विशेष
प्रधानमंत्री ने दुनिया को समझाया आतंकवाद और आपसी सहयोग का महत्व
वैश्विक शांति और समृद्धि के लिए सोच और नीति स्पष्ट होनी चाहिए
कुछ देश खुलेआम आतंकवाद का समर्थन करते हैं, उन्हें पुरस्कृत करते हैं, दोहरी नीति से सावधान

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
कनाडा के कनानस्किस में जी-7 आउटरीच शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण और जी-7 नेताओं के साथ प्रमुख वैश्विक चुनौतियों पर बातचीत बेहद उपयोगी रही। उन्होंने इस दौरान विचार-विमर्श में पृथ्वी की बेहतरी के लिए अपनी आकांक्षाओं को साझा किया। प्रधानमंत्री ने ऊर्जा सुरक्षा, प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढांचे और निवेश के भविष्य पर जी-7 चर्चाओं में भाग लिया, ताकि विश्व में हो रहे बदलावों के बीच इन तक सबकी पहुंच आसानी से और कम खर्च में सुनिश्चित हो सके। मोदी ने अपने संबोधन में दीर्घकालिक और हरित मार्ग के माध्यम से सभी के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता का उल्लेख किया। उन्होंने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा रोधी बुनियादी ढांचे पर सम्मेलन और वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन जैसी भारत की वैश्विक पहलों के संबंध में विस्तार से बताया। प्रधानमंत्री ने विकासशील और पिछड़े देशों की चिंताओं और प्राथमिकताओं पर ध्यान देने का आह्वान करते हुए कहा कि भारत ने उन देशों की आवाज को विश्व मंच पर लाने के विषय को अपनी जिम्मेदारी के रूप में लिया है। जी-7 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री की यह लगातार छठी भागीदारी थी। कुल मिला कर पीएम मोदी का यह भाषण उनकी कूटनीतिक कामयाबी का एक और अध्याय लिख गया, क्योंकि इसके माध्यम से उन्होंने भारत की वसुधैव कुटुंबकम की पुरानी नीति की जरूरत को एक बार फिर रेखांकित किया। जी-7 शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी के संबोधन के क्या हैं वैश्विक मायने और यह दुनिया के लिए कितनी जरूरी है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

जी-7 शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन ‘ग्लोबल साउथ’ के हिमायती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद, व्यापार और विकास जैसे अहम वैश्विक मुद्दों पर दुनिया के प्रमुख नेताओं के साथ बातचीत के दौरान जो नसीहत दी, उसके वैश्विक मायने खास हैं और उन्हें समझने-समझाने की भी जरूरत है, ताकि भारत के मतदाताओं में अपने अंतरराष्ट्रीय हितों के प्रति भी जागरूकता पनपे और बढ़े।

कनाडा के कनानास्किस में आयोजित जी-7 आउटरीच सत्र को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की सख्त नीति को दोहराया और इस वैश्विक खतरे के खिलाफ एकजुट होकर निर्णायक कार्रवाई की मांग की। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि आतंक समर्थक देशों को इसकी कीमत चुकानी होगी। उनका इशारा अमेरिका, कनाडा, जापान, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूरोपीय संघ के उन देशों की तरफ था, जो अमेरिकी अगुवाई में लोकतंत्र की बात तो करते हैं, लेकिन आतंकवादी समर्थक देशों को भी वित्तीय मदद देते और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से दिलवाते हैं।

यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने बिना लाग लपेट के दो टूक शब्दों में कहा कि वैश्विक शांति और समृद्धि के लिए हमारी सोच और नीति स्पष्ट होनी चाहिए। यदि कोई देश आतंकवाद का समर्थन करता है, तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी। उन्होंने यहां तक कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की कार्रवाई में दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए। ऐसा कहकर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की पक्षपाती भूमिका पर भी सवाल खड़े दिये।

प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक ओर हम अपनी पसंद के अनुसार विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध जल्दी से लगा देते हैं, वहीं दूसरी ओर जो देश खुलेआम आतंकवाद का समर्थन करते हैं, उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। यह दोहरी नीति बंद होनी चाहिए। समझा जाता है कि पीएम मोदी का इशारा पाकिस्तान की तरफ था, जिसे अमेरिका-चीन दोनों का सहयोग और समर्थन हासिल है। यह भारत के लिए चिंता की बात है, क्योंकि वह भारत में आतंकवाद व अन्य खुराफातों को बढ़ावा देता है। भारत को टुकड़े करने के स्वप्न देखता है। साथ ही पीएम मोदी ने जी-7 मंच से ग्लोबल साउथ के मुद्दे भी उठाये। प्रधानमंत्री ने जी-7 नेताओं के साथ अपनी बातचीत को उपयोगी बताया और कहा कि चर्चा वैश्विक चुनौतियों और बेहतर भविष्य की आशाओं पर केंद्रित रही। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान ग्लोबल साउथ की चिंताओं और प्राथमिकताओं पर ध्यान दिए जाने का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भारत ह्यग्लोबल साउथह्ण की आवाज को वैश्विक मंच पर पहुंचाना अपनी जिम्मेदारी समझता है। ह्यग्लोबल साउथह्ण शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों के संदर्भ में किया जाता है।

उल्लेखनीय है कि ‘ग्रुप ऑफ सेवन’ (जी-7) दुनिया की सात उन्नत अर्थव्यवस्थाओं- फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, इटली और कनाडा और यूरोपीय संघ का एक अनौपचारिक समूह है। इसके सदस्य वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए हर साल जी-7 शिखर सम्मेलन में मिलते हैं। हालांकि हैरत की बात तो यह है कि इसमें दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन, चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत और दूसरी सैन्य महाशक्ति रूस को जगह नहीं दी गयी है। कोढ़ में खाज यह कि इसमें रूस को पुन: शामिल किये जाने, चीन को भी लाने की जरूरत अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने समझी, लेकिन भारत के विषय में चर्चा तक नहीं की। इससे उनकी पक्षपाती और भितरघाती मनोदशा का पता चलता है। ऐसा इसलिए कि भारत ने पिछले 11 वर्षों में आशातीत उन्नति की और रूस का भरोसेमंद वैश्विक पार्टनर बना रहा। चूंकि भारत अमेरिकी इशारे पर चीन से नहीं उलझा, इसलिए वह अब अमेरिका के किसी काम का नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिज्ञ बताते हैं कि भारत को देखते हुए इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली जैसे यूरोपीय संघ के देश भी अब अमेरिका को ज्यादा भाव नहीं देते। इजरायल और जापान भी इसी राह पर है, क्योंकि सबको भारत या चीन के रूप में एक मजबूत विकल्प मिल रहा है। यही वजह है कि अमेरिका अब पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रखकर भारत को घायल करने की नीति पर चल रहा है, खासकर आॅपरेशन सिंदूर के बाद, ताकि चीन भी उससे प्रसन्न रहे।

वहीं, भारत के प्रधानमंत्री मोदी भी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की बदली मानसिकता को समझ चुके हैं। इधर, मोदी के कनाडा पहुंचते ही ट्रंप के वहां से निकल जाने के भी मायने तलाशे जा रहे हैं। यही वजह है कि शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री मोदी ने कई द्विपक्षीय मुलाकातें भी कीं। साथ ही, अमेरिका के आग्रह पर फोन पर ट्रंप से बातचीत करते हुए भारत के मामले में मध्यस्थता करने के उनके सपने को जोर का झटका धीरे से दिया। वहीं, अचानक अमेरिका पहुंचने से इनकार करते हुए उन्हें ही भारत के लिए आमंत्रित कर डाला। वो भी उसी क्वाड की बैठक के लिए, जिसमें भारत की अरुचि जगजाहिर है। इसके अलावा, उन्होंने कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीयर स्टार्मर, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे-म्युंग, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी और आॅस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी एल्बानीज के साथ मुलाकात की। इन बैठकों में व्यापारिक सहयोग, निवेश बढ़ाने और वैश्विक आर्थिक साझेदारी मजबूत करने पर चर्चा हुई।

पीएम मोदी ने ठीक ही कहा है कि उपलब्धता, पहुंच, सामर्थ्य, स्वीकार्यता के मूलभूत सिद्धांतों पर आगे बढ़ते हुए भारत ने समावेशी विकास का मार्ग चुना है। मोदी ने अपने संबोधन में एक स्थायी एवं हरित मार्ग के माध्यम से सभी के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और इस उद्देश्य की दिशा में भारत की वैश्विक पहलों जैसे कि अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन और वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन के बारे में विस्तार से बताया।
वहीं, मोदी ने ठीक ही कहा कि एआइ अपने आप में एक ऐसी प्रौद्योगिकी है, जिसके लिए बहुत ऊर्जा की आवश्यकता है। अगर प्रौद्योगिकी-संचालित समाज की ऊर्जा आवश्यकताओं को स्थायी रूप से पूरा करने का कोई तरीका है, तो वह नवीनीकृत ऊर्जा के माध्यम से ही है। उन्होंने ठीक ही कहा कि पिछली सदी में ऊर्जा के लिए प्रतिस्पर्धा थी लेकिन इस सदी में हमें प्रौद्योगिकी के लिए सहयोग करना होगा।
खास बात यह है कि भारत और कनाडा के बीच कुछ समय से चले आ रहे राजनयिक तनाव को समाप्त करने की दिशा में भी एक सकारात्मक पहल हुई। दोनों देशों ने नये उच्चायुक्तों की नियुक्ति पर सहमति जतायी, जिससे वीजा, वाणिज्य और अन्य सेवाएं सामान्य हो सकेंगी। इसे जी-7 सम्मेलन में पीएम मोदी की भागीदारी भारत की वैश्विक भूमिका को और मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम के रूप में देखी जा रही है, जहां भारत ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख और विकासशील देशों की आवाज को बुलंद किया।

जाहिर है कि जी-7 शिखर सम्मेलन कनाडा में भारत की नसीहत के वैश्विक मायने स्पष्ट हैं, जिससे अमेरिका और यूरोपीय देशों ने सबक नहीं ली तो वैश्विक मुस्लिम चक्रब्यूह में घिरने और पीटने से उन्हें कोई नहीं रोक पायेगा, क्योंकि रूस-चीन-उत्तरी कोरिया इसका ब्लूप्रिंट तैयार कर चुके हैं। भारत की मूक सहमति मिलते ही वज्रपात शुरू हो सकता है। वहीं अमेरिका की योजना ईरान के बाद भारत को बर्बाद करने की है, क्योंकि उसकी पहलगाम फितरत औंधे मुंह गिरी है। इसलिए इजरायल को आगे करके अमेरिका एक नया प्रयोग कर रहा है, जिससे भी मोदी प्रशासन सजग प्रतीत होता है।

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