अजय शर्मा
रांची। सारंडा में हुई एक मुठभेड़ जांच में फर्जी साबित हुई है। मामला पलटने के बाद पुलिस की अगुवाई करनेवाले सीआरपीएफ की 97वीं बटालियन के तत्कालीन सहायक कमांडेंट सुरेश प्रसाद विश्वास को झारखंड पुलिस गिरफ्तार करेगी। इसके लिए अदालत से वारंट लिये जाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। करीब आठ साल तक चली जांच की प्रक्रिया पूरी होने के बाद जांच करनेवाली एजेंसी इस नतीजे पर पहुंची है कि मुठभेड़ की पूरी कहानी फर्जी है और पुलिस का दावा झूठा है।
क्या थी घटना
28 जून 2011 को चाईबासा के छोटा नागरा इलाके में नक्सलियों का प्रशिक्षण कैंप चलने की सूचना पर सीआरपीएफ और पुलिस की संयुक्त टीम वहां गयी थी। उसका नेतृत्व सहायक कमांडेंट कर रहे थे। वह अब कमांडेंट हैं। पुलिस को देखते ही नक्सली उस इलाके से भाग खड़े हुए थे। सीआरपीएफ और पुलिस की संयुक्त टीम ने मौके से ढेर सारे सामान बरामद किये थे। गांव से घटनास्थल तक रास्ता दिखाने के लिए मंगल होनहांगा नामक ग्रामीण को टीम अपने साथ लेकर गयी थी। सुरक्षा बलों द्वारा बरामद सामान भी उसने ही ढोया था। इसमें तंबू, जेनरेटर, दवाएं, पानी की बोतलें, जूता-चप्पल, दरी आदि शामिल थे। वहां एक शौचालय भी बना था, जिसे सुरक्षा बलों ने ढाह दिया था। जिस मंगल से सारा सामान वाहन तक ढुलवाया गया था, बाद में उसी को गोली मार दी गयी थी। सुरक्षा बलों ने मंगल को नक्सली करार दिया था। छोटा नागरा थाना में कांड संख्या 09/12 दर्ज है। इसी मामले की जांच सीआइडी कर रही है।
जांच में पता चला कि मामला मनगढंत है
जांच के दौरान पाया गया कि पुलिस की एफआइआर भी गलत है। घटना पूरी तरह मनगढ़ंत और झूठी है। सीआरपीएफ के कुछ अधिकारियों ने सहयोग करनेवाले को गोली मार दी थी। उन्होंने गलत तरीके से एक निर्दोष आदिवासी युवक को नक्सली बताने की कोशिश भी की। जांच के क्रम में सहायक कमांडेंट के रिवॉल्वर की भी जांच की गयी थी। उससे फायरिंग की पुष्टि हुई। अब पूरा मामला पलट गया है। कमांडेंट अभी बिहार के कटिहार में पदस्थापित हैं।
दोषी हैं, तो होगी कार्रवाई : सीआरपीएफ
सीआरपीएफ के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि इस मामले में तत्कालीन सहायक कमांडेंट को नोटिस जारी किया गया है। सीआरपीएफ मुख्यालय को भी घटना की पूरी जानकारी दे दी गयी है। दोषी अधिकारी पर इस मामले में कानून सम्मत कार्रवाई होगी।