देश के चर्चित समाज वैज्ञानिक एस परशुरामन ने अपने एक लेख में कहा था कि किसी भी संकल्प को पूरा करने के लिए संघर्ष का पथ जितना जरूरी होता है, उससे कहीं जरूरी अपनी क्षमताओं पर जुनूनी भरोसे का होता है। जिस व्यक्ति या समाज ने अपनी क्षमताओं पर जुनून की हद तक भरोसा कर लिया, उसके लिए संघर्ष पथ की परेशानियों के कांटे अचानक बड़े जरूर दिखाई देते हैं, लेकिन वे पैरों में चुभने की बजाय उन्हें राहत देने लगते हैं। परशुरामन का यह लेख मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज (टिस्स) के उस रूपांतरण का कारक बना, जिसका इंतजार भारत का मध्य और निम्न मध्य वर्ग अरसे से कर रहा था। परशुरामन जब इस संस्थान में आये, तो उन्होंने इसे देश के आभिजात्य वर्ग के बदले गरीब और मध्य वर्ग के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिए खोल दिया।
आप सोच रहे होंगे कि आपको परशुरामन के लेख और टिस्स के बारे में क्यों बता रहा हूं। इन दोनों कहानियों और आपके अखबार ‘आजाद सिपाही’ में बहुत सारी समानताएं हैं। अखबार की संकल्प यात्रा को आठ साल हो चुके हैं। लेकिन जब हम पीछे मुड़ कर देखते हैं, तो लगता है कि यह तो कल की ही बात है, जब हमने सफर शुरू किया था। इन आठ सालों में आजाद सिपाही ने जो सफर तय किया है, वह जुनून की हद तक आपके भरोसे के कारण ही संभव हो सका है। इसलिए आजाद सिपाही एक अखबार नहीं, संकल्प, संघर्ष और जुनून का पर्याय बन गया है। इस गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा और बड़ी पूंजी के लगभग एकतरफा खेल में कम संसाधन वाले हिंदी अखबार के लिए इतना सफर पूरा कर लेना आसान नहीं कहा जा सकता है। यहीं परशुरामन का कथन याद आता है कि इस सफर की असली ताकत तो आपका भरोसा है और आजाद सिपाही जुनून की हद तक उस भरोसे पर भरोसा करता है।
मीडिया और खास कर प्रिंट मीडिया के सामने सबसे कठिन चुनौती के इस दौर में यदि आजाद सिपाही सुबह-सुबह आपके पास पहुंच रहा है, तो इसके पीछे न पूंजी का खेल है और न लुभावने नारे। इसके पीछे बस आपका भरोसा है। वैसे आठ साल का समय बहुत लंबा तो नहीं होता, लेकिन इतिहास का एक अध्याय बनाने और लिखने लायक तो होता ही है। आज जब इस आठ साल के सफरनामे पर नजर दौड़ाते हैं, तो पाते हैं कि हमसे जो एक बार जुड़ा, वह खुद को आजाद सिपाही से जुड़ाव महसूस करता है। वह शख्स भले ही भौतिक रूप से हमारे साथ नहीं है, लेकिन आत्मीय और भावनात्मक रूप से वह आजाद सिपाही को अपना मानता है।
आजाद सिपाही ने आठ साल पहले जब अपने सफर का संकल्प लिया था, तो उसे पता नहींं था कि वह इस कांटों भरे रास्ते पर आगे कैसे बढ़ेगा, क्योंकि उसके पास सिवाय आपके भरोसे के कुछ भी नहीं था। हमारी सबसे बड़ी पूंजी आपका भरोसा और हमारे छोटे से परिवार का आत्मविश्वास था। यह आत्मविश्वास शुरू में डगमगाया भी, लेकिन हमने हार नहीं मानी। आपका भरोसा और प्यार हमारा संबल बना। आज हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि हम केवल आपके भरोसे ही इतनी दूर तक आ सके हैं।
किसी भी संस्थान की शुरूआत बेहद रोमांचकारी तरीके से होती है। आजाद सिपाही की शुरूआत की कहानी भी रोमांचकारी है, लेकिन यह धमाका नहीं, बल्कि रोशनी की एक राहत भरी किरण थी, जिसके पास न भारी-भरकम पूंजी थी और न ही संसाधन। न किसी पूंजीपति का साथ था और न ही किसी राजनीतिक दल का समर्थन। आजाद सिपाही एक सपना था, जिसे पूरे परिवार ने मिल कर देखा, गुना और फिर उसे पूरा करने में जुट गया। आजाद सिपाही के नन्हे से कदम से बाजार को न कोई फर्क पड़ना था और न पड़ा, लेकिन यह मानवीय संवेदनाओं और अखबार के साथ पाठकों के रिश्ते की नयी शुरूआत थी। इस भरोसेमंद शुरूआत से हमें जरूर संबल मिला। हमारा सपना थोड़ा और रंगीन हुआ, हमारा संकल्प थोड़ा और मजबूत हुआ। कहा जाता है कि अगर किसी को तैरना सिखाना हो, तो उसे गहरे समंदर में फेंक दो। हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। बिना किसी समारोह और कार्यक्रम के हम खबरों के महासागर में कूद पड़े। हमारा लाइफ जैकेट आपका भरोसा था। शुरूआत धमाकेदार तो नहीं हुई, लेकिन हमारे कदम सधे हुए जरूर थे। हमारे सामने केवल आप थे और हमें आपका ही ध्यान था।
सफर की शुरूआत हुई, तो रास्ते खुद ब खुद निकलने लगे। अंधेरी सुरंग में प्रवेश करने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि शुरूआत में ही अंधेरे से लड़ने की ताकत मिल जाती है। हमें भी यह ताकत मिली। यह ताकत कहीं और से नहीं, आपसे मिली, आपके भरोसे से मिली। हम एक-एक कदम धरते गये। आपने डांटा-फटकारा, दुलारा और पुचकारा भी। यह हमारे लिए पूंजी थी। हमें चिंता थी आपकी खबरों की भूख शांत करने की, आपको सूचनाओं से समृद्ध करने की। हम कभी इस भ्रम में नहीं रहे कि हम बहुत ताकतवर हैं और न कभी आपको इस भ्रम में रखा कि आजाद सिपाही के पास जादू की छड़ी है, जिसे घुमाते ही आपकी सारी समस्याएं दूर हो जायेंगी। हम तो आपका आइना बनने चले थे और हमारा काम आपको सूचनाओं-खबरों से समृद्ध करना था। संसाधनों की कमी रास्ते में बाधा बनी, तो आप हमारे रिपोर्टर बन गये। किसी न किसी माध्यम से आप हर जरूरी सूचना हम तक पहुंचाते रहे। इसका सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि हमारे और आपके बीच का रिश्ता केवल अखबार और पाठक का रिश्ता नहीं रहा, बल्कि यह लगातार मजबूत होता गया और आज हम कह सकते हैं कि यह रिश्ता भरोसे में बदल चुका है। आजाद सिपाही को भरोसा है कि कोई भी सूचना उस तक जरूर पहुंचेगी और आपको यह भरोसा है कि सूचना दी गयी है, तो वह आजाद सिपाही में जरूर छपेगी।
सफर जारी रहा, तो स्वाभाविक था कि कुनबा भी बड़ा होगा। हम भी बड़े हो रहे थे। लेकिन अपने संकल्प, सपने और यथार्थ की पथरीली जमीन से हमने कभी अपना नाता नहीं तोड़ा। हमने तो बड़े होने का सपना देखा था और उस सपने को आपने आकार दिया था, सो आपके भरोसे हम लगातार डटे रहे। प्रिंट के साथ डिजिटल दुनिया में भी आजाद सिपाही ने अपनी मौजूदगी कायम की, यू-ट्यूब, फेसबुक और ट्विटर के जरिये हम झारखंड के साथ-साथ देश-विदेश में अपनी धाक जमाने में लग गये। आपका भरोसा और मजबूत होता गया और हमारा परिवार भी बढ़ता गया। झारखंड के शहरों से निकल कर हम प्रखंड मुख्यालयों तक पहुंचने लगे। आपके विश्वास और भरोसे की ताकत के साथ हमारा कारवां लगातार आगे बढ़ रहा था। साथ ही हमारी जिम्मेदारी, जो हमने पहले दिन ही अपने ऊपर ली थी, भी बड़ी हो रही थी। हमारी खबरों का असर होने लगा और हमारा उत्साह बढ़ने लगा। आज हम झारखंड की सीमाओं से निकल कर ओड़िशा और पश्चिम बंगाल तक पहुंच रहे हैं। यह कामयाबी आपके भरोसे की है।
इस बीच वह भयानक दौर भी आया, जिसने न केवल मीडिया के सामने, बल्कि पूरे समाज के सामने अंधेरा कायम कर दिया। महामारी के दौर में मीडिया समेत दूसरे संस्थान सिमटने लगे, उनका दायरा छोटा होने लगा। लेकिन आजाद सिपाही के पास आपके भरोसे की पूंजी थी, जिसने हमें हिम्मत दी, आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। हमने संकट के इस दौर में भी अपनी हिम्मत बनाये रखी, तो इसके पीछे भी आप ही थे। दूसरे मीडिया संस्थानों में जहां पैर समेटने का दौर चला, हम अपने विस्तार में लगे रहे। हम आज झारखंड के हर प्रखंड मुख्यालय में मौजूद तो हैं ही, अखबार की चर्चा दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा में भी हो रही है।
आज जब हम अब सफरनामे पर नजर दौड़ा रहे हैं, तो हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हमने झारखंड की अखबारी दुनिया में एक इतिहास रचा है। आजाद सिपाही के लाखों पाठकों के साथ-साथ हम अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिये साढ़े तीन करोड़ से अधिक लोगों तक पहुंच रहे हैं। ढाई लाख से अधिक सब्सक्राइबरों के जरिये आज हम झारखंड से सबसे बड़े न्यूज पोर्टल बन चुके हैं। हमारी व्यूअरशिप 20 करोड़ से अधिक मिनट की हो चुकी है। इतना सब कुछ होते हुए आज भी हमारा दामन पूरी तरह बेदाग है, क्योंकि आजाद सिपाही ने कभी सफलता का शॉर्टकट नहीं अपनाया। हमने कभी किसी का भयादोहन नहीं किया और आज तक कभी आजाद सिपाही पर यह आरोप नहीं लगा कि यह अखबार ब्लैकमेल करता है। मीडिया की दुनिया के स्याह पक्ष को हमने पहले दिन से ही वर्जनाओं की सूची में रखा था और आज भी इस पर कायम हैं।
हमें यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि आजाद सिपाही का अब तक का सफर बहुत आसान नहीं रहा। रास्ते कठिन थे, चुनौतियां बड़ी थीं। आज भी हम उस संकल्प पथ पर चल रहे हैं। हम जानते हैं कि हमारे रास्ते कठिन हैं, चुनौतियां भी हैं। लेकिन हमें भरोसा केवल अपने संकल्प पर पहले भी था और आज भी है। हम अपनी मामूली स्थिति से ही संतुष्ट हैं, इस संकल्प के साथ कि हम पारदर्शी तरीके से नैतिक रास्ते पर चलते हुए अपनी स्थिति सुधारेंगे। हम आज एक बार फिर आपको विश्वास दिलाते हैं कि हमारा वह संकल्प आज भी जीवित है। आजाद सिपाही के अब तक के सफर में आपने जो भरोसा दिया, संकट के दौर में हमारे साथ खड़े रहे, उसके एवज में आभार बहुत छोटा शब्द है। हमारे पास शब्द नहीं हंै।
आजाद सिपाही के आठ वर्ष का सफरनामा, संकल्प और संघर्ष पथ के आठ वर्ष और कहानी आपके भरोसे पर जुनून पालने की
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