते हैं, वहां उन्हें गांववालों की काफी भीड़ दिखाई देती है। यह देख उनके मन में किसी अनहोनी के होने का डर समा जाता है और वह दौड़ते-दौड़ते भीड़ की तरफ बढ़ने लगते हैं।
गांववाले बिरसा को देख कर उसे पकड़ लेते हैं और भीड़ के अंदर जाने से मना करते हैं। बिरसा को अपनी गिली आंखों से कुछ धुंधला सा दिखाई देता है। उसे संदीप की साइकिल दिखाई पड़ती और सड़क पर बहता हुआ खून, जोे धीरे-धीरे उसके पैरों के पास आता दिखाई पड़ता है। यह देख बिरसा अपने पांव को झट से हटा लेता है और वहीं सड़क पर गिर कर रोने लगता है। रोते-रोते उसके कानों में गांव वालों की आवाज धीमी स्वर में आती है, जो कह रही थी कि बालू लदे ट्रक ने संदीप को कुचल दिया। तभी भीड़ में खड़ा एक व्यक्ति कहता है, यह सब अधिकारियों और दलालों के चलते हुआ है। बालू का उठाव बंद है फिर भी यह सब चोरी करके बालू ले जा रहे हैं। अगर सरकार सख्त होती तो आज संदीप मरा नहीं होता। इसकी मौत के जिम्मेदार अधिकारी और दलाल हैं। यह कह कर गांववालों ने संदीप की लाश को सड़क के बीच में रख कर सड़क जाम कर दिया। थोड़ी ही देर में वहां गाड़ियों की लंबी कतार लग गयी और जाम में फंसे लोग हाय-तौबा मचाने लगे। उसी कतार में फंसे कई ऐसे थे, जो एसी गाड़ी में बैठ कर गांव वालों को गाली दे रहे थे। तो कोई तथाकथित नेता गाड़ी में बैठ कर थाने में फोन लगा रहा था और कह रहा था कि गांव वालों ने सड़क जाम कर रखा है, इन्हें मारकर हटाओ।
उधर बिरसा सड़क पर बैठा बिलख रहा था, तभी उसने सबरी और अपने छोटे बेटे अमन को आता हुआ देखा। वह झट से उठ खड़ा हुआ और सबरी को संदीप के पास जाने से रोकने लगा। सबरी यह सब देख कर बेहोश हो गयी। तभी कुछ पुलिसवाले हाथों में डंडा लिये गांव वालों की तरफ बढ़ने लगे और उन्हें रास्ता खाली करने को कहने लगे। कुछ ही देर के बाद सफेद कुर्ताें में माननीयों का आना चालू हो गया। कोई गांववालों के साथ बैठ कर अपनी राजनीति चमकाने के लिए संदीप के परिजनों को मुआवजा दिलाने की मांग करने लगा, तो कोई मुआवजा देने की घोषणा करने लगा। चारों तरफ कैमरों की फ्लैश लाइट चमकने लगी। बिरसा यह सब सुन कर मन ही मन सोचने लगा कि बेटा तो चला गया, उसकी जान की कीमत भी लगा दी गयी, लेकिन दोषियों का क्या होगा, इस पर किसी ने कुछ नहीं कहा। वहीं थोड़ी ही देर बाद बड़े नेताजी आये और मुआवजा देने की बात मान ली और बिरसा, सबरी और अमन के साथ फोटो खिंचवा कर बड़ी सी गाड़ी में बैठ कर चले गये। आश्वासन मिलते ही गांववाले तालियां बजाने लगे और नेताओं के कुछ चमचे नेताजी के नाम का जयकारा गांववालों से लगावा कर आगे बढ़ गये।
फिर से उस अंधेरी रात के बाद सुबह आयी, लेकिन यह सुबह बिरसा, सबरी और अमन के लिए अलग थी। रोज की तरह अखबार वाला भी आया, लेकिन आज किसी की भी निगाह उसकी तरफ नहीं थी। बिरसा जंगलों में लकड़ी लेने भी नहीं गया और अमन आज स्कूल भी नहीं गया। आज भी मां की आंखों में आंसू हैं, लेकिन आज इन आंखों में इंतजार की वह उम्मीद नहीं थी कि उसका बेटा शाम को आयेगा और वह उसे अपने हाथों से खाना देगी। बिरसा के मन में वही सवाल बार-बार उमड़ रहा था कि बेटा तो मर गया, उसकी जान की कीमत भी लग गयी, लेकिन दोषियों का क्या होगा? सच कहा जाये, तो झारखंड में बालू तस्करों, कोयला तस्करों के खिलाफ किसी भी नेता या सरकार में यह दम नहीं है कि वह उन्हें सबक सिखा सके। उन्हें सलाखों के पीछे धकेल सके। वे हर व्यवस्था में पहले से ज्यादा मजबूती के साथ खड़े हो जाते हैं। दलाल प्रेम प्रकाश, सीए सुमन कुमार, दलाल विशाल चौधरी, अनिल झा सरीखे लोग पिछली सरकार में भी सत्ता के करीब थे और इस सरकार में भी उससे ज्यादा करीब पहुंच गये। आइएएस पूजा सिंघल मधु कोड़ा के शासन में भी प्रभावशाली थीं, रघुवर राज में भी और अब हेमंत सोरेन के शासन में भी उनका वही रुतबा था। भला हो इडी का, जिसने उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचाया है।
बिरसा को आज भी अपने सवालों के जवाब का इंतजार है, लेकिन लगता है समय के साथ-साथ बिरसा की बूढ़ी आंखें बंद हो जायेंगी और बिरसा के सवाल फिर से किसी और बिरसा के सवाल बन कर अपने जवाब का इंतजार करेंगे।
यह सिर्फ एक बिरसा की कहानी नहीं है, झारखंड में ना जाने ऐसे कितने बिरसा हैं, जिनकी जिंदगी भ्रष्टाचार नामक दानव ने निगल ली है। आये दिन अखबारों में हमें भ्रष्टाचार की नयी-नयी गाथाएं सुनने को मिलती हैं। ऐसी खबरों को पढ़ कर हमें चैन भी मिलता है और खुशी भी और अगले दिन हमें दूसरी किस्त का भी इंतजार रहता है। ऐसी खबरें बड़ी मजेदार होती हैं। किसी सुमन के यहां करोड़ों रुपये बिस्तर में मिलते हैं, तो कहीं पल्स की तरह करोड़ों की इमारत किसी गरीब की जमीन छीन कर बनी हुई होती है। यह सब देख-सुन कर हमें भ्रष्टाचारियों को गालियां देने का भी मौका मिल जाता है और शाम की चाय के साथ गपशप मारने का विषय भी मिल जाता है। ऐसी खबरों को पढ़ने के बाद क्या कभी बिरसा जैसे गरीब और असहाय परिवार का ख्याल मन में आता है, जिसकी पूरी जिंदगी इन भ्रष्टाचारियों के कारण बर्बाद हो गयी। शायद नहीं क्योंकि ऐसे हजारों बिरसा की आवाज गुमनामी या फिर मुआवजों के बोझ तले दब कर खो जाती है। भ्रष्टाचार पकड़ में आये तो उसके लिए निर्धारित सजा का प्रवाधान है, लेकिन भ्रष्टाचार के क्रम में गरीबों पर जो जुल्म ढाये जाते हैं, उसका हिसाब नहीं लिया जाता है। जिस दिन इन गरीबों का ख्याल सबके मन में आ जायेगा, उसी दिन ऐसे भ्रष्टाचारियों की जात खत्म हो जायेगी।
जरा सोचिए, खनिज संपदाओं से भरपूर झारखंड राज्य की जनता बदहाल क्यों है? यहां लोहा, मैंगनीज, अभ्रक, सोना, यूरेनियम आदि के अकूत भंडार हैं, लेकिन आम झारखंडी गरीब क्यों है? ये ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब शायद सत्ता पाने के लिए अपनी ऊर्जा लगाने वाले नेताओं के पास नहीं होंगे, क्योंकि वे भी मैली-कुचैली व्यवस्था के ही कहीं न कहीं अंग हैं। संभवत: यह उनकी विवशता है। आज चुनाव लड़ना एक व्यवसाय की तरह हो गया है। इसमें लोग निवेश करते हैं। दो करोड़, चार करोड़, दस करोड़ और पांच साल में निवेश का कई गुना वापस भी निकाल लेते हैं। ऐसे में जनता का क्या होगा जरा सोचिए।
अगर झारखंड में यह सब ऐसे ही चलता रहा, तो शायद बिरसा के उन सवालों का जवाब हम कभी नहीं ढंूढ़ पायेंगे। जाहिर है कि भविष्य में यह सवाल सिर्फ बिरसा जैसे गरीबों का नहीं बल्कि झारखंड में रह रहे हर उस व्यक्ति का होगा, जिसने मन में झारखंड को लेकर तरह-तरह के सपने पल रहे हैं। जो आज भी यह उम्मीद किये बैठा है कि कोई न कोई खेवनहार आयेगा और झारखंड को शिखर पर पहुंचायेगा। झारखंड को उस मंजिल तक पहुंचायेगा, जिसकी खातिर इसका जन्म हुआ। नया राज्य बना।