भाजपा नेता की परिवार समेत हत्या से ग्रामीण दहशत मे

झारखंड की राजधानी रांची से सटे खूंटी में सोमवार की रात एक और वारदात हुई, जब मुरहू में भाजपा नेता मागो मुंडा की उनकी पत्नी और बेटे के साथ हत्या कर दी गयी। बेखौफ अपराधी उनके घर में घुसे और तीन लोगों की हत्या कर आराम से चलते बने। इस घटना ने पूरे खूंटी को झकझोर कर रख दिया है। पुलिस और प्रशासन के अधिकारी घटना की जांच कर रहे हैं, लेकिन यह केवल एक आपराधिक वारदात नहीं है, बल्कि पूरी व्यवस्था को चुनौती है।
बराबर अशांत रही है बिरसा की जन्मस्थली
पिछले कुछ साल से खूंटी लगातार गैर-कानूनी कार्यों के कारण चर्चा के केंद्र में रहा है। चाहे असंवैधानिक पत्थलगड़ी हो या कोचांग का गैंगरेप कांड, नक्सलियों की बढ़ती गतिविधियां हों या अफीम की खेती-तस्करी, या फिर राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों की हत्या जैसे अपराध हों, खूंटी का नाम चर्चा में रहा है। असंवैधानिक पत्थलगड़ी पर पूरी तरह नियंत्रण पाने के बाद पुलिस-प्रशासन को लगा था कि समस्याएं खत्म हो गयी हैं। लेकिन हकीकत यह नहीं है। खूंटी प्रशासन को यह आभास शायद नहीं हुआ कि अभी उसे कई मोर्चों पर भिड़ना है। इलाके में प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन पीएलएफआइ की गतिविधियां लगातार बढ़ती रहीं। नक्सली अफीम के सौदागरों के साथ सांठगांठ करने लगे और इलाके में इस गैर-कानूनी काम को बढ़ावा देते रहे। इसके अलावा भाजपा के खिलाफ लोगों को भड़काने में भी नक्सलियों ने बड़ी भूमिका निभायी।
अफीम का काला कारोबार
हालत यहां तक पहुंच गयी कि खूंटी जिले को लोग ‘उड़ता खूंटी’ के नाम से पुकारने लगे। कहा जाने लगा कि धरती आबा भगवान बिरसा की जन्मस्थली बहुत जल्दी अफगानिस्तान बन जायेगी, क्योंकि नक्सलियों के सहयोग से अफीम की खेती यहां बेरोक-टोक जारी है। पुलिस ने इसके खिलाफ अभियान चलाया और अब तक करीब एक हजार एकड़ में हो रही अफीम की खेती को नष्ट किया गया है। लेकिन कारोबार पूरी तरह थमा नहीं है।
पुलिस-प्रशासन से कट रहे हैं लोग
दो साल पहले जिस असंवैधानिक पत्थलगड़ी के कारण खूंटी की चर्चा पूरी दुनिया में हुई थी, उस पर रोक तो लग चुकी है, लेकिन जिले के कई इलाकों में लोग अब भी प्रशासन से जुड़ नहीं सके हैं। पुलिस-प्रशासन पर उनका भरोसा पूरी तरह कायम नहीं हो सका है। इसके पीछे कारण यह है कि पुलिस प्रशासन ने कभी इसके लिए ईमानदार कोशिश ही नहीं की। इक्का-दुक्का तरीके से पुलिस ने ग्रामीणों का विश्वास जीतने की कोशिश जरूर की, लेकिन यह काफी नहीं है। हालत यहां तक पहुंच गयी कि आज भी खूंटी में लोग केंद्र या राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ लेने से हिचकते हैं। उनके मन में यह बात बैठा दी गयी है कि यदि उन्होंने सरकारी योजनाओं का लाभ लिया, तो उनकी जमीन छीन ली जायेगी। भोले-भाले आदिवासियों को इस तरह के बेसिर-पैर के तर्क देकर बरगलाया जा रहा है और प्रशासन पूरी तरह असहाय है।
निशाने पर खूंटी क्यों
यहां सवाल यह उठता है कि आखिर खूंटी निशाने पर क्यों है। इसका जवाब यह है कि खूंटी पूरे देश में इसाई मिशनरियों का सबसे बड़ा केंद्र है। इसके साथ ही यह भाजपा का मजबूत गढ़ भी है। स्वाभाविक तौर पर इनके बीच की प्रतिद्वंद्विता अक्सर सामने आती रहती है। ऐसे में खूंटी को लगातार अशांत रख कर ही गैर-कानूनी तत्व अपनी गोटी लाल कर सकते हैं। इसलिए ऐसे तत्व समय-समय पर व्यवस्था को चुनौती देते रहते हैं।
खूंटी के सांसद अर्जुन मुंडा केंद्र में मंत्री हैं और यहां के विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा राज्य सरकार के मंत्री हैं। इन दोनों की हैसियत बहुत ऊंची मानी जाती है। इसके अलावा खूंटी राज्य के राजनीतिक-प्रशासनिक मुख्यालय से एकदम सटा हुआ है। इतना सब कुछ होने के बावजूद खूंटी ऐसे गैर-कानूनी तत्वों के निशाने पर क्यों और कैसे है, इस सवाल का जवाब तलाशना बहुत जरूरी है। खूंटी की भौगोलिक स्थिति भी अपराधियों-नक्सलियों और दूसरे असामाजिक तत्वों के लिए सुरक्षित पनाहगाह का काम करती है। इसके अलावा इलाके में सक्रिय देशतोड़क संगठन और लोग भी उनके स्वाभाविक मददगार बन जाते हैं। भोले-भाले आदिवासियों को बरगलाना भी उनके लिए बेहद आसान होता है।
जन प्रतिनिधियों को आगे आने होगा
खूंटी को हाथ से बाहर जाने से रोकने के लिए जन प्रतिनिधियों को आगे बढ़ कर सक्रिय भूमिका निभानी होगी। दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर उन्हें समाज के निचले स्तर पर जाकर काम करना होगा। खूंटी को बचाने के लिए वोट की राजनीति को कुछ समय के लिए पूरी तरह छोड़ना होगा। जन प्रतिनिधियों ने यदि प्रशासन के साथ मिल कर ईमानदार प्रयास किया, तो फिर समस्या का समाधान संभव है, अन्यथा धरती आबा की यह धरती खून से लाल होती रहेगी।
अब यह प्रशासन और जन प्रतिनिधियों के साथ समाज के जागरूक लोगों के सामने चुनौती है कि वे किस तरह इस खूबसूरत इलाके को शांत करते हैं, लोगों के भीतर विश्वास पैदा करते हैं और इलाके को बाहरी दुनिया से जोड़ते हैं। इसके लिए उन्हें जल्द से जल्द सक्रिय होना पड़ेगा, अन्यथा वह दिन दूर नहीं, जब खूंटी की पहचान एकदम अलग और अशांत इलाके के रूप में स्थापित हो जायेगी।

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