प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में बड़ा एलान किया। उन्होंने कोरोना संकट के कारण देश में चल रही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को नवंबर तक जारी रखने की घोषणा की, जिसके तहत देश भर के 80 करोड़ जरूरतमंद लोगों को अगले पांच महीने तक मुफ्त राशन मिलता रहेगा। प्रधानमंत्री की इस घोषणा का चारों तरफ स्वागत हुआ है, लेकिन क्या किसी ने इस बात पर ध्यान दिया कि यह मांग सबसे पहले झारखंड से उठी थी। पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार को पत्र लिख कर अगले छह महीने के लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराने को कहा था, ताकि झारखंड के जरूरतमंदों को कोई तकलीफ न हो। किसी भी राज्य की ओर से इस तरह की यह पहली मांग थी। इस तरह सवा तीन करोड़ की आबादी वाले झारखंड की मांग को प्रधानमंत्री ने पूरी तरह सही करार दिया है। हेमंत सोरेन के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि अब तक उन्होेंने एक भी फैसला ऐसा नहीं लिया है, जिसकी उपयोगिता पर सवाल खड़ा किया जा सके। चाहे लॉकडाउन का फैसला हो या फिर इसकी अवधि बढ़ाने का, चाहे प्रवासी कामगारों को वापस लाने के लिए विशेष ट्रेन चलाने का मुद्दा हो या फिर विशेष विमान की व्यवस्था करने की, हेमंत सोरेन ने हमेशा आगे बढ़ कर काम किया और उनके फैसले पूरे देश के लिए नजीर बने। हेमंत सोरेन की मांग और प्रधानमंत्री के एलान की पृष्ठभूमि में मुफ्त राशन देने की योजना का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
मंगलवार 30 जून को शाम चार बजे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में देश के 80 करोड़ लोगों को नवंबर तक मुफ्त राशन देने की घोषणा कर रहे थे, दिल्ली से एक हजार किलोमीटर दूर झारखंड में लोग इस बात पर आश्चर्य व्यक्त कर रहे थे कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तो छह दिन पहले ही अपने राज्य के लोगों को दिसंबर तक मुफ्त राशन देने की तैयारी करने की घोषणा की थी और इसके लिए उन्होंने केंद्र से अनाज उपलब्ध कराने की मांग की थी। आम लोगों से लेकर खास तक में बुधवार को इसी बात की चर्चा रही कि प्रधानमंत्री की घोषणा के पीछे हेमंत सोरेन की वह मांग ही थी। किसी राज्य के मुख्यमंत्री के लिए यह बड़ी बात है।
दरअसल, सत्ता संभालने के बाद से ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आनेवाले संकट की आहट पहचान लेते हैं और उससे निबटने के लिए अपनी कार्य योजना बनाने में जुट जाते हैं। उनकी यही विशेषता उन्हें दूसरे राजनीतिज्ञों से अलग करती है। याद कीजिए, जब देश में कोरोना के कारण लॉकडाउन नहीं हुआ था और झारखंड में संक्रमण का एक भी मामला सामने नहीं आया था, तब हेमंत सोरेन ने 20 मार्च को ही स्कूल-कॉलेजों और सार्वजनिक परिवहन को बंद करने का फैसला ले लिया था। उस समय उनके फैसले की आलोचना भी हुई थी, लेकिन पांच दिन बाद ही देश स्तर पर लॉकडाउन लागू किया गया। उन पांच दिनों में हेमंत ने झारखंड के सिस्टम को कोरोना संकट से लड़ने के लिए तैयार कर लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि झारखंड में कहीं कोई अफरा-तफरी नहीं मची और न किसी को भूखे पेट सोना पड़ा। सामुदायिक किचेन और थानों में खाना बनाने की व्यवस्था तो सभी राज्यों ने की, लेकिन झारखंड ऐसा पहला राज्य बना, जहां दूर-दराज के गांव में भी जरूरतमंदों को भोजन देने के लिए पंचायत स्तर पर मुख्यमंत्री दीदी किचेन का इंतजाम किया गया।
इसके बाद प्रवासी श्रमिकों के लौटने का मुद्दा सामने आया। बिहार और यूपी जैसे बड़े राज्य जब तक इस बारे में योजना बनाते, हेमंत ने चुपचाप विशेष ट्रेन की व्यवस्था की और एक मई को देश की पहली श्रमिक स्पेशल ट्रेन करीब 12 सौ श्रमिकों को लेकर रांची पहुंच गयी। उन श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था भी हेमंत सरकार ने की। हेमंत का यह बड़ा एक्सरसाइज बाद में पूरे देश के लिए नजीर बना। इसी तरह लेह-लद्दाख और अंडमान जैसे दूरस्थ इलाकों में फंसे प्रवासी श्रमिकों को विमान से लानेवाला पहला राज्य भी झारखंड ही बना। इसी दौरान रोजगार के लिए तीन नयी योजनाएं शुरू कर उन्हें लागू करने का श्रेय भी झारखंड को ही मिला। इतना ही नहीं, घर लौटनेवाले प्रवासी श्रमिकों को काम देने के मामले में भी झारखंड ने दूसरे राज्यों से बाजी मार ली और एक महीने के भीतर ही पांच लाख लोगों को झारखंड सरकार ने काम भी दे दिया। क्वारेंटाइन की निर्धारित अवधि पूरी करनेवाले सभी प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा का जॉब कार्ड खुल गया और उन्हें उनके गांव में ही रोजगार मिल गया। हेमंत यहीं नहीं रुके। उन्होंने लेह-लद्दाख में सड़क बनाने में विशेषज्ञता हासिल कर चुके झारखंड के श्रमिकों को सीमा पर भेजने से पहले उनके हितों की सुरक्षा के लिए लिखित समझौता किया, जो बाद में दूसरे राज्यों में लागू हुआ। फिर शहरों में लौटनेवाले प्रवासी श्रमिकों के लिए अलग से रोजगार देने के लिए मुख्यमंत्री रोजगार गारंटी योजना का आइडिया भी हेमंत सोरेन का ही था, जिसे बाद में यूपी और बिहार ने अपनाया।
इन तथ्यों से यह साफ हो जाता है कि दूसरे राज्य और यहां तक कि कुछ मामलों में केंद्र जो बाद में सोचते हैं, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन उसे पहले सोचते हैं। चाणक्य नीति में कहा गया है कि असली नायक वही होता है, जो आगे की सोचता है और संकट को पहचानने की क्षमता रखता है।
इस नीति के हिसाब से हेमंत सोरेन ने अपनी दूरगामी सोच और आसन्न संकट को पहचानने की अपनी क्षमता से झारखंड को दूसरों के मुकाबले एक कदम आगे ही रखा है। अभी कोरोना संकट के कारण बहुत उम्मीद नहीं करनी चाहिए, लेकिन अब यह साफ हो गया है कि झारखंड की कमान एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो प्रदेश के बारे में सोचता है और ठोस फैसले लेने की क्षमता रखता है। हेमंत सोरेन ने यह भी साबित कर दिया है कि उनके लिए सबसे पहली और अंतिम सोच झारखंड और यहां के लोग ही हैं।