विशेष
संजय सेठ, काम ही जिनकी पहचान
अब भी ‘आम’ हैं, इसलिए लोग उन्हें ‘सर’ नहीं, ‘भैया’ या ‘अंकल’ बुलाते हैं
सादगी और संघर्ष के बल पर अर्श पर पहुंचे, लेकिन कोई घमंड या दिखावा नहीं
रोमांचक है विद्यार्थी परिषद से लेकर केंद्रीय राज्यमंत्री तक का उनका सफर

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
संजय सेठ, वह नाम जो अपने काम के लिए जाना जाता है। एक ऐसी शख्सियत, जो खास होते हुए भी आम है। लोगों से संपर्क और जुड़ाव उनके लिए आॅक्सीजन का काम करता है। ऐसा एक दिन भी नहीं होता होगा, जब संजय सेठ करीब 50 लोगों की समस्याओं को नहीं सुनते होंगे और उसके हल के लिए प्रयासरत नहीं होते होंगे। सिर्फ समस्या सुनना उनका लक्ष्य नहीं होता, असली मोटो होता है, समस्याओं का हल निकालना। संजय सेठ को रांची के लोग ‘सर’ के तमगे से नहीं नवाजते, सभी उन्हें ‘संजय भैया’ या ‘संजय अंकल’ के नाम से पुकारते हैं। यही संजय सेठ की असली कमाई है। समाज के लोग उनसे रिश्तों में बंधे हैं, न कि महज सांसद भर का नाता है। जब भी कोई सदन के दौरान संजय सेठ से दिल्ली मिलने जाता है, वह खुद उन लोगों का स्वागत करते हैं। बिना खाना खिलाये वह अपने घर से नहीं भेजते। पूरे मान-सम्मान के साथ वह लोगों से मिलते और उन्हें विदा करते हैं। संजय सेठ पर कभी भी सांसद होने का गुमान नहीं दिखा। इसीलिए तो उन्हें जन-जन का सांसद कहते हैं। कोई भी उनसे आसानी से मिल सकता है। वीवीआइपी का चोला वह पहनते नहीं हैं। सादा खाते हैं, सादा पहनते हैं और विचार उच्च कोटि का रखते हैं। एक बार जब वह क्षेत्र में निकल गये, तब खाने-पीने का भी अता-पता नहीं रहता। गाड़ी में एक टिफिन रख लेते हैं, सादी रोटी, बिना मसाले की सब्जी, साग। यही उनका भोजन होता है, जो गाड़ी में ही बैठकर कहीं भी खा लेते हैं। क्षेत्र में जिस सादगी से संजय सेठ जनता से कनेक्ट करते हैं, वह देखने लायक होता है। लोग खुलकर बोलते हैं, भैया ये काम करवा दीजिये, वो काम कर दीजिये और जिनका काम हो चुका होता है, तो संजय सेठ उससे पूछते कि अब सब ठीक है न, कुछ और है तो बताओ। यही कारण है कि जब रांचीवासियों को पता चला कि संजय सेठ अब मोदी कैबिनेट में राज्यमंत्री बनाये गये हैं, चारों तरफ आतिशबाजियां शुरू हो गयीं। लोग खुशी से झूमने लगे। रांची की जनता को लगा कि कोई अपने बीच का व्यक्ति अब केंद्र सरकार में बैठेगा। रांची का विकास और तेजी से होगा। संजय सेठ ने रांची लोकसभा क्षेत्र में बहुत काम किया है। वह चाहे रेल हो या रोड, उन्होंने बेहतरीन काम किया है। सालों से रातू रोड की ट्रैफिक से रांची की जनता परेशान थी, उसका हल संजय सेठ ने अपने पहले ही कार्यकाल में निकाल दिया। अब फ्लाइओवर का काम आखिरी चरण में है। लोगों को राहत मिलनी शुरू हो चुकी है। रातू रोड की ट्रैफिक समस्या का हल निकालना कोई साधारण काम नहीं था। इसीलिए तो साधारण से दिखने वाले संजय सेठ को असाधारण व्यक्तित्व का धनी नहीं कहते। इस कड़ी में कैसे संजय सेठ ने 1976 में विद्यार्थी परिषद का चुनाव जीतने के बाद राजनीति में कदम रखा, बिना पद के लंबे अरसे तक पार्टी के साथ जुड़ाव, लंबा संघर्ष, पुलिस की लाठियां, आंदोलन, जेल, फिर सांसद और आज केंद्र में राज्यमंत्री तक का सफर तय किया, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

सेठ ऑटोमोबाइल का किस्सा
संजय सेठ के राजनीतिक सफर को अगर समझना है, तो साढ़े चार दशक पीछे जाना होगा। पूर्व राज्यसभा सांसद और संजय सेठ के सुख-दुख के साथी महेश पोद्दार बताते हैं, रातू रोड में एक सेठ ऑटोमोबाइल हुआ करता था। उसके आस-पास बहुत सारे ट्रक और अन्य गाड़ियों के गैराज हुआ करते थे। सेठ ऑटोमोबाइल संजय सेठ की ही दुकान थी। संजय सेठ चूंकि शुरू से ही राजनीतिक जीवन में थे। वह अधिकांश रूप से जन-लोक कार्यक्रमों में शुरू से ही व्यस्त रहते थे। संजय सेठ की दुकान भगवान भरोसे ही चलती थी। उस दुकान में एक शर्मा जी नाम के व्यक्ति थे, जो संजय सेठ के विश्वस्त थे, वही चलाया करते थे। चूंकि संजय सेठ के बहुत सारे ग्राहक फिक्स थे, तो संजय सेठ निश्चिंत भी रहते थे। वह अपने ग्राहकों और अन्य लोगों के लिए किसी भी मदद के लिए तैयार रहते थे। रांची में 2005 से पहले जितने भी कार्यक्रम हुए, सबमें उनकी भागीदारी बहुत अच्छी रही। लगभग वह सभी कार्यक्रमों का हिस्सा रहते। महेश पोद्दार बताते हैं कि 1990 में वह चेंबर की राजनीति में आये और 1991 में संजय सेठ चेंबर से जुड़े। उस समय तक भाजपा की राजनीति में उनकी पहचान बन चुकी थी। चेंबर की तरफ से भी बहुत सारे आंदोलनों में हमने साथ में भाग लिया। संजय सेठ द्वारा लोगों को जमा करने की क्षमता अद्भुत थी। सभी मानते थे कि संजय सेठ अपने साथ 50 लोगों को लेकर चलता है। उनके एक फोन कॉल से 50 लोग तुरंत जमा हो जाते थे। ऐसा नहीं था कि उन लोगों को संजय धन से उपकृत करते थे। उनको भी जब आवश्यकता होती तो संजय उनके साथ 24 घंटे खड़े होते। महेश पोद्दार बताते हैं, उन दिनों कोई अधिकारी अप्सरा होटल में रुका था। बहुत ही पावरफुल-तगड़ा आदमी था। बेड के नीचे नोट बिछाकर रखा था। वहां रेड संजय सेठ ने ही करवायी थी। उस वक्त संजय सेठ को बहुत डराने-धमकाने की भी कोशिश की गयी थी।

लालू यादव के दौर में व्यापारियों के लिए मलहम बने संजय सेठ
लालू यादव के दौर में व्यापारी लोग बड़े भयभीत रहा करते थे, लेकिन उस वक्त संजय सेठ की राजनीतिक सक्रियता व्यापारियों के लिए मलहम का काम करती थी। महेश पोद्दार कहते हैं कि जिस आदमी ने रांची की जनता के लिए इतना कुछ किया, दिन-रात खुद को झोंक दिया, उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि रांची ही रही। उनके पिता सरकारी नौकरी करने यहां आये थे और यहीं बसे और आज राजनीतिक पार्टियां अगर इन्हें भूमि पुत्र नहीं बोलती हैं और उन पर उंगली उठाती हैं तो बड़ी तकलीफ होती है। सार्वजनिक जीवन में संजय सेठ ने अपना चार दशक खपा दिया। पद तो अभी पांच साल पहले मिला। उसके पहले लगातार तो उनका जीवन संघर्ष में ही बीता। संजय सेठ पार्टी के सभी कार्यक्रमों में अहम कड़ी रहते, तो बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते। महेश पोद्दार बताते हैं कि मुझे याद है 2013 में नरेंद्र मोदी की जो रैली हुई थी, इतनी बड़ी रैली आज तक झारखंड में नहीं हुई। मैं और संजय वहां के इंचार्ज थे। रात-रात भर जागकर रैली के लिए तैयारी करना। संजय सेठ की सबसे बड़ी खासियत है लोगों को सम्मान देना। सम्मान देने में संजय सेठ दो कदम आगे ही रहते हैं। संजय सेठ ने परिवार को कितना समय दिया होगा, मुझे नहीं मालूम, लेकिन जबसे इनकी शादी हुई, अधिकांश दिन तो यह घर के बाहर ही रहते। पार्टी के काम और लोक कल्याण के काम में व्यस्त रहते। लेकिन उनकी कोशिश रहती थी कि लंच के समय चाहे चार बजे घर जायें, एक बार जाया करते थे घर। संजय सेठ के परिवार वालों ने भी उनके साथ काफी संघर्ष किया। उनकी पत्नी ने उनका हर कदम पर साथ दिया। जब सीमित साधन थे तब और अब भी, जब हम कभी उनके घर जाते, बिना खाना खिलाये वह हमें जाने नहीं देतीं। संजय सेठ के पुत्र और बहु उनके साथ चट्टान की तरह खड़े रहते हैं। इस मामले में संजय सेठ बहुत ही भाग्यशाली हैं। संजय सेठ इतने सालों से राजनीति में रहे, लेकिन आज तक उन पर एक भी दाग नहीं लगा।

किसी भी सांसद ने रांची लोकसभा के लिए इतना बेहतरीन काम नहीं किया
पूर्व डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय बताते हैं कि जब 80 के दशक में संजय सेठ का राजनीतिक जीवन शुरू हुआ, हम लोग बहुत छोटे थे। युवा मोर्चा के सदस्य के रूप में वह भाजपा से जुड़े थे। उसके बाद उन्होंने प्रदेश युवा मोर्चा की टीम में सक्रिय भूमिका निभायी। वह समय-समय पर आंदोलन करते रहे। पार्टी के सच्चे सिपाही के रूप में वह निरंतर एक्टिव रहते। उन्होंने शुरूआती दौर में कई आंदोलन किये। वर्ष 1990 में भारतीय जनता पार्टी रांची महानगर के अध्यक्ष बने। उसके बाद उनका लगाव चेंबर से भी हुआ। वह चेंबर के भी अध्यक्ष बने। संजय सेठ का राजनीतिक जीवन में संघर्ष बड़ा लंबा रहा। बिना किसी पद के भी वह काम करते रहे। उसके बाद 2003 में संजय सेठ को जिला अध्यक्ष बनाया गया। उस वक्त मैं भी मंडल अध्यक्ष था। हमारी मंडल अध्यक्षों की पूरी टीम ने उनका पूरा सहयोग किया। जिला अध्यक्ष के रूप में जो उन्होंने काम किया, वह बहुत ही अभूतपूर्व था। कोई भी कार्यक्रम को इवेंट का रूप दे देना और इवेंट में किसी भी कार्यक्रम को हाइलाइट कर देना हमलोगों ने इनसे सीखा। किसी भी छोटे कार्यक्रम को भी बड़ा कैसे बनाया जाये, उसमे उन्हें महारत हासिल थी। जिला अध्यक्ष के बाद वह प्रदेश के प्रवक्ता बने। इस दौरान इनकी सक्रियता देखते बनती। बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा के धनी। रघुबर दास के कार्यकाल में उन्होंने सरकार की योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने में बहुत ही अहम भूमिका निभायी। 2019 में जब संजय सेठ को रांची लोकसभा का प्रत्याशी बनाया गया, तो कार्यकर्ताओं में उत्साह देखते बनता। कार्यकर्ताओं को लगा कि उनके बीच के व्यक्ति को टिकट मिला है। कार्यकर्ताओं का जोश, समर्पण, संजय सेठ की मेहनत और लोकप्रियता कारण बना कि उन्होंने दो लाख 82 से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की। संजय सेठ ने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान लगातार जनसंपर्क करते रहे। ऐसा साधारण व्यक्तित्व की भूमिका अदा करना सांसद होकर भी, यह असाधारण है। मुझे जब कभी भी इनके दिल्ली आवास में रुकने का मौका मिलता, संजय सेठ खुद से गेट खोलना, खुद पानी का ग्लास लेकर आना। खुद से खाना को सर्व करते। चावल लेना है, तो मेरा हाथ उठने से पहले उनका हाथ चावल देने के लिए उठ जाता। आप एक सांसद से जल्दी ऐसी उम्मीद नहीं करते, लेकिन संजय भैया जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं। आज भी संजय भैया वैसे ही हैं। मैं मंत्री बनाने के एक दिन बाद की घटना आपको बताना चाहूंगा। उनके आवास पर जो भी गेस्ट उन्हें बधाई देने आ रहा था, वह खुद किचन में जाकर मिठाई लेकर आते और अपने हाथों से खिलाते। यह कोई दूसरा व्यक्ति नहीं कर सकता है। यह संजय भैया की मेहनत और विचारों का ही प्रतिफल है कि आज वह झारखंड को कैबिनेट में राज्यमंत्री के रूप में रीप्रेजेंट कर रहे हैं। रांची लोकसभा क्षेत्र में रेल के संबंध में जो उन्होंने काम किया है, वह आज तक नहीं हुआ। रेल मंत्री से उनका संबंध और व्यवहार भी इतना बेहतर कि जनता ने यहां फरमाइश की और उधर काम हो गया। आज के दिन में मुरी हो या इचागढ़ जंक्शन हो, या अन्य छोटे स्टेशन हों, 2400 करोड़ की योजना से जो काम इन्होंने किया है, उससे रांची, हटिया से लेकर अन्य छोटे स्टेशन का भी कायाकल्प हो गया है और हो रहा है। मुझे नहीं लगता कि किसी भी सांसद ने रांची लोकसभा के लिए इतना बेहतरीन काम किया है। विपरीत परिस्थिति, यानी राज्य में विपक्ष की सरकार होने के बावजूद भी केंद्र से योजना लाकर रांची लोकसभा क्षेत्र के पटल पर रखना आसान काम नहीं। केंद्र सरकार ने फंड की कोई कमी नहीं की, लेकिन राज्य सरकार की बाधा तो थी, उसमें भी संजय सेठ ने खुद को साबित किया और रांची लोकसभा के लिए बेहतरीन काम किया।

संजय सेठ के आंदोलन और गिरफ्तारियां
संजय सेठ का जन्म 25 अगस्त 1959 को हुआ। इनके पिता का नाम चांद नारायण सेठ और मां का नाम करुणा सेठ है। 27 नवंबर 1983 को नीता सेठ से इनका विवाह हुआ। इनकी एक पुत्री और एक पुत्र हैं। झारखंड की राजनीति में संजय सेठ चार दशक से अधिक समय से सक्रिय हैं। कॉलेज लाइफ से ही वे सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे। इन्होंने बीकॉम, एलएलबी के साथ-साथ पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा इन बिजनेस मैनेजमेंट एंड इंडस्ट्रियल एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की। कानपुर, रांची और दिल्ली तीन जगह से इन्होंने पढ़ाई की है। संजय सेठ ने आंदोलन के दौरान कई बार लाठियां भी खायी हैं। एक बार तो पुलिस ने इन्हें 15-20 लाठियां मारी थीं। लेकिन फिर भी संजय सेठ ने आंदोलन को नहीं छोड़ा। जीवटता तो इनमें कूट-कूट कर भरी है। रांची लोकसभा सीट से लगातार दूसरी बार बड़ी जीत हासिल करने वाले संजय सेठ छात्र जीवन में ही आरएसएस से जुड़े और आपातकाल के दौरान उनकी कई बार गिरफ्तारी हुई। संजय सेठ पिछले 40 वर्षों से समाज सेवा के क्षेत्र में कार्यरत हैं और बीजेपी के हर छोटे-बड़े कार्यक्रमों में उनकी सहभागिता रहती हैं। हालांकि बाबूलाल मरांडी के बीजेपी छोड़ने के बाद कुछ महीनों के लिए संजय सेठ पार्टी छोड़ कर उनके साथ चले गये, लेकिन वापस आने के बाद बीजेपी में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी गयी। संजय सेठ राम मंदिर आंदोलन का भी हिस्सा रहे। 1992 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान अपनी गिरफ्तारी के बाद वह 25 दिन जेल में रहे थे। इससे पहले आपातकाल और विद्यार्थी जीवन में आंदोलन में कई बार गिरफ्तारियां हुर्इं। विदेशी गेहूं आयात के विरोध में जेल भरो आंदोलन में शामिल हुए। संजय सेठ छात्र जीवन में ही राष्ट्रीय स्वंयेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गये। एक स्वयंसेवक के रूप में वह लंबे समय से संघ की शाखा में जाते रहे। इस बीच 1980 में युवा शक्ति के केंद्रीय अध्यक्ष बने। इस दौरान वे रांची मोटर डीलर्स एसोसिएशन के सचिव बने। फिर 1993 में रांची मोटर डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। 1996 में छोटानागपुर चेंबर आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के सचिव रहे। 1999 में वरीय उपाध्यक्ष और 2000 में अध्यक्ष बने। 2003 में वो लायंस क्लब आॅफ रांची कैपिटल के अध्यक्ष बने, जबकि 2016 से 2019 तक झारखंड राज्य खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष रहे। वर्ष 2013 के जनवरी महीने में पार्टी के कार्यक्रम के तहत सात दिन बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में रहे। इसके अलावा रांची, हजारीबाग, कोडरमा, लोहरदगा, पलामू और दुमका के लोकसभा और विधानसभा प्रभारी के रूप में भी उन्होंने काम किया। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रादेशिक कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी में दो बार कार सेवा, एकता यात्रा, बोट क्लब रैली, मुंबई अधिवेशन, इलाहाबाद में मोर्चा सम्मेलन, रांची-पटना में विधानसभा घेरो आंदोलन सहित अन्य कार्यक्रमों में शामिल हुए। संजय सेठ रांची में श्री कृष्ण जन्मोत्सव समिति के मुख्य संरक्षक के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, दही हांडी प्रतियोगिता और मकर संक्रांति उत्सव जैसे कार्यक्रमों की देखरेख करते हैं, जिससे उनके समुदाय की सांस्कृतिक ताने-बाने को समृद्ध किया जाता है। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी संजय सेठ ने रांची सीट से जीत दर्ज की थी। 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने उन्हें फिर से रांची से टिकट दिया। उन्होंने पार्टी के फैसले को सही साबित करते हुए कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय की बेटी यशस्विनी सहाय को 120512 वोटों से हरा दिया।

पीएम मोदी को पसंद हैं संजय सेठ
संजय सेठ को मोदी कैबिनेट में जगह मिलने के बाद कहा जा रहा है कि संजय सेठ पीएम मोदी की निजी पसंद हैं। पिछले साल हुई भाजपा सांसदों की बैठक के दौरान पीएम मोदी ने उनकी खुले मंच से तारीफ की थी। पीएम मोदी ने संजय सेठ की ‘सांसद सांस्कृतिक महोत्सव’ पहल का उदाहरण देते हुए उनकी जमकर तारीफ की थी। संजय सेठ ने प्रधानमंत्री की ‘सांसद खेल महोत्सव’ की तर्ज पर इसका आयोजन किया था, जिसका मैसेज बहुत अच्छा गया था। संजय सेठ पीएम मोदी की नजर में बहुत पहले से थे। बस पीएम मोदी भी सही समय का इंतजार कर रहे थे और संजय सेठ को पार्टी के प्रति सच्ची निष्ठा, लगन, मेहनत, समर्पण का प्रतिफल केंद्र में राज्य मंत्री के रूप में मिला।

एक नजर में संजय सेठ का राजनीतिक सफर
1976 में संजय सेठ ने विद्यार्थी परिषद से छात्र संघ का चुनाव जीता। भारतीय जनता पार्टी के गठन के पहले दिन से ही वह पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे। वर्ष 1980 में भारतीय जनता युवा मोर्चा रांची नगर के महामंत्री रहे। वर्ष 1982 से 85 तक जनता विद्यार्थी मोर्चा रांची विश्वविद्यालय के संयोजक रहे। वर्ष 1986 में भाजपा रांची के वरीय उपाध्यक्ष बनाये गये। वर्ष 1988 में रांची भाजपा के संगठन मंत्री बने। वर्ष 1990 में भारतीय जनता पार्टी रांची के अध्यक्ष बने। वर्ष 1996 में भारतीय जनता युवा मोर्चा झारखंड प्रदेश के प्रदेश महामंत्री बनाये गये। वर्ष 2001 में झारखंड प्रदेश भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता बने। वर्ष 2001 में झारखंड प्रदेश भाजपा के आजीवन सहयोग निधि के सह संयोजक बनाये गये। संजय सेठ का सियासी सफर। वर्ष 2003 में भारतीय जनता पार्टी रांची के अध्यक्ष बने। वर्ष 2007 में झारखंड प्रदेश भाजपा के नगर निकाय प्रकोष्ठ के अध्यक्ष बने। वर्ष 2009 में झारखंड प्रदेश भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता बनाये गये। वर्ष 2011 में झारखंड प्रदेश भाजपा के फिर से प्रदेश प्रवक्ता बनाये गये। वर्ष 2013 में नमो मंत्र झारखंड के संयोजक बने। 2016 से 2019 तक, उन्होंने झारखंड राज्य खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष का महत्वपूर्ण पद संभाला। 2019 में रांची से लोकसभा चुनाव जीता और सांसद बने। 2024 में फिर से रांची लोकसभा का चुनाव जीता और केंद्र में राज्यमंत्री बने।

 

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