अजय शर्मा
रांची। झारखंड में फोन टेप करने के लिए पुलिस अधिकारी किसी को भी कुछ भी बता देते थे। डोरंडा थाना में सीआइडी के डीएसपी रंजीत लकड़ा ने जो एफआइआर दर्ज करायी है, उससे पुलिस महकमे के आला अधिकारियों के होश उड़ गये हैं। जांच के क्रम में जिन पुलिसकर्मियों के फोन टेप किये जाने और उनके बारे में की गयी अनुशंसा का पता चला है, वह पुलिस के लिए चिंतनीय है। सीआइडी में पूर्व में चौका के तत्कालीन थाना प्रभारी रतन कुमार, जो अभी पुलिस मुख्यालय में पदस्थापित हैं, का फोन टेप किया गया था। रतन कुमार को अपराधी बताया गया था। रतन कुमार जगन्नाथपुर थाना के प्रभारी भी रह चुके हैं। रांची के चुटिया थाना में पदस्थापित दारोगा रंजीत सिंह को आपराधिक गतिविधियों में शामिल बताया गया था। तीसरा पुलिसकर्मी मो इरफान है, जिसका फोन टेप किया गया था। उसे पशु तस्कर बताया गया था। इन तीनों के संबंध में पाक्षिक प्रतिवेदन विशेष शाखा के एडीजीपी को भी उस समय भेज दिया गया था। रिपोर्ट में रतन कुमार सिंह को रांची का सक्रिय अपराधी बताया गया था। रंजीत सिंह के मोबाइल के धारक की पहचान रौनक कुमार के रूप में की गयी थी और उसे धनबाद क्षेत्र का गोवंशी तस्कर बताया गया था। जांच के क्रम में ये सारी रिपोर्ट गलत पायी गयी है। एफआइआर में तीनों के फोन टेपिंग को लेकर मौलिक अधिकार हनन का भी जिक्र है।
उठ रहे हैं सवाल
जूनियर पुलिस अधिकारी सवाल उठा रहे हैं कि सीनियर अधिकारियों के कहने पर वे काम करते हैं। जब कार्रवाई की बारी आती है, तो दारोगा और इस्पेक्टर ही नप जाते हैं। जब आइपीएस अधिकारी फोन नंबरों को गृह विभाग भेजने के लिए अनुशंसा कर रहे थे, तो उन्हें भी इसकी जांच करनी चाहिए थी कि ये नंबर किसके हैं।
सीआइडी के एसपी-डीएसपी से की जा चुकी है पूछताछ
डोरंडा थाना में दर्ज एफआइआर में कहा गया है कि फोन टेप करने के लिए जो अनुरोध पत्र गृह विभाग को भेजा जाता था, उसमें तत्कालीन एसपी मनोज रतन चौथे और तत्कालीन डीएसपी विनोद रवानी के हस्ताक्षर होते थे। इन दोनों ने पूछताछ के क्रम में बताया कि सीआइडी की तकनीकी शाखा के प्रभारी इंस्पेक्टर अजय कुमार साहू जिन नंबरों को लेकर आते थे, उन्हें आवश्यक कार्रवाई के लिए आगे प्रेषित कर दिया जाता था। इन दोनों अधिकारियों ने यह भी कहा कि उनके द्वारा नंबरों का सत्यापन नहीं किया गया और न ही सुना गया। मोबाइल नंबर को टेप करने के लिए जो प्रतिवेदन भेजे गये, उसमें पुलिसकर्मियों की वास्तविक पहचान छिपा दी गयी थी। इन दोनों के बयानों के आधार पर ही इसके लिए इंस्पेक्टर अजय कुमार साहू को दोषी पाया गया और एफआइआर में उनका नाम आरोपी के रूप में शामिल किया गया है।
आरोपी इंस्पेक्टर से होगी पूछताछ
इस मामले का अनुसंधान शुरू कर दिया गया है। आरोपी इंस्पेक्टर अजय कुमार साहू का बयान जांच में महत्वपूर्ण साबित होगा। वह पुलिस के समक्ष क्या स्वीकारते हैं, इसी पर अनुसंधान की दिशा तय होगी।