झारखंड में जमीन की राजनीति खूब होती है। यहां उस ‘जमीन’ की बात नहीं होती, जिसे जनता से जुड़ाव के अर्थ में लिया जाता है, बल्कि उस ‘जमीन’ की बात हो रही है, जिस पर अट्टालिकाएं खड़ी होती हैं और उद्योग-धंधे लगते हैं, यानी रीयल इस्टेट की। आज से करीब 20 साल पहले जब झारखंड बना, तो यहां दो चीजें बहुत तेजी से उभरीं और फैलती चली गयीं। एक था भ्रष्टाचार और दूसरा था रीयल इस्टेट, यानी जमीन का कारोबार। यह कारोबार इतना फैला कि राज्य के भ्रष्टाचार की नदी का सारा पानी इसी गड्ढे में समाता चला गया। काली कमाई को कंपनियों के माध्यम से जमीन में निवेश करना यहां आम हो गया। इसलिए जमीन का आकर्षण भी बढ़ता गया और देखते-देखते पैसेवालों का यह सबसे प्यारा शगल बन गया। विधानसभा के पिछले चुनाव के बाद जब पहली बार झामुमो ने अपने सहयोगियों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी है, जमीन सौदों से संबंधित गड़बड़ियों की पोल खुलने लगी है। अब तो एक आरोप यह भी लगा है कि रांची के बुंडू में एक मौजा ही कुछ पूंजीपतियों के हाथों बेच दिया गया। झारखंड को अब आरोप नहीं, जांच और परिणाम की जरूरत है। इससे पहले भी राज्य पुलिस के कुछ बड़े अधिकारियों द्वारा गैर-मजरुआ जमीन को अपने नाम करा लेने और फिर एक महिला आइएएस अधिकारी द्वारा सरकारी जमीन पर अस्पताल बनाने का मामला सामने आया था, जांच के आदेश भी हुए, लेकिन नतीजा सामने नहीं आया है। इस बार ऐसा नहीं हो, तो यह बड़ी बात होगी। झारखंड के चर्चित जमीन सौदों में जांच की जरूरत को रेखांकित करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
द्वापर युग से कलयुग तक भारतीय जन मानस में जमीन का बहुत महत्व रहा है। महाभारत का युद्ध जमीन को लेकर हुआ और आधुनिक युग में भारत का अपने पड़ोसियों से सीमा विवाद भी जमीन को लेकर ही है। जमीन को भारत के लोग मान-मर्यादा और प्रतिष्ठा से जुड़ा मानते हैं। इसलिए स्वाभाविक तौर पर भारत की राजनीति में भी जमीन का खासा महत्व है। यह महत्व झारखंड जैसे राज्य में और बढ़ जाता है, जहां आदिवासी-गैर-आदिवासी का कानूनी पेंच सामने रहता है। 20 साल पहले जब बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना, यहां जमीन का कारोबार बहुत तेजी से फैला। काली कमाई को जमीन में निवेश किया जाने लगा और इस कारण कीमत भी मनमाने ढंग से बढ़ी। जमीन के मुद्दे पर यहां राजनीति भी खूब हुई और कई बार यह चुनावी मुद्दा भी बना।
अब राज्य में सत्तारूढ़ झामुमो ने खुलेआम कहा है कि रांची के बुंडू इलाके में 14 सौ एकड़ जमीन की लूट हुई है। यह गैर-मजरुआ जमीन हुक्मरानों ने अपने करीबी पूंजीपति मित्रों को दे दिया। इस क्रम में पूरा एक मौजा ही नक्शे से गायब हो गया। यह बेहद संगीन आरोप है। चूंकि यह आरोप सत्ताधारी दल की तरफ से लगाया गया है, राज्य के लोगों को उम्मीद बंध गयी है कि इसकी निष्पक्ष जांच होगी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जायेगी। लोगों के जेहन में पिछले साल का चामा और पल्स अस्पताल का मामला जीवित है, जिनमें जांच के आदेश तो हुए, लेकिन आज तक कोई परिणाम नहीं निकला है। लोग यह नहीं भूले हैं कि कांके के चामा में राज्य के तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय और कई अन्य पुलिस अधिकारियों तथा अन्य प्रभावशाली लोगों ने गैर-मजरुआ जमीन को गलत तरीके से खरीदा और फिर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सरकारी दस्तावेज में हेराफेरी कर अपने नाम करा लिया। इतना ही नहीं, वहां आलीशान मकान भी खड़े हो गये। इसी तरह राज्य की एक महिला आइएएस अधिकारी ने बीच राजधानी में सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया और उस पर उनके पति का अस्पताल खड़ा हो गया। इन दोनों मामलों में जांच के आदेश दिये गये, लेकिन उस आदेश का क्या हुआ, इसका पता आज तक नहीं लग सका है। बुंडू का मामला सामने आने के बाद अब लोगों को उम्मीद है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस पूरे सौदे की जांच करायेंगे और मामले को अंजाम तक पहुंचायेंगे। इसके साथ ही दूसरे चर्चित जमीन सौदों की जांच भी करायेंगे और लोगों के सामने उनके परिणाम भी रखेंगे।
झारखंड के साथ यह विडंबना रही है कि यहां के हुक्मरान, कार्यपालिका और विधायिका से जुड़े लोग और आम जनता को पता है कि गड़बड़ी हुई है या हो रही है, लेकिन कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं दिखती। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप खूब होते हैं।
चुनावी सभाओं में और दूसरे सार्वजनिक मंचों पर आरोप तो खूब लगाये जाते हैं, लेकिन जांच की जहमत कोई नहीं उठाता। पिछले छह महीने में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों के खिलाफ जो एक्शन लिये हैं, जो सख्त कदम सरकार की ओर से उठाये गये हैं, उनसे लोगों को बड़ी उम्मीद जगी है। झारखंड के लोग अब यह खुल कर स्वीकार करते हैं कि अब इस राज्य में लूट-खसोट का खेल नहीं चलेगा। राज्य को खोखला करनेवालों के दिन अब लद गये हैं। अब हर गड़बड़ी का इंसाफ होगा और हर काम का हिसाब लिया जायेगा।
इस लिहाज से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सामने चुनौती बड़ी है। उन्हें न केवल तमाम गड़बड़ियों का पता लगाना होगा, बल्कि हरेक की जांच करा कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। यह काम अकेले राजनीतिक नेतृत्व के बस का नहीं है। इसमें कार्यपालिका को भी सक्रिय होकर मदद करनी होगी। इसके लिए मुख्यमंत्री को सबसे पहले कार्यपालिका में लगे घुन को समाप्त करना होगा। इस दिशा में उन्होंने कदम भी उठाया है और उनके कई फैसले इस बात का साफ संकेत है कि वह गड़बड़ियों के प्रति जीरो टॉलरेंस के अपने वादे पर कायम रहेंगे। तब यह भरोसा झारखंड को हो रहा है कि एक बार जांच की गाड़ी चल निकली, तो यह अपनी मंजिल पर पहुंच कर ही रुकेगी। अब झारखंड को इसकी ही जरूरत है। अब केवल राजनीतिक आरोप नहीं, बल्कि ठोस परिणाम लोगों को चाहिए, ताकि झारखंड की जमीन लूटनेवालों को यह संदेश दिया जा सके कि यह नया झारखंड है।