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    Home»विशेष»पहली बार नरेंद्र मोदी की गठबंधन सरकार 10 साल बाद फिर से गठबंधन सरकार का दौर लौटा
    विशेष

    पहली बार नरेंद्र मोदी की गठबंधन सरकार 10 साल बाद फिर से गठबंधन सरकार का दौर लौटा

    shivam kumarBy shivam kumarJune 10, 2024No Comments6 Mins Read
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    The President, Smt. Droupadi Murmu administers the Oath of Office and Secrecy to the Prime Minister of India, Shri Narendra Modi during the swearing-in ceremony, at Rashtrapati Bhavan, in New Delhi on June 09, 2024.
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    विशेष

    -देश में कब-कब बनी गठबंधन की सरकार, कितनी रहीं सफल, कितनी असफल
    यह पहली बार है जब मोदी गठबंधन की सरकार चलायेंगे। इससे पहले 2001 से 2013 तक मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और 2014 से 2024 तक प्रधानमंत्री रहे तो भाजपा की बहुमत वाली सरकारें रहीं। देश के संसदीय इतिहास में 10 साल बाद फिर से गठबंधन सरकार का दौर लौट रहा है। 18वीं लोकसभा में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं है। आइये जानते हैं कि देश में कब-कब इस तरह की सरकारें बनीं? गठजोड़ वाली सरकारें कितने समय तक चलीं?

    1979 में बनी देश की पहली गठबंधन सरकार
    1977 में कई दलों ने मिलकर एक दल के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा। स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी। यह देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी। जीत के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। मोरारजी के नेतृत्व में गठबंधन दो साल तक चला, लेकिन वैचारिक मतभेदों के कारण जनता पार्टी टूट गयी। सरकार के गृह मंत्री रहे चरण सिंह ने पार्टी से अलग होकर जनता पार्टी सेक्युलर बनायी। कांग्रेस पार्टी के बाहरी समर्थन से चरण सिंह प्रधानमंत्री बने। यह देश में गठबंधन का पहला प्रयोग था। यह प्रयोग केवल 23 दिनों तक चला। 28 जुलाई 1979 को चरण सिंह सरकार ने शपथ ली। 20 अगस्त 1979 को जब नयी सरकार को बहुमत के लिए संसद का सत्र बुलाया गया, तो कांग्रेस ने चरण सिंह सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया। इसके बाद चरण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, नये सिरे से चुनाव होने तक चरण सिंह कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर पद पर बने रहे। इसके बाद 1980 में देश में पहली बार मध्यावधि चुनाव हुए, जिसमें जीतकर इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस वापस सत्ता में आयी।

    1989 में वीपी सिंह ने गठबंधन सरकार बनायी
    1989 के लोकसभा चुनाव के करीब नौ साल बाद देश में एक बार फिर गठबंधन सरकार वाला दौर लौटा। 1989 में देश में लोकसभा के चुनाव हुए, जिसमें राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। यह पहली बार था, जब किसी भी पार्टी या चुनाव-पूर्व गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। चुनाव के लिए पूर्व कांग्रेस नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राष्ट्रीय मोर्चा नाम से एक नया गठबंधन बनाया। वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल ने 143 सीटें हासिल कीं। वीपी सिंह को भाजपा और लेफ्ट ने बाहर से समर्थन दिया। वहीं, डीएमके, एजेपी और टीडीपी जैसे दल सरकार का हिस्सा बने। इस तरह कुल 280 सांसदों के समर्थन से वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। वहीं, 194 सीटों वाली सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस विपक्ष में बैठी। वीपी सिंह की यह सरकार एक साल भी नहीं चल सकी। 1990 वह वक्त था, जब अयोध्या में राम मंदिर के लिए आंदोलन चरम पर था। इसी आंदोलन के दौरान भाजपा के सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए देशव्यापी यात्रा निकाल रहे थे। इसी दौरान उन्हें बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया।

    इस सियासी घटनाक्रम के बाद एक और गठबंधन सरकार बनाने की कवायद हुई। इसी कड़ी में राष्ट्रीय मोर्चे का हिस्सा रहा जनता दल दो धड़ों में बंट गया। जनता दल के वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर नवंबर 1990 में कांग्रेस पार्टी के बाहरी समर्थन से वीपी सिंह के बाद प्रधानमंत्री बने। चंद्रशेखर की सरकार भी चंद महीनों बाद गिर गयी।

    1991 में नये सिरे से आम चुनाव कराये गये, जिसमें कांग्रेस फिर से सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस नेता पीवी नरसिंह राव जनता दल के बाहरी समर्थन से प्रधानमंत्री बने। इस चुनाव में कांग्रेस को 244 सीटें मिलीं और वह बहुमत के आंकड़े से दूर रह गयी। नरसिंह राव ने पांच साल तक अल्पमत की सरकार चलायी।

    1996 में अटल ने चलायी 13 दिन की सरकार
    1996 में लोकभा के चुनाव हुए, जिसमें भाजपा पहली बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। भाजपा ने 161 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस 140 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही और जनता दल 46 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रहा। कई छोटे दलों के समर्थन के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन वे लोकसभा में बहुमत हासिल नहीं कर सके। उनकी सरकार केवल 13 दिन ही चल सकी।

    अटल बिहारी वाजपेयी सकरार के गिरने के बाद संयुक्त मोर्चा बना। एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाले संयुक्त मोर्चे में जनता दल और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के साथ-साथ वामपंथी और कम्युनिस्ट पार्टियां शामिल थीं। यह गठबंधन भी आपसी झगड़े के कारण बहुत दिनों तक नहीं चल पाया और देवगौड़ा की सरकार एक साल के भीतर ही गिर गयी। इंद्र कुमार गुजराल ने उनकी जगह ली, लेकिन उनकी सरकार भी एक साल से ज्यादा नहीं चल सकी।

    1998 में अटल ने 13 महीने की सरकार चलायी
    1998 के लोकसभा चुनाव में देश ने एक बार फिर एक गठबंधन सरकार आयी। 1998 के चुनावों में अटल बिहारी ने नेशनल डेमक्रेटिक अलायंस यानी एनडीए नाम से गठबंधन बनाया, जिसमें शिवसेना और एआइएडीएमके जैसी पार्टियां शामिल थीं। यह सरकार 13 महीने तक चली। उसके बाद एआइएडीएमके ने समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद नये सिरे से चुनाव हुए। इस चुनाव में भाजपा ने 182 सीटों पर जीत दर्ज की। 299 सदस्यों के समर्थन के साथ वाजपेयी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस बार वाजपेयी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। यह देश की पहली गठबंधन सरकार थी जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया था।

    2004-2014 तक यूपीए दो बार सत्ता में रहा
    अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद 2004 में एनडीए को झटका लगा। इन चुनावों में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इसके बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) नाम से देश में एक नया गठबंधन बना। पहले यूपीए सरकार में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री चुना गया जो वित्त मंत्री रह चुके थे।
    मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन को 2009 के चुनाव में दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुना गया। एक बार फिर कांग्रेस ने 2009 से 2014 तक गठबंधन की सरकार चलायी। करीब 10 साल बाद देश में एक बार फिर गठबंधन सरकार बनी जिसके मुखिया नरेंद्र मोदी हैं।

     

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