विशेष
लोजपा सुप्रीमो के फैसले के बाद बिहार का सियासी तापमान बढ़ा
भाजपा-जदयू के ‘ट्रंप कार्ड’ ने बढ़ा दी है इंडी अलायंस की टेंशन

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार में इस साल के अंत में होनेवाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी तपिश लगातार बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार यात्रा के ठीक बाद अब एक बड़ा दांव चला गया है। यह दांव है चिराग पासवान। इस दांव ने इस तपिश को और बढ़ा दिया है। लोजपा (आर) सुप्रीमो और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने इंडी अलायंस के नेता तेजस्वी यादव के लिए नया सिरदर्द पैदा कर दिया है। चिराग बिहार विधानसभा चुनाव से पहले खुद को स्थापित करने में जबरदस्त ढंग से जुट गये हैं और उनकी वजह से बिहार का सियासी समीकरण लगातार बदलता हुआ दिखाई दे रहा है। चुनाव का समय नजदीक आने के साथ चिराग पासवान अपने बयानों का डोज बढ़ाते जा रहे हैं। खुद को ‘युवा बिहारी’ कहने वाले और ‘बिहार फर्स्ट’ का नारा देने वाले चिराग पासवान ने कुछ समय पहले यह बात कही थी कि उनका दिल दिल्ली में नहीं लगता और बिहार उन्हें बुला रहा है, लेकिन उस समय उन्होंने कहा था कि इस चुनाव के बाद इस बारे में वह फैसला करेंगे। अब उनकी पार्टी की ओर से ताजा बयान में यह संकेत दिया गया है कि चिराग पासवान न केवल विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, बल्कि सामान्य सीट से चुनाव लड़ेंगे। इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि चिराग अब जातीय राजनीति का दामन छोड़नेवाले हैं, जिसका नुकसान राजद को होगा। दरअसल चिराग पासवान की पार्टी इस समय वे सभी हथकंडे अपना रही है, जो चुनाव से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स में अपनाये जाते हैं। उनकी पार्टी ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर चिराग पासवान को विधानसभा चुनाव लड़ने की सलाह दी है। इसके बाद चिराग पासवान ने भी पार्टी के फैसले पर सहमति जताने की औपचारिकता पूरी करते हुए कहा कि अगर चुनाव लड़ने से पार्टी और गठबंधन का प्रदर्शन बेहतर होता है, तो वह जरूर चुनाव लड़ेंगे। चिराग के स्टैंड ने इंडी अलायंस में हलचल मचा दी है और तेजस्वी यादव के लिए भी टेंशन बढ़ा दी है। क्या है चिराग पासवान के फैसले का मतलब और इसका बिहार चुनाव पर क्या हो सकता है असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

बिहार की सियासी तपिश बढ़ने के साथ ही लोजपा (आर) के प्रमुख चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। चिराग अभी मोदी सरकार में मंत्री हैं, लेकिन उन्होंने केंद्र की राजनीति की बजाय बिहार की सियासत में किस्मत आजमाने का फैसला किया है। यही नहीं, उन्होंने किसी आरक्षित सीट की जगह किसी सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का भी फैसला किया है। चिराग के बिहार की राजनीति में उतरने का दांव राजद नेता तेजस्वी यादव की युवा सियासत और लोकप्रियता का मुकाबला करने की रणनीति है या फिर लोजपा की सियासी ख्वाहिश, यह सवाल बेहद अहम है।

बिहार के मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर राजद के नेता तेजस्वी यादव पहली पंसद बने हुए हैं। सीएम नीतीश कुमार से दोगुनी लोकप्रियता तेजस्वी की है। इंडिया ब्लॉक ने भले ही तेजस्वी को सीएम पद का चेहरा घोषित न किया हो, लेकिन उन्हीं की अगुवाई में इस बार का चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इस तरह तेजस्वी बनाम नीतीश के बीच बिहार का चुनाव सिमटता जा रहा है। ऐसे में चिराग पासवान ने बिहार चुनाव लड़ने का एलान कर अपनी दावेदारी भी पेश कर दी है, जो तेजस्वी के लिए एक चुनौती है, तो यह नीतीश के लिए भी किसी टेंशन से कम नहीं। चिराग ने सीधे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए जो पासा फेंका है, उसने साफ कर दिया है कि भाजपा अब अपना हर दांव चलने के लिए तैयार है।

बिहार के रण में चिराग ने ठोकी ताल
सियासत में चिराग पासवान ने 2014 में कदम रखा था और उसके बाद से लगातार लोकसभा चुनाव ही लड़ते रहे हैं। इस दौरान दो बार विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन एक बार भी किस्मत नहीं आजमायी। अब 2025 के विधानसभा चुनाव में वह पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरेंगे। लोजपा की बैठक में चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने के प्रस्ताव पर फाइनल मुहर लगी। साथ ही लोजपा ने यह फैसला भी लिया कि चिराग आरक्षित सीट की जगह सामान्य सीट से चुनाव लड़ेंगे।

नीतीश-तेजस्वी की सियासत पर पड़ेगा असर
नीतीश-तेजस्वी चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव में उतारने का फैसला बिहार की राजनीति में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। राजनीति के जानकार कहते हैं कि चिराग पासवान बिहार में अपनी सियासी ताकत बढ़ाना चाहते हैं। उनकी अपनी कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी हैं। चिराग बिहार में अपना भविष्य देख रहे हैं। उनके चुनाव लड़ने से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव, दोनों की सियासत पर असर पड़ सकता है। इसी रणनीति के तहत उन्होंने केंद्र में मंत्री रहते हुए भी विधानसभा चुनाव लड़ने की दांव चला है।

तेजस्वी का काउंटर प्लान हैं चिराग
नीतीश कुमार अब उम्रदराज हो रहे हैं और उनकी राजनीतिक पकड़ भी कमजोर हो रही है। वह 2025 में एनडीए का चेहरा जरूर हैं, लेकिन 2020 में भाजपा उन्हें आगे करके सियासी नतीजे देख चुकी है। ऐसे में चिराग पासवान की पार्टी को लगता है कि आगे चलकर एनडीए में एक ऐसे चेहरे की जरूरत होगी, जिसे चिराग पासवान पूरा कर सकते हैं। इतना ही नहीं, तेजस्वी यादव की जिस तरह की लोकप्रियता बिहार में देखी जा रही है, वह जदयू के साथ-साथ भाजपा और उसके घटक दलों को जरूर चिंता में डाल रही है।

भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
बिहार में जिस तरह से तेजस्वी का सियासी ग्राफ लगातार बढ़ा है और नीतीश कुमार का ग्राफ कम होता चला गया है, उससे सबसे ज्यादा चिंता भाजपा को है। बिहार का चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। भाजपा किसी भी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। भाजपा 2020 में नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ी थी और एनडीए के हाथों से सत्ता जाते-जाते बची थी। इसीलिए भाजपा इस बार बहुत ही सावधानी बरत रही है। एनडीए जरूर सीएम नीतीश के चेहरे पर चुनाव लड़ रहा है, लेकिन तेजस्वी की लोकप्रियता का भी ख्याल रख रही है।

चिराग बनाम तेजस्वी बनाने की कोशिश
तेजस्वी यादव के सामने चिराग पासवान एक युवा चेहरा होंगे। बिहार में युवा नेता के तौर पर सिर्फ तेजस्वी का नाम ही सबसे आगे है। उन्हें लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत भी मिली है। जातिगत समीकरण भी उनके साथ हैं। बिहार के दो-तिहाई मतदाताओं (मुस्लिम-यादव) पर उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। ऐसे में चिराग विधानसभा चुनाव लड़ते हैं, तो तेजस्वी की चुनौती बढ़ जायेगी।

चिराग में भाजपा देख रही फायदा
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने के फैसला भाजपा के बैकअप प्लान का हिस्सा है। इसीलिए भाजपा के तमाम बड़े नेता चिराग पासवान के फैसले का स्वागत कर रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यश्र दिलीप जायसवाल ने चिराग के विधानसभा चुनाव लड़ने के कदम का स्वागत करते हुए कहा कि इससे एनडीए को फायदा होगा। बिहार में जहां भी चिराग जाते हैं, उन्हें देखने-सुनने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है।

चिराग की लोकप्रियता बढ़ी है
चिराग पासवान सीएम फेस की लोकप्रियता के मामले में तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर से पीछे जरूर हैं। लेकिन फरवरी से मई के बीच उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है। एक सर्वे के मुताबिक फरवरी में 3.7 फीसदी, अप्रैल में 5.8 फीसदी और मई में 10.6 फीसदी लोगों ने उन्हें सीएम चेहरे के तौर पर पसंद किया। इस तरह उनकी लोकप्रियता भाजपा नेता सम्राट चौधरी से कहीं ज्यादा है। इस बात को भाजपा भी बखूबी समझ रही है।

सर्वजन का नेता बनने का भी प्लान
चिराग पासवान का सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का फैसला भी एक बड़ा दांव माना जा रहा है। वह जातिवादी राजनीति से दूर रहने की कोशिश करते हैं, जो आज की युवा पीढ़ी को पसंद है। चिराग युवा वर्ग में जातिगत दायरे से बाहर भी लोकप्रिय हैं। नये जेनरेशन को वह इसलिए पसंद हैं, क्योंकि उन्होंने अपने भाषणों में कभी जातिवादी राजनीति करने की कोशिश नहीं की। अब जब उन्होंने सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया है, तो वह यह संदेश देना चाहते हैं कि वह सक्षम हैं और उनकी स्वीकार्यता सभी वर्गों में है। सामान्य सीट से चुनाव मैदान में उतरकर चिराग यह भी बताना चाहते हैं कि सुरक्षित सीट को वह कमजोर तबके के नेता के लिए खाली छोड़ेंगे, जो एक बड़ा राजनीतिक संदेश होगा। इस तरह चिराग पासवान खुद को दलित दायरे में रखने की बजाय सर्वजन के नेता बनने की फिराक में हैं। इसीलिए वह एक के बाद एक बड़ा सियासी दांव चल रहे हैं।

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