रांची: पानी रे पानी, तेरा रंग कैसा…। पांच दिन से लगतार हो रही झमाझम बारिश से समूचा झारखंड पानी-पानी हो गया है। आफत की बारिश से पूरा झारखंड बेहाल है। झारखंड की करीब डेढ़ करोड़ आबादी लगातार हो रही मूसलधार बारिश से घरों में कैद हो गयी है। 500 करोड़ से अधिक का कारोबार प्रभावित हुआ है। गांव के हाट-बाजार में वीरानी छायी हुई है। शहरों में मजदूरों की मंडी नहीं लग पा रही है। इसका सर्वाधिक असर मजदूरों के घरों में दिख रहा है। करीब पांच लाख दिहाड़ी मजदूरों के चेहरे से काम के अभाव में हंसी गायब हो गयी है। अधिकांश के घरों में चूल्हा नहीं जला। इंधन के अभाव और घरों में पानी भर जाने के कारण बहुतों ने चूड़ा-गुड़ खाकर भूख शांत की। वे लोग पल-पल भगवान इंद्र से मदद मांग रहे हैं। अधिकांश के घरों में पानी भर गया है या कच्चे घरों से पानी रिस रहा है, वहीं कइयों की झोपड़ी उजड़ गयी है। राज्य के करीब दस हजार गांव-टोला टापू में तब्दील हो गये हैं। इनका मुख्यालय से संपर्क टूट गया है। चाहते हुए भी लोग घर से नहीं निकल पा रहे हैं। करीब 100 से अधिक पुल-पुलिया और डायवर्सन बह गया है। बारिश के साइट इफेक्ट की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब तक झारखंड में 16 की मौत हो चुकी है। गांव में आलम यह है कि लोग वज्रपात के खौफ से खेती-किसानी से भी परहेज कर रहे हैं। कारण हाल के दिनों में वज्रपात से आधा दर्जन लोगों की मौत की खबरें उन्हें परेशानी में डाले हुए है। संचार के तमाम संसाधनों से लैस होने का दावा करने वाली शहर रांची में भी लोग घरों में कैद होकर रह गये हैं। गांव में तो पैसा होने के बावजूद लोगों को मनचाहा भोजन नहीं मिल पा रहा है। परेशानी तो तब और बढ़ गयी, जब रांची में हर तरफ पानी दिखा, लेकिन कई घरों में पीने का पानी नहीं आया। इधर, बारिश के कारण स्कूलों को बंद कर दिया गया है।
लगातार बारिश के कारण दस जिलों को अलर्ट मोड में डाला गया है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर इन जिलों को पत्र भेज दिया गया है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री ने मृत्यु होने पर चार लाख रुपये देने की घोषणा भी की है। मूसलाधार बारिश से जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है। वहीं सभी जिलों की नदियां उफान पर हैं। उफनाती नदियों के बढ़ते जलस्तर के कारण डैम पर पड़ने वाले दबाव को देखते हुए उनके फाटक खोल दिये गये हैं। ग्रामीण इलाकों में छोटे-बड़े नदी, नाले और डैम लबालब भर गये हैं। कॉलेज, स्कूल और आॅफिस जाने वालों के लिए बारिश आफत बन गयी है। चार पहिया वाहनों की सवारी करनेवालों पर बारिश का कोई खास असर नहीं हो रहा है लेकिन दो पहिया वाहन पर सवार लोगों के लिए मुसीबत है। भारी बारिश में रेन कोर्ट और छाता भी बेअसर है। कई लोग घरों में ही दुबके रहे। सड़कों पर ही सन्नाटा पसरा है।
भारी बारिश के कारण मजदूरों की मंडी नहीं सज रही है। इस कारण इनके घरों में चूल्हा नहीं जल रहा है। बच्चों को पालना मुश्किल हो रहा है। बच्चों की भूख से परेशानहाल कुछ मजदूर बुधवार को रांची में दिखे। उनकी आंखों में उम्मीद थी कि शायद उन्हें मजदूरी मिल जायेगी और बच्चों के लिए रोटी का जुगाड़ हो जायेगा। घर से निकलते समय इनकी आंखों में तरह-तरह के सपने तैर रहे थे, जो दिन के 12 बजते ही ताश के पत्तों की भहरा गये। फिर से बुझा चेहरा लेकर घर लौटने को विवश हैं। उन्हें पता है कि मजदूरी मिलेगी तभी घर का चूल्हा जलेगा। लालपुर मंडी में करीब तीन घंटे इंतजार के बाद वापस घर लौटने को मजबूर रामकिशुन कहता है कि घर में छह सदस्य हैं। कमाने वाला मैं अकेला हूं। दिनभर मजदूरी करने पर तीन सौ रुपये मिलते हैं। तीन दिन से वह भी नहीं मिला है। आज भी काम नहीं मिला। पता नहीं, आज घर में कैसे चूल्हा जलेगा। बच्चों को क्या खिलायेंगे। सुबह कह कर आया था कि आज शाम में भात-दाल पकेगा, लेकिन अब तो उम्मीद कम ही लग रही है। पानी में तब्दील शहर में उनका रोजगार छीन गया है। उनकी दो जून की रोटी पर भी आफत आ गयी है। ग्रामीणों के घरों में बरसात का पानी घुस गया है। गृहस्थी का सामान और अनाज आदि भी पानी से बर्बाद हो गया हैं। इसके चलते कई गांवों में ग्रामीणों के चूल्हे तक नहीं जले हैं। कई मकान भी क्षतिग्रस्त हो गये हैं। पहाड़ी क्षेत्र के मजदूरों को घर से निकलना मुश्किल हो गया है। इक्के-दुक्के मजदूर काम की तलाश में शहर पहुंच भी रहे हैं, लेकिन इधर-उधर भटककर वापस घर चले जा रहे हैं। इनके घरों में चूल्हा तक नहीं जल रहा है। जैसे-तैसे जिंदगी कट रही है।
झारखंड में इस बार बारिश आफत बनकर बरसी है। पिछले पांच दिनों में करीब पांच सौ करोड़ का कारोबार प्रभावित होने का अनुमान है। कारण झारखंड के गांव में भी हाट-बाजार नहीं लगा है। सब्जियां घरों में सड़ रही हैं। सब्जी मंडी में भी कुछ दुकानदार पहुंच रहे हैं, लेकिन ग्राहक ही नहीं आ रहे हैं। रोजमर्रा की जरूरत की खरीद नहीं होने को लेकर सब्जी व्यापारी परेशान रहे। खासकर फल व्यवसायियों को नुकसान सता रहा है। कारण शहर में लोग खरीदारी करने नहीं निकल रहे हैं। इस कारण यातायात से जुड़े लोगों की परेशानी बढ़ गयी है। दूसरी ओर मोटिया मजदूर को मान नहीं मिल पा रहा है। बरियातू के फल विक्रेता रामकुमार बताते हैं कि चार दिन से बोहनी पर आफत हो गयी है। हर दिन बारिश में भीग कर दुकान लगाते हैं, लेकिन कोई खरीदार नहीं आ रहा है। अब तो फल भी खराब होने लगा है। अब इसका लागत मूल्य भी लगता है नहीं निकल पायेगा। आम दिनों में फेरी वाले मनिहारी के सामान से लेकर कपड़े, बर्तन जैसी चीजें बेचने साइकिल पर लाद कर गांव पहुंचते थे। लेकिन यह सिलसिला बिल्कुल थम गया है। गांवों में लगने वाले हाट भी अब सूने हो गये हैं। बारिश के कारण हाट-बाजारों में भी दुकानें नहीं लग रही हैं।