विशेष
-माकपा के साथ मिल कर लड़ने के कांग्रेस के एलान से ममता को लगी मिर्ची
-नीतीश की कोशिशों को पलीता लगा रहा है पश्चिम बंगाल का पंचायत चुनाव
-दोराहे पर आकर खड़ीं ममता दीदी को नहीं सूझ रहा है आगे का रास्ता

भारतीय राजनीति का फंडा भी अजीब है। इसका न कोई ओर है और न कोई छोर और यह इतना उलझा हुआ है कि यदि कोई इसे सुलझाने की कोशिश करता है, तो और भी उलझ कर रह जाता है। उदाहरण के लिए 2024 में होनेवाले संसदीय चुनाव में भाजपा को हराने के लिए विपक्षी दलों की एकता की मुहिम को ही लीजिए। अभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह मुहिम जोर पकड़ ही रही थी कि पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव की घोषणा ने इसमें बड़ा अवरोध पैदा कर दिया है। दो दिन पहले ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव की घोषणा कर बड़ा राजनीतिक कदम उठाया, तो कांग्रेस और वामपंथी दल के साथ भाजपा उनके विरोध में एक मंच पर आती दिखने लगी। इन तीनों दलों ने एक साथ हाइकोर्ट में याचिका दायर कर पंचायत चुनाव के दौरान केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग कर दी है। इतना ही नहीं, कांग्रेस ने विपक्षी एकता की मुहिम की हवा निकालते हुए पंचायत चुनाव में वाम मोर्चा के सबसे बड़े घटक माकपा के साथ गठबंधन करने की घोषणा कर दी है। कांग्रेस की इस घोषणा से ममता बनर्जी को स्वाभाविक तौर पर मिर्ची लगी है। अब वह कह रही हैं कि कांग्रेस की इस घोषणा का असर दूर तक दिखाई देगा। उनकी इस टिप्पणी का आशय 23 जून को नीतीश कुमार द्वारा पटना में बुलायी गयी विपक्षी नेताओं की बैठक का फलाफल है, जिसमें कांग्रेस की तरफ से मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी भी शामिल होंगे और ममता बनर्जी भी। अब बंगाल पंचायत चुनाव के बारे में कांग्रेस का माकपा के साथ गठबंधन करने का फैसला 2024 की विपक्षी एकता की मुहिम को किस हद तक बेपटरी करता है, यह तो 23 के बाद ही पता चलेगा। इस नये उभर रहे राजनीतिक समीकरण की परतों को खोल रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

देश का सियासी माहौल अभी 2024 के पूर्वार्द्ध में होनेवाले 17वें आम चुनाव की तैयारियों के इर्द-गिर्द घूम रहा था कि अचानक पश्चिम बंगाल में बड़ा सियासी घटनाक्रम हुआ। वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में पंचायत चुनाव कराने की घोषणा कर दी। राज्य सरकार की घोषणा के अनुसार राज्य में 8 जुलाई को पंचायत चुनाव होंगे। इसके लिए नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू भी हो गयी है। वैसे तो किसी एक राज्य में पंचायत चुनाव की घोषणा का देश में होनेवाले संसदीय चुनाव से कोई प्रत्यक्ष रिश्ता नहीं होता, लेकिन देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में इन दोनों के बीच अनायास ही एक रिश्ता पैदा हो गया है। यह रिश्ता बड़ा ही रोचक और उलझनों भरा है।

क्या है बंगाल में कांग्रेस का स्टैंड
बंगाल में पंचायत चुनाव की घोषणा करने और वहां कांग्रेस द्वारा अपनाये गये स्टैंड के कारण पटना की वैठक पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं। पश्चिम बंगाल कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से पंचायत चुनाव में माकपा के साथ पूरा सहयोग करने को कहा है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि कांग्रेस और माकपा पंचायत चुनाव मिल कर लड़ेंगी। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से इस मामले में माकपा को हर प्रकार का सहयोग देने के लिए पहले ही कह दिया गया है। चौधरी का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली की करीब 75 हजार सीट पर चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है, जो 15 जून तक चलेगी। वैसे कांग्रेस ने इसी साल त्रिपुरा में हुए विधानसभा चुनाव और 2016 और 2021 में पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में भी माकपा के साथ गठबंधन किया था।

कांग्रेस नेता ने साधा ममता सरकार पर निशाना
अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि पश्चिम बंगाल के लोग अपना वोट तभी डाल सकते हैं, जब केंद्रीय बल तैनात किये जायें। उनकी मौजूदगी के कारण सागरदिघी उपचुनाव में मतदान संभव हो सका। इसलिए तृणमूल कांग्रेस वहां हार गयी और कांग्रेस जीत गयी। उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर आप डरी हुई नहीं हैं और पंचायत चुनाव कराने की इच्छुक हैं, तो केंद्रीय बलों की तैनाती की अनुमति देने में आनाकानी क्यों कर रही हैं? अधीर रंजन चौधरी ने यह भी कहा कि नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए और समय दिया जाना चाहिए। कांग्रेस नेता ने कहा कि ममता बनर्जी को कोलकाता उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर कर बताना चाहिए कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करेंगी। हम चुनाव से बचने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि यह शांतिपूर्ण तरीके से हो।

हाइकोर्ट में दायर की गयी याचिका
कांग्रेस की इस घोषणा से पहले पार्टी द्वारा कोलकाता हाइकोर्ट में याचिका दायर किये जाने को भी सियासी नजरिये से विपक्षी एकता की मुहिम में रोड़ा अटकाने के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस ने माकपा और भाजपा के साथ मिल कर हाइकोर्ट में एक याचिका दायर कर दी है, जिसमें पंचायत चुनाव के दौरान केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश देने की मांग की गयी है। इसके अलावा याचिका में आॅनलाइन नामांकन दाखिल करने की सुविधा देने की मांग भी की गयी है।

ममता बनर्जी का पलटवार
कांग्रेस के इस स्टैंड से ममता बनर्जी की नाराजगी स्वाभाविक है। उनकी पार्टी की तरफ से कहा जा रहा है कि पंचायत चुनाव के मुद्दे पर कांग्रेस और माकपा का दोहरा चरित्र सामने आ गया है। एक तरफ ये दोनों दल आपस में गठबंधन कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ भाजपा के साथ मिल कर हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं। इतना ही नहीं, ममता बनर्जी की पार्टी की तरफ से कहा गया है कि कांग्रेस का यह स्टैंड ‘मिशन 2024’ के रास्ते का बड़ा अवरोध साबित हो सकता है।

पटना में होनेवाली है विपक्षी नेताओं की बैठक
यह सभी जानते हैं कि देश के सभी राजनीतिक दल 2024 के चुनाव की तैयारियों में व्यस्त हैं और फिलहाल नये समीकरण बैठाने में लगे हैं। भाजपा को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए विपक्षी दल एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरने की संभावनाएं टटोल रहे हैं। इसी क्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता की धुरी बनते हुए विपक्षी नेताओं को एक मंच पर लाने में जुटे हुए हैं। उन्होंने 23 जून को पटना में विपक्षी नेताओं की बैठक बुलायी है, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के अलावा दूसरे विपक्षी दलों के नेता शामिल होंगे। इस बैठक में ममता बनर्जी भी शामिल होंगी। इस बैठक में आगामी चुनाव में सीट शेयरिंग समेत दूसरे मुद्दों पर विचार मंथन किये जाने की घोषणा की गयी है। पहले यह बैठक 12 जून को होनेवाली थी, लेकिन कुछ कारणों से इसे 23 तक के लिए टाल दिया गया।
इस पूरे परिदृश्य में यह तो साफ हो गया है कि पटना में होनेवाली विपक्षी नेताओं की बैठक का माहौल उतना दोस्ताना नहीं रह सकेगा, क्योंकि बंगाल की सियासत में ममता और कांग्रेस की दूरी की परछाईं उस पर भी पड़ेगी। ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बंगाल पंचायत चुनाव का समीकरण देश स्तर पर क्या गुल खिलाता है। फिलहाल तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बंगाल का पंचायत चुनाव विपक्षी एकता की राह में बड़ा रोड़ा बन कर खड़ा हो गया है।

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