विशेष
-आसान नहीं है आदिवासी सीटों पर भाजपा की नैया पार लगाना
-पार्टी में जारी आंतरिक कलह और खेमेबंदी को भी खत्म करने की चुनौती
-विधानसभा चुनाव में होगा दोनों नेताओं की क्षमता का असली लिटमस टेस्ट
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
लोकसभा चुनाव 2024 के अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने के बाद भाजपा ने राज्यों के चुनाव के लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी है। इस साल के अंत तक झारखंड के अलावा महाराष्ट्र, हरियाणा और जम्मू कश्मीर में विधानसभा के चुनाव होंगे, जिनमें से झारखंड पर भाजपा का विशेष ध्यान है, क्योंकि 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद इस बार लोकसभा चुनाव में भी उसे आदिवासी वोट नहीं मिला। इसके कारण झारखंड अब भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। इसलिए भाजपा ने अपने दो नामचीन चेहरों, शिवराज सिंह चौहान और हिमंत विस्वा सरमा को झारखंड में क्रमश: चुनाव प्रभारी और सह प्रभारी नियुक्त किया है। शिवराज सिंह चौहान जहां मध्यप्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहने का रिकॉर्ड बनाने के साथ भाजपा के सफलतम चुनावी रणनीतिकार माने जाते हैं, वहीं हिमंत ने पूर्वोत्तर में भाजपा का विस्तार करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इन दोनों नेताओं के साथ खास बात यह है कि ये सामने रह कर चुनावी रणनीति बनाते हैं और उस पर अमल करने के लिए आक्रामक तरीका अपनाते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड भाजपा में अंदरूनी कलह तेज हुई है। इससे कहीं ना कहीं पार्टी की छवि धूमिल हुई है। इसलिए शिवराज और हिमंत पर प्रदेश भाजपा के भीतर लगातार जड़ जमा रही खेमेबंदी को खत्म कर पार्टी को सत्ता में वापस लाने की बड़ी चुनौती है। इसके अलावा उनके सामने झारखंड के आदिवासी वोटरों को साधने की चुनौती है, जो अलग-अलग कारणों से भाजपा से छिटक गये हैं। जाहिर है कि इन दोनों के लिए विधानसभा चुनाव जीतना आसान नहीं है। क्या है शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा को झारखंड भेजने के पीछे की रणनीति और क्या हैं इन दोनों के सामने चुनौतियां, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

लोकसभा चुनाव के बाद अब झारखंड समेत देश के चार राज्यों में विधानसभा चुनाव की गहमा-गहमी शुरू हो गयी है। लोकसभा चुनाव में झारखंड में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने से भाजपा बेहद सतर्क हो गयी है और इन राज्यों में होनेवाले चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी ने अपने प्रमुख नेताओं को चुनाव प्रभारी और सह-प्रभारी बनाया है। आगामी अक्टूबर-नवंबर में होने वाले झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने कमान शिवराज सिंह को सौंपी है, जबकि उनके साथ सह-प्रभारी के रूप में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी रहेंगे।

शिवराज की लोकप्रियता और हिमंत की छवि भुनाने की रणनीति
शिवराज सिंह चौहान की पहचान एक लोकप्रिय नेता के रूप में है, वहीं हिमंत बिस्वा सरमा की पहचान पार्टी के अंदर फायरब्रांड नेता के रूप में होती है। दोनों ही नेताओं की गिनती भाजपा के अंदर सफल राजनेताओं में होती है। शिवराज सिंह चौहान ने तमाम विपरीत परिस्थितियों में मध्यप्रदेश में भाजपा को सत्ता में वापस लाने में बड़ी भूमिका निभायी। वहीं हिमंत बिस्वा सरमा ने असम में भाजपा को बड़ी जीत दिलाने में सफलता हासिल की। इन दोनों के साथ खास बात यह है कि ये दोनों अलग तरह से काम करते हैं। ये परदे के पीछे रहने की बजाय सामने रह कर राजनीति करते हैं। इनकी स्टाइल बेहद आक्रामक और तत्काल परिणाम देनेवाली है। इसलिए अपने-अपने राज्यों में इन्हें चुनावी सफलता हासिल करने की गारंटी माना जाता है।

गठबंधन और उम्मीदवार चयन में होगी बड़ी भूमिका
केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बारे में कहा जाता है कि वह पार्टी के अंदर सभी को साथ में लेकर चलने पर विश्वास करते हैं। वहीं हिमंत बिस्वा सरमा का बांग्लादेशी घुसपैठ और अन्य मुद्दों पर आक्रमक तेवर रहा है। दोनों नेताओं की भूमिका अब भाजपा उम्मीदवारों के चयन में महत्वपूर्ण होगी। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और आजसू पार्टी के बीच तालमेल नहीं हो पाया था, जिसका नुकसान दोनों ही दलों को उठाना पड़ा था। हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और आजसू पार्टी ने मिल कर चुनाव लड़ा। इसके बावजूद भाजपा को झारखंड में नुकसान उठाना पड़ा। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 14 में से 11 और आजसू पार्टी ने एक सीट पर जीत हासिल की थी। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा को आठ और आजसू पार्टी को एक सीट मिली।
चुनाव परिणाम के बाद मोदी कैबिनेट में आजसू पार्टी को स्थान नहीं मिला। इसके कारण आजसू पार्टी सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी ने सार्वजनिक तौर पर नाराजगी जतायी है। ऐसे में अब आजसू पार्टी को साथ रखना भाजपा के लिए चुनौती होगी। यदि 2019 की तरह आजसू पार्टी अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लेती है, तो भाजपा को फिर नुकसान उठाना पड़ सकता है।

लोकसभा चुनाव में प्रचार कर चुके हैं दोनों नेता
दोनों नेताओं ने लोकसभा चुनाव में झारखंड में जम कर चुनाव प्रचार किया था। शिवराज सिंह चौहान ने रांची में युवा सम्मेलन किया था, वहीं गोड्डा-महगामा में भी रैलियां की थीं। सरमा ने भी धनबाद और हजारीबाग लोकसभा चुनाव में आक्रामक तरीके से चुनाव प्रचार किया था। खूंटी लोकसभा के तमाड़ में भी उनका कार्यक्रम प्रस्तावित था, लेकिन उनका कार्यक्रम नहीं हो पाया था। लोकसभा चुनाव में भाजपा-आजसू ने विधानसभा की 51 सीटों पर बढ़त ली है। पांच आदिवासी विधानसभा सीटों पर भी भाजपा ने बढ़त ली है, हालांकि चुनाव में सभी पांच आरक्षित लोकसभा सीटें भाजपा हार गयी। लेकिन लोकसभा में जिन सीटों पर बढ़त मिली है, विधानसभा में भी ऐसा होगा, ऐसा नहीं है। इसके लिए भाजपा को नाकों चने चबाने होंगे।

‘मामा’ और ‘बारूद’ को क्यों मिली झारखंड में बड़ी जिम्मेदारी
शिवराज सिंह चौहान को ‘मामा’ और हिमंत बिस्वा सरमा को भाजपा के अंदर ‘बारूद’ नाम से जाना जाता है। इन दोनों को चुनाव प्रबंधन का विशेषज्ञ माना जाता है। चौहान ने जहां 20 साल से अधिक के एंटी इनकमबैंसी के बाद भी मध्यप्रदेश में चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत दिलायी, वहीं सरमा ने पूर्वोत्तर में भाजपा के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। चौहान को बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को जोड़ने में माहिर माना जाता है, जबकि सरमा भी अच्छे संगठनकर्ता के साथ-साथ आक्रामक छवि वाले नेता माने जाते हैं।

इन दोनों के सामने क्या हैं चुनौतियां
जहां तक चुनौतियों का सवाल है, तो इन दोनों के सामने कम से कम तीन चुनौतियां हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान प्रमंडल में भाजपा खाता नहीं खोल पायी थी। संताल में किसी भी जनजातीय आरक्षित सीट पर भाजपा को जीत नहीं मिली थी। राज्य की 28 आदिवासी सीटों में से महज दो, खूंटी और तोरपा में भाजपा को जीत मिली थी। इस बार भाजपा के सामने इन आदिवासी सीटों को दोबारा हासिल करने की चुनौती है।

जयराम महतो को साधने का चैलेंज
लोकसभा चुनाव 2024 में गिरिडीह, रांची, धनबाद और हजारीबाग क्षेत्र में झारखंड भाषा खतियानी संघर्ष समिति (जेबीकेएसएस) के नेता जयराम महतो मजबूत होकर उभरे हैं। जयराम महतो ने खुद गिरिडीह सीट से चुनाव लड़ कर एनडीए प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी को कड़ी टक्कर दी, जबकि उनकी पार्टी के देवेंद्र नाथ महतो ने रांची और संजय मेहता ने हजारीबाग में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफलता हासिल की। कई विधानसभा क्षेत्रों में जेबीकेएसएस के उम्मीदवार पहले स्थान पर रहे, जबकि कई सीटों पर दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। ऐसे में कुर्मी-महतो वोट को साधने के लिए शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा जेबीकेएसएस प्रमुख जयराम महतो से संपर्क कर सकते हैं। जयराम महतो की पार्टी का वोट आधार वही है, जो आजसू पार्टी का है। ऐसे में जयराम महतो और सुदेश महतो के बीच समन्वय बनाना भी आसान नहीं होगा।

पार्टी में एकजुटता कायम करना
झारखंड भाजपा में हाल के दिनों में खेमेबंदी जिस तरह सामने आयी है, उससे साफ हो गया है कि ऐसे तो काम नहीं चलनेवाला है। दुमका और देवघर में पार्टी की बैठकों में जिस तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगे, वह भाजपा में पहले कभी नहीं हुआ था। पार्टी नेतृत्व को पता चल गया है कि संताल में पार्टी में अनुशासन नामक चीज नहीं रह गयी है। चौहान और सरमा को इस पर तत्काल रोक लगानी होगी। भाजपा की पहचान अनुशासित पार्टी के रूप में होती है और यदि इस तरह की घटनाएं होती रहीं, तो इसका चुनावी संभावनाओं पर गंभीर असर पड़ेगा। इसलिए इन दोनों नेताओं के सामने इसे खत्म करने की बड़ी चुनौती है।

 

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version