हेमंत के बदले सुर, अब 50 सीटों पर दावा पुख्ता नहीं
विपक्ष की संयुक्त बैठक में एक और निर्णय हुआ है कि 81 विधानसभा सीटों में शेष बची 42 सीटों पर भी ऐसे दलों को मौका मिलेगा, जिनके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे। ऐसे में यह गणना काबिलेगौर होगी कि इसके अनुसार किस दल को कितनी सीटें जा सकती हैं। देखा जाये, तो फिलहाल झामुमो के खाते में 19, कांग्रेस के खाते में नौ, वाम दलों के दो और झाविमो के खाते में दो सीटें हैं। ये कुल 42 सीटें होती हैं। इसके अलावा छह बागियों की सीटें हैं, जिन पर झाविमो का दावा है। इसके बाद अब बात करें दूसरे नंबर पर रहे दलों की। 2014 के विधानसभा चुनाव में झामुमो करीब 16 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहा था। वहीं, झाविमो करीब आठ और कांग्रेस सात सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। इसके अलावा आरजेडी चार और शेष अन्य दलों के खाते में गयी थीं। देखा जाये, तो 19 जीत और 16 सेकेंड पोजिशन को लेकर झामुमो के खाते में कुल 35 सीटें ही आती दिख रही हैं, जो 60 फीसदी से तो कम ही होंगी। इस प्रकार कांग्रेस की 17 सीटों और झाविमो की 15 सीटों पर दावेदारी बनती दिख रही है। परंतु यह सिर्फ सीटों की गणना पर शेयरिंग का एक आधार हो सकता है। क्योंकि जब सीटों के बंटवारे की बात आयेगी, तो राजद के दोनों गुट, वामपंथी दलों का दावा भी देखना होगा, क्योंकि सभी को एक छत के नीचे लाने की बात चल रही है। ऐसे में गणना के बावजूद प्रमुख दलों को अपनी सीटें कम करनी पड़ सकती हैं। ऐसे में संभव है कि झामुमो को 30-32, कांग्रेस को 12-14, झाविमो 12-14 सीटों से ही संतोष करना पड़े। वामपंथी दलों का दावा भी आठ सीटों और राजद के दोनों गुटों का 6-6 सीटों पर हो सकता है।
क्यों कमजोर पड़ने लगा झामुमो
लोकसभा चुनाव के बाद ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने झामुमो को पीछे धकेला है। इनमें सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है शिबू सोरेन की दुमका से हार। दुमका जो संथाल की राजधानी मानी जाती है। संथाल यानी झामुमो का गढ़। अपने गढ़ में झामुमो सुप्रीमो की पराजय से पार्टी अब तक उबर नहीं पायी है। साथ ही अन्य सभी उम्मीदवारों की हार से भी दल की हालत पतली हुई है। इधर पिछले दिनों सीएनटी-एसपीटी उल्लंघन मामले में अरोपों को झेल रहा सोरेन परिवार भी पार्टी के तेवर में आयी नरमी का एक कारण जरूर है। इसका अंदाजा बुधवार को विपक्ष की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए हेमंत सोरेन को देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। हेमंत सोरेन की बॉडी लैंग्वेज बदले तेवर का हवाला दे रही थी। बात करते हुए वह कई बार रूके भी, जो अमूमन नहीं होता।
अपने ही गढ़ में घिरने से टूट रही हिम्मत
लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार और संथाल परगना में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए राज्य की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा पूरी तरह से बैकफुट पर है। संथाल में अपनी गिरती साख को देख पार्टी के लिए अपने राजनीतिक वजूद को बचाना जरूरी-सा हो गया है। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन जानते हैं कि महागठबंधन में अपनी मजबूत स्थिति बनाये रखने के लिए अधिक से अधिक सीटों पर जीतना जरूरी है। अब तो स्थिति यह हो रही है कि गठबंधन के नेतृत्व को लेकर अन्य दल सवाल न उठाना शुरू कर दें। यही कारण है कि झामुमो ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहता है। खास तौर पर संथाल की सभी 18 सीटों पर पार्टी की नजर है। दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव में जीत से उत्साहित सीएम रघुवर दास ने जिस तरह से संथाल परगना में अपना दबाव बढ़ावा है, उससे भी जेएमएम काफी दबाव में है। वर्तमान में संथाल परगना की 18 विधानसभा में से आठ पर बीजेपी काबिज है। वहीं लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कुल 11 विधानसभा में महागठंबधन उम्मीदवारों की तुलना में ज्यादा वोट मिले हैं। इससे भी जेएमएम काफी दबाव में है।
आसान नहीं है विधानसभा की राह
विपक्षी महागठबंधन की पीठ पर सवार होकर चुनावी वैतरणी पार करने का सपना संजोने वाले झामुमो को लोकसभा चुनाव में गहरा झटका लगा है। झामुमो के सर्वाधिक करिश्माई चेहरा शिबू सोरेन को इस चुनाव में दुमका सीट पर भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन ने पटखनी दे दी। इससे झारखंड मुक्ति मोर्चा का शीर्ष नेतृत्व सकते में है। दो दिनों तक लगातार राजधानी में मैराथन बैठक करने के बाद झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने रणनीति बनायी है कि संगठन को हर स्तर पर मजबूत करेंगे। मोर्चा अपने गढ़ संथाल परगना को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंकेगा, लेकिन भाजपा की अभेद राजनीति के आगे उसकी राह आसान नहीं है। इसका अहसास झामुमो के शीर्ष नेतृत्व को भी है। शिबू सोरेन की हार से राजनीतिक गलियारे में इस बात को बल मिल रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में झामुमो के लिए संथाल परगना अभेद्य किला नहीं रहा। भाजपा ने इसमें तगड़ी सेंधमारी की है।
हेमंत के आवास पर हुई बैठक में विपक्षी दलों का कुनबा जुटा। इसमें कांग्रेस से विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, झाविमो से सरोज कुमार, राजद के अभय सिंह, मासस विधायक अरूप चटर्जी ही मुख्य रहे। बाबूलाल मरांडी और डॉ अजय कुमार की अनुपस्थिति चर्चा का विषय जरूर रही, पर डॉ अजय बाहर हैं और उन्होंने आलमगीर आलम को बैठक में शामिल होने के लिए अधिकृत किया था। बैठक में मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने पर सहमति बनी। वामपंथी दलों को भी एक छत के नीचे लाने की योजना है। वहीं राजद के गौतम सागर राणा को भी साथ लाने का प्रयास है।

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