कुशीनगर के पचरुखिया में 29 अगस्त 1994 को दस्यु सरगनाओं ने जब छह पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतारा था। उस समय भी पुलिस ने ठीक कानपुर गैंगवार के बाद कि तरह जंगल दस्युओं के खात्मे का अभियान चलाया था। तब बिहार प्रान्त की पुलिस ने भी यूपी पुलिस का सहयोग किया था। संयुक्त ऑपरेशन में पुलिस ने चुन चुन—कर दस्युओं को मारा। उसके बाद से फिर कभी दस्यु उभर नहीं पाए। यूं कह लीजिए जंगल पार्टी के नाम से कुख्यात दस्युओं से कुशीनगर ही नहीं पड़ोसी बिहार प्रान्त के जनपदों को भी मुक्ति मिल गई।
यूपी के कुशीनगर जिले का पूर्वी छोर बिहार के पश्चिम चंपारण जिले से सटा हुआ है। दो प्रदेशों के मध्य का यह इलाका रेता क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। इलाके को नारायणी व बांसी नदी का वेट लैंड व जंगल क्षेत्र दुर्गम बनाता है। आजादी के बाद से इस इलाके में दस्यु सरगनाओं का बोलबाला रहा है। शादी, विवाह, मांगलिक कार्य, गृह निर्माण बिना दस्युओं का कर चुकाए नही सम्पन्न होते थे। कीमती लकड़ियां खैरा, शीशम, सागौन की तस्करी बिना दस्युओं की मर्जी से नहीं होती थी। बाद में दस्यु अपहरण कर फिरौती भी वसूलने लगे। विरोध व मुखबिरी की सूचना पर दस्यु सम्बन्धित व्यक्ति को सीधे मौत के घाट उतार देते थे। पुलिस इस इलाके में प्रवेश करने से पहले सौ बार सोचती थी। एक ऑपरेशन में 29 अगस्त 1994 को दस्युओं ने जब छह पुलिस कर्मियों की जान ले ली, तब पुलिस जैसे नींद जगी। बिहार सरकार से सहयोग लेकर इलाके में दस्यु महाउन्मूलन अभियान चलाया गया। यह अभियान काफी सफल रहा। बहुत से दस्यु मारे गए और जो बचे वह नेपाल आदि सुरक्षित स्थान पर छिपकर जान बचाने के लिए मजबूर हुए थे। इसी के बाद जनता को जंगल दस्युओं के आतंक से पूरी तरह मुक्ति मिल गई।