-पहली बार गठबंधन की सरकार का करना होगा नेतृत्व
प्रशांत झा
रांची। नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक जीवन में कई परीक्षाएं दी हैं। गुजरात में भाजपा को अंगद की तरह पैर जमाना हो या देश में शीर्ष स्तर पर भाजपा को ले जाना हो। मोदी ने हर परीक्षा में सफलता हासिल की है। इस बार जब नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे, तो उनके सामने एक और परीक्षा है। गठबंधन की सरकार चलाना। जदयू प्रमुख नीतीश कुमार और टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू को साधना और साथ लेकर चलना। इस परीक्षा में उनके सामने कई चुनौतियां आयेंगी। वह इन चुनौतियों से कैसे निपटते हैं, यह देखने वाला होगा। क्योंकि मोदी ने जो गारंटी दी है, उनमें कई गारंटियों को पूरा करने के लिए सहयोगियों को मनाना होगा।
विपक्ष भले ही हार बोले, लेकिन 240 सीट कम नहीं:
भाजपा के लिए 240 का आंकड़ा 400-पार के दावों के सामने बहुत छोटा दिखता है, लेकिन 1984 के बाद अब तक कभी कांग्रेस या गैर-भाजपा पार्टियों ने इतनी सीटें हासिल नहीं कर पायी हैं। ये 1984 के बाद किसी भी गैर-भाजपा पार्टी की तरफ से हासिल किया गया सबसे अच्छा आंकड़ा है। विपक्षी नेताओं ने भाजपा के बहुमत हासिल नहीं कर पाने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हार बतायी। वह भी तब, जब भाजपा ने अकेले इतनी सीट हासिल की है, जितनी सीटें विपक्षी इंडिया गठबंधन की सभी पार्टियों ने मिल कर भी हासिल नहीं कर पायी हैं। जबकि हकीकत यह है कि मोदी ने अपने दम पर अकेले भाजपा को उस मुकाम तक पहुंचाया, वह कम नहीं है।
मोदी को दोतरफा मामला संभालना होगा:
मोदी अब पहली बार गठबंधन की सरकार चलायेंगे। उनके लिए ये स्थिति बहुत सहज नहीं है, बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहले दो कार्यकाल में काफी मजबूत स्थिति में थे। गुजरात में भी मोदी ने मुख्यमंत्री रहते पूर्ण बहुमत की मजबूत सरकार चलायी थी। प्रधानमंत्री के तौर पर भी उन्होंने 10 साल पूर्ण बहुमत की सरकार चलायी। अब खिचड़ी सरकार में उनके सामने दोतरफा चनौती होगी। एक ओर उन्हें मजबूत और नये जोश से लबरेज आक्रामक विपक्ष का सामना करना पड़ेगा, तो दूसरी ओर नीतीश और चंद्रबाबू जैसे सहयोगियों के दबाव से भी पार पाना होगा। ऐसे में जो कठोर निर्णय पहले लेते आये हैं, उनमें समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
जदयू और टीडीपी का समर्थन जरूरी:
एनडीए को 293 सीटें मिंली हैं, जो बहुमत के 272 से कहीं अधिक है। चुनाव पूर्व गठबंधन में जदयू और टीडीपी शामिल हैं। जदयू के पास 12 और टीडीपी के पास 16 सीटें हैं। इन दोनों के समर्थन के बिना भाजपा सरकार नहीं बना सकती है। इन दोनों के अलावा छोटे-छोटे दल के रूप में चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, शिवसेना (शिंदे), जयंत चौधरी की आरएलडी और जेडीएस आदि दलों की भागीदारी है।
चंद्रबाबू के साथ नहीं रहे हैं मधुर संबंध:
इतिहास को देखें तो पूर्व में टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के साथ नरेंद्र मोदी के संबंध बहुत मधुर नहीं रहे हैं। दोनों ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एनडीए में वापसी की है। इस बार उन्हें साथ लेकर चलना सबसे बड़ी चनौती होगी। जब गुजरात में साल 2002 में दंगे हुए थे, तो चंद्रबाबू नायडू एनडीए के पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने बतौर मुख्यामंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफे की मांग की थी। अप्रैल 2002 में टीडीपी ने मोदी के खिलाफ हिंसा को रोकने और सांप्रदायिक दंगों के पीड़ितों को राहत देने में बुरी तरह फेल होने को लेकर एक प्रस्ताव भी पारित किया था। नायडू उस समय मोदी सरकार के खिलाफ सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाये थे। ये अविश्वास प्रस्ताव तो पास नहीं हो पाया, लेकिन अपने 16 सांसदों के साथ एनडीए से निकल गये थे। साल 2018 में चंद्रबाबू नायडू ने आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर एनडीए का साथ छोड़ दिया था।
नीतीश पर हमेशा रहता सस्पेंस:
जदयू नीतीश कुमार ने जब साल 2013 में एनडीए छोड़ी, तो उसकी वजह नरेंद्र मोदी ही थे। तब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को अपने चुनावी अभियान का प्रमुख ही बनाया था। वह शुरू में अकेले फिर 2015 में राजद के साथ चले गये थे। दो साल 2017 में नीतीश फिर एनडीए में आ गये। 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 में से 39 सीटों पर एनडीए को जीत मिली थी। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जदयू बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बनी, लेकिन एनडीए की सरकार में वे मुख्यमंत्री बने। फिर 2022 में नीतीश राजद के साथ आ गये। लेकिन इस साल जनवरी में वह एक बार फिर पाला बदल बीजेपी के साथ आ गये। नीतीश कुमार का गठबंधन बदलना भारत की राजनीति में ऐसी प्रक्रिया बन गयी है, जो हैरान नहीं करती, लेकिन सस्पेंस बरकरार रहता है।